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Tribute : सच्चे अर्थों में किसानों के मसीहा थे चौधरी महेन्द्र सिंह टिकैत, उनके सामने कांपती थी सत्ता

Tribute

Chaudhary Mahendra Singh Tikait was the messiah of farmers in true sense, power used to tremble in front of him

न्यूज डेस्क, चेतना मंच, नोएडा।

Published by : R.P. Raghuvanshi

‘‘तुम्हारी शख्सियत से सबक लेंगी नई नस्लें
मंजिल तक वही पहुंचा है जो अपने पांव चलता है।
मिटा देता है कोई नाम खानदानों के
किसी के नाम से मशहूर होकर गांव चलता है।’’

प्रसिद्ध शायर मासूम गाजियाबादी द्वारा रचित उक्त पंक्तियां स्व. महेन्द्र सिंह टिकैत के ऊपर बिल्कुल सटीक बैठती हैं। भारत के सबसे बड़े प्रदेश उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले के सिसौली गांव में जन्मे महेन्द्र सिंह टिकैत की पुण्यतिथि 15 मई को आती है। आज वर्ष-2023 की 15 मई को पूरी दुनिया के किसान अपने उस महान नेता को याद कर रहे हैं। 6 अक्टूबर 1935 को सिसौली में जन्मे महेन्द्र सिंह टिकैत का दु:खद निधन 75 वर्ष की उम्र में 15 मई 2011 को हो गया था। उनकी जीवन पर अनेक पुस्तकें लिखी गई हैं। उनके जीवन के विभिन्न पहलु दर्शाने वाली अनेक वीडियो एवं आलेख भी सोशल मीडिया पर मौजूद हैं। आज के इस आलेख में हम आपको उनके संघर्षपूर्ण जीवन के कुछ खास पलों से परिचित करा रहे हैं।

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महेन्द्र सिंह टिकैत का बचपन

दरअसल, महेन्द्र सिंह टिकैत का बचपन बेहद अभावग्रस्त परिस्थितियों में व्यतीत हुआ था। जब वे मात्र 8 वर्ष के थे तो उनके पिता चौ. चौहल सिंह का निधन हो गया था। उनकी माताजी श्रीमती मुख्तयारी देवी व उनके चाचा जी ने उनका पालन पोषण किया था। अपनी खेती व किसानी संभालने के कारण वे केवल 7वीं कक्षा तक ही पढ़ाई कर पाए थे। पूरे देश में चलने वाली खाप व्यवस्था के तहत 8 वर्ष की अल्प आयुु में ही उन्हें उनके पिता चौहल सिंह के स्थान पर बालियान खाप का मुखिया (चौधरी) बना दिया गया था। बालियान खाप जाट समाज की सबसे बड़ी खाप में गिनी जाती है। इस खाप के कुल 84 गांव हैं। बचपन से ही इतनी बड़ी जिम्मेदारी मिलने के कारण चौ. टिकैत का पूरा जीवन देश व समाज के लिए समर्पित हो गया था।

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किसानों की पहली सक्रिय यूनियन

वर्ष-1985 में चौधरी महेन्द्र सिंह टिकैत ने अपने निकट सहयोगी मास्टर हरपाल सिंह की सलाह व सहयोग से भारतीय किसान यूनियन (BKU) का गठन किया था। यह संगठन उत्तर भारत के किसानों का सबसे पहला सक्रिय संगठन था। इसी संगठन के जरिए श्री टिकैत ने पहले पश्चिमी उत्तर प्रदेश तथा फिर पूरे देश के किसानों को सरकारी तंत्र से लड़ना सिखाया था। शुरू में आम जनता व पत्रकारों ने उनके संगठन (BKU) को गंभीरता से नहीं लिया था, किन्तु एक दिन वह समय भी आया, जब पूरे देश ने देखा कि महेन्द्र सिंह टिकैत व (BKU) के सामने सरकार व सत्ता प्रतिष्ठान थर-थर कांपते थे। किसानों को अपने हक के लिए लड़ना सिखाने वाले चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत के एक इशारे पर लाखों किसान जमा हो जाते थे। किसानों की मांगें पूरी कराने के लिए वह सरकारों के पास नहीं जाते थे, बल्कि उनका व्यक्तित्व इतना प्रभावशाली था कि सरकारें उनके दरवाजे पर आती थीं।

