उषा सक्सेना
आया फागुन मास
चैतुआ हो जाओ
तैयार।
पीली सरसों खड़ी
खेत पियराकर
मुरझाई है।
नीलीअलसी बातों मे
नीलाभ गगन
दरशाई है।
हरे चना की हरियाली
तज बूट पके
पियराये हैं।
गेहूं की बाली हँस बोली
हम भी पक कर
तैयार हैं।
फागुन उतरा आया चैत्र
आओ! चैतुआ
काँटे खेत।
फसलें सब तैयार खड़ी
भरना हमको अब
सबके पेट।
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