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Inspiration कोर्ट के चक्कर काटते काटते यह युवक बन गया अधिवक्ता

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Inspiration  क्या आपको यकीन होगा कि कोई युवक कोर्ट के चक्कर काट काटकर अधिवक्ता बन सकता है। जी हां, सहारनपुर के एक युवक के साथ ऐसा ही हुआ। गरीब, बेसहारा और दबे कुचलों के लिए न्याय की लड़ाई लड़ते लड़ते सहारनपुर का एक युवक अधिवक्ता बन गया है। उसने अधिवक्ता की डिग्री भी हासिल कर ली है। लेकिन यह सब हुआ कैसे, आओ जानते हैं।
यदि दिल और दिमाग में जंग जीतने की धुन सवार हो तो कोई भी जंग बिना अस्त्र और शस्त्र के भी जीती जा सकती है। सालों से दबे कुचलों की लड़ाई लड़ते आ रहे सामाजिक कार्यकर्ता राजकुमार की कहानी भी कुछ ऐसी ही है, वह न्याय की लड़ाई लड़ते लड़ते न केवल अधिवक्ता बन गए बल्कि अभी भी दबे कुचलों को न्याय दिलाने के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं। मजे की बात यह है कि राजकुमार के पास न कोई अस्त्र है और न ही कोई शस्त्र। लेकिन संविधान को अपनी ताकत बनाकर उन्होंने दबे कुचलों की लड़ाई को कानूनी हथियार से न केवल लड़ा बल्कि उसे जीता भी।

This young man became an advocate while circling the court

अदालत के चक्कर काटते काटते राजकुमार ने खुद कानून की पढ़ाई पढ़ ली और वकालत की डिग्री हासिल कर ली। इनके प्रयासों से चर्चित शब्बीरपुर कांड के पीड़ितों को उनका हक मिलना शुरू हुआ। राजकुमार पहले बालिकाओं को शिक्षा दिलाने के लिए जनकनगर में कन्या इंटर कालेज का संचालन करते थे। लेकिन जब उन्होंने देखा कि दबे कुचलों की लड़ाई लड़न वाला कोई नहीं है तो उन्होंने दबे कुचलों की सहायता करने और उनकी कानूनी लड़ाई लड़ने का मन बनाया। इसके बाद उन्होंने समाज के दबे कुचलों, असहाय और गरीब लोगों के लिए कानूनी लड़ाई लड़ाई लड़ना शुरु किया। खुद अपने पैसे से कोर्ट में केस दायर करते थे और खुद ही वकीलों की फीस अदा करते थे। उन्होंने सबसे पहले वर्ष 1999 में बाल मजदूरों की लड़ाई लड़ी। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुपालन में खतरनाक उद्योगों में काम करने वाले 499 बाल श्रमिक चिन्हित किए और उनके पुनर्वास की लड़ाई लड़ी। जिसके बाद सरकार को बाल श्रमिक विद्यालय खोलने पड़े।

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जिस समय देश से एससी एसटी एक्ट को खत्म किए जाने की बात कही जा रही थी तो राजकुमार ने इस एक्ट को बचाने के लिए कदम बढ़ाया और देश 40 करोड़ लोगों के लिए बने एससीएसटी एक्ट की सुप्रीम कोर्ट में लड़ाई लड़ी और कानून बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। इसके लिए उन्होंने देशभर से 26 जनवरी 2016 से सितंबर 2018 तक के लिए आंकडे सुप्रीम कोर्ट में पेश किए। इनके आधार पर ही एससी एसटी एक्ट की यह लड़ाई जीती जा सकी।
अनुसूचित जाति के लोगों को त्वरित न्याय दिलाने के लिए उन्होंने एससीएसटी की विशेष अदालतों की लड़ाई भी लड़ी। हालांकि राज्य सरकार ने इन अदालतों का नोटिफिकेशन जारी नहीं किया था, इसके लिए संविधान बचाओ समिति के बैनर तले हाईकोर्ट को पार्टी बनाकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाली। इसके तुरंत बाद 29 अप्रैल 2019 को विशेष अदालत का गठन किया गया।
देशभर की मीडिया में सुर्खियों में शब्बीरपुर कांड में पीड़ितों को न्याय दिलाने में अहम भूमिका निभाई। प्रदेश में उच्च शिक्षा में निशुल्क प्रवेश बंद किए जाने के मामले में भी उन्होंने उच्च न्यायालय में याचिका डाली, जिस पर उच्च न्यायालय ने केंद्र व राज्य सरकार को नोटिस जारी किया है।

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ऐसे बने अधिवक्ता
रोजाना के कोर्ट के चक्कर और अधिवक्ताओं की भारी भरकम फीस अदा करते करते जब राजकुमार का हाथ तंग आ गए तो उनके मन में लॉ की डिग्री हासिल करने का विचार आया। अपने इस विचार को परवान चढ़ाने के लिए राजकुमार ने मदरबोर्ड यूनिवर्सिटी में एलएलबी में प्रवेश लिया और और इसी यूनिवर्सि​टी से वर्ष 2019 में एलएलबी की डिग्री प्राप्त की। फिलहाल राजकुमार सु्प्रीम कोर्ट में प्रेक्टिस कर रहे हैं और वहीं से असहाय लोगों के केस लड़ रहे हैं।

राजकुमार कहते हैं, मेरा एलएलबी करने का उद्देश्य संविधान की रक्षा करना, एससी एसटी, ओबीसी के संविधान प्रदत अधिकारों की सुरक्षा करना और कानून का राज स्थापित करने का प्रयास करना है। राजकुमार ने बताया कि उनके प्रयास से शब्बीरपुर नरसंहार मामले में हत्या पीड़ित परिवारों की सहायता के लिए सरकार द्वारा बजट जारी कर दिया गया है। इसी के साथ हत्या पीड़ित 56 परिवारों को आवासीय शिक्षा की सुविधा भी सरकार देने जा रही है। मार्च 2022 में इन परिवारों को आवासीय ​स्कूलों में प्रवेश दिया जाएगा।

सहारनपुर से महेश कुमार शिवा

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