Chanakya Niti : स्वस्थ जीवन के लिए नींद का आना बेहद जरुरी है। लेकिन कुछ लोग ऐसे होते हैं, जिन्हें सोते हुए को भी जगा देना चाहिए। यदि आप ऐसा नहीं करेंगे तो भविष्य में आपको इसका नुकसान भी उठाना पड़ सकता है। देश के महान अर्थशास्त्री और कूट राजनीतिज्ञ आचार्य चाणक्य का मानना है कि कुछ लोगों को हमेशा जागते हुए रहना चाहिए। यदि वह नींद की झपकी लेते हैं तो उससे बड़ा नुकसान होता है। आचार्य चाणक्य ने कहा कि यदि आप भी कुछ लोगों को सोते हुए देखते हैं तो आपका भी फर्ज बनता है कि उन्हें जगा दें। आइए जानते हैं कि वो लोग कौन हैं, जिन्हें समय समय पर जगाते रहना चाहिए…
Chanakya Niti in hindi
आपको बता दें कि आचार्य चाणक्य की नीतियां आज भी उतनी ही प्रासंगिक है, जितनी उनके कार्यकाल में थी। आचार्य चाणक्य के नीति शास्त्र ‘चाणक्य नीति’ के कुछ कथन ऐसे हैं, जिन पर अमल करके जिंदगी को सफल बनाया जा सकता है। देश के बहुत सारे लोग आज भी उनकी नीतियों का अनुसरण करके अपनी जिंदगी को खुशहाल बना रहे हैं।
इन्हें सोने न दें
आचार्य चाणक्य के नीति शास्त्र ‘चाणक्य नीति’ में आचार्य चाणक्य ने लिखा है कि…
विद्यार्थी सेवकः पान्यः क्षुधातों भयकातरः।
भाण्डारी च प्रतिहारी सप्तसुप्तान् प्रबोधचेत॥
यहां आचार्य चाणक्य कुछ लोगों को जगाने की बात करते हैं। आचार्य चाणक्य कहते हैं कि विद्यार्थी, सेवक, पथिक, भूख से दुःखी, भयभीत, भण्डारी, द्वारपाल- इन सातों को सोते हुए से जगा देना चाहिए। अर्थ यह है कि पढ़ाई करने वाले छात्र छात्राओं को, घर या दुकान के नौकर को, रास्ते में सोये हुए राहगीर को, भूखे व्यक्ति को, किसी बात से अत्यन्त डरे हुए व्यक्ति को, किसी गोदाम आदि के रक्षक-चौकीदार को तथा द्वारपाल (गेटकीपर) को सोने नहीं देना चाहिए। यदि ये सोये हुए हों, तो इन्हें जगा देना चाहिए।
इन्हें जगाएं नहीं
इसी के साथ आचार्य चाणक्य कुछ लोगों को कभी नींद से जगाए जाने की बात भी करते हैं, वह कहते हैं कि …
अहिं नृपं च शार्दूल वराटं बालकं तथा।
परश्वानं च मूर्ख च सप्तसुप्तान्न बोधयेत्।।
यहां आचार्य चाणक्य का कहना है कि सांप, राजा, शेर, बरं, बच्चा, दूसरे का कुत्ता तथा मूर्ख यदि सो रहे हैं तो उन्हें भूलकर भी नहीं जगाना चाहिए। यदि आप इन लोगों को जगा देते हैं तो आपको हानि हो सकती है।
आशय यह है कि यदि सांप, राजा, शेर, बरं (ततैया), बच्चा किसी दूसरे व्यक्ति का कुता और मूख, ये सात सो रहे हैं तो उन्हें सोते ही रहने दें। इन्हें उठाना अच्छा नहीं रहता।
इनसे कोई हानि नहीं
अर्थाधीताश्च पैर्वेदास्तथा शुद्रान्नभोजिनः।
ते द्विजाः किं करिष्यन्ति निर्विषा इव पन्नगाः॥
आचार्य का कहना है कि धन के लिए वेदों का अध्ययन करने बाला, शुदाँ का अन्न खाने वाला ब्राह्मण विषहीन सांप के समान है। ऐसे ब्राह्मण का क्या करेंगे।
आशय यह है कि वेदों का अध्ययन ज्ञान प्राप्त करने के लिए किया जाता है, किन्तु जो ब्राह्मण धन कमाने के लिए वेद पड़ता है तथा शूद्रों का अन्न खाता है, वह ब्राह्मण विषहीन सांप के समान होत है। ऐसा ब्राह्मण अपने जीवन में कोई अच्छा काम नहीं कर सकता।
Chanakya Niti इनसे न डरें
यस्मिन् रुष्टे भयं नास्ति तुष्टे नैव धनागमः।
निग्रहोऽनुग्रही नास्ति स रुष्टः किं करिष्यति॥
आचार्य यहां कहते हैं कि जिसके रुष्ट होने पर कोई भय नहीं होता और न प्रसन्न होने पर धन ही मिलता है, जो किसी को दण्ड नहीं दे सकता तथा न किसी पर कृपा कर सकता है। ऐसा व्यक्ति रुष्ट होने पर क्या लेगा?
आशय यह है कि जो व्यक्ति किसी ऊंचे पद पर न हो और धनवान भी न हो, ऐसा व्यक्ति रूठ जाने पर किसी का क्या बिगाड़ लेगा और प्रसन्न हो जाने पर किसी को क्या दे देगा? ऐसे व्यक्ति का रूठना या खुश हो जाना कोई माने नहीं रखता।
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