Sunday, 1 December 2024

धर्म – अध्यात्म : अकर्मण्यता – एक विकार!

 विनय संकोची ‘अकर्मण्य’ संस्कृत का शब्द है, जो आलसी, सुस्त, बेकाम या फिर निकम्मे के अर्थ में प्रयुक्त किया जाता…

धर्म – अध्यात्म : अकर्मण्यता – एक विकार!

 विनय संकोची

‘अकर्मण्य’ संस्कृत का शब्द है, जो आलसी, सुस्त, बेकाम या फिर निकम्मे के अर्थ में प्रयुक्त किया जाता है। आलसी एक विकट रोग से ग्रस्त रहता है, जिसे प्रमाद नाम से जाना पहचाना जाता है। प्रमाद बुनियादी रूप से एक भावनात्मक रोग है, जो व्यक्ति की शारीरिक, मानसिक क्षमताओं के साथ उसकी आध्यात्मिक भावनाओं को भी भयंकर रूप से प्रभावित कर, उसको छोटे-छोटे कार्यों को करने में भी असमर्थ बना देता है। प्रमाद ग्रस्त व्यक्ति की क्षमताएं धीरे-धीरे कम होते-होते समाप्त प्राय: हो जाती हैं। प्रमादी का, अकर्मण्य का मनोबल टूट जाता है और स्वाभिमान डिग जाता है।

अकर्मण्यता एक दोष है, एक विकार है जिसका कुप्रभाव व्यक्ति के जीवन को नारकीय बना देता है। दोष की स्वतंत्र सत्ता नहीं है, गुणों के अभाव अथवा कमी का नाम ही दोष है। आलस्य आगंतुक है, जो आता है और मन पर कब्जा जमाकर बैठ जाता है। सक्रियता का अभाव ही तो आलस्य है, जो एक दोष है। जो लोग इस दोष में सुख देखते हैं, आलसी हो जाते हैं, अकर्मण्य कहलाते हैं।

प्रमादी व्यक्ति की सोच भी अकर्मण्य हो जाती है। आलसी व्यक्ति के विचार भी आलसी हो जाते हैं और यही कारण है कि सब आगे निकल जाते हैं और आलसी पिछड़ जाते हैं।
अकर्मण्य व्यक्ति में सकारात्मक सोच-विचार का अभाव रहने लगता है, जिसके कारण उसके जीवन में नकारात्मकता पांव पसार लेती है। इस परिवर्तन के प्रभाव से एक तो व्यक्ति कुंठा ग्रस्त हो जाता है और दूसरे कहीं-न-कहीं तो स्वप्नजीवी भी हो जाता है। वह सपने तो देखता है लेकिन अकर्मण्यता सपनों को साकार करने का मनोबल उससे छीन लेती है। नकारात्मक भावनाओं के लिए आलस्य उत्प्रेरक का कार्य करता है, जिससे व्यक्ति की रगों में रक्त के साथ नकारात्मकता प्रवाहित होकर उसे पंगु बना देती है।

अकर्मण्य व्यक्ति अवसाद और आशंकाओं से पीड़ित रहता है। उसकी क्रियाशीलता में आए दिन कमी आती रहती है। एक दिन ऐसा भी आता है जब वह अपनी छोटी से छोटी जरूरतों को पूरा करने के लिए दूसरों का मुंह ताकने लगता है, दूसरों का मोहताज हो जाता है। आलसी व्यक्ति गैरों को छोड़ो, अपनों की भी ऐसी-ऐसी बातें सुनने को विवश हो जाता है, जिन्हें कोई स्वाभिमानी व्यक्ति सुनना तो दूर, सुनने की कल्पना भी नहीं कर सकता है।

आलस्य पीड़ित का मस्तिष्क अनुकूल निर्णय लेने की स्थिति में नहीं रहता है। स्वस्थ विचार आलस्य विकार के कारण उसके मस्तिष्क में ठहर ही नहीं पाते हैं, जिसका परिणाम यह होता है कि या तो वह प्रतिकूल निर्णय लेता है या फिर अनिर्णय की स्थिति से बाहर ही नहीं निकल पाता है। छोटे से छोटे निर्णय लेने में भी आलसी को परामर्श की आवश्यकता महसूस होती है।

अकर्मण्यता व्यक्ति के मानसिक शारीरिक और आर्थिक विकास में खलनायक की भूमिका निभाने के साथ आलसी को सामाजिक सांसारिक स्तर पर भी ऐसी जगह लाकर खड़ा कर देती है, जहां उसे अपमान का सामना करना पड़ता है। ताने-उलाहने सुनना और सहना आलसी व्यक्ति के जीवन का अभिन्न अंग बन जाते हैं। आलस भी अपराजेय नहीं है, उसे भी पराजित किया जा सकता है, करना ही चाहिए। जीवन में प्रत्येक क्षेत्र में शिखर की ओर अग्रसर होना है तो आलस्य को हराना ही होगा।

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