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बड़ी खबर: भारत में जल्दी ही लागू हो जाएगी समान नागरिक संहिता

Uniform Civil Code

Uniform Civil Code

Uniform Civil Code: समान नागरिक संहिता कहें या फिर कॉमन सिविल कोड (Uniform Civil Code) यह मुददा भारत का बहुत बड़ा मुद्दा है। समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) की मांग बार-बार उठती रही है। भारत की सत्तारूढ पार्टी भाजपा के एजेंडे में समान नागरिक संहिता हमेशा तीसरे नम्बर पर रही है। अयोध्या में राम मंदिर, जम्मू-कश्मीर से धारा-376 का खात्मा तथा समान नागरिक संहिता प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का भी एजेंडा रहा है। अब वह दिन दूर नहीं है कि जब भारत में समान नागरिक संहिता लागू हो जाएगी।

समान नागरिक संहिता लागू होने के स्पष्ट संकेत

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 15 अगस्त को भारत में समान नागरिक संहिता यानि कि कॉमन सिविल कोड लागू करने के साफ संकेत दे दिए हैं। लालकिले से देश को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने साफ-साफ बोल दिया है कि अब देश को एक सेक्युलर कॉमन सिविल कोड की तुरंत आवश्यकता है। अपने पहले दो कार्यकाल में प्रधानमंत्री भाजपा के दो बड़े एजेंडे धारा-376 का खात्मा तथा अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण पूरा कर चुके हैं। इस बार प्रधानमंत्री के तीसरे कार्यकाल में समान नागरिक संहिता का नम्बर है। दुनिया भर के विश्लेषकों का दावा है कि भारत में अगले पांच साल के अंदर समान नागरिक संहिता यानि कि कॉमन सिविल कोड लागू कर दिया जाएगा। समान नागरिक संहिता क्या है? यह जानना भी जरूरी है। हम आपको साधारण भाषा में समझा देते हैं कि समान नागरिक संहिता क्या होती है।

क्या है समान नागरिक संहिता ? Uniform Civil Code

समान नागरिक संहिता अथवा कॉमन सिविल कोड ( Uniform Civil Code ) एक प्रकार की खास व्यवस्था है। जैसा कि नाम से ही पता चलता है कि समान नागरिक संहिता का मतलब है कि देश में सभी नागरिकों के लिए एक समान कानून व्यवस्था। भारत जैसे विविधता वाले देश में सभी नागरिकों को अपने-अपने धर्मों के हिसाब से जीने की आजादी है। समान नागरिक संहिता लागू हो जाने के बाद एक समान कानून के साथ ही सभी धार्मिक समुदायों के लिए विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेने के नियम भी एक समान हो जाएंगे। फिलहाल देश में हिंदुओं, मुस्लिमों के लिए अलग-अलग व्यवस्था है। भारत के संविधान निर्माताओं ने संविधान में अनुच्छेद 44 में भारत में रहने वाले सभी नागरिकों के लिए एक समान कानून का प्रावधान लागू करने की बात कही गई है।

समान नागरिक संहिता का इतिहास

कॉमन सिविल कोड को लेकर 1835 में ब्रिटिश सरकार की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अपराधों, सबूतों और कॉन्ट्रैक्ट जैसे मुद्दों पर समान कानून व्यवस्था लागू की जानी चाहिए। वहीं इसी रिपोर्ट में हिंदू-मुसलमानों के धार्मिक कानूनों से छेड़छाड़ की बात नहीं की गई है। इसके बाद 1941 में हिंदू कानून पर संहिता बनाने के लिए बीएन राव की समिति भी बनाई गई और और हिंदुओं, जैनियों व सिखों के उत्तराधिकार मामलों में कई सुधार किए गए।

समान नागरिक संहिता के मार्ग में बाधा

भारत में एक कहावत प्रचलित है कि ‘कोस कोस पर बदले पानी, चार कोस पर वाणी’। दरअसल भारत में विविधता से भरे समाज व धर्म अलग-अलग रीति रिवाज के कारण एक समान नागरिक संहिता पर आम सहमति बनना काफी चुनौतीपूर्ण है। उत्तर भारत के हिंदुओं के रीति-रिवाज दक्षिण भारत के हिंदुओं से बहुत अलग हैं। वहीं उत्तर-पूर्व भारत में भी स्थानीय रीति-रिवाजों को मान्यता दी जाती है। मुसलमानों के पर्सनल लॉ बोर्ड और ईसाइयों के भी अपने पर्सनल लॉ हैं। मुस्लिम समुदाय में पुरुषों को कई शादी करने की इजाजत है, वहीं हिंदू अधिनियम में इस पर पाबंदी है। ऐसे में समान नागरिक संहिता लागू हो जाती है तो देश में सभी लोगों के लिए एक समान कानून लागू हो जाएगा। यह व्यवस्था लागू करना आसान काम नहीं होगा।

महिलाओं को होगा बड़ा फायदा

देश में यदि समान नागरिक संहिता लागू होती है तो सबसे ज्यादा फायदा महिलाओं को होगा। महिलाओं को समान हक मिलने से उनकी स्थिति में सुधार होगा। महिलाओं के साथ लैंगिक भेदभाव खत्म होगा और विवाह, तलाक, उत्तराधिकार और संरक्षण से संबंधित मामलों में समान अधिकार प्राप्त होगा। समान नागरिक संहिता कानून लागू होने से देश के सभी नागरिकों के लिए एक समान कानून व्यवस्था रहेगी। यह कानून में भेदभाव या असंगति के जोखिम को कम करेगी। Uniform Civil Code

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