Site icon चेतना मंच

चुनाव से ठीक पहले यूपी में बना बंगाल जैसा माहौल, क्या नतीजा वही होगा!

UP Election 2022

UP Election 2022

पश्चिम बंगाल चुनाव और उसके नतीजों से पहले जिस तरह की परिस्थितियां बनीं थीं, कुछ वैसे ही हालात एक बार फिर से बन रहे हैं। देखना यह है कि क्या इस बार इतिहास खुद को दोहराता है या नहीं।

आईआईटी कानपुर की भविष्यवाणी
देश में एक बार फिर से कोरोना और उसके नए वैरिएंट, ओमिक्रॉन (Omicron) को लेकर दहशत का माहौल है। इस वैरिएंट के सामने आने के बाद विशेषज्ञों ने सबसे पहली बात यही कही थी कि कोरोना (Covid-19) के अब तक के किसी भी वैरिएंट की तुलना में इसका संक्रमण कई गुना तेजी से फैलता है।

यह बात अमेरिका, यूरोप और अब भारत में भी सही साबित हो रही है। आईआईटी कानपुर (IIT Kanpur) ने भी अपने एक शोध में यह आशंका जाहिर कर दी थी कि भारत में कोरोना की तीसरी लहर आना तय है और फरवरी में यह चरम पर होगी।

आईआईटी कानपुर (IIT Kanpur) के प्रोफेसर मनिंद्र अग्रवाल (Prof Manindra Agrawal) के मुताबिक, जनवरी से मार्च के बीच भारत में रोजाना डेढ़ से दो लाख मामले आ सकते हैं। प्रोफेसर अग्रवाल का कहना है कि तीसरी लहर (Third Wave) अप्रैल तक खिंच सकती है और इसमें चुनावी रैलियां सुपर स्प्रेडर (Super Spreader) का काम करेंगी।

दो आयोजन और एक वायरस
सब जानते हैं कि यूपी, पंजाब और उत्तराखंड सहित पांच राज्यों में इस साल विधानसभा चुनाव (Assembly Election 2022) होने वाले हैं। यूपी और पंजाब में सभी राजनीतिक दल जोर-शोर से चुनाव प्रचार में लगे हुए हैं। रोड शो, जनसभाएं और भारी भीड़ के साथ सार्वजनिक कार्यक्रम किए जा रहे हैं ताकि, वोटरों को लुभाया जा सके।

इस बीच नए साल का स्वागत उत्सव मनाने के लिए देश के लगभग हर पर्यटक स्थल पर बड़ी संख्या में लोग जमा हुए और ओमिक्रॉन (Omicron) की परवाह किए बिना जमकर पार्टी की। कोरोना, ओमिक्रॉन (Omicron) और तीसरी लहर (Third Wave) की आशंकाओं के बावजूद आखिर क्यों लोग सावधानी बरतने को तैयार नहीं हैं?

क्योंकि, नेताओं ने दिया यह संदेश
यह सवाल जितना स्वाभाविक है उसका जवाब भी उतना ही सहज है। उत्तर भारत के सबसे लोकप्रिय नेताओं में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi), योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath), अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav), अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal), नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu), प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi) और राहुल गांधी (Rahul Gandhi) शामिल हैं।

तीसरी लहर की आशंकाओं के बावजूद इनमें से किसी भी नेता ने अपने सार्वजनिक व्यवहार से यह जाहिर नहीं किया कि हमें क्या सावधानी बरतनी चाहिए। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने दिसंबर में काशी विश्वनाथ धाम कॉरिडोर (Kashi Vishwanath Dham Corridor) का उद्घाटन किया जिसमें हजारों की भीड़ जमा हुई।

अखिलेश यादव लगातार रोड शो कर रहे हैं जिसमें हजारों की संख्या में लोग उन्हें देखने और उनसे हाथ मिलाने के लिए उनकी गाड़ी के पीछे दौड़ते नजर आते हैं। ऐसे अनेको नाम और उदाहरण गिनाए जा सकते हैं। आश्चर्य की बात यह है कि इसमें कोई दल या नेता किसी से पीछे नहीं है।

