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एकता के सभी पक्षधर हो गए, कुछ इधर हो गए कुछ उधर हो गए

भोपाल न्यूज

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भोपाल न्यूज : संस्कृति मंत्रालय और आयकर विभाग द्वारा जनजातीय संग्रहालय भवन में दो दिवसीय ‘जश्न-ए-अदब साहित्य उत्सव कल्चरल कारवां विरासत’ का उद्घाटन पद्मश्री अशोक चक्रधर ने किया। ‘हिंदी राजभाषा का सरकारी व सामाजिक महत्व’ विषय पर हास्य कवि पद्मश्री सुरेंद्र शर्मा और पद्मश्री अशोक चक्रधर ने अपने उद्गार व्यक्त किए। उसके बाद सुरेन्द्र शर्मा की अध्यक्षता में भव्य कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया जिसका संचालन जश्न – ए- अदब के संस्थापक आयोजक शायर रंजीत चौहान ने किया।

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भावना श्रीवास्तव –
जिस दिन से ख़ुद को भीड़ का हिस्सा बना लिया,
उस दिन से मेरी ख़ुद से मुलाक़ात कम हुई।

दीक्षित दनकौरी –
एकता के सभी पक्षधर हो गए,
कुछ इधर हो गए, कुछ उधर हो गए।

अंजुम रहबर –
एक मोहब्बत है दो कबीले हैं,
प्यार के रास्ते नुकीले हैं।
पी लिया जाने किस नदी का ज़हर,
क्यों समंदर के होठ नीले हैं।

मंज़र भोपाली –
हम वो राही हैं लिए फिरते हैं सर पर सूरज,
हम कभी पेड़ों से साया नहीं मांगा करते।

अशोक चक्रधर –
क्या बतलाऊं कई युगों से चित्त नहीं है शांत मेरा,
तुम्हें मिले तो थोड़ा सा रख लेना एकांत मेरा।
सॉफ्ट पलों की हार्ड डिस्क का हैक हुआ सारा डाटा,
पासवर्ड हो गया उजागर अब कुछ नहीं नितांत मेरा।

जमुना प्रसाद उपाध्याय, नैना साइन कपिल,अश्विनी कुमार और युवा कवि रामायण घर द्विवेदी की कविताओं को भी खूब सराहा गया।

अंत में हास्य सम्राट सुरेंद्र शर्मा ने अपने चिर परिचित अंदाज में उपस्थित श्रोताओं को खूब हंसाया और राधा कृष्ण के अलौकिक प्रेम पर एक बहुत मार्मिक कविता सुनाई। कवि सम्मेलन के बाद श्रोताओं ने जयपुर घराने के मशहूर साबरी ब्रदर्स की कव्वालियों का आनंद लिया।

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समारोह के दूसरे दिन की शुरुआत राजवीर सिंह के सूफ़ी गायन से हुई। उनके बाद फैसल मलिक, सन्विका, अशोक पाठक और रंजीत चौहान ने ‘वेब सिरीज़ और ओटीटी का सामाजिक प्रभाव’ पर चर्चा की। अगला कार्यक्रम था मशहूर ग़ज़ल सिंगर अहमद हुसैन मो.हुसैन की ग़ज़ल गायकी का। उन्होंने अपनी गायकी से समां बांधा। इसके बाद रंजीत चौहान की निज़ामत में मुशायरे का आयोजन हुआ जिसमें –

फरहत अहसास –
इलाज अपना कराते फिर रहे हो जाने किस-किस से,
मोहब्बत करके देखो ना, मोहब्बत क्यों नहीं करते।

शारिक कैफ़ी –
वो बात सोच के मैं जिसको मुद्दतों जीता,
बिछड़ते वक्त बताने की जरूरत क्या थी।

रंजीत चौहान –
इसी खयाल से बस करवटें बदलने लगे,
वो मेरी सम्त कहीं नींद में न चलने लगे।

कैसर खालिद –
यह है दौरे-हवस लेकिन ऐसा भी क्या,
आदमी कम से कम आदमी तो रहे।
मदन मोहन दानिश,अज़्म शाकिरी,जावेद मुशीरी, मनीष शुक्ल और अनस फैजी की शायरी को भी भरपूर दाद मिली।
पद्मश्री भारती बंधु कबीर के शानदार सूफ़ी गायन से समारोह का समापन हुआ। जश्न- ए – अदब की ओर से नवनीत सोनी ने सभी आगंतुक श्रोताओं,अतिथियों और प्रायोजकों का धन्यवाद ज्ञापित किया।

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