Diwali 2022 : इस बार दिवाली पर मार्केट में लोग इको फ्रेंडली दियों की खूब डिमांड कर रहे हैं। दरअसल, वातावरण की सुरक्षा को लेकर सरकार के साथ-साथ भारतीय नागरिक भी बखूबी अपनी जिम्मेदारी समझ रहे हैं। इसकी बानगी इन दिनों मार्केट में देखने को मिल रही है। जी हां, बाजार में ग्राहक अब मिट्टी के दीयों की जगह ‘इको फ्रेंडली’ दीयों की डिमांड कर रहे हैं।
Diwali 2022 :
क्या होते हैं इको फ्रेंडली दीपक ?
दरअसल, इको फ्रेंडली दीये भी आम मिट्टी के दीपक की तरह ही घर और आंगन को रोशन करने के लिए काम में आते हैं, लेकिन इसके फायदे इसके नाम की तरह ही काम करते हैं। दरअसल, इनके इस्तेमाल के पश्चात इनके अवशेष को खाद के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है। इसलिए पर्यावरण की सुरक्षा के लिए इन्हें बहुत फायदेमंद बताया जा रहा है।
कैसे तैयार किए जाते हैं ये इको फ्रेंडली दीये ?
दरअसल, ये इको फ्रेंडली दीये गाय के गोबर से तैयार किए जाते हैं। यही कारण है कि इन्हें इको फ्रेंडली और घर के वातावरण को शुद्ध बनाए रखने में अहम समझा जाता है। ऐसे में इस बार दिवाली पर घरों को रोशन करने के लिए जलाए जाने वाले मिट्टी के दीयों के साथ-साथ गोबर से बने इको फ्रेंडली दीये जलाकर आप पर्यावरण को भी फायदा पहुंचा सकते हैं। इनसे आपका घर-आंगन तो रोशन होगा ही साथ ही घर का वातावरण भी शुद्ध रहेगा। शास्त्रों के मुताबिक गोमाता के गोबर का उपयोग धार्मिक कार्यों में किया जाता रहा है।
कहां तैयार हो रहे ये दीये ?
वैसे तो ये इको फ्रेंडली दीये देशभर की तमाम गौशालाओं में दिवाली के आसपास तैयार होने लगते हैं लेकिन राजधानी दिल्ली के पड़ोसी राज्य राजस्थान की राजधानी जयपुर के हिंगोनिया में इन दीयों की बढ़ी डिमांड के कारण गौ पुनर्वास केंद्र में गाय के गोबर से दीपक बनाने का कार्य तेजी से जारी है।
इन्होंने की ये अभिनव पहल
यहां प्रतिदिन लगभग दो हजार दीपक बनाए जा रहे है। जयपुर में हिंगोनिया गौ पुनर्वास केंद्र के ऑर्गेनिक फार्म में गाय के गोबर से दीपक बनाने के लिए हरे कृष्ण मूवमेंट के भक्तों ने इस दिशा में अभिनव पहल की है।
इको फ्रेंडली होने के चलते अन्य राज्यों से भी डिमांड
इको फ्रेंडली होने के चलते राजस्थान के अन्य शहरों और अन्य राज्यों से भी इसकी मांग की जा रही है। इसके अलावा यहां बचे हुए गोबर चूर्ण और पत्तियों से ऑर्गेनिक खाद (वर्मी कम्पोस्ट) एवं यज्ञ में उपयोग होने वाली सुगन्धित धूप एवं इको फ्रेंडली गो कास्ट भी बनाई जा रही है। हिंगोनिया गौ पुनर्वास केंद्र का उद्देश्य लोगों को गाय के गोबर के महत्व को समझाना है।
कैसे बनते है इको फ्रेंडली दीपक ?
दीपक बनाने के लिए पहले गाय के सूखे गोबर को इकट्ठा किया जाता है। उसके बाद करीब एक किलो गोबर में 50 ग्राम लकड़ी चूर्ण और 50 ग्राम गम ग्वार मिलाया जाता है। इसके बाद हाथ से उसको गूंथा जाता है। तत्पश्चात गाय के गोबर को दीपक का खूबसूरत आकार दिया जाता है। महज एक मिनट में पांच से छह दीये तैयार हो जाते हैं। इसे दो दिनों तक धूप में सुखाया जाता है। खास बात यह है की उपयोग के बाद इन दीपक के अवशेष को खाद के रूप में उपयोग किया जा सकता है।