Friday, 29 November 2024

इतिहास के पन्नों में सिमटने वाला है दिल्ली का एक बड़ा बंगला

Dehli News : भारत की राजधानी दिल्ली के हर कोने में इतिहास फैला हुआ है। दिल्ली की सडक़ें हों, इमारतें…

इतिहास के पन्नों में सिमटने वाला है दिल्ली का एक बड़ा बंगला

Dehli News : भारत की राजधानी दिल्ली के हर कोने में इतिहास फैला हुआ है। दिल्ली की सडक़ें हों, इमारतें हों अथवा कोई बड़ा बंगला हो वें सब इतिहास में दर्ज हैं। जल्दी ही दिल्ली का एक बंगला इतिहास के पन्नों में शामिल होने वाला है। हम यहां बता रहे हैं दिल्ली में जल्दी ही इतिहास बनने वाले एक अनोखे बंगले की पूरी कहानी।

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गायब हो जाएगा यह बंगला

आपको बता दें कि करीब 62 वर्षों तक देश के उपराष्ट्रपति का आवास रहने के बाद 6, मौलाना आजाद रोड स्थित बंगला इतिहास के पन्नों में सिमट कर रह जाएगा। देश के मौजूदा उपराष्ट्रपति धनखड़ नए उपराष्ट्रपति आवास में रहने चले गए हैं, जो 15 एकड़ में फैला हुआ है। अब 6, मौलाना आजाद रोड का बंगला जल्द ही जमींदोज होगा। सरकार यहां दस मंजिला इमारत बनाएगी, जिसमें केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों के दफ्तर होंगे। 6. मौलाना आजाद रोड स्थित बंगले को 1962 में उपराष्ट्रपति आवास बनाया गया था। देश के पहले उपराष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन इसी बंगले में रहे। उनके बाद डॉ. जाकिर हुसैन, वी.वी.गिरी, गोपाल स्वरूप पाठक, बी. डी. जत्ती, एम हिदायतउल्ला, आर. वेंकरमण, शंकर दयाल शर्मा, डॉ. के. आर. नारायणन, कृष्णकांत, भैरोसिंह शेखावत, हामिद अंसारी और बैंकया नायडू इसी बंगले में रहे। कृष्णकांत का इसी बंगले में निधन हो गया था। दरअसल किंग एडवर्ड रोड (अब मौलाना आजाद रोड) के चार नंबर के बंगले में देश के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना आजाद रहते थे। उनके निधन के बाद इस सडक़ का नाम उनके नाम पर रखा गया।

कनॉट प्लेस और तीन मूर्ति भवन के महान डिजाइनर रोबर्ट टोर रसेल ने ही इस बंगले का डिजाइन तैयार किया था। इस बंगले में एक मस्जिद भी है। यह कब बनी, कोई नहीं बता पाता। यह सिर्फ रमजान के महीने में खुलती है। हालांकि इसकी साफ-सफाई नियमित होती है। 6, मौलाना आजाद रोड के भीतर जाकर लगता है, मानो आप किसी हरे-भरे टापू में हो। यहां अनार और जामुन के काफी पेड़ हैं। यहां के बुजुर्ग पेड़ों पर शाम के वक्त सैकड़ों तोते और दूसरे पक्षी आकर बैठ जाते हैं। भैरी सिंह शेखावत जब उपराष्ट्रपति थे, तो इस बंगले के द्वार सबके लिए खुले रहते थे। शेखावत जी खुद यारबाश और किस्सागो इंसान थे। उनके पास मिलने वालों की भीड़ लगी रहती थी। उनके विरोधी तो थे, मगर शत्रु कोई नहीं। जब तक हामिद अंसारी इस बंगले में रहे, यहां अनेक लेखकों की किताबों के विमोचन होते रहे। उन्हें लेखकों और विद्वानों से मिलना पसंद था। उन्होंने खुद भी कई किताबें लिखी थीं। वेंकैया नायडू भी उपराष्ट्रपति आवास में लेखकों, नौजवानों, कलाकारों वगैरह से मिला करते थे। अब जब यहां गगनचुंबी इमारत खड़ी होगी, तो यहां के तमाम छायादार पेड़ कट जाएंगे। इनमें नीम और पीपल के भी पेड़ हैं। पेड़ों के कटने से यहां के परिंदे भी बेघर होंगे। बची रह जाएंगी सिर्फ यादें और किस्से।

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