सार
Bihar News : अमर नाथ झा ——
यह उन सैकड़ों छात्रों की कहानी है जिन्हें ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा में पढ़ने की क्रूर सजा मिली थी। जिनके माता-पिता किसी तरह अपने बच्चों को बेहतर भविष्य के लिये कालेज की शिक्षा दिला पाते थे। ये सभी आरके कालेज, मधुबनी स्नातक कला सत्र 1975-77 के परीक्षार्थी थे। इन्हें कथित कदाचार के आरोप में अंग्रेजी द्वितीय पत्र में शून्य अंक देकर फेल कर दिया गया था। संयोगवश सिर्फ एक परीक्षार्थी अपवाद स्वरूप पास हो सका, क्योंकि उसे प्रथम पत्र में एक अंक अधिक आया था। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि फेल होने वाले छात्रों में एक आईएएस अधिकारी बना, एक बिहार कैडर का प्रशासनिक अधिकारी और कई अन्य विभिन्न विभागों में बड़े पदों से सेवा निवृत्त हुए। एक परीक्षार्थी तो यदि इस साजिश का शिकार नहीं होता तो अपने विषय में विश्वविद्यालय का टापर होता। बिहार के शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक जिस सड़-गल चुकी शिक्षा व्यवस्था को दुरूस्त करने में जुटे हैं, इसकी नींव तो सत्तर और अस्सी के दशक में ही रखी जा चुकी थी।
विस्तार
यह कहानी है 1977 की। बिहार में कर्पूरी ठाकुर के नेतृत्व में सरकार बन चुकी थी। ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा में स्नातक की परीक्षाएं शुरू हुईं। परीक्षा में बड़े पैमाने पर नकल की शिकायतें आयीं। विवि प्रशासन ने दो बार परीक्षाएं निरस्त कर दीं। इसमें लगभग दो साल बर्बाद हो गये। इसके बाद तीसरी बार परीक्षा आयोजित की गयी। हमारे जैसे आरके कालेज के तमाम परीक्षार्थियों ने विवि जाकर अधिकारियों से अनुरोध किया कि जिन लोगों के कारण कदाचार की शिकायतें आती रही हैं, चिन्हित कर उनके खिलाफ कार्रवाई की जाये। साथ ही परीक्षा केंद्रों पर स्थानीय पुलिस की बड़े पैमाने पर तैनाती की जाये जिससे परीक्षा सकुशल संपन्न हो जाये। परीक्षा कदाचार मुक्त हो, यह जिम्मेदारी विश्वविद्यालय और स्थानीय प्रशासन की है। परीक्षा निरस्त होती है और इसका परिणाम भुगतते हैं मेधावी और पढ़ने वाले छात्र।
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लिहाजा, तीसरी बार पूरी परीक्षा सकुशल संपन्न हो गयी। परीक्षार्थी भी निश्चिंत थे कि दो वर्ष तो बर्बाद हो गये, किसी तरह इस बार सब ठीक रहा। सभी रिजल्ट निकलने की उम्मीद में थे। इसी बीच एक मनहूस समाचार आरके कालेज, मधुबनी स्नातक कला परीक्षार्थियों के लिये आया। सैकड़ों छात्र फेल कर दिये गये। जानकारी मिली कि जिस जेएन कालेज, मधुबनी में परीक्षा केंद्र बना था, उसके प्रधानाचार्य ने विवि को एक रिपोर्ट भेजी है जिसमें आरोप लगाया गया है कि अंग्रेजी द्वितीय पत्र में कदाचार हुआ है। लिहाजा परीक्षा निरस्त कर दी जाये। इसी आधार पर विवि एकेडेमिक काउंसिल (काउंसिल में दरभंगा के विभिन्न कालेजों के शिक्षकों का बर्चस्व था) ने उस पत्र में शून्य अंक देकर परीक्षा परिणाम घोषित कर दिया। परिणाम यह हुआ कि सभी छात्र फेल कर दिये गये। इस तरह की शिकायतें तमाम केंद्रों से आयी थीं, परंतु निशाना सिर्फ आरके कालेज के स्नातक कला के परीक्षार्थियों को ही बनाया गया।
