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नोएडा में लोहड़ी की धूम: मसानं ल्या, मसानंल्या, मेरी जान आज दिन मसानं ल्या

Lohri celebration In Noida

Lohri celebration In Noida

Lohri celebration In Noida  :  लोहड़ी पर कई तरह की कहानियाँ प्रचलित हैं। श्री कृष्ण तो  सर्वव्यापी हैं। वे कसं को मार मथुरा के सिंहासन पर शोभित हुए फिर जरासंध के रोज रोज के हमलों से अपनी प्रजा को सुरक्षित रखने तथा के लिए अपनी पूरी प्रजा को लेकर द्वारिका चले गए। इसलिए उत्तर से दक्षिण तक सभी जगह ये त्यौहार बहुत ही खुशी के साथ अग्नि जलाकर ढोल बजा, नाच गा कर मनाया जाता है। श्री कृष्ण के भाई बलराम  हलधर थे। उन्होंने धरती माता से अन्न लिया तथा वक्त आने पर लड़ाई में हथियार के लिए भी इस्तेमाल किया। किसान उनकी पूजा करते हैं। भारत क्योंकि विभिन्नताओं का देश है इसलिए हर जगह इसके अपने अपने नाम हैं। जैसे  लोहड़ी, पोंगल, बिहू, उत्तरायण, मकर विलक्कू, मकर संक्रांति इत्यादि। । नाम अलग अलग हैं पर हैं सब ही सूर्य की दिशा बदलने से फसलों के पकने, तथा खिले – खिले दिन आने के त्योहार।

अंजना भागी

पंजाब में लोहड़ी के लिए यह  दूल्ला भट्टी की कथा प्रचलित है । कभी कभी साहूकारों का कर्ज किसानों पर ज्यादा हो जाता था । बीज बोने को लिया गया कर्ज, बीमारी शादी  की वजह से लिए कर्ज से वे कंगाली में ही चले जाते थे। उसके लिए उन्हें प्रताड़ित किया जाता था। उनके परिवारों के बच्चे बेटियों तक को नहीं बख्शा जाता था। ऐसे में  उनमें से ही कोई बहादुर जंगलों में भाग जाता था,दूल्ला भट्टी बन कर। नोएडा मे रहने वाले विनोद शर्मा(अध्यक्ष सेक्टर 108) के अनुसार मुगल या अंग्रेजों के साथ साथ हमारे देश के ही साहूकारों ने भी हमारे देश के किसानों को कर्ज में काफी डूबा रखा था । यूं बने डाकुओं की मंशा आम लोगों को लूटने या सताने की नहीं होती थी। बल्कि आततायियों को राह पर लाने की होती थी। दूल्ला भट्टी, भी उन्हीं में से एक था । उसने भी यह बीड़ा उठाया था कि वह हर गरीब की बेटी की शादी करेगा जिसके लिए वह अमीर साहूकारों को लूटता जिस धी या बेटी को दूल्ले ने ब्याहा उसकी बहन या बेटी की ओर उंगली उठाने की भी किसी की हिम्मत नहीं होती थी। इसलिए आज भी सुंदर मुंदारिये तेरा कौन बेचारा दूल्ला …  ।

सुंदर मुंदारिये तेरा कौन बेचारा दूल्ला …

Lohri celebration In Noida

हमारे देश में लोहड़ी को माता स्वरूप भी माना जाता है। इसकी पूजा अग्नि जलाकर होती है। हम अपनी फसल अग्नि को ही अर्पण करते हैं। उत्तर प्रदेश में जमींदारी के काल में लोहड़ी के समय ही कर की वसूली की जाती थी। ‘कर’ में अपनी फसल का हिस्सा ही दिया जाता था। अंग्रेजों के समय में ब्रिटिशर्स हमारे किसानों को बुरी तरह से लूटते थे। अत: अग्नि देव को समर्पित करते हुए किसान यही आशीर्वाद मांगते थे कि उनकी फसल का अच्छा भाग उनके परिवार के खाने पीने के लिए भी रह जाए । यह भी माना जाता है कि यदि लोहड़ी के दिन या मकर संक्रांति तक हमारे घर कोई मेहमान आता तो खाना खिला कर  विदा किया जाए, चाय बिस्किट्स नहीं।

नोएडा में लोहड़ी की धूम Lohri celebration In Noida

सिख कौम लोहडी तब से मना रही है जब से गुरु नानक देव जी का जन्म हुआ और गुरु को संगत ने जाना। लोहड़ी  के द्वारा गुरु नानक देव जी ने उन्हें शांति का पाठ सिखाया तथा बताया कि जो फसल हम अग्नि को दे रहे हैं। वह इसलिए दे रहे हैं कि आगे आशीर्वाद स्वरुप हमें बहुत अधिक अन्न धन मिलता रहे तथा हम अन्न  की कदर करें। गुरु जी  साहिब का कहना था जिस अन्न  को हम भगवान को समर्पित कर रहे हैं उसका हम सदा आदर करें कभी भी अनादर नहीं। इसलिए गुरु लंगर में कभी भी जुठन नहीं बचती। अग्नि का महत्व इसलिए भी है कि पुराने समय में रात के समय यदि लोग रास्ता भटक जाते थे। ऐसे में यदि आग जलाकर कोई बैठा होता था तो इधर-उधर भटके लोग भी अग्नि के पास बैठकर अपने आप को सुरक्षित समझते थे। आपस में प्यार व्यापार बढाते थे। अग्नि माता है इसलिए सबसे पहले कर अग्नि माता को चुकाते हैं तथा प्रार्थना भी करते हैं की अग्नि देव हमें इतना अन्न – धन देना कि मैं भी भूखा ना रहा हूं और मेरा साथी भी भूखा ना रह जाए। इसी परंपरा को आगे बढ़ते हुए शहरों में पञ्जाबी विकास मंच, पञ्जाबी एकता मंच, पञ्जाबी समाज ने अलग अलग स्थानों पर लोहड़ी को बहुत ही धूमधाम से मनाया । नोएडा के टी एस अरोड़ा तथा मनिंदर जी  का कहना है की एक भी पञ्जाबी बच्चा छूट न जाए। इस उत्सव में हमारे नोएडा शहर को दिशा दिखाने वाले डॉक्टर महेश शर्मा सांसद, कैप्टन विकास शर्मा ( केन्द्रीय मंत्री दर्जा प्राप्त) नवाब सिंह नागर पूर्व विधायक, बिमला बाथम, मनोज गुप्ता, (आई केयर सेंटर ) सुनील चौधरी, महेंद्र अवाना, विकास जैन सरदार इकबाल सिंह लालपुरा जी( चेयरमैन नेशनल कमीशन ऑफ़ माइनॉरिटी) महेंद्र अवाना, विकास जैन सभी की उपस्थिति अपने पंजाबी समाज के साथ रही। उद्देश्य आज भी वही हमारे अपने, अपनों के साथ नाच- गा रहे थे साथ ही अपना दुख -सुख भी बाँट रहे थे।

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