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Agricultural Tips : खेती और किसान; जैविक कीटनाशकों का प्रयोग कैसे करें

Agricultural Tips

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Agricultural Tips: फसलों को उनमें लगने वाले कीटों से बचाना बेहद जरुरी होता है। रसायनों का प्रयोग करने से जहां मृदा शक्ति पर विपरित प्रभाव पड़ता है, वहीं दूसरी ओर मानव पर भी रसायनिक कीटनाशकों का प्रभाव पड़ता है। ऐसे में फसलों को कीट से बचाने के लिए जैविक कीटनाशकों का प्रयोग किया जा सकता है। जैविक कीटनाशकों का मनुष्य पर कोई हानिकारक प्रभाव नहीं होता। यहां किसान भाईयों के लिए कुछ प्रमुख जैविक कीटनाशकों की जानकारी दी जा रही है, इनका प्रयोग कर किसान कीटों से अपनी फसलों का बचाव कर सकते हैं।

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ट्राइकोडर्मा
यह एक प्रकार का फफूंदीनाशक है, जो बाजार में 1 प्रतिशत डब्ल्यूपी तथा 2 प्रतिशत डब्ल्यूपी के फॉर्मूलेशन में उपलब्ध है। ट्राइकोडर्मा के कवक तंतु हानिकारक कवकों के तंतुओं के अंदर जाकर अथवा उसके ऊपर रहकर उसका रस चूसते हैं। इसके साथ ही ये विशिष्ट प्रकार के विषाक्त रसायन का स्रवण करते हैं, जो बीजों के चारों ओर सुरक्षा दीवार बनाकर हानिकारक फफूंदी से रक्षा करते हैं। ये बीजों के अच्छे अंकुरण के लिए भी उत्तरदायी होते हैं। इसके प्रयोग से पूर्व अथवा पश्चात रासायनिक उत्पादों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। यह विभिन्न प्रकार की फसलों, फलों तथा सब्जियों जैसे- धान, कपास, गेहूं, गन्ना, पपीता, आलू आदि में जड़ सड़न, तना सड़न, झुलसा आदि रोगों में प्रभावी होता है।

प्रयोग विधि : ट्राइकोडर्मा से बीजशोधन के लिए इसकी 4 ग्राम मात्रा लेकर प्रति कि.ग्रा. बीज दर से बीज उपचार कर बुआई करनी चाहिए। पौधे तैयार करते समय इसकी 5 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर, पौधे की जड़ उसमें डुबोकर शोधित करने के पश्चात प्रयोग करना चाहिए। ट्राइकोडर्मा से मृदा उपचारित करने के लिए इसकी 2.5 कि.ग्रा. मात्रा को प्रति हैक्टर की दर से लगभग 70 से 80 कि.ग्रा. गोबर की खाद में मिलाकर पर्याप्त नमी के साथ लगभग 10 दिनों तक छाया में सुखाकर, बुआई से पूर्व अंतिम जुताई पर प्रयोग करना चाहिए। फसल में फफूंदजनित रोगों के नियंत्रण के लिए 2.5 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर की दर से लगभग 500 लीटर पानी में घोल का आवश्यकता अनुसार 15 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करना चाहिए।

स्यूडोमोनास
यह जीवाणु आधारित फफूंदी तथा जीवाणुनाशी है, जो बाजार में मुख्यतः 0.5 डब्ल्यू. पी. फॉर्मूलेशन में उपलब्ध है। इसके 15 दिनों की प्रयोग अवधि में किसी भी रासायनिक जीवाणुनाशी का प्रयोग नहीं करना चाहिए । विभिन्न प्रकार की फसलों के जड़ तथा तना सड़न, उकठा, गन्ने का लाल सड़न, जीवाणु झुलसा आदि जीवाणु तथा फफूंदीजनित रोगों के नियंत्रण के लिए प्रभावी है। इसका प्रयोग प्रमुखता से बीजशोधन तथा पौधे के विभिन्न रोगों के नियंत्रण में होता है।

प्रयोग विधि : इस विधि द्वारा बीज उपचारित करने के लिए इसकी 10 ग्राम मात्रा को 15 से 20 मि.ली. पानी में मिलाकर प्रयोग में लेते हैं। यह तैयार घोल एक कि.ग्रा. बीज को उपचारित करने के लिए पर्याप्त होता है। इसके बाद उपचारित बीज को छाया में सुखाकर प्रयोग करते हैं। इससे पौधे को उपचारित करने के लिए इसकी 50 ग्राम मात्रा को एक लीटर पानी में मिलाकर प्रयोग करते हैं। इस घोल को छिड़काव के लिए भी प्रयोग कर सकते हैं, जिससे मृदाजनित रोगों से बचाव किया जा सके।

