शादियां पहले भी होती थीं, शादियां आज भी होती हैं। तलाक पहले भी होते थे, तलाक आज भी होते हैं। हां, इतना जरूर है कि शादियों के स्टाइल और तलाक के कारण जरूर बदल और बढ़ गए हैं। तलाक का रेशियो भी बढ़ा है। कहते हैं जोड़ियां भगवान के यहां तय होती हैं, जरूर होती होंगी। पहले जरूर होती होंगी लेकिन अब तो शायद ऊपर भी बिना देखे फाइल निपटाने का चलन चल रहा है। तलाकों की संख्या बढ़ने का एक कारण यह भी हो सकता है।
बहरहाल एक दिन मैं अपने जीवन मित्र फुल्लू जी के पास बैठा था और चर्चा का विषय था – ‘बढ़ते तलाक और बिखरते परिवारों के कारण।’ फुल्लू जी ने बहुत सारगर्भित बात कही, एकदम सटीक और प्रैक्टिकल। उन्होंने कहा कि एक समय था, जब लड़की के माता-पिता, चाचा-ताऊ, नाना-मामा बेटी के घर का पानी तक नहीं पीते थे। पानी न पीने का मतलब था, ज्यादा देर बेटी के ससुराल में न रुकना। न ज्यादा देर रुकते थे, ना फालतू की बातें होती थीं और न ही कोई विवाद। हालचाल पूछे और लौट गए।
फुल्लू जी ने आगे कहा-‘जब से लड़की वाले, बेटी की ससुराल के ड्राइंग रूम में बैठने लगे, जब से बेटी वाले दामाद जी के घर में खाना खाने लगे, जब से बेटी की ससुराल में उसके रिश्तेदार कई दिन तक रुकने लगे, तब से विवाद और तलाकों की संख्या अप्रत्याशित रूप से बढ़ गई है। फुल्लू जी की बात में कड़वी सच्चाई है, जिसे वे लोग कतई नहीं मानेंगे, जो बेटी के घर में बैठकर उससे उसके सास-ससुर, ननद और पति की शिकायत न केवल सुनते हैं, बल्कि उन पर खुलकर रिएक्ट भी करते हैं।
इसके अलावा में व्यक्तिगत रूप से टूटते घरों और बढ़ते तलाकों के लिए मोबाइल को भी जिम्मेदार मानता हूं। आज की बहुएं अपने सास-ससुर से दिन में जितनी बातें करती हैं, उससे दस गुना बातें वो अपने मायके वालों से करती हैं। अपनी सास की तिल जैसी बात को ताड़ सा बनाकर पेश करने में बहुओं को मजा आता है। अगर मैं यह कहूं कि ससुराल पर अब मायके का हावी हो जाना भी झगड़े का कारण है, तो गलत नहीं होगा।
पहले विवाह का एक सामान्य कहो या सर्वमान्य नियम था कि लोग अपनी बेटी के लिए अपने से ऊंचा घर देखते थे और बेटे के लिए बहू अपने से थोड़ा कम हैसियत वाले घर से लाते थे। संभवतः ऐसा एडजस्टमेंट की दृष्टि से किया जाता था। अब ऐसा कोई नियम नहीं है। नियम हो भी कैसे सकता है, चौथाई से ज्यादा बच्चे तो खुद ही अपना विवाह तय करने लगे हैं। मां-बाप को तो बस शादी का इंतजाम करके समारोह में शामिल होकर आशीर्वाद ही देना होता है।