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उत्तर प्रदेश सरकार के पीछे पड़ गई है भारत की सुप्रीम संस्था

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UP News : भारत की सबसे सुप्रीम संस्था इन दिनों उत्तर प्रदेश सरकार के पीछे पड़ी हुई है। उत्तर प्रदेश सरकार की व्यवस्थाओं पर सुप्रीम संस्था द्वारा लगातार सवाल उठाए जा रहे हैं। तमाम लोग सवाल उठा रहे हैं कि क्या भारत की यह सुप्रीम संस्था उत्तर प्रदेश सरकार से नाराज हो गई है अथवा यह सामान्य प्रक्रिया के तहत ही हो रहा है। आइए यहां जान लेते हैं कि भारत की कौन-सी सुप्रीम संस्था उत्तर प्रदेश की सरकार के पीछे पड़ गई है।

भारत की सुप्रीम संस्था उत्तर प्रदेश के खिलाफ

भारत की सबसे सुप्रीम संस्था का नाम सुप्रीम कोर्ट है। सुप्रीम कोर्ट भारत की सबसे बड़ी अदालत है। सुप्रीम कोर्ट के जिम्में ही भारत के संविधान की रक्षा करने का दायित्व मौजूद है। भारत का सुप्रीम कोर्ट इन दिनों उत्तर प्रदेश सरकार के विरुद्ध लगातार आदेश पारित कर रहा है। एक सप्ताह के अंदर सुप्रीम कोर्ट उत्तर प्रदेश सरकार के विरुद्ध तीन बड़े आदेश जारी कर चुका है। एक सप्ताह पहले भी सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार के विरुद्ध आदेश जारी किया था। इस प्रक्रिया के बीच तेजी के साथ सवाल उठाए जा रहे हैं कि क्या सुप्रीम कोर्ट उत्तर प्रदेश सरकार से नाराज है? कुछ लोगों का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट के ताजा आदेशों से तो यही लगता है कि भारत की सबसे सुप्रीम संस्था यानी कि सुप्रीम कोर्ट उत्तर प्रदेश सरकार से नाराज है। एक तपका ऐसा भी है जिसका मत है कि सुप्रीम कोर्ट एक सामान्य प्रक्रिया के तहत आदेश जारी कर रहा है। इन आदेशों का यह अर्थ नहीं लगना चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट उत्तर प्रदेश सरकार से नाराज है।

एक पखवाड़े में उत्तर प्रदेश सरकार के विरोध तीन आदेश

वास्तविकता को समझने के लिए आपको बता दें कि पिछले 20 दिन (एक पखवाड़े) के अंदर सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार के विरुद्ध तीन बड़े आदेश जारी किए हैं। सुप्रीम कोर्ट के इन आदेशों का हम यहां जिक्र कर रहे हैं। इन आदेशों से तो यही प्रतीत हो रहा है कि सुप्रीम कोर्ट उत्तर प्रदेश सरकार के खिलाफ हो गया है। यह अलग बात है कि सरकारों के ऊपर नियंत्रण रखना सुप्रीम कोर्ट की जिम्मेदारी है।