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यह आरके कालेज के छात्रों के लिये किसी वज्रपात से कम नहीं था। तीन साल बर्बाद हुए, तीन बार परीक्षा दी फिर भी परिणाम शून्य। इस वाकये के कई और पहलू हैं। उस दौर में स्नातक कला में अंग्रेजी में दो प्रश्नपत्र होते थे। अंग्रेजी अनिवार्य विषय था। पूर्णांक 200 नंबर का था। पास होने के लिये प्रति विषय में 33 नंबर और दोनों पत्र में 66 नंबर प्राप्त करना अनिवार्य था। आरके कालेज के सिर्फ एक परीक्षार्थी (कीर्ति नारायण झा) को छोड़कर कुछ को अंग्रेजी प्रथम प्रश्न पत्र में मात्र 45 और अधिकांश को उससे कम नंबर दिये गये। कीर्ति नारायण झा को 46 नंबर दिये गये थे। बाद में विवि प्रशासन ने अंग्रेजी में पास होने के लिये 20 नंबर ग्रेस भी दिया। इस तरह जिनको दोनों विषय में कुल 66 नंबर प्राप्त हुए, वे पास हो गये। इस तरह कीर्ति नारायण झा 46 जोड़ 20 बराबर 66 अंक प्राप्त कर पास हो गये। इसके बाद आरके कालेज के सभी छात्र फेल कर दिये गये। इसके बाद सिर्फ कुछ छात्रों को नंबर दिये गये थे-45 जोड़ शून्य बराबर 45। 20 नंबर का ग्रे्रस भी उनके किसी काम नहीं आया। जबकि 20 नंबर ग्रेेस पाकर विवि के दर्जनों कालेजों के तमाम छात्र पास हो गये क्योंकि उनका कोई विषय निरस्त नहीं किया गया था।
Bihar News जो छात्र परीक्षा में फेल कर दिये गये वो बने आईएएस
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि जो छात्र उस परीक्षा में फेल कर दिये गये थे, उनमें देवेन्द्र मिश्र संघ लोकसेवा आयोग की परीक्षा में पास हुए और केंद्र सरकार के विभिन्न पदों पर कार्य करते हुए सेवा निवृत्त हुए। इसी प्रकार जय नारायण झा बिहार लोकसेवा आयोग की परीक्षा में पास हुए और कई जिलों के जिलाधिकारी समेत तमाम बड़े पदों पर कार्य करते हुए सेवा निवृत्त हुए। जय नारायण झा अंगे्रजी आनर्स के मेधावी छात्र थे। कई छात्र अन्य विभिन्न बड़े पदों पर कार्य करते हुए सेवा निवृत्त हुए। मुझे उस सत्र में हिन्दी प्रतिष्ठा में प्रथम श्रेणी का अंक प्राप्त हुआ था। बाद में जानकारी मिली कि उस सत्र में हिन्दी प्रतिष्ठा में एक भी छात्र प्रथम श्रेणी में नहीं आया था। यदि मुझे अंग्रेजी द्वितीय प्रश्न पत्र में शून्य अंक नहीं दिया जाता और प्रथम पत्र में 46 नंबर दिया जाता तो मैं अपने विषय में विश्वविद्यालय में प्रथम श्रेणी में प्रथम स्थान प्राप्त करता। विवि का टापर माना जाता। ( मुझे प्रथम पत्र में सिर्फ 45 नंबर दिया गया था। पास होने के लिये जरूरी अंक 46 से एक नंबर कम)। इसे संयोग ही माना जायेगा कि जब फिर मैंने फिर परीक्षा दी तो प्रथम श्रेणी में ही पास हुआ। इसके बाद मैंने मिथिला विश्वविद्यालय को तमाम कटु अनुभवों के साथ छोड़ दिया और एमए की पढ़ाई पटना विवि से पूरी की।