मेटाराइजियम ऐनीसोप्ली

मेटाराइजियम ऐनीसोप्ली यह भी एक जैविक कीटनाशक है। जो फफूंदी आधारित होता है। 1.15 प्रतिशत तथा 1.5 प्रतिशत डब्ल्यूपी फॉर्मूलेशन के साथ यह बाजार में उपलब्ध होता है। यह फलीलपेटक, सफेद गिडार, फलीबेधक, रस चूषक कीट तथा भूमि में रहने वाले विभिन्न प्रकार के कीटों से रक्षा करने में प्रभावी होता है। इसके प्रयोग से 15 दिनों पूर्व तथा पश्चात किसी भी प्रकार के रासायनिक कीटनाशक का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

प्रयोग विधि: ब्यूबेरिया की तरह इसकी भी 2.5 कि.ग्रा. मात्रा लेकर 70 से 80 कि.ग्रा. गोबर की खाद में मिलाकर प्रति हैक्टर की दर से प्रयोग करें। खड़ी फसल में 2.5 कि.ग्रा. मात्रा को 400 से 500 लीटर पानी में घोलकर आवश्यकतानुसार 15 दिनों के अंतराल पर सायंकाल में छिड़काव करना प्रभावी होता है।

बैसिलस थुरिंजेंसिस
यह एक कीटाणु आधारित जैविक कीटनाशक है, जो सब्जियों, फसलों तथा फलों में लगने वाले लेपिडॉप्टेरा कुल के कीट जैसे-फलीबेधक पत्ती खाने वाले कीट तथा पत्ती लपेटक कीटों की रोकथाम के लिए लाभकारी है। इस जैविक कीटनाशक के प्रयोग के पश्चात अथवा पूर्व के 15 दिनों तक किसी भी रासायनिक कीटनाशक का प्रयोग नहीं करना चाहिए। इसकी शेल्फ लाइफ 1 वर्ष होती है।

प्रयोग विधि : 400 से 500 लीटर पानी में इस कीटनाशक की 0.5 ग्राम से 1.0 कि.ग्रा. मात्रा का घोल बनाकर प्रति हैक्टर की दर से आवश्यकतानुसार 15 दिनों के अंतराल पर सायंकाल में छिड़काव करें। एनपीवी इसका पूरा नाम न्यूक्लियर पॉली हाइड्रोसिस वायरस है, जो विषाणु आधारित कीटनाशक है। इसका प्रयोग प्रमुखता से विभिन्न प्रकार की सूंडियों के नियंत्रण के लिए किया जाता है। चने तथा तंबाकू की फसल में सूंडी नियंत्रण के लिए इस जैविक कीटनाशक का प्रयोग किया जाता है। चने की सूंडी से बना हुआ एनपीवी, चने की सूंडी जबकि तंबाकू की सूंडी से बना एनपीवी, उसी की सूंडी पर नियंत्रण के लिए प्रभावी होता है। कीट की सूंडी एनपीवी युक्त पत्ती अथवा फली को खाती है तथा कुछ समय पश्चात यह पीली पड़कर अंत में काली हो जाती है। इसके अंदर एक विशिष्ट प्रकार का द्रव होता है, जिसके द्वारा एनपीवी को पुनः बनाया जा सकता है। एनपीवी से प्रभावित सूडियां पौधे की ऊपरी पत्तियों अथवा टहनियों से लटकती हुई पाई जाती हैं।

प्रयोग विधि : सूडियों के नियंत्रण के लिए 250 से 300 एलई (लार्वा समतुल्यांक ) को 400 से 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टर की दर से खड़ी फसल में आवश्यकतानुसार 15 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करें।

ब्यूबेरिया बैसियाना
यह एक प्रकार का फफूंद आधारित जैविक कीटनाशक है, जो विभिन्न प्रकार की फसलों में लगने वाले फलबेधक, चूषक कीट, दीमक, सफेद गिडार तथा पत्तीलपेटक आदि कीटों से रोकथाम करता है। यह अधिक आर्द्रता एवं कम ताप पर अत्यधिक प्रभाव दिखाता है। यह बाजार में 1 प्रतिशत डब्ल्यूपी तथा 1.15 प्रतिशत डब्ल्यूपी के फॉर्मूलेशन में उपलब्ध होता है।

प्रयोग विधि : इससे मृदा उपचारित करने के लिए इसकी 2.5 कि.ग्रा. मात्रा को 70 से 80 कि.ग्रा. गोबर की खाद में मिलाकर प्रति हैक्टर की दर से प्रयोग करते हैं। इसके अतिरिक्त खड़ी फसल में कीटों से बचाव के लिए इसकी 2.5 कि.ग्रा. मात्रा को लगभग 400 से 500 लीटर पानी के साथ घोल बनाकर एक हैक्टर की दर से छिड़काव कर सकते हैं।

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