मोबाइलों के दौर के आशिक़ को क्या पता
रखते थे कैसे ख़त में कलेजा निकाल के?
New Parliament House : चिठ्ठी पत्री लिखने की परंपरा परियों की कहानी हो गई थी। तब कभी हमने ऊपर वाला शेर कह दिया था। पहले पत्र लिखने का प्रारूप बच्चों को सिखाया जाता था। बकौल बीजेपी पिछले 30 साल से कांग्रेस के दुर्नीति के कारण हिन्दुत्व के कुलीन संस्कारों के साथ पत्राचार की नीति रीति भी गधे के सिर से सींग की तरह बिल्कुल गायब हो गई। राजीव गांधी ने सूचना प्रौद्योगिकी का ऐसा विस्फोट किया कि राष्ट्र का चाहे जो कल्याण हुआ हो, पर पत्र लिखने का चलन ही खत्म हो गया। मैंने सुना है कि अपनी सरकार अपने सुशासन के, (उसके अनुसार) एक साल और अपने अनुसार नौ साल पूर्ण होने की खुशी में, जनता के नाम पत्र लिखने जा रही है। नेहरू परिवार के द्वारा की गई भूल में सुधार कर रही है और अपनी भूतों न भविष्यतो करनी का गुण गान भी करने जा रही है। एक पंथ दो काज, एक तीर से दो निशाने। क्या बात है? इसे कहते हैं दिमाग। नई संसद, नया भवन लोकतंत्र में राजदंड की स्थापना, क्या लोकतंत्र राजतंत्र को अपनी सत्ता स्थान्तरित कर रही है।
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शुभ समाचार से मन प्रसन्न हुआ कि पत्राचार पुनर्जीवित होने वाला है। फिर पत्रों में प्रेमीजन प्रेयसी के आगे कलेजा निकालकर रख देंगे और जनसाधारण भी मन की बात कह सकेंगे। फिर याद आया कि नई पीढ़ी के लोग बहुत दिनों बाद पत्र लिखने जा रहे, तो पुराने पत्र का प्रारूप और सकारात्मक सोच की आशावादी शैली, उनकी सहूलियत के लिए एतियातन नमूना बतौर पेश करना हम पुराने ज़माने के लोगों की नागरिकता का फर्ज है। नमूना पेश है
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परम पूज्य गुरु जी, चरण स्पर्श,
यहां सब राजी खुशी है। आपकी राज़ी खुशी ईश्वराज्ञा से नेक चाहते हैं। आपको जानकर ख़ुशी होगी कि वीर सावरकर के जन्मदिन 28 मई को हमने नये संसद भवन का उद्घाटन स्वयं कर लिया, महामहिम राष्ट्रपति से लेकर विपक्ष के फालतू नेताओं की अनुपस्थित अपनी पालतू मीडिया की उपस्थिति में शानदार कार्यक्रम बता दिया है। हमने आरएसएस के एजेंडे के अनुसार चलते हुए साधु संतों को राजनीतिज्ञों से ज्यादा आमंत्रित किया और आदर दिया। कुछ लोग कहते हैं कि यह संविधान की मूल भावना के विपरीत है, हम संविधान सम्मत सब काम करें तो हमारे राजा होने से क्या फायदा, इसीलिए हमने संसद में चोल साम्राज्य का राजदंड प्रतीक के रूप में नए संसद भवन में ठीक अध्यक्ष की आसन के पास सिंहासन के पास रख दिया है। कुछ नादान इसे संविधान सम्मत नहीं मानते। वे हमें नहीं जानते। संविधान, लोकतंत्र गणराज्य को हम चलाएंगे कि वे हमें चलाएंगे?
बाक़ी सब कुशल है, राजी खुशी है। आप चिन्ता न करें। यहां सब ठीक है। घर-परिवार में सबको यथायोग्य जय श्रीराम
आपका आज्ञाकारी पुत्र
लवार इतिहासकार
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