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Noida News : ‘लड़की हूँ, लड़ सकती हूँ के दाँव पर सबकी नजऱ !

अरूण सिन्हा

Noida News : नोएडा। हर बार की तरह इस बार भी कांग्रेस पार्टी अंर्तकलह तथा खींचतान से उबर नहीं पा रही है। अब सवाल यह है कि क्या वर्तमान हालात में कांग्रेस की प्रत्याशी कोई चमत्कार कर पाएगीं? क्या नोएडा की जनता ‘लड़की हूँ लड सकती हूँ के नारे से प्रभावित हो पाएगी?

पिछले तकरीबन 15 वर्षों के चुनावों पर नजर डालें तो कांग्रेस हमेशा चौथे पायदान पर रही। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में (तब दादरी विधानसभा क्षेत्र था) कांग्रेस के प्रत्याशी रघुराज सिंह को 23875 (10.29 प्रतिशत) वोट मिले थे तथा वे चौथे स्थान पर रहे थे। वर्ष-2012 में हुए नोएडा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशी डा. वी.एस. चौहान को 25482 (12.15 प्रतिशत) वोट मिले थे तथा वे भी चौथे स्थान पर रहे थे। वर्ष 2014 में हुए मध्यावधि चुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशी राजेन्द्र अवाना को 17212 (10.45 प्रतिशत) वोट मिले थे तथा वे भी चौथे स्थान पर थे। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी से गठबंधन किया था। गठबंधन प्रत्याशी सुनील चौधरी को 58401 वोट मिले थे। इसके पूर्व समाजवादी पार्टी को विधानसभा चुनाव (Assembly elections)में क्रमश: 42071, 41481 वोट मिले थे। उस लिहाज से इस बार चुनाव में कांग्रेस का यदि प्रत्याशी खड़ा होता तो उसे भी बमुश्किल 17-18 हजार वोट ही मिलते। यानी स्पष्ट है कि उस वर्ष भी कांग्रेस चौथे पायदान पर ही रहती।

कांग्रेस पार्टी (Congress party)ने इस बार एक युवा महिला के चेहरे के तौर पर राजनीति की बारीकी समझने वाली पंखुड़ी पाठक को प्रत्याशी बनाया है। लेकिन पार्टी में चल रही अन्दरूनी बगावत तथा पुराने नेताओं व कार्यकर्ताओं की दूरियों को विश्लेषक कांग्रेस की सबसे बड़ी मुसीबत मान रहे हैं। अधिकतर विश्लेषकों का साफ मत है कि गुटबाज़ी व कार्यकर्ताओं की नाराजग़ी का यही आलम रहा तो नतीजे कांग्रेस के पक्ष में क़तई नहीं आएंगे। अब देखना यह होगा कि क्या अपने पुराने अनुभवों से सीख लेते हुए कांग्रेस के नेता कार्यकर्ताओं को एक साथ जोड़ कर चुनावों में एक टीम के तौर पर लडऩे की कोई व्यवस्था कर पाते हैं?
‘लड़की हूँ लड सकती हूँ ‘ वाले नारे से कांग्रेस की नेता प्रियंका गांधी(Priyanka Gandhi) ने कांग्रेस में एक नई ऊर्जा भरने का काम अवश्य किया है। अब इस ऊर्जा का सदुपयोग यदि ज़मीन पर करना है तो तमाम नेताओं व कार्यकर्ताओं को मतभेद भुलाकर पार्टी के लिए वोट जुटाने का इंतज़ाम करना पड़ेगा। पंखुड़ी पाठक के रणनीतिकार यदि इस चुनाव को जीतने के लिए लडऩा चाहते हैं तो उन्हें अब भी कई मोर्चों पर काम करना पड़ेगा और सबसे बड़ा मोर्चा उनकी ख़ुद की पार्टी की अंदरूनी कलह ही साबित हो रहा है। पंखुड़ी के रणनीतिकार आने वाले दिन दो-तीन दिनों में अपने चुनावी अभियान को क्या दिशा देंगे। इस पर पूरा चुनाव निर्भर करेगा।

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