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सरकारी नौकरियों में किसानों को 60% आरक्षण देना चाहते थे चौधरी चरण सिंह

Bharat Ratna chaudhaury Charan Singh

Bharat Ratna chaudhaury Charan Singh

Charan Singh Jayanti : चौधरी चरण सिंह ने अपना राजनीतिक कैरियर खेतिहरो, कृषि, किसानों और भारत के गांवों के मुख्य संरक्षक के तौर पर शुरू किया था। हालांकि राजनीति के हर पहलू पर उनके स्पष्ट विचार थे लेकिन उनके पूरे राजनीतिक कैरियर के दौरान किसानों के मुद्दों से जुड़ी चिंताएं उनकी सोच में सबसे प्रमुख रहे थे। उनके बचाव में वह कभी लड़खड़ाए नहीं और वास्तव में किसानों का जीवन और उनके मूल्य चौ॰चरण सिंह के लिए अनुष्ठान थे । यह पंक्तियां हैं चौधरी चरण सिंह पर पॉल. आर॰ ब्रास की लिखी किताब “चरण सिंह और कांग्रेस राजनीति, एक भारतीय राजनीतिक जीवन 1937 से 1961 तक  में लिखी गई है। देश के पांचवें प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह देश में गांव के साथ हुए भेदभाव को लेकर काफी आहत थे और वह सरकारी नौकरियों में 60% स्थान किसानों के लिए आरक्षित चाहते थे।

सरकारी नौकरियों में किसानों को 60% आरक्षण देना चाहते थे चौधरी चरण सिंह

उन्होंने भारतीय समाज में विभाजन की मुख्य रेखा को देखा जो शहर वासियों और ग्रामीणों में, कृषि और उद्योग में,किसान बनाम व्यावसायिक मूल्य में और गांव बना बनाम शहर में थी। चौधरी चरण सिंह ने कांग्रेस में रहते हुए हमेशा किसानों के हितों के मुद्दों को जोर-शोर से उठाया और इस विषय में पहला धमाका उन्होंने तब किया जब 1939 में कुछ प्रस्ताव के उन्होंने उत्तर प्रदेश कांग्रेस विधायक पार्टी की कार्यकारी समिति की स्वीकृति के लिए तैयार किए थे। प्रस्ताव में लिखा गया था “जब हमारा प्रांत मुख्य रूप से कृषि प्रधान है और बहुत बड़ी संख्या में सरकारी कर्मचारियों का काम कृषि विभाग या उस प्रशासन विभाग में पड़ता है जो केवल ग्रामीण वर्गों के कल्याण को समर्पित है जबकि सार्वजनिक रोजगार अब लगभग पूरी तरह से गैर कृषि या शहर वासियों के पास या उनके पास जो गरीब किसानों पर रोब जमाते हैं और फल स्वरुप वह कृषकों की परेशानियों के साथ कोई सहानुभूति नहीं रखते या उनकी आवश्यकताओं की कद्र नहीं कर सकते क्योंकि यह किसान ही है जिनका प्रांत के राजस्व में 80% योगदान है ,पार्टी की राय है कि सरकार को कुशलता का पूरा सम्मान करते हुए सरकारी रोजगार में काम से कम 50% रोजगार वास्तविक खेत जोतने वालों के बच्चों या उनके आश्रितों को देने की गारंटी देनी चाहिए ताकि प्रांत के प्रशासन में किसान अपना उचित हिस्सा पा सके और सरकार के उद्देश्य और प्रयोजन बेहतर तरीके से पूरे हो सके।” 

चौधरी चरण सिंह कि इस प्रस्ताव में साफ किया कि एक ऐसे समय में जब सरकार और सरकारी नौकरियों में प्रतिनिधित्व की मांग जाति और धार्मिक समूह की बहुलता के आधार पर की जा रही है वहीं किसान के पर्याप्त प्रतिनिधित्व और उनके हित का जाति से कोई लेना देना नहीं है।

समकालीन समाज में ग्रामीणों को कुछ नहीं मिला : चौधरी चरण सिंह

Charan Singh Jayanti

 चौधरी चरण सिंह उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा ऐसे बिल को पास कराने व लागू करने के अपने प्रयासों में न केवल दृढ़ रहे बल्कि बाद में उन्होंने प्रस्तावित कोटे को बढ़ाकर 60% कर दिया और कोटे के पक्ष में अपने तर्क उतने ही जोश के साथ देते रहे। चरण सिंह का कहना था वास्तव में समकालीन समाज में ग्रामीणों को कुछ नहीं मिला है। चरण सिंह ने कहा गांव के लोग लगभग वही रह गए जहां थे। जीवन की सभी आधुनिक सुविधाएं जैसे स्कूल कॉलेज हॉस्पिटल सड़के और बिजली नगरों में है लेकिन ऐसी सुविधा ग्रामीण क्षेत्र की जनता को नहीं दी गई। चरण सिंह ने इन सुविधाओं के गांव में नहीं पहुंच पाने की मुख्य वजह सरकारी नौकरियों में नियुक्तियों में भेदभाव को बताया और अपने प्रस्ताव को न्याय संगत ठहराया कि बस उन सिद्धांतों को सही करना है जिनके आधार पर सरकारी नौकरियों में प्रवेश केवल शहरी लोगों, कारोबारी ,व्यापारियों और पेशेवरों के वर्ग को ही मिलता है, जबकि ग्रामीण, खेतीहर, किसान ,गरीब काश्तकारों के वर्ग जो अब तक गरीबी के बोझ तले दबे रहे हैं को कुछ नहीं मिलता, क्योंकि समाज ने उन्हें मौके दिए ही नहीं ।