क्या सारा दोष नेताओं का है
नेताओं की बात इसलिए क्योंकि, आम लोग इन नेताओं को देखकर यह अंदाजा लगाते हैं कि कोरोना (Covid-19) को लेकर जो डर पैदा किया जा रहा है उसमें दम है या नहीं। लोगों को लगता है कि जब इतने बड़े नेता जो रोज हजारों या लाखों लोगों के बीच आ-जा रहे हैं, अगर उन्हें कुछ नहीं हो रहा है तो, हमें क्या होगा। हम कौन सा रोज हजारों-लाखों के संपर्क में आते हैं।

नेताओं की रैलियों और उनके पीछे चल रहे रेले से आम जनता में यह संदेश जाता है कि अभी सबकुछ ठीक है। क्योंकि, कुछ भी गड़बड़ होने पर नेता ही सबसे पहले आवाज उठाते हैं। चाहे प्याज की कीमत हो या पेट्रोल के बढ़ते दाम। अगर किसी भी दल का कोई भी नेता कोरोना (Covid-19), भीड़ या रैली का विरोध नहीं कर रहा है तो, इसका मतलब है कि डरने की कोई बात नहीं है।

मीडिया और महामारी से ज्यादा इनका होता है असर
कोरोना भगाने के लिए थाली पीटना, महिला मैराथन में हजारों लड़कियों का सड़कों पर दौड़ना और चोटिल होना जैसी घटनाएं बताती हैं कि नेताओं का आम जनता पर कितना प्रभाव होता है। नेताओं के व्यवहार और उनके संदेश का असर किसी भी मीडिया, रिसर्च या चेतावनी से कहीं ज्यादा गहरा होता है।

उत्तर भारत के ज्यादातर हिस्सों में पिछले कुछ महीनों से नेताओं का पूरा ध्यान चुनाव पर है तो, जाहिर है आम जनता का ध्यान भी कोरोना (Covid-19) या तीसरी लहर (Third Wave) पर तो बिलकुल नहीं है। इसी का नतीजा है नये साल का जश्न और बाजारों में उमड़ रही बेपरवाह भीड़।

थाली पीटने और टीका लगवाने के पीछे की लॉजिक
नेताओं के असर का सबसे बड़ा प्रमाण है कोरोना (Covid-19) की पहली लहर। पहली लहर से पहले पूरे देश में कोरोना के प्रति जो माहौल पैदा किया गया उसी का असर था कि जब अमेरिका और यूरोप में कोरोना (Covid-19) कहर बरपा रहा था तब भारत में स्थिति नियंत्रण में थी।

देश में कोरोना के टीकाकरण (Vaccination) के प्रति सकारात्मक माहौल पैदा करने में भी नेताओं का बड़ा योगदान है। हालांकि, दूसरी लहर के दौरान कोरोना (Covid-19) के प्रति नेताओं के लचर रवैये का असर आम जन पर भी पड़ा और पूरे देश को इसका गंभीर खामियाजा भुगतना पड़ा।

फिर बना बंगाल चुनाव से पहले वाला माहौल
पहले लॉकडाउन (Lockdown) के बाद कोरोना संक्रमण की गंभीरता के आधार पर लॉकडाउन या पाबंदियों पर फैसला करने का अधिकार राज्य सरकारों को दे दिया गया है। 2021 में बंगाल विधानसभा चुनाव, यूपी पंचायत चुनाव या उत्तराखंड में कुंभ जैसे आयोजन से पहले क्या सख्ती की जानी चाहिए, यह तय करने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों की थी। इसमें कोई दो राय नहीं कि तत्कालीन राज्य सरकारों और नेताओं ने राजनीतिक फायदे के चलते महामारी की अनदेखी की जिसकी परिणति दूसरी लहर की भयावह त्रासदी के रूप में सामने आई।

देश में एक बार फिर से कुछ वैसे ही हालात बन रहे हैं। इस बार बंगाल की जगह यूपी और पंजाब के विधानसभा चुनाव हैं और कोरोना (Covid-19) की तीसरी लहर (Third Wave) दस्तक दे चुकी है। पिछली बार होली का त्योहार बीता था और इस बार नए साल का उत्सव। तो, क्या इस बार भी महामारी पर चुनाव भारी पड़ेगा या चुनाव के बाद लाशों के ढेर पर आरोप-प्रत्यारोप का वही गंदा खेल खेला जाएगा?

इन सवालों का जवाब तो आने वाला वक्त ही देगा। देखना बस यह है कि चुनाव नतीजों को अपने पक्ष में करने के लिए, तीसरी लहर के सामने कितने इंसानों की बलि चढ़ाई जाती है।

– संजीव श्रीवास्तव

Exit mobile version