दु:ख मानव जीवन का अभिन्न अंग हैं और पांच विकारों के कारण मनुष्य के जीवन में आते हैं। मन के पांच विकार हैं – काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार। यदि सप्रयास विकारों से मुक्ति पा ली जाए तो दु:ख मनुष्य के जीवन को छू भी नहीं सकते हैं। लेकिन इन विकारों से मुक्त होना असंभव नहीं तो बेहद कठिन अवश्य है। इन विकारों से मुक्त होने के लिए संसार से नाता तोड़ना होगा जैसा कि अनेक महान विभूतियों ने किया। परंतु आम इंसान के लिए यह संभव इसलिए नहीं है क्योंकि लोग संसार को त्यागना ही नहीं चाहते हैं। दु:ख सहते रहकर भी संसार से विमुख होने के बारे में नहीं सोचना चाहते, दु:ख सहते रहकर संसार में बने रहना लोगों को प्रिय है। इसका सबसे बड़ा कारण है संसार का चुंबकीय आकर्षण जो लोगों को अपनी ओर खींचता है और लोग बरबस ही इसकी ओर खिंचे चले जाते हैं।
आम धारणा है कि पांच विकार छोड़ने से संसार छूट जाएगा, इससे अच्छा है दु:ख सहते रहकर संसार में बने रहना। संसार छूटने का अर्थ है, संसार में बने रहकर निर्लिप्त भाव से जीवन जीना। दु:ख से मुक्ति का उपाय है लेकिन इस उपाय को कोई विरला ही अपनाता है, शेष दु:ख को नियति मानकर जीवन भर कष्ट उठाते हैं।
काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार सारे दु:खों का कारण हैं। पहले काम की बात करते हैं, काम का अर्थ है कामना मनुष्य आए दिन तरह-तरह की कामना करता है – धन, सफलता, मकान, रोजगार, सम्मान, प्रशंसा आदि पाने की कामना। इन कामनाओं की पूर्ति न होने पर दु:ख का अनुभव होता है। यदि कामनाओं पर अंकुश लगा दिया जाए, यदि कामना और वासना में पर्याप्त संतुलन बना लिया जाए तो तमाम दु:खों से बचा जा सकता है।
जब कामनाओं की पूर्ति नहीं होती है तो क्रोध उत्पन्न होता है। क्रोध मनुष्य के बुद्धि विवेक को हर लेता है। यही कारण है कि क्रोध के क्षणों में जो भी निर्णय मनुष्य लेता है, जो भी कर्म करता है, अधिकतर अनुचित होते हैं और भविष्य में दु:ख का कारण बनते हैं। अन्याय के विरुद्ध क्रोध अनुचित नहीं है लेकिन बात बात पर, हर बात पर क्रोध करना दु:ख के बीज ही होता है।
लोभ का अर्थ है – आवश्यकता से अधिक पाने की लालसा, लालच करना। लालच से तमाम तरह की बुराइयों का जन्म होता है और यही बुराइयां दु:खों का कारण बन जाती हैं। लोभ को तिलांजलि देकर संतुष्ट और संतोषी जीवन जीने का सार्थक प्रयास दु:ख से बचाव का श्रेष्ठ उपाय है।
मोह के कारण दु:ख तब महसूस होता है जब कोई प्रिय व्यक्ति अथवा वस्तु हमसे दूर चली जाती है। किसी अपने की मृत्यु का दु:ख, किसी प्रिय की जुदाई का दु:ख धन संपत्ति अथवा मान-सम्मान की हानि का दु:ख मोह के कारण ही पैदा होता है। अहंकार का अर्थ है स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ और बुद्धिमान समझना। यह केवल एक भ्रम होता है और बहुधा टूट जाता है और जब यह भ्रम टूटता है तो अहंकार घायल होता है, तब व्यक्ति दु:खी होता है। यदि इन पांच विकारों पर नियंत्रण पा लिया जाए तो जीवन तमाम तरह के दु:खों से मुक्त हो सकता है और यह असंभव बिल्कुल भी नहीं है।