उत्तर प्रदेश के बुलडोजर एक्शन पर लगाई रोक

हाल ही में 13 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार के बुलडोजर एक्शन पर स्थाई रोक लगाने का आदेश जारी किया था। बुलडोजर एक्शन उत्तर प्रदेश सरकार के मुखिया योगी आदित्यनाथ का सबसे पसंदीदा एक्शन रहा है। बुलडोजर एक्शन के द्वारा ही योगी बाबा पूरे प्रदेश में चर्चित हुए हैं। बुलडोजर एक्शन पर रोक का यह फैसला भले ही सभी राज्यों पर लागू होगा, किंतु इस फैसले का आधार उत्तर प्रदेश सरकार ही रही अपना फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह स्पष्ट है कि शक्ति के मनमाने प्रयोग की अनुमति नहीं दी जा सकती। जब नागरिक ने कानून तोड़ा है तो अदालत ने राज्य पर कानून और व्यवस्था बनाए रखने और उन्हें गैरकानूनी कार्रवाई से बचाने का दायित्व डाला है। इसका पालन करने में विफलता जनता के विश्वास को कमजोर कर सकती है और अराजकता को जन्म दे सकती है। हालांकि व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा करना महत्वपूर्ण है संवैधानिक लोकतंत्र को कायम रखते हुए हमने माना है कि राज्य सत्ता के मनमाने प्रयोग पर लगाम लगाने की जरूरत है, ताकि व्यक्तियों को पता चले कि उनकी संपत्ति उनसे मनमाने ढंग से नहीं छीनी जाएगी। अदालत ने कहा कि यदि कार्यपालिका मनमाने तरीके से किसी व्यक्ति की संपत्ति को केवल इस आधार पर ध्वस्त कर देती है कि उस व्यक्ति पर अपराध का आरोप है तो यह शक्तियों के सेपरेशन का उल्लंघन है। कानून को अपने हाथ में लेने वाले सार्वजनिक अधिकारियों को मनमानी के लिए जवाबदेह बनाया जाना चाहिए। इस प्रकार यह अवैध है। हमने बाध्यकारी दिशानिर्देश निर्धारित किए हैं जिनका ऐसे मामलों में राज्य के अधिकारियों द्वारा पालन किया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमने देखा है कि आरोपी के भी कुछ अधिकार और सुरक्षा उपाय हैं, राज्य और अधिकारी कानून की उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना आरोपी या दोषियों के खिलाफ मनमानी कार्रवाई नहीं कर सकते हैं, जब किसी अधिकारी को मनमानी कार्रवाई के लिए उत्तरदायी ठहराया जाता है तो इससे निपटने के लिए संस्थागत तंत्र होना चाहिए। मुआवजा तो दिया ही जा सकता है, सत्ता के गलत इस्तेमाल के लिए ऐसे अधिकारी को बख्शा नहीं जा सकता। कानून को ताक पर रखकर किया गया बुलडोजर एक्शन असंवैधानिक है। अदालत ने कहा कि कानून का शासन नागरिकों के अधिकार और प्राकृतिक न्याय का सिद्धांत आवश्यक शर्तें हैं, यदि किसी संपत्ति को केवल इसलिए ध्वस्त कर दिया जाता है, क्योंकि व्यक्ति पर आरोप लगाया गया है तो यह पूरी तरह से असंवैधानिक है। कार्यपालिका यह निर्धारित नहीं कर सकती कि दोषी कौन है और वह यह तय करने के लिए न्यायाधीश नहीं बन सकती कि वह दोषी है या नहीं और ऐसा कृत्य सीमाओं का उल्लंघन होगा। बुलडोजर का भयावह पक्ष याद दिलाता है कि संवैधानिक मूल्य और लोकाचार सत्ता के इस तरह के दुरुपयोग की अनुमति नहीं देते हैं।

उत्तर प्रदेश पुलिस को लगाई बड़ी फटकार

इसी सप्ताह 28 नवंबर 2024 बृहस्पतिवार को भारत की सुप्रीम संस्था सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश की पुलिस को बहुत बड़ी फटकार लगाई। सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसला सुनाते हुए उत्तर प्रदेश पुलिस के DGP प्रशांत कुमार को कटघरे में खड़ा किया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि या तो उत्तर प्रदेश पुलिस सुधर जाए नहीं तो हम ऐसा आदेश पारित करेंगे कि DGP हमेशा याद रखेंगे। अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उत्तर प्रदेश की पुलिस सत्ता का आनंद ले रही है और संवेदनशील होने की जरूरत है। कोर्ट ने ये चेतावनी भी दी कि अगर याचिकाकर्ता को छुआ भी तो ऐसा कोई कठोर आदेश पारित करेंगे कि जिंदगीभर याद रहेगा। यह मामला याचिकाकर्ता अनुराग दुबे का है, जिन पर अलग-अलग कई मामले दर्ज हैं। उन्हें पूछताछ के लिए बुलाया गया, लेकिन वह पेश नहीं हुए, जिसे लेकर उत्तर प्रदेश सरकार ने सवाल उठाए हैं। इस पर सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि हो सकता है कि याचिकाकर्ता को ये डर है कि जांच के दौरान उस पर कोई और मामला दर्ज न कर दिया जाए।