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पूरी दुनिया में हुए प्रसिद्ध

चौधरी टिकैत के जीवन का सफर कांटों भरा था। 1935 में मुजफ्फरनगर के सिसौली गांव में जन्मे चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत का पूरा जीवन ग्रामीणों को संगठित करने में बीता। भारतीय किसान यूनियन के गठन के साथ ही 1986 से उनका लगातार प्रयास रहा कि यह अराजनीतिक संगठन बना रहे। 27 जनवरी, 1987 को करमूखेड़ी बिजलीघर से बिजली के स्थानीय मुद्दे पर चला आंदोलन किसानों की संगठन शक्ति के नाते पूरे देश में चर्चा में आ गया, लेकिन मेरठ की कमिश्नरी पर 24 दिनों के घेराव ने चौधरी महेन्द्र सिंह टिकैत को विश्व पटल पर ला खड़ा किया। इस आंदोलन ने पूरी दुनिया में सुर्खियां बटोरीं थीं।

सबसे बड़ा धरना

बाबा टिकैत के नाम से प्रसिद्ध महेन्द्र सिंह टिकैत के नेतृत्व में कई आंदोलन हुए, लेकिन एक आंदोलन ऐसा भी था, जिसे देखकर तत्कालीन केंद्र सरकार तक कांप गई थी। 1988 के दौर की बात है नई दिल्ली के वोट क्लब पर 25 अक्तूबर, 1988 को बड़ी किसान पंचायत हुई थी। इस पंचायत में 14 राज्यों के किसान आए थे। करीब पांच लाख किसानों ने विजय चौक से लेकर इंडिया गेट तक कब्जा कर लिया था। सात दिनों तक चले किसानों के धरने का इतना व्यापक प्रभाव था कि तत्कालीन कांग्रेस सरकार दबाव में आ गई थी। आखिरकार तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी को पहल करनी पड़ी, तब जाकर किसानों ने अपना धरना खत्म किया था। इस आंदोलन से चौधरी टिकैत ने वह कद हासिल कर लिया था कि प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री भी उनके आगे झुकने लगे थे।

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जब प्रधानमंत्री से पूछा कि रिश्वत ली है?

वर्ष 1980 में हुए हर्षद मेहता कांड को लेकर राजनीतिक गलियारे में तूफान था, इसी बीच किसानों की समस्या को लेकर महेंद्र सिंह टिकैत उस वक्त के प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव से मिले, तो उन्होंने पीएम से सीधे पूछ लिया कि क्या आपने एक करोड़ रुपये की रिश्वत ली थी? कोई प्रधानमंत्री से ऐसा सवाल सीधे कैसे पूछ सकता है? लेकिन, उन्होंने बिना किसी हिचक के बड़ी ही बेबाकी से सवाल पूछ लिया था। उन्होंने हर्षद मेहता का नाम लेकर प्रधानमंत्री से यह भी पूछ लिया कि वह आदमी तो पांच हजार करोड़ का घपला करके बैठा है, कई मंत्री घपला किए बैठे हैं और सरकार उनसे वसूली नहीं कर पा रही है, लेकिन किसानों को 200 रुपये की वसूली के लिए जेल क्यों भेजा जा रहा है?

