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मुस्तक़िल बोलता ही रहता हूं…पेश है जॉन एलिया के कुछ चुनिंदा शेर

Jaun Elia Shayari

Jaun Elia Shayari

Jaun Elia Shayari : “आप बस मुझ में ही तो हैं, सो आप मेरा बेहद ख़्याल कीजिएगा!” जब बात हो हर टूटे दिलों का हाल अपने शब्दों में पिरोकर दुनिया तक पहुंचाने वाले मशहूर शायर जॉन एलिया (Jaun Elia) की तो भला बिना शायरी के शुरूआत कैसे की जा सकती है। उत्तर प्रदेश के अमरोहा में जन्में हर दिल के अज़ीज़ शायर जॉन एलिया (Jaun Elia) के बारे में जितना कहा जाए उतना कम है। हर शायर के दिल में बसने वाले जॉन एलिया (Jaun Elia) आपको दो तरह से मिलते हैं, एक दर्शन में और दूसरा प्रदर्शन में।

उर्दू के सबसे मशहूर और खुद्दार शायर में से एक जॉन एलिया (Jaun Elia) की शेरों में एक अलग ही ठसक है। जिनके शब्द उनके चाहने वालों के दिलों में तीर की तरह चूभ जाते हैं। जॉन एलिया के बारे में ठीक ही तो कहते हैं कुमार विश्वास कि, जॉन एक खूबसूरत जंगल हैं, जिसमें झरबेरियां हैं, कांटे हैं, उगती हुई बेतरतीब झाड़ियां हैं, खिलते हुए बनफूल हैं, बड़े-बड़े देवदारू हैं, शीशम हैं, चारों तरफ़ कूदते हुए हिरन हैं, कहीं शेर भी हैं, मगरमच्छ भी हैं। आज हम आपके लिए जॉन साहब से की कुछ पसंदिदा शायरी लेकर हाजिर हुए हैं जो आज की पीढ़ी पसंद आ रही है।

मैं भी बहुत अजीब हूँ इतना अजीब हूँ कि बस
ख़ुद को तबाह कर लिया और मलाल भी नहीं!

तू भी चुप है मैं भी चुप हूं ये कैसी तन्हाई है
तेरे साथ तेरी याद आयी क्या तू सचमुच आयी है!

सारी गली सुनसान पड़ी थी बाद-ए-फ़ना के पहरे में
हिज्र के दालान और आँगन में बस इक साया ज़िंदा था!

बहुत नज़दीक आती जा रही हो
बिछड़ने का इरादा कर लिया क्या!

बिन तुम्हारे कभी नहीं आयी
क्या मेरी नींद भी तुम्हारी है!

मुस्तक़िल बोलता ही रहता हूं
कितना ख़ामोश हूँ मैं अंदर से!

उस गली ने ये सुन के सब्र किया
जाने वाले यहाँ के थे ही नहीं!

तुम्हारा हिज्र मना लूं अगर इजाज़त हो
मैं दिल किसी से लगा लूं अगर इजाज़त हो!

कितने ऐश से रहते होंगे कितने इतराते होंगे
जाने कैसे लोग वो होंगे जो उस को भाते होंगे!

 

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