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सूरज-चाँद तथा धरती एक प्रेम त्रिकोण

Love

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Love : प्रेम, प्यार तथा मौहब्बत शब्द सामने आते ही आनंद की अनुभूति होने लगती है। प्रेम हमारी सृष्टि का सबसे बड़ा सच है। प्रेम (Love) के बलबूते पर ही सृष्टि का विकास होता है। प्रेम का एक अद्भुत संयोग हमें प्रकृति के मूल स्वरूप में दिखाई देता है। हमारी पृथ्वी, सूरज तथा चाँद के बीच में प्रेम का एक अद्भुत त्रिकोण मौजूद है। सूरज-चांद और धरती के प्रेम के त्रिकोण को सुश्री प्रवीणा अग्रवाल ने बड़े ही अनोखे अंदाज में पेश किया है।

जानते हैं प्रेम के इस त्रिकोण को

एक दिन क्या देखती हूं कि दिन दोपहरी घना अंधेरा छा गया है, परिन्दों के समूह के समूह उड़कर अपने घरों की ओर प्रस्थान कर रहे हैं पर शाम तो अभी ढली नहीं ,मेरे हाथ की घड़ी में तो अभी 12:00  बज रहे हैं तो क्या फिर मेरी दृष्टि धुंधला गई है या फिर सूरज का तेज ही मद्धिम हो गया है । मैं दरयाफ्त करती हूं तो पता चलता है कि सूर्य ग्रहण चल रहा है वह भी पूर्ण सूर्य ग्रहण। फिर ऐसा लगा कि बाहर बड़ा कोलाहल हो रहा है मामला क्या है जानने के लिए मैं बाहर निकली। बाहर बड़ी भीड़ लगी थी। भीड़ में घुसी तो देखती क्या हूं कि सूरज गुस्से से आग बबूला हो रहा है क्योंकि उससे उसका तेज छिन गया है । जब भी किसी का कुछ छीना जाता है तो क्रोधाग्नि प्रचंड हो ही जाती है। शायद यही जीवन की सच्चाई है। खैर किसी का कुछ छिनने या मिलने से मुझे कोई मतलब नहीं मैं तो दर्शक मात्र हूं। क्या देखती हूं बेचारा चंद्रमा सकपकाया सा खड़ा है और सूरज  उससे कह रहा है तुम्हारी यह मजाल एक तो तुम मेरे ही प्रकाश से प्रकाशित हो तुम्हारा अपना कोई अस्तित्व मेरे बिना संभव नहीं है फिर भी तुम मेरे प्रकाश ,मेरी ऊर्जा ,मेरे ही तेजके विस्तार को रोक रहे हो। तुम याचक मुझ दाता के सर पर सवार होने का प्रयास कर रहे हो। चंद्रमा हाथ जोड़कर खड़ा हो गया। स्तुति करते हुए बोला कि हे प्रभु आप तो मेरे जीवन दाता है ।यह परम सत्य है कि मैं आपके प्रकाश से ही प्रकाशित हूं। मेरे जीवन की डोर आपके हाथ में है। आपके बिना मेरा कोई अस्तित्व नहीं । मेरी चमक दमक आपसे है, पर मैं क्या करूं प्रभु यह जो पृथ्वी है यह मानती ही नहीं मुझे अपने आकर्षण (गुरुत्वाकर्षण) में उलझाए रखती है। सदा अपने चक्कर लगवाती रहती है । इस पृथ्वी का चक्कर लगाते लगाते मैं खुद घनचक्कर बन गया हूं । क्या यह कम अचंभा है कि इस धरती का चक्कर लगाने के साथ ही मुझे लगातार अपनी धुरी पर भी घूमते रहना होता है। मैं तो बस इन चक्करों के बीच संतुलन साधने में ही लगा रहता हूं। इसी में मेरा जीवन व्यर्थ हो रहा है ।इस लगातार के घूर्णन में मैं कब आपका रास्ता काट गया मैं खुद ही नहीं जान पाया।

