Bihar Elections 2025 : सम्राट चौधरी के राजनीतिक संघर्ष ने बिहार भाजपा में बवंडर मचा

Bihar Elections 2025 : सम्राट चौधरी के राजनीतिक संघर्ष ने बिहार भाजपा में बवंडर मचा
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userचेतना मंच
calendar22 OCT 2025 06:15 AM
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बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Elections) की आहट के बीच भाजपा (BJP) के डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी (Samrat Chaudhary) की राजनीतिक छवि पर सवाल उठने लगे हैं। एक वक्त था जब सम्राट चौधरी (Samrat Chaudhary) को बिहार बीजेपी का ‘नीतीश कुमार’ (Nitish Kumar) माना जा रहा था, लेकिन अब वह पार्टी के लिए एक कमजोर कड़ी बनते जा रहे हैं। Bihar Elections 2025

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लोकसभा चुनाव में मिली हार के बाद गिरावट की शुरुआत

भाजपा (BJP) के बिहार प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए सम्राट चौधरी (Samrat Chaudhary) ने पार्टी के लिए कुशवाहा वोटों को आकर्षित करने का प्रयास किया था, लेकिन 2024 के लोकसभा चुनावों में पार्टी को उम्मीद के मुताबिक सीटें नहीं मिलीं। सम्राट चौधरी की नेतृत्व शैली और उनके प्रयासों के बावजूद भाजपा (BJP) सिर्फ 12 सीटों पर सिमट गई, जबकि 2014 और 2019 में पार्टी ने क्रमशः 22 और 17 सीटें जीती थीं। भाजपा (BJP) नेता अश्विनी चौबे ने सम्राट चौधरी पर यह आरोप लगाया था कि आयातित नेताओं से पार्टी को लाभ नहीं होता और पार्टी को अपने मूल कार्यकर्ताओं पर भरोसा करना चाहिए।

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कोइरी वोटर्स पर पकड़ की कमी

सम्राट चौधरी (Samrat Chaudhary) का मुख्य उद्देश्य कुशवाहा वोटों को भाजपा के पाले में लाना था, लेकिन इसका उल्टा ही हुआ। लोकसभा चुनाव के दौरान शाहाबाद क्षेत्र में एनडीए हार गया, जिसमें कुशवाहा वोटों का झुकाव आरजेडी की ओर देखा गया। इससे सम्राट चौधरी की अपनी बिरादरी पर कमजोर पकड़ जाहिर हुई, और उनकी पार्टी में विश्वसनीयता पर सवाल उठने लगे।

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भाजपा (BJP) के पारंपरिक कोर वोटर से अनुकूल नहीं

सम्राट चौधरी, बिहार के उपमुख्यमंत्री होने के बावजूद बीजेपी के पारंपरिक मध्यवर्गीय कोर वोटरों के खांचे में फिट नहीं बैठते। उनकी राजनीतिक यात्रा जो आरजेडी, जेडीयू से होकर भाजपा (BJP) तक पहुंची है, वह भाजपा (BJP) के स्थिर और विचारनिष्ठ नेताओं से मेल नहीं खाती। इसके अलावा, सम्राट चौधरी के शैक्षिक योग्यता और संपत्ति को लेकर उठे सवालों ने उन्हें पार्टी के पारदर्शिता पसंद मतदाताओं से भी दूर कर दिया है।

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प्रशांत किशोर के हमलों से आई छवि में गिरावट

जनसुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर ने सम्राट चौधरी को अपने हमलों का शिकार बनाया। उन्होंने सम्राट पर आरोप लगाया कि वे कुशवाहा वोट बैंक को साधने के लिए राजनीति कर रहे हैं और भाजपा (BJP) में इसलिए आए हैं ताकि नीतीश कुमार के समान जाति आधारित राजनीति कर सकें। इस हमले ने सम्राट चौधरी Samrat Chaudhary की छवि को और अधिक कमजोर किया और उन्हें अवसरवादी नेता के रूप में पेश किया।

