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नि:संकोच : एक घूस ये और एक घूस वो?

UP News: Village development officer accused of demanding bribe suspended

UP News: Village development officer accused of demanding bribe suspended

विनय संकोची

चूहा बिरादरी का एक मोटा से जीव होता है, जिसे घूस कहते हैं। यह घूस रेलवे स्टेशनों पर पटरियों के साथ-साथ अपने बिल बनाकर रहते हैं। ये पटरियों के नीचे से जमीन को खोखला कर देते हैं। इसी कारण से कहीं-कहीं पटरियों के धंस जाने तक की घटनाएं होती रहती हैं। यह खतरनाक जीव सीवर की लाइन में होता हुआ घरों के नीचे घुस जाता है। अनेक मकान तो केवल इस कारण से गिर गए क्योंकि उनकी नींव को घूसों ने मिलकर खोखला कर दिया था। खोखली नींव में वर्षा का जल भर जाने के चलते मकान ढह जाते हैं। बड़ा ही हानिकारक होता है घूस। मुझे व्यक्तिगत रूप से लगता है कि इसी जीव के नाम पर रिश्वत का नाम ‘घूस’ पड़ा है। यह जीव मकानों, पटरियों को नुकसान पहुंचाता है, उनकी नींव को कमजोर करता है और दूसरी घूस यानी रिश्वत, मनुष्य के जमीर और राष्ट्र की जड़ों को खोखला करती है, अपूरणीय क्षति पहुंचाती है।

घूस लेना और देना आज अभिवादन स्वीकारने जैसा हो गया है। मैंने आपसे नमस्कार कहा तो बदले में आप ने भी मुझे नमस्कार कह दिया। घूस लेना और देना सच कहूं तो अब अपराध की श्रेणी में रहा ही नहीं है। कहीं यह कमीशन, कहीं सुविधा शुल्क तो कहीं गिफ्ट के रूप में विद्यमान है। घूस निधि देकर अपना काम निकलवाने की परंपरा का निर्वाह, वे लोग भी बखूबी करते हैं जो भ्रष्टाचार के विरुद्ध यहां-वहां भाषण देते दिखाई देते हैं। घूस को परंपरा के रूप में स्वीकार कर लिया है समाज के एक बहुत बड़े वर्ग ने। इसका सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि लोग सही काम कराने के लिए भी अधिकारियों-कर्मचारियों को घूस देने में कोई बुराई नहीं समझते हैं। यह घूस इसलिए दी जाती है ताकि सही काम में कर्मचारी जानबूझकर कोई पंगा ना करें और अनावश्यक विलंब ना करें। इस बात को स्वीकार किया ही जाना चाहिए कि यदि उस सही काम के लिए जो एक दिन में हो जाना चाहिए यदि घूस नहीं दी जाए, तो वह काम हफ्तों और कभी-कभी महीनों तक नहीं होता है, अलबत्ता रिश्वत के रेट और बढ़ जाते हैं। घूस देते ही काम फटाक से हो जाता है।

घूस एक कीड़ा है जिसको काट लेता है वह पैसे के लिए भूखा हो जाता है। अपनी सुविधाओं के लिए जमीर को गिरवी रखकर, किसी के भी आगे हाथ फैला देता है, ईमानदार लोगों को ब्लैकमेल करने लगता है, ऑफिस में बैठकर उसकी लार हर फाइल को देखकर टपकती है। समाज से क्योंकि घूस का विरोध लगभग समाप्त हो गया है, इसलिए घूसखोरों की संख्या लगातार बढ़ती चली जा रही है। एक घूस चेन विकसित हो गई है। आप कर्मचारियों को घूस देते हैं, कर्मचारी अफसर को घूस का हिस्सा पहुंचाता है, अफसर अपने राजनीतिक आका के चरणों में घूस राशि का हिस्सा अर्पित कर देता है और वह राजनीतिज्ञ अपने से ऊपर वाले को खुश करके अपने पद पर विराजमान रहता है। ऊपरवाला घूस राशि का एक हिस्सा पार्टी फंड में लगाता है और इस तरह पार्टी में घुस तत्व घुसकर ईमानदारी में पलीता लगाने का काम करता है। अब तो पोस्टिंग से लेकर चुनावी टिकट तक में घूस घुसी हुई है। यह पानी में पानी के मिलने जैसा है, बर्फ के पानी में घुलने या पानी के बर्फ में तब्दील होने जैसा है। घूस यानी भ्रष्टाचार राष्ट्रीय समस्या है और इसे उन लोगों ने सुलझाना है, जिन्हें भ्रष्टाचार से परहेज नहीं है।

सरकार कड़े से कड़ा कानून बना सकती है, बनाए हैं लेकिन उन सख्त कानूनों का फायदा तब है जब कानून लागू करने वाले सख्त और ईमानदार हों। आज भी देश में ईमानदार अफसर और नेता हैं और बहुत हैं लेकिन वे भी मेरी आपकी तरह पीड़ित हैं। उनकी ईमानदारी पर निरंकुश भ्रष्टाचारी व्यवस्था हावी है। आप क्या कहते हैं?

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