Friday, 29 November 2024

Upanishads : उपनिषद:- “आध्यात्मिक चिंतन की अमूल्य निधि “

Upanishads :  उपनिषद हमारे भारतीय आध्यात्मिक चिंतन के मूलआधार स्त्रोत हैं। यह वह ‌”ब्रह्मविद्या “हैं जिसे जिज्ञासा वश ऋषि-मुनियों ने…

Upanishads : उपनिषद:- “आध्यात्मिक चिंतन की अमूल्य निधि “

Upanishads :  उपनिषद हमारे भारतीय आध्यात्मिक चिंतन के मूलआधार स्त्रोत हैं। यह वह ‌”ब्रह्मविद्या “हैं जिसे जिज्ञासा वश ऋषि-मुनियों ने खोजा ,यह उन्हीं प्रश्नों के उत्तर हैं। अज्ञात की खोज के प्रयास में व्याख्यान परक वर्णनातीत *परमशक्ति *को शब्दों मे बांधने की कोशिश है। निराकार निर्विकार और असीम अपार को अंतर्दृष्टि से समझ परिभाषित करने की हीअदम्य आकांक्षा ने जन्म दिया है उपनिषदों को ।जिज्ञासु मानव मन का प्रश्न कि:-“प्रकृति की इस विशाल रंगभूमि का सूत्रधार आखिर कौन है इसका सृष्टा ? इसका उद्गम कहां है ,हम कौन है,और कहाँ से ,क्यों आये हैं ? यह सृष्टि अंतत:कहाँ जायेगी और हमारा क्या होगा”? इन सब प्रश्नों के उत्तर खोजने की ललक ही जिज्ञासु मन की अनंत खोज यात्रा का अंतिम परिणाम ही तो हैं उपनिषद । इस दर्शन को हम प्रातिभ ज्ञान भी कह सकते हैं । प्रातिभ ज्ञान से जो त्तत्व प्राप्त हुआ वही उपनिषद है ‌।

उपनिषद हमारे भारतीय आध्यात्मिक चिंतन के मूलआधार स्त्रोत हैं

गुरु शिष्य की संवाद शैली:- में-जहां शिष्य अपने गुरू से जब इस गूढ़ रहस्यमय ज्ञान को प्राप्त करना चाहता है तो गुरु उससे कहते हैं आओ और मेरे पास बैठो! डाॅ सर्वपल्लीराधाकृषणन के अनुसार “उपनिषद शब्द की व्युत्पत्ति उप+(निकट)नि+(नीचे)सद+(बैठो)। उप और ति उपसर्ग के साथ सद् धातु से मिलकर बना है । इस संसार के बारे में सत्य को जानने के लिये शिष्यों के समूह उनके समीप बैठ कर इस ज्ञान को प्राप्त करते थे ।

उपनिषद का दूसरा नाम वेदान्त है

उपनिषद का दूसरा नाम वेदान्त है अर्थात् वेदों का अंत उनकी परिपूर्ति। इनमें ज्ञान से संबंधित समस्याओं पर विचार किया गया है। परमतत्त्व के लिये साधारणत: “ब्रह्मन् ” शब्द का प्रयोग किया जाता है । जबकि उपनिषदों में इसके लिये “आत्मन् “शब्द का प्रयोग किया गया ।

अनंत खोज यात्रा का अंतिम परिणाम ही तो हैं उपनिषद

इस आत्मा को ही “चेतना-पुंज मात्र”(विज्ञान -घन)और कभी परम चेतना (चित)के रूप में स्वीकार किया जो सच्चिदानंद(सद्+चित् +आनंद) है। आत्मा ,पुनर्जन्म और कर्मफल वाद के बीज ऋषि मुनियों ने पहले ही वेदों मे बो दिये थे परंतु तब वह केवल एक विचार मात्र था जिसके विषय में कोई चिंता या भय नहीं । आत्मा और शरीर दोनों ही भिन्न तत्व  हैं । आत्मा देहत्याग के बाद कहाँ जाती है? परलोक क्या है ? इस सिद्धांत का वैदिक ऋचाओं में वर्णन अवश्य है परंतु इस संसार में उसका आवागमन क्यों होता है इस विषय में उस समय तक वैदिक ऋषि खोज नहीं कर पाये थे ।

Upanishads :  हम कौन है,और कहाँ से ,क्यों आये हैं ?

रामधारी सिंह दिनकर जी के अनुसार “अपनी समस्त सीमाओं के साथ सांसारिक जीवन ही उस समय वैदिक ऋषियों का प्रेय था। प्रेय को छोड़ श्रेय की ओर प्रवृत होने की आतुरता ने ही उपनिषदों को जन्म दिया । जिसमें मोक्ष के सामने गृहस्थ सांसारिक जीवन निस्सार हो गया और लोग गृहस्थ जीवन का त्याग कर सन्यास की ओर बढ़े और तब अपने तप के बल पर वैदिक ऋषि ज‌हाँ मौन हो गये उससे आगे की यात्रा “यह सृष्टि किसने बनाई ‘?और कौन देवता हैं जिसका हम अवलम्बन ले उपासना करें ? अंत में उस “सत “की खोज की जो पूजा और उपासना का सच्चा अधिकारी है । इस तरह यदि वैदिक धर्म का पुराना आख्यान वेद हैं तो उनका नवीन आख्यान उपनिषद हैं ।

उषा सक्सेना

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