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Day Special : आज ही के दिन नोएडा में बहा था शूरवीरों का खून, गुर्जर वीरों ने रचा था इतिहास

On this day, the blood of the warriors was shed in Noida, Gurjar heroes had created history

On this day, the blood of the warriors was shed in Noida, Gurjar heroes had created history

Day Special : आज 3 अक्टूबर है। आज का दिन गौतमबुद्ध नगर के इतिहास में बहुत बड़ा है। आज के दिन वीरता और कुर्बानी की जो इबारत लिखी गई, शायद उससे पाठक परिचित नहीं होंगे। आपको यह बताते हुए गर्व हो रहा है कि लाखों की अंग्रेज सेना के सामने गुर्जर वीरों ने चतुरता, जांबाजी और शहादत की जो मिसाल पेश की, वह हमें अपनी मिट्टी से प्रेम करने और उसके लिए कुर्बान होने की प्रेरणा देता है। हम नतमस्तक हैं उन वीरों के आगे। जयहिन्द।

आइये, जानें, उन गुर्जर वीरों की दास्तान, जिसे सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। तीन अक्टूबर 1857 को क्रांतिकारी फौज ने ब्रिटिश फौज के साथ निर्णायक मुकाबला किया था। जिस निर्णायक मुकाबले में क्रांति फौज के 5 कमांडर वीर सेनापति दरियाव सिंह नागर, राव सुरजीत सिंह नागर, चौधरी राम बख्श सिंह नागर, चौधरी इंदर सिंह नागर एवं चौधरी कान्हा सिंह नागर वीरगति को प्राप्त हो गए थे।

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कहानी इस तरह है कि 10 मई 1857 को जब मेरठ में क्रांति का ऐलान हुआ, तब अमर सेनानी धन सिंह कोतवाल ने अंग्रेजांे के खिलाफ क्रांति का बिगुल फूंका। उसके बाद परीक्षितगढ़ के राजा कदम सिंह की एक बड़ी सेना मेरठ से दिल्ली की ओर कूच की। उन सैनिकों ने दो दिन की लड़ाई के बाद लाल किले पर कब्जा कर लिया। ब्रिटिश फौज को दिल्ली से भगा दिया और बहादुर शाह जफर को दिल्ली का सुल्तान घोषित कर दिया। उसके बाद देश में जगह-जगह क्रांति का आगाज होने लगा।

भारत, स्वाधीनता प्राप्ति के लिए संघर्ष करने लगा, लेकिन अंग्रेज भी कहां चुप बैठने वाले थे। अंग्रेजों ने अपनी शक्ति का संचय करके 29 मई को कैप्टन रोज व मेजर हडसन के नेतृत्व में दिल्ली पर कब्जा करने का प्रयास किया। उसमें बड़ी संख्या में अंग्रेज व गोरखा सैनिक मौजूद थे। इस फौज ने गाजियाबाद की तरफ से दिल्ली में प्रवेश करने का प्रयास किया, लेकिन क्रांतिकारी सेना ने जोरदार मुकाबला किया। क्रांतिकारी सेना का नेतृत्व दादरी के राजा उमराव सिंह भाटी कर रहे थे। उनके साथ बुलंदशहर के नवाब बलिदान खान थे। बागपत के शाहमल जाट थे और स्थानीय गुर्जरों की एक बड़ी फौजी थी, जिसमें करीब 10 हजार सशस्त्र सैनिक थे। तीन दिन चले युद्ध में क्रांतिकारियों को विजय मिली और ब्रिटिश सेना को पीछे हटना पड़ा।

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लगभग तीन महीने की तैयारी के बाद पंजाब रेजीमेंट की मदद से अंग्रेजों ने 16 सितंबर 1857 को हरियाणा की तरफ से दिल्ली में प्रवेश किया और 19 सितंबर को दिल्ली पर पूरा नियंत्रण कर लिया। 21 सितंबर को बहादुर शाह जफर को बंदी बना लिया और उसके दो बेटों का कत्ल कर दिया। उसके बाद ब्रिटिश फौज ने बुलंदशहर की तरफ रुख किया। 23 व 24 सितंबर की रात ब्रिटिश सेना यमुना नदी को पार करके वर्तमान नोएडा में पहुंची। उधर, क्रांतिकारी भी पूरी तरह से तैयार थे। क्रांति सेना का नेतृत्व राव उमराव सिंह भाटी उनके भाई राव बिशन सिंह भाटी कर रहे थे। साथ में थे दनकौर के जमींदार राव जवाहर सिंह नागर के पुत्र सरजीत सिंह नागर, दरियाव सिंह नागर, राम बख्श सिंह नागर, इंदर सिंह नागर और कान्हा सिंह नागर। ये पांचों योद्धा एक ही परिवार से थे। ये सभी क्रांति सेना के नायक परीक्षितगढ़ नरेश राव कदम सिंह के चचेरे भाई थे। सूरजपुर के पास इन्होंने ब्रिटिश सेना से पहला मुकाबला किया। ये राजा कदम सिंह की दनकौर की ब्रिगेड थी, जिसका नेतृत्व दरियाव सिंह गुर्जर कर रहे थे।

