मैं इस धरती का बेटा
यह धरती ही मेरी मां है
और पिता आकाश यहां ।
पिता खेत में काम करे
तो मैं कैसे घर मे बैठूँगा
उसके साथ मुझे जाना है
काम कुशलता से करना।
काम नही सीखूगा मैं तो
आगे काम करेगा कौन
कर्म धर्म की बातें करते
उनको कौन सुनेगा मौन।
संघर्षों से लड़ना हमको
प्रकृति रोज देती है ज्ञान
उससे बड़ा गुरू कौन है
नही सका उसको पहचान।
माटी के ही खेल खिलौने
नित्य यहां बनाते हैं हम
और मिटा कर उनको ही
फिर से नया बना देते हैं।
धरती का बेटा बनकर ही
तो मैं धरापुत्र कहलाऊंगा।
सबको झुका इसी धरती
माँ का लाल कहलाऊँगा।
- उषा सक्सेना
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