Love :

अब सूरज क्या करें ? धरती तो खुद उसके चक्कर लगा रही है। उसकी कृपा पात्र है। सूरज के बिना धरती पर जीवन संभव नहीं है। वह जीवनदाता है। सूरज के कारण ही धरती पुष्पित पल्लवित होती है, सृष्टि की रचना होती है सूरज के कारण ही धरती पर रंग है, बहार है, रोशनी है, ताप है, ऑक्सीजन है ,जीवन है। क्या सूर्य धरती से अलग हो जाए, नहीं यह संभव नहीं, क्योंकि वह दोनों तो परस्पर आकर्षण (गुरुत्वाकर्षण ) से बंधे हैं । इसके अतिरिक्त पृथ्वीवासी तो सूर्य को देवता मानकर सदा उसकी आराधना करते हैं। अगर वह पृथ्वी से अलग होता है तो खुद उसका देवता होने का, जीवन दाता ,पालन कर्ता होने का अहंकार भी चूर्ण-चूर्ण हो जाएगा। अगर अहंकार ही न रहे तो बचेगा क्या ?क्योंकि अहंकार  ही अस्तित्व का बोध कराता है और गर्व को पुष्ट करता है ।

अंततः सूर्य ,चंद्र और पृथ्वी  तीनों ही मिलजुल कर बैठे एवं समस्या का क्या समाधान हो इस पर चिंतन मनन किया चिंतन मनन से यह समझ में आया कि इनका एक दूसरे के प्रति जो आकर्षण है वह कभी समाप्त नहीं हो सकता क्योंकि पृथ्वी का चंद्र  से या सूर्य का पृथ्वी  से मिलन संभव नहीं। जब तक मिलन ना हो आकर्षण बना ही रहता है और मिलते ही सब समाप्त हो  जाएगा। एक दूसरे के प्रति आकर्षण से  उपजे चक्करों को भी  रोका नहीं जा सकता ।जब चक्कर लगेंगे तो कभी ना कभी एक दूसरे का रास्ता भी काटेंगे । रास्ता काटने के विवाद में कहीं झगड़ा इतना ना बढ़ जाए की एक दूसरे के सर कट जाए इसलिए यह तय हुआ कि कभी-कभी अमावस्या के दिन सूर्य व पृथ्वी के बीच अगर चंद्रमा आ जाए और सूर्य का तेज मद्धिम हो जाए तो सूर्य इसका बुरा नहीं मानेगा। इसी तरह चक्करों के दौरान कभी-कभी पूर्णमासी को सूर्य व चंद्रमा के बीच पृथ्वी आ जाए और चंद्रमा अपनी चमक खो बैठे तो चंद्रमा धैर्य रखेगा क्योंकि कमजोर व निर्बल के लिए संतोष ही सबसे बड़ा धन है । मन मार के बैठने के अलावा उसके पास और कोई चारा भी नहीं है।

समझौता आज भी लागू है। यह बात अलग है कि पृथ्वी पर सूर्य का प्रभाव और ताप लगातार बढ़ रहा है, दिन बड़े होते जा रहे हैं (वैज्ञानिकों का मानना है कि जब पृथ्वी का निर्माण हुआ तब दिन बहुत छोटा होता था आज के दिन का 6 गुना छोटा यानी कुल 4 घंटे का दिन) तेजस्वी व शक्तिशाली ऐसे ही अपने प्रभाव का विस्तार करते हैं और सब मौन होकर देखते रहते हैं क्योंकि समरथ  को नहीं दोष गोसाई।

 अचानक बहुत तेज आवाज आई जैसे कोई दरवाजा पीट रहा हो और मेरी नींद खुल गई तो क्या यह एक सपना था या सत्य? कहीं भूगोल में समाज विज्ञान तो नहीं घुस गया इसका निर्णय आप पर छोड़ती हूं। Love :

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