मुख्यमंत्री को आना पड़ा था

बाबा टिकैत के नेतृत्व में वर्ष 1986 में भी बिजली की बढ़ी दरों को लेकर किसान लामबंद हुए थे। महेंद्र सिंह टिकैत भारतीय किसान यूनियन के झंडे तले आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे। आंदोलन का ऐसा असर था कि उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह को सिसौली (टिकैत के गांव) पहुंचकर किसानों से वार्ता करनी पड़ी थी। 11 अगस्त 1987 को सिसौली में एक महापंचायत की गई, जिसमें बिजली दरों के अलावा फसलों के उचित मूल्य, गन्ने के बकाया भुगतान के साथ सामाजिक बुराइयों जैसे दहेज प्रथा, मृत्यु भोज, दिखावा, नशाबंदी, भू्रण हत्या आदि कुरीतियों के विरुद्ध भी जन आंदोलन छेड़ने का निर्णय लिया गया था। ऐसे अनेक किस्से हैं जो चौधरी टिकैत के जीवन से जुड़े हुए हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि 5-5 लाख की भीड़ को संबोधित करने तथा तमाम सरकारों को झुकाने के बाद भी बाबा टिकैत गांव में रहकर अपने हाथों से अपनी खेती का काम संभालते थे। किसी भी प्रकार की बनावट दिखावा अथवा घमंड उनमें दूर-दूर तक नहीं था। किसानों के दु:ख-दर्द व शादी-विवाह में वे ऐसे शामिल होते थे कि जैसे कोई अपने खुद के परिवार में शामिल होता है। वे पूरे देश के किसानों को अपना परिवार मानते थे।

राजनीति करने के खिलाफ थे

महेन्द्र सिंह टिकैत जब भी चाहते विधायक, सांसद अथवा मंत्री बन सकते थे। यही नहीं, उनके अनेक समर्थक तो आज भी कहते हैं कि वे यदि राजनीति करते तो देश के प्रधानमंत्री तक बन सकते थे। किन्तु, बाबा टिकैत को राजनीति करने से परहेज था। यूं तो वे पूर्व प्रधानमंत्री स्व. चौधरी चरण सिंह के कटटर समर्थक थे। उनकी विचारधारा को मानते तथा उनकी पार्टी की मदद भी करते थे। केवल खुद राजनीति के खिलाफ थे। उनका कहना था कि किसानों की असली लड़ाई गैर राजनीतिक रहकर ही लड़ी जा सकती है। राजनीति में शामिल होने के बाद किसानों की एकता कमजोर हो जाएगी। किसान भी दलों में बंट जाएंगे। इसी कारण वे सक्रिय राजनीति से हमेशा दूर रहे और अपने संगठन भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू…..) को भी राजनीति से दूर ही रखा। इसी प्रकार उनके जीवन के अनेक दृष्टिकोण आज भी किसानों के बीच खूब शिददत के साथ सुने व सुनाए जाते हैं।

नेताओं की समाधि उखाड़ने की दी थी चेतावनी

एक बार चौधरी महेद्र सिंह टिकैत ने देश की राजधानी दिल्ली में स्थापित राजनेताओं की समाधि खोदकर उखाड़ने की चेतावनी दे डाली थी। दरअसल, हुआ यह था कि 29 मई 1987 को पूर्व प्रधानमंत्री व प्रसिद्ध किसान नेता चौ. चरण सिंह का निधन हो गया था। समर्थक उनका अंतिम संस्कार देश की राजधानी दिल्ली में ही करना चाहते थे। भारत सरकार दिल्ली में अंतिम संस्कार के लिए स्थान नहीं दे रही थी। उस समय चौ. महेन्द्र सिंह टिकैत ने अपने गांव सिसौली से घोषणा कर दी थी कि हमारे दिल्ली पहुंचने तक चौ. साहब के अंतिम संस्कार के लिए दिल्ली में स्थान नहीं दिया गया तो दिल्ली में मौजूद सभी नेताओं की समाधि खोद-खोदकर उखाड़ दी जाएगी। श्री टिकैत के घोषणा करते ही केन्द्र सरकार ने चौ. चरण सिंह के अंतिम संस्कार के लिए राजघाट के ठीक बगल में स्थान दे दिया था। उसी स्थान पर आज किसान घाट के नाम से स्व. चौ. चरण सिंह की समाधि बनी हुई है।

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