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भारतीय समाज दो वर्गों में बंटा है, सुविधा संपन्न वर्ग और सुविधा विहीन

चरण सिंह द्वारा वर्ग शब्द का इस्तेमाल व्यापक अर्थ में समझ जाना चाहिए क्योंकि उन्होंने वास्तव में भारतीय समाज को दो वर्गों में देखा था एक सुविधा संपन्न वर्ग और दूसरा वह जिसे आधारभूत सुविधाएं भी नहीं मिली। इसके अलावा उनका विचार था जिस तरह से विशेषाधिकार प्रभावशाली वर्ग के पास है यह अधिकार उनकी आने वाली पीढियां को नहीं मिलना चाहिए इसलिए सरकारी नौकरियों में किसान वर्ग के लिए 60% आरक्षण के साथ ही चरण सिंह ने एक अतिरिक्त प्रस्ताव रखा कि सरकारी मुलाजिमों के बेटे और आश्रित, सरकारी पदों के लिए अयोग्य घोषित होने चाहिए क्योंकि इनके संरक्षकों को एक बार यह मौका मिल चुका है कि वह अपने बच्चों के लिए आजीविका का प्रबंध कर सकें और अब यह अवसर दूसरों को मिलना चाहिए ताकि वह भी इसी तरह लाभान्वित हो सके।

आरक्षण में यह मुद्दा जाति का नहीं बल्कि जमीन जोतने वालों का

चरण सिंह ने जाति पर ध्यान दिए बिना समाज के एक बड़े वर्ग के रूप में ज्यादातर ग्रामीण किसानों, खेतिहरों के विषय में लिखा और बोला। उनके अनुसार आरक्षण में यह मुद्दा जाति का नहीं बल्कि जमीन जोतने वालों का था ,भले ही वह किसी भी जाति से हों।

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किसान आरक्षण का सपना हो न सका पूरा

लेकिन चौधरी चरण सिंह की आकांक्षा कभी पूरी ना हो पाई उन्होंने यह स्वयं कहा “यह देखना कितने खेद की बात है कि 1973 में कांग्रेस मंत्रालय की अस्तित्व में आने के बाद भी इस संबंध में कुछ नहीं हुआ ना देश के किसी और हिस्से में हालात बेहतर थे, पड़ोसी पंजाब में शहरी हितों के लिए खेतिहरों के हितों की कुर्बानी दे दी गई थी। ” चरण सिंह ने अपने विचार को सही साबित करने के लिए कार्ल मार्क्स का भी जिक्र किया “मार्क्स इस विचार का प्रचार करते थे कि राज्य पर जिस वर्ग का नियंत्रण है वह वर्ग हमेशा इसका इस्तेमाल अपने स्वयं के हित में करेगा” उनका कहना था लोकप्रिय सरकार के लिए यह आवश्यक है कि वह केवल ऐसे कार्यकर्ताओं को नौकरी दे जो वफादारी से उनकी इच्छा को लोगों को बताएं इसलिए इस कृषि प्रबलता वाले प्रांत से ग्रामीण मानसिकता के अवसरों और कर्मचारियों की भर्ती बहुत बड़ी संख्या में करें, विभिन्न सरकारी विभागों में अधिकतर ग्रामीण लोगों को स्टाफ के रूप में भर्ती करने से सरकारी कामकाज में कुशलता आएगी। क्योंकि वे लोग ग्रामीण इलाकों और ग्रामीणों को बहुत अच्छे से जानते हैं।  हांलाकी किसानों को सरकारी नौकरियों में आरक्षण दिलाने की अपनी लड़ाई चरण सिंह हार गए थे लेकिन वे किसानों के कल्याण और उनकी उन्नति के लिए जीवन भर कार्य करते रहे। आरक्षण के लिए अपनी दलीलों में उन्होंने लिखा था यह जमीन जोतने वाले ही हैं जिन पर करो कि मार पड़ती है।  1967 में चरण सिंह ने कांग्रेस से अलग होकर एक पार्टी की स्थापना की जिसमें उन्होंने उत्तर भारत के साथ देश के सभी किसानों की बात की और यह भारतीय क्रांति दल बीकेडी (BKD) के प्रमुख के रूप में 1972 में उन्होंने कई दस्तावेज और घोषणा पत्र तैयार की जिसमे चरण सिंह के किसान हित के विचार व्यापक रूप से झलकते थे।Charan Singh Jayanti

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