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने अनुराग दुबे के खिलाफ दर्ज एफआईआर रद्द करने से इनकार कर दिया था। अनुराग के खिलाफ आईपीसी के सेक्शन 323, 386, 447, 504 और 506 के तहत एएफआईआर दर्ज हैं। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता के खिलाफ अन्य मामलों और अरोपों की प्रकृति के लिए यूपी सरकार को नोटिस जारी किया था कि याचिकाकर्ता को अग्रिम जमानत क्यों नहीं दी जा रही है। इसके बाद कोर्ट ने याचिकाकर्चा की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी और अनुराग दुबे से जांच में शामिल होने के लिए कहा गया था।गुरुवार को यूपी सरकार की ओर से सीनियर एडवोकेट राणा मुखर्जी पेश हुए और उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के पिछले आदेश पर याचिकाकर्ता को नोटिस भेजा गया था। फिर भी वह पूछताछ के लिए अधिकारी के सामने पेश नहीं हुए और एफिडेविट भेज दिया। इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि हो सकता है याचिकाकर्ता को डर हो कि कहीं यूपी पुलिस फिर से कोई केस ने दर्ज कर दे। इस मामले में टिप्पणी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ‘याचिकाकर्ता को पता है कि आप फिर से नया केस बना दोगे। आप अपने डीजीपी को बता देना कि अगर अनुराग दुबे को छुआ भी तो ऐसा आदेश पास करेंगे कि वह जिंदगीभर याद रखेंगे। हर बार आप नई एफआईआर के साथ आ जाते हो। किसी पर जमीन हड़पने का आरोप लगाना आसान है और जिसने पंजीकृत विक्रय पत्र द्वारा जमीन खरीदी है, आप उस पर जमीन हड़पने का आरोप लगा रहे हैं। ये सिविल विवाद है या आपराधिक विवाद है? हम बस बता रहे हैं कि यूपी पुलिस एक खतरनाक क्षेत्र में घुस रही है और मजे ले रही है। आपको लगता है कि पुलिस और सिविल कोर्ट की पावर आपके पास है तो आप मजे ले रहे हो।’कोर्ट ने अनुराग दुबे के वकील से भी पूछा कि याचिकाकर्ता जांच के लिए पेश क्यों नहीं हो रहे हैं। तब वकील ने बताया कि उन्हें इस बारे में कोई नोटिस नहीं भेजा गया है, जबकि याचिकाकर्ता ने पुलिस को अपना मोबाइल नंबर भी दिया है ताकि उन्हें बता दिया जाए कि जांच के लिए कब और कहां पेश होना है। इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने यूपी पुलिस के वकील से पूछा कि याचिकाकर्ता को किस तरह नोटिस भेजा गया था तो एडवोकेट ने बताया कि उन्हें लेटर भेजा गया था। इस पर जज ने कहा कि अब सब डिजिटल हो गया है इसलिए अनुराग दुबे के मोबाइल नंबर पर मैसेज भेजें। कोर्ट ने यह भी चेतावनी दी कि याचिकाकर्ता को जांच में शामिल होने दिया जाए, पुलिस उन्हें गिरफ्तार नहीं करेगी। अगर किसी मामले में अरेस्ट करने की जरूरत लगती है तो आएं और हमें बताएं कि ये कारण हैं इसलिए अरेस्ट करना है. हालांकि, अगर पुलिस अधिकारी कोर्ट को बगैर बताए गिरफ्तार करते हैं तो उन्हें सस्पेंड तो किया ही जाएगा साथ में और भी बहुत कुछ भुगतना पड़ेगा।आपको बता दें कि अनुराग दुबे उत्तर प्रदेश के फर्रूखाबाद (Farrukhabad) के रहने वाले हैं। उत्तर प्रदेश की विपक्षी पार्टी बहुजन समाज पार्टी के साथ अनुराग दुबे का निकट का संबंध है। अनुराग दुबे के भाई अनुपम दुबे उत्तर प्रदेश में बसपा के नेता हैं। उत्तर प्रदेश पुलिस ने अनुराग दुबे को गैंगस्टर घोषित कर रखा है। उत्तर प्रदेश पुलिस अब तक अनुराग दुबे के विरूद्ध 60 से अधिक FIR  दर्ज कर चुकी है। आशंका है कि उत्तर प्रदेश पुलिस राजनीतिक कारणों सेअनुराग दुबे के पीछे पड़ी हुई है। सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बाद इस मामले में उत्तर प्रदेश पुलिस की बड़ी किरकिरी हुई है। UP News

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