राव दरियाव सिंह को युद्धों का बड़ा अनुभव था। वह अपने चाचा परीक्षितगढ़ के पूर्व राजा नत्था सिंह के साथ कई युद्ध में भाग ले चुके थे। इनके सहयोगी थे राव सरजीत सिंह नागर, जिनके के पास 10 हजार जवानों की फौज थी। सरजीत सिंह की आयु कोई 30 वर्ष बताई जाती है। कान्हा सिंह बुलंदशहर के गांव अट्टा सावर के जमींदार थे। उनके पास 5000 की सैन्य शक्ति थी। इंदर सिंह नागर अट्टा गुजरान के थे। राम बख्श सिंह नागर गुनपुरा गांव के थे। इन पांचों ने 25 सितंबर से ही ब्रिटिश सेना पर घात लगाकर हमले करने शुरू कर दिये थे। दरियाव सिंह ने रणनीति के तहत क्रांतिकारियों की ताकत को 5 हिस्सों में बांटा, जिसमें सेना के क्रांतिकारियों के एक समूह का नेतृत्व दरियाव सिंह के पास था। दूसरा सरजीत सिंह के पास, तीसरा कान्हा सिंह, चौथा राम बख्श सिंह और पांचवें ग्रुप की जिम्मेवारी इंदर सिंह के पास थी।

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दरियाव सिंह ने रणनीतिक कौशल का परिचय देते हुए अंग्रेजों की बड़ी फौज के सामने यह भ्रम फैला दिया कि यहां भी क्रांतिकारियों की संख्या लाखों में है। लगातार छापामार लड़ाई चलती रही। 25 सितंबर से 3 अक्टूबर तक ब्रिटिश फौज को रोके रखा गया। छापामार लड़ाई में अंग्रेजों की ब्रिटिश फौज की संख्या लगभग डेढ लाख थी। वहीं, क्रांतिकारियों की संख्या मात्र 20 हजार के आसपास थी। लगातार हुए संघर्ष में क्रांतिवीर शहीद होते गए। मातृभूमि के लिए वीरगति को प्राप्त होते गए। एक-एक गुर्जर वीर अपनी शहादत देता रहा। अंग्रेज सेना ने क्रांतिकारियों के साथ समझौते के कई प्रयास किये, लेकिन क्रांति सेना ने समझौता न करने का फैसला किया। क्रांतिवीरों ने अंतिम सांस तक लड़ते रहने और ब्रिटिश फौज को जमुनापार खदेड़ने का फैसला किया।

आज ही के दिन यानि 03 अक्टूबर 1857 को वर्तमान में परी चौक के पास ब्रिटिश फौज और क्रांति सेना का निर्णायक युद्ध हुआ। उस युद्ध में लाखों की फौज के सामने सीमित क्रांति सेना थी। क्रांतिवीरों के लगातार शहीद होने की वजह से क्रांति सेना कमजोर पड़ गई। राव कदम सिंह ने धौलपुर के सेनापति देवहंस कसाना को दरियाव सिंह की मदद के लिए भेजने का प्रयास किया, लेकिन धौलपुर की फौज जब तक आती, तब तक क्रांतिवीर अपना सर्वस्व न्यौछावर कर चुके थे। चारों तरफ से घिरे क्रांतिकारी भारत की स्वाधीनता के लिए मातृभूमि की आजादी के लिए अंतिम सांस तक लड़ते हुए रणभूमि में शहीद हो गए। उन वीरों ने अपनी शहादत दी और हम लोगों के लिए एक उदाहरण छोड़ गये कि जालिम चाहे कितना भी ताकतवर क्यों न हो, अंत में जीत सत्य की ही होती है।

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