Site icon चेतना मंच

Hindi Kavita – रोज एक नया फसाना

Hindi Kavita

Hindi Kavita

वो बचपन भी कितना सुहाना था,
जिसका रोज एक नया फसाना था।
कभी पापा के कंधो काश,
तो कभी मां के आँचल का सहारा था।
कभी बेफिक्र मिट्टी के खेल का,
तो कभी दोस्तों का साथ मस्ताना था।
कभी नंगे पाँव वो दौड़ का,
तो कभी पतंग ना पकड़ पाने का पछतावा था।
कभी बिन आँसू रोने का,
तो कभी बात मनवाने का बहाना था।
सच कहूँ तो वो दिन ही हसीन थे,
ना कुछ छिपाना और दिल मे जो आए बताना था।

— नेहा वनकर

————————————————

यदि आपको भी कविता, गीत, गजल और शेर ओ शायरी लिखने का शौक है तो उठाइए कलम और अपने नाम व पासपोर्ट साइज फोटो के साथ भेज दीजिए चेतना मंच की इस ईमेल आईडी पर-  chetnamanch.pr@gmail.com

हम आपकी रचना को सहर्ष प्रकाशित करेंगे।

Exit mobile version