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भव्य राज महल छोडक़र जनता के बीच में दिल्ली का “राजा”

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Delhi News : दिल्ली का राजा यानि कि दिल्ली का मुख्यमंत्री शनिवार को दिल्ली प्रदेश की नई मुख्यमंत्री के तौर पर आतिशी ने शपथ ले ली है। सब जानते हैं कि आतिशी एक तदर्थ मुख्यमंत्री हैं। दिल्ली के निवर्तमान मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने आतिशी को केवल दिखावे के लिए दिल्ली का मुख्यमंत्री पद सौंपा है। दिल्ली का असली “राजा” तो आज भी अरविंद केजरीवाल ही है। दिल्ली के मुख्यमंत्री रहे अरविंद केजरीवाल के उदय से अस्त तक की पूरी यात्रा को हमने अनोखे अंदाज में तैयार किया है। आप भी जान लीजिए दिल्ली के “राजा” मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की पूरी यात्रा को।

कहानी दिल्ली के “राजा” की

जैसा कि हर कहानी में होता है यहां भी एक राजा है। अपनी राजधानी में राज्य करता था। राजा प्रजा वत्सल था ।हर समय प्रजा की भलाई व हित चिंतन में लगा रहता था। उसके राज्य में प्रजा के लिए बिजली ,पानी, शिक्षा ,चिकित्सा ,परिवहन सब मुफ्त था।मुफ्त की सुविधाओं का लाभ उठाकर प्रजा उसकी जय जयकार करती रहती।  प्रजा की जय -जयकार सुनकर राजा प्रसिद्धि एवं सत्ता के नशे में चूर हो गया। राजा ने समझा उसका सिक्का चल गया है और राजधानी में उसकी जड़ें जम गई है। फिर उसके मन में यह भी विचार आया प्रजा ही अकेली सुविधाओं का भोग क्यों करें वह राजा है उसे भी अपने कोष को धन-धान्य से परिपूर्ण करना चाहिए और राज्य के ऐश्वर्य का उपभोग करना चाहिये ।आखिर परमपिता परमेश्वर ने उसे यह राज्य वैभव भोगने के लिए ही तो दिया है अगर वह इस राज्य वैभव की उपेक्षा करेगा तो यह उस परमपिता की कृपा का घोर अनादर होगा। इसके अलावा उसे अपने राज्य का विस्तार भी करना चाहिए।

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 फिर क्या था ,राजा ने अपने लिए भव्य राज महल का निर्माण कराया। वह धन कमाने व राज्य विस्तार में लीन हो गया। बस यही राजा से चूक हो गई क्योंकि वह धन कमाने वा राज्य विस्तार में इतना तल्लीन हो गया कि शासन के नियम, कायदे, कानून सब भूल गया और तो और पड़ोसियों की शक्ति और सामर्थ्य का आकलन भी नहीं किया।राजा के यश, वैभव व कीर्ति का विस्तार होते देखकर आसपास के राजाओं विशेषकर आर्यावर्त के सम्राट को बड़ी चिंता हुई ।उनके कान खड़े हो गए कि यदि राजा पर लगाम नहीं लगाई गई तो उसके राज्य का विस्तार संपूर्ण आर्यावर्त में हो सकता है। विरोधियों ने कानून का जाल फैलाया और राजा  निरीह कपोत की तरह भ्रष्टाचार के जाल में फंस गया। राजा ने शायद पुराने जमाने की बहेलिये एवं कबूतरों की  कहानी सुन रखी थी जिसमें कबूतरों ने संघ की शक्ति के बारे में ज्ञान प्राप्त किया था कि यदि जाल में फंसे सभी कबूतर मिलकर जोर लगाएंगे तो जाल सहित उड़ जाएंगे ,पर इस बार कबूतरों यानी कि राजा और उसके सभासदों का मुकाबला भी संघ की शक्ति से ही था। इसलिए कबूतरों की संघ शक्ति का संघीय शक्ति के आगे जोर नहीं चला और राजा ही नहीं उसके कई सभासद भी जाल में फंस गए। उन्होंने आर्यावर्त की सबसे प्रसिद्ध कारागार की शोभा एवं श्री में अभिवृद्धि की ।कभी जब राजा का जीवन चरित्र लिखा जाएगा और भरत खंड का जन-जन जब दैनिक आराधना में उसका पारायण करेगा तो इस कारागार को भी याद किया जाएगा ।

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  राजा ने अपना प्रकरण आर्यावर्त की सबसे बड़ी न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत कराया। राजा को लग रहा था कि संपूर्ण भूलोक में फैली हुई उसकी प्रसिद्धि से न्यायालय भी प्रभावित हो जाएगा। इतना ही नहीं उसने वकील, दलील ,अपील में भी कोई कसर बाकी नहीं रखी ।पर हाय रे दुर्भाग्य !कुछ भी काम ना आया कारागार से छूटने में ही नानी याद आ गई निर्दोष सिद्ध होना तो बड़ी दूर की बात हो गई। न्यायपालिका की अनेकानेक शर्तों एवं प्रतिबंधों के साथ जैसे-तैसे राजा कारागार से बाहर आया।  कारागार से बाहर आते ही उसने बड़ी जोर -शोर से अपना जय घोष किया जिसकी प्रतिध्वनि संपूर्ण भूमंडल में फैल गई।अपने राजमहल में  विश्राम करने के उपरांत अंततः राजा ने अपने सभासदों की बैठक बुलाई। बैठक में उसने घोषणा की कि वह राज्य पद से त्यागपत्र दे रहा है ।सभासदों ने चकित भाव से पूछा हे राजन !आपने ऐसा महान निर्णय किसकी प्रेरणा से लिया? राजा थोड़ी देर के लिए ध्यानस्थ हो गया और आर्यावर्त की सर्व प्रमुख न्यायपालिका द्वारा पारित निर्णय का चिंतन किया। पुनः सभासदों से संबोधित होकर उसने कहा, मेरे प्रिय बंधुओ !कल जब मैं ईश्वरीय चिंतन में ध्यान मग्न था अचानक मुझे ईश्वर की झलक दिखाई दी और गुरु गंभीर वाणी सुनाई दी, “हे राजन! तू इन सबको माफ कर दे क्योंकि ये नहीं जानते कि तेरे जैसे सत्य निष्ठ ,प्रजा पालक एवं कर्तव्य निष्ठ राजा के साथ तेरे विरोधी जो व्यवहार कर रहे हैं वह अंततः उन्हीं के लिए घातक होगा। तू इनकी न्यायपालिका का भरोसा छोड़ दे क्योंकि  क्योंकि इनका आचरण धर्मानुसार नहीं है ।तू जनता की न्यायपालिका के पास जा, अब वही तेरा न्याय करेगी। तुझे अपने कंधों पर उठाकर तेरा जय जयकार करेगी ।क्या तू नहीं जानता की  भूमि पर राज्य करने से अधिक महत्वपूर्ण लोगों के मन -मस्तिष्क पर राज्य करना है। “उस आकाशवाणी को सुनकर मुझे गूढ़  ज्ञान की प्राप्ति हुई है और मैंने पद त्याग का निर्णय लिया है। अतः अब मैं तुम लोगों के बीच से तदर्थ राजा की नियुक्ति करता हूं।  राजा के सारे सभासद हैरान- परेशान है और प्रजा भी हैरत में है कि यह राजा का त्याग है या उसकी विवशता? Delhi News :

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