मुझे बाबा नागार्जुन की कविता की कुछ पंक्तियां याद आ रही हैं l अपने लेख की शुरुआत मै उनसे ही करना चाहता हूं:-
“बदल गई है भाव भंगिमा, बदल गया है वेश l हृदय नहीं परिवर्तित होगा क्रूर कुटिल मति चाणक्यों का l
आरएसएस यानी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS)अपनी वेशभूषा में परिवर्तन करके हाफ पेंट से फुल पेंट पर बेशक आ गया हो, किंतु इनकी दिमागी विचारधारा अभी भी हाफ ही है l संघ के आलोचक सदैव ही कहते रहते हैं कि यह संगठन मनुस्मृति को अपना आदर्श मानता है और मनुस्मृति के अनुसार देश को चलाना चाहता है l समय-समय पर संघ की ओर से भी इस आरोप की पुष्टि होती रहती है l
26 नवंबर 1949 को जब भारतीय संविधान को स्वीकृत किया गया था तो आरएसएस के तत्कालीन प्रमुख गोलवलकर ने संघ के मुखपत्र ऑर्गेनाइजर में एक लेख लिखकर इस संविधान का विरोध किया था l उन्होंने कहा था कि भारत का संविधान मनुस्मृति पर आधारित होना चाहिए l मनुस्मृति शूद्रों और महिलाओं को दोयम दर्जे का नागरिक मानती है और यह मानती है कि ये दोनों वर्ग सेवा के लिए ही ईश्वर ने पैदा किए हैं l इन्हें स्वतंत्र रहने का अधिकार नहीं है l लोकतांत्रिक तकाजे के तहत महिलाओं और शूद्रों की वोट हासिल करने के लिए भारतीय जनता पार्टी और आरएसएस बेशक इस बात से इनकार करते रहे हों और शूद्रों व महिलाओं को बराबरी का अधिकार देने के दावे करते रहे हों, किंतु असल में इनका मन आज भी मनुस्मृति से ही प्रभावित है l इसका जीता जागता प्रमाण आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत द्वारा अयोध्या में अविवाहित कन्याओं से पैर धुलवाने की घटना है l
आप फोटो में देखिए कि मोहन भागवत किस बेशर्मी के साथ धोती को ऊपर उठाकर कन्याओं से अपने पैर धुलवा रहे हैं l कोई भी विचारशील और न्यायशील व्यक्ति इस घटना को जस्टिफाई नहीं कर सकता l आरएसएस और बीजेपी के भक्त कितनी भी सफाई देते रहें किंतु यह संपूर्ण भारतीय समाज के लिए शर्म का विषय है l जिस समय मोहन भागवत इस दुष्कर्म को अंजाम दे रहे थे श्रीराम जन्म भूमि न्यास के सदस्य राम विलास वेदांती और विश्व हिंदू परिषद के महामंत्री दिनेश उनके अगल-बगल बैठे हुए थे l इन दोनों को भी इस शर्मनाक कृत्य पर शर्म नहीं आई l
आरएसएस प्रमुख की इस शर्मनाक हरकत पर अयोध्या का साधु समाज आक्रोशित है l अनेक साधुओं और धर्मगुरुओं ने मोहन भागवत के इस कृत्य की निंदा की है l अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत ज्ञानदास ने कहा है कि अविवाहित साध्वीयों से पैर धुलवा कर मोहन भागवत ने घोर अपराध किया है l