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आखिर मिथिला विश्वविद्यालय के एकेडेमिक काउंसिल ने आरके कालेज के छात्रों के खिलाफ ऐसा नैतिकताविहीन और पक्षपातपूर्ण निर्णय क्यों लिया। इस संदर्भ में विवि के सूत्रों ने बताया कि ऐसा आकस्मिक नहीं था। आरके कालेज, मधुबनी दरभंगा के विभिन्न कालेजों के शिक्षकों की नजर में पिछड़ों का कालेज माना जाता था। जबकि सच्चाई यह थी कि उसमें पढ़ने वाले आधिकांश छात्र अगड़ी जाति से आते थे। जिन परीक्षार्थियों का करियर बर्बाद करने की कोशिश की गयी उनमें भी अधिकांश ब्राह्मण जाति से आते थे। लिहाजा, 1977 में बिहार में कर्पूरी ठाकुर के नेतृत्व में सरकार बन चुकी थी। मुख्यमंत्री श्री ठाकुर ने बिहार की सरकारी सेवाओं में पिछड़ों के लिये 27 फीसदी आरक्षण लागू कर दिया था। इसका विवि के अगड़े छात्रों ने व्यापक विरोध किया था। आरके कालेज में भी अगड़ा-पिछड़ा विवाद तेज था। मिथिला विवि के शिक्षकों की ‘दरभंगा लाबी’ ने इसी बहाने आरके कालेज को सबक सिखाने की रणनीति बनाई और इसका शिकार बने सैकड़ों निरपराध छात्र, जिनका अगड़ा-पिछड़ा विवाद से कोई लेनादेना नहीं था।
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संयोग ही कहा जाये कि तत्कालीन ‘दरभंगा लाॅबी’ की कुदृदिष्ट स्नातक के ही विज्ञान और कामर्स के परीक्षार्थियों पर नहीं पड़ी। लोगों ने बताया कि एक सोच समझी साजिश के तहत विज्ञान और कामर्स को परीक्षार्थियों को छोड़ दिया गया था। ताकि इससे बदनामी होती। यहां यह बताना दिलचस्प होगा कि 1975-77 में ही कामर्स आनर्स विषय से आज के बिहार के उद्योगमंत्री समीर कुमार महासेठ तथा विज्ञान विषय के रसायन शास्त्र आनर्स से बिहार के प्रख्यात न्यूरो फिजिशियन डाक्टर विनय कारक परीक्षार्थी थे। उद्योग मंत्री समीर महासेठ के पिता राजकुमार महासेठ बिहार विधान परिषद के सदस्य तो थे ही ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय सिंडिकेट के भी सदस्य थे। उन्होंने सिंडिकेट की बैठक में आरके कालेज के छात्रों के साथ पक्षपात पूर्ण निर्णय का विरोध किया तथा एकेडेमिक काउंसिल से अनुरोध किया कि वह इस फैसले पर पुनर्विचार करे, जिससे छात्रों का भविष्य बर्बाद न हो। लेकिन ‘दरभंगा लाॅबी’ ने उनके अनुरोध को ठुकरा दिया। अब आप सोचिये। उन छात्रों को शून्य अंक देकर फेल कर दिया गया, जिनमें कोई आईएएस बना, कोई बीपीएससी की परीक्षा पास कर अधिकारी बना, कोई बैंक मैनेजर बना, कोई अपनी मेधा से बड़े पदों पर पहुंचा, किसी ने दैनिक जागरण जैसे बड़े समाचार पत्र में सभी महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया। यह उस विश्वविद्यालय के अधिकारियों की शैक्षिक संवेदना, नैतिकता और विवेक पर सीधे प्रश्न करता है।Bihar News
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