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कलयुगी ताऊ को दरिंदा मान कर सुनाई फांसी की सजा

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UP News :  उत्तर प्रदेश की एक अदालत ने कलयुगी ताऊ को फांसी की सजा सुनाई है। उत्तर प्रदेश के जिस कलयुगी ताऊ को फांसी की सजा दी गयी है। उस ताऊ ने अपनी ही तीन साल की मासूम बच्ची के साथ रेप किया था। उत्तर प्रदेश की अदालत के इस फैसले की पूरे देश में तारीफ हो रही है।

उत्तर प्रदेश के हरदोई में सुनाई गई फांसी की सजा

उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले की एक अदालत ने कलयुगी ताऊ को फांसी की सजा सुनाई है। कलयुगी ताऊ को फांसी की सजा सुनाते समय उत्तर प्रदेश के हरदोई में तैनात अपर जिला जज मोहम्मद नसीम ने कहा कि दोषी दरिंदा, पिशाच और भेडय़िा के समान है। इसे तब तक फांसी पर लटकाया जाए, जब तक कि इसकी मौत न हो जाए।

अपने फैसले में रामचरितमानस के किष्किंधाकांड की पंक्तियों का उल्लेख करते हुए लिखा… अनुज वधू भगिनी सुर्व नारी, सुन सठ कन्या सम ए चारी, इनहहि कुदृष्टि बिलोकई जोई, ताहि बधे कुछ पाप न होई। यानी छोटे भाई की स्त्री, बहन, पुत्र की स्त्री और कन्या यह चारों समान हैं। इन्हें जो कोई बुरी दृष्टि से देखता है उसका वध करने में कोई पाप नहीं होता। वारदात 28 जुलाई, 2020 की है। सांडी थाना क्षेत्र के एक गांव की निवासी तीन वर्षीय मासूत अपने घर में खेल रही थी। उसका ताऊ खाने की चीज दिलाने के बहाने गोदी में उठाकर ले गया। अपने घर ले जाकर उसने बच्ची से दुष्कर्म किया।

बहुत कुछ कहा है जज ने UP News

अपर जिला जज ने फैसला सुनाते समय कहा। कि जब पूरे केस को पढ़ा तो ठीक से सो भी नहीं पाया। यह सोचकर बेचैनी हो रही थी कि जिस पर जान की रक्षा और इज्जत की सुरक्षा का भार है उसी ने घटना को अंजाम दे दिया। दुष्कर्म के कारण बच्ची के मल और मूत्र के रास्ते में कोई अंतर नहीं रह गया था। इसके कारण बच्ची को मल और मूत्र त्याग करने के लिए अलग जगह शरीर में बनानी पड़ी और तब उसकी जान की रक्षा हो पाई। जज ने कहा कि पीड़िता की उम्र घटना के समय तीन साल थी। उसकी लंबाई महज तीन फीट थी। वजन सिर्फ 13 किलो था, लेकिन फिर भी अभियुक्त को शर्म नहीं आई। हवस के लिए उसने बच्ची की उम्र, रिश्ते का भी लिहाज नहीं किया।

नहीं बचेगी बेटियां

अपर जिला जज ने कहा कि एक कहावत है कि डायन भी सात घर छोड़ती है, लेकिन इस मामले में तो सारी हदें ही पार हो गई। पीड़िता जिसे बड़े पापा कहती थी, उसी ने दुष्कर्म किया। बड़े पापा और भतीजी का रिश्ता अटूट भरोसे और विश्वास का होता है। अगर अभियुक्त ने हत्या की होती तो शायद सजा कुछ और होती, लेकिन जो अपराध उसने किया है उसमें बच्ची की हत्या हर पल और हर दिन होती है। सहित संपूर्ण स्त्री जाति के कल्याण व सुरक्षा के लिए अभियान चला रहे हैं, ताकि उन्हें समाज में सुरक्षित और सम्मानित जीवन जीने का अधिकार हो। ऐसी घटनाओं के प्रति समाज में कठोर रुख नहीं अपनाया जाता है तो न ही बेटियां बचेंगी और ना ही सुरक्षित और सम्मानित जीवन जी सकेंगी। समाज के न्याय के लिए गुहार को नहीं सुनाया गया तो न्याय प्रणाली पर गंभीर प्रश्नचिन्ह लग जाएगा। इससे समाज में असुरक्षा और भयावह स्थिति का उत्पन्न होना स्वाभाविक है। UP News

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