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श्रीलंका के भविष्य का फैसला 21 सितंबर को, लगी है दुनिया भर की निगाहें

Sri Lanka

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Sri Lanka : भारत के पड़ोसी देश श्रीलंका के भाग्य का फैसला 21 सितंबर 2024 को होगा। दरअसल 21 सितंबर को श्रीलंका में आम चुनाव होने हैं। श्रीलंका का भविष्य आगे चलकर कैसा होगा? इस सवाल पर श्रीलंका के नागरिकों की निगाहें लगी हुई हैं। श्रीलंका के भविष्य का सबसे अधिक असर भारत के ऊपर पड़ेगा।

आ गई है श्रीलंका के लिए बड़ी तारीख

आपको बता दें कि श्रीलंका में हाल ही में चुनाव कराने की घोषणा की गई है। श्रीलंका में 21 सितंबर 2024 को चुनाव कराए जाएंगे। श्रीलंका के एक करोड़ 70 लाख मतदाता 21 सितंबर को श्रीलंका के भाग्य का फैसला करेंगे। 21 सितंबर को श्रीलंका में राष्ट्रपति पद का चुनाव कराया जाएगा। श्रीलंका में राष्ट्रपति का पद ही सबसे बड़ा तथा सबसे शक्तिशाली पद होता है। एक बार फिर श्रीलंका के ज्यादातर पुराने राजनेता राष्ट्रपति पद केे चुनाव के दावेदार हैं।

श्रीलंका में राष्ट्रपति पद के चार बड़े दावेदार Sri Lanka

श्रीलंका के 39 अलग-अलग गुट राष्ट्रपति पद की दौड़ में हैं। यह अलग बात है कि श्रीलंका की जनता चार प्रमुख गुटों को राष्ट्रपति पद का दावेदार मान रही है। श्रीलंका में राष्ट्रपति पद के लिए जो प्रमुख चार दावेदार हैं उनमें अनेक दलों का समर्थन प्राप्त, निवर्तमान राष्ट्रपति निर्दलीय प्रत्याशी रानिल विक्रमसिंघे, समागी जन बालवेगया के सजिथ प्रेमदासा, मदासा, श्रीलंका पोदुजाना जाता पेरामुना के नमल राजपक्षे और जनता विमुक्ति पेरामुना के अनुरा कुमारा दिसानायके। इनमें पांच बार प्रधानमंत्री रह चुके 75 वर्षीय रोनिल वरिष्ठतम हैं, जबकि नमल की आयु सबसे कम 38 वर्ष है। गौरतलब है कि श्रीलंका की राजनीति में राजपक्षे परिवार को स्वेच्छाचारी और एकाधिकारवादी माना है।

विगत संसदीय चुनाव में उसके पांच सदस्य जीते थे। महिंदा राजपक्षे बने प्रधानमंत्री, अनुज त्रयी गोटबाया राष्ट्रपति, चमल सिंचाई मंत्री, बेसिल वित्तमंत्री और पुत्र नमल खेलमंत्री। वर्ष 2022 में व्यापक जनाक्रोश राजपक्षे परिवार के पतन का कारण बना। यों तो रानिल सत्ताच्युत गोटब्बाया राजपक्षे की पसंद थे, लेकिन वक्त ने रानिल पर गोटबाया के भरोसे की चूलें हिला दी है। इसलिए उन्होंने युवा नमल को मैदान में उतारा है। विधि में स्नातक नमल के ‘पोस्टर ब्वॉय हैं। हैं। उन्हें मिले वोट से एसएलपीपी के ‘पोस्ट स्वेच्छाचारिता पता चलेगा कि अधिनायक-वृत्ति और स्वेच्छाचारिता के बावजूद श्रीलंकाई ई लोग राजपक्षे परिवार को कितना पसंद करते हैं?

एक ही परिवार के हाथ में रही है सत्ता की चाबी

पिछले दो दशकों से श्रीलंका में सत्ता की चाबी राजपक्षे परिवार के हाथों में है। लेकिन अरागलिया विद्रोह ने राजपक्षे परिवार के पांवों तले से जमीन खींच ली। एकबारगी लगा कि महिंदा पलायन को बाध्य होंगे, लेकिन कूचे से बेआबरू होकर निकलने की अटकलों के बीच उन्हें पूर्वोत्तर प्रांत के नौसैनिक अड्डे त्रिंकोमाली में मुकम्मल सुरक्षा मिल गई। राजपक्षे घराना फौजी हिफाजत में तबसे वहीं रह रहा है।
श्रीलंका में चीन की रुचि और भारत को घेरने की उसकी कोशिशें किसी से छिपी नहीं हैं। चीन से राजपक्षे का मोह अब भी कायम है। 27 जून, 2024 को महिंदा चीन के विदेश मंत्री वांग के न्यौते पर बीजिंग गए थे। वहां वह चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मिले। फिर उनकी चीनी प्रधानमंत्री ली छियांग से ऋण पुनर्गठन मसौदे पर भी चर्चा हुई।

कहना कठिन है कि महिंदा और चीनी नेताओं के बीच चुनाव चुनाव और भावी राजनीति को लेकर क्या खिचड़ी पकी, लेकिन इस बाबत महिंदा की चुप्पी अटकलें पैदा करती है। भारत और श्रीलंका के रिश्ते गर्भनाल सरीखे हैं। जातीय और सांस्कृतिक संदर्भ भारत-श्रीलंका मैत्री को दृढ़ आधार प्रदान करते हैं। श्रीलंका का भारत के लिए अतिरिक्त सामरिक महत्व भी है। भारत ने भयावह वित्तीय संकट का सामना करने में कोलंबो की भरपूर मदद की। श्रीलंका के घटनाक्रम पर भारत की पैनी निगाह है। यही वजह है कि भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कोलंबो जाने पर महिंदा राजपक्षे से मुलाकात और चर्चा की। बीते फरवरी में जनता विमुक्ति पेरामुना के नेता अनुरा कुमारा दिसानायके दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री जयशंकर से मिले थे। अनुरा दिसानायके वामपंथी सोच के मुखर नायक हैं और इस छंदय द्वंद्व में चमकीली संभावना बनकर उभरे हैं। बहुत संभव कि वह कोलंबो की सत्ता की पेचीदा लड़ाई में दिल्ली की परोक्ष पसंद बनकर उभरें। अनुरा राजधानी कोलंबो से सांसद हैं और भ्रष्टाचार- विरोधी मुहिम के पुरोधा भी हैं।

भौतिकी में स्नातक अनुरा एक श्रमिक के बेटे हैं और वर्ष 2015-18 में मैत्रीपाल सिरिसेना के काल में मुख्य विपक्षी सचेतक रहे। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से रिश्तों को लेकर उनका रुख रानिल से सर्वथा भिन्न है। रानिल की चमक और खनक अब पहले जैसी नहीं रही। एक तो उनकी छवि राजपक्षे-कुनबे के ‘पिछलग्गू’ की है, दूसरे मितव्ययिता के सख्त उपायों के कारण वह अलोकप्रिय हो चुके हैं। बहरहाल, लड़ाई रोचक है, श्रीलंका के भविष्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण और भारत तथा हिंद महासागरीय क्षेत्र के लिए बहुत मानीखेज। बड़ी बात यह है कि इस चुनाव में श्रीलंका की युवा-शक्ति निर्णायक भूमिका निभा रहा है। Sri Lanka

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