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सम्राट चौधरी Samrat Chaudhary के नाम के साथ कई विवाद जुड़ चुके हैं। सबसे बड़ा विवाद उनके शैक्षिक योग्यता और उम्र को लेकर था। चुनावी हलफनामे में सम्राट ने अपनी शिक्षा को ‘Pre-Foundation Course’ बताया, जो विपक्ष के लिए तंज का कारण बना। इसके अलावा, वे कई बार अपने तीखे बयानों से पार्टी को असहज स्थिति में डाल चुके हैं। ऐसे में, भाजपा (BJP) को लगता है कि सम्राट चौधरी अब पार्टी के लिए एक छवि संकट बन गए हैं। आने वाले विधानसभा चुनाव सम्राट चौधरी के लिए निर्णायक साबित हो सकते हैं। अगर कुशवाहा वोटर्स को भाजपा (BJP) की ओर आकर्षित करने में वह विफल रहते हैं, तो उनकी राजनीतिक यात्रा के साथ-साथ भाजपा (BJP) के लिए भी एक बड़ा संकट खड़ा हो सकता है।
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बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Elections) की आहट के बीच भाजपा (BJP) के डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी (Samrat Chaudhary) की राजनीतिक छवि पर सवाल उठने लगे हैं। एक वक्त था जब सम्राट चौधरी (Samrat Chaudhary) को बिहार बीजेपी का ‘नीतीश कुमार’ (Nitish Kumar) माना जा रहा था, लेकिन अब वह पार्टी के लिए एक कमजोर कड़ी बनते जा रहे हैं। Bihar Elections 2025

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लोकसभा चुनाव में मिली हार के बाद गिरावट की शुरुआत

भाजपा (BJP) के बिहार प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए सम्राट चौधरी (Samrat Chaudhary) ने पार्टी के लिए कुशवाहा वोटों को आकर्षित करने का प्रयास किया था, लेकिन 2024 के लोकसभा चुनावों में पार्टी को उम्मीद के मुताबिक सीटें नहीं मिलीं। सम्राट चौधरी की नेतृत्व शैली और उनके प्रयासों के बावजूद भाजपा (BJP) सिर्फ 12 सीटों पर सिमट गई, जबकि 2014 और 2019 में पार्टी ने क्रमशः 22 और 17 सीटें जीती थीं। भाजपा (BJP) नेता अश्विनी चौबे ने सम्राट चौधरी पर यह आरोप लगाया था कि आयातित नेताओं से पार्टी को लाभ नहीं होता और पार्टी को अपने मूल कार्यकर्ताओं पर भरोसा करना चाहिए।

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कोइरी वोटर्स पर पकड़ की कमी

सम्राट चौधरी (Samrat Chaudhary) का मुख्य उद्देश्य कुशवाहा वोटों को भाजपा के पाले में लाना था, लेकिन इसका उल्टा ही हुआ। लोकसभा चुनाव के दौरान शाहाबाद क्षेत्र में एनडीए हार गया, जिसमें कुशवाहा वोटों का झुकाव आरजेडी की ओर देखा गया। इससे सम्राट चौधरी की अपनी बिरादरी पर कमजोर पकड़ जाहिर हुई, और उनकी पार्टी में विश्वसनीयता पर सवाल उठने लगे।

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भाजपा (BJP) के पारंपरिक कोर वोटर से अनुकूल नहीं

सम्राट चौधरी, बिहार के उपमुख्यमंत्री होने के बावजूद बीजेपी के पारंपरिक मध्यवर्गीय कोर वोटरों के खांचे में फिट नहीं बैठते। उनकी राजनीतिक यात्रा जो आरजेडी, जेडीयू से होकर भाजपा (BJP) तक पहुंची है, वह भाजपा (BJP) के स्थिर और विचारनिष्ठ नेताओं से मेल नहीं खाती। इसके अलावा, सम्राट चौधरी के शैक्षिक योग्यता और संपत्ति को लेकर उठे सवालों ने उन्हें पार्टी के पारदर्शिता पसंद मतदाताओं से भी दूर कर दिया है।

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प्रशांत किशोर के हमलों से आई छवि में गिरावट

जनसुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर ने सम्राट चौधरी को अपने हमलों का शिकार बनाया। उन्होंने सम्राट पर आरोप लगाया कि वे कुशवाहा वोट बैंक को साधने के लिए राजनीति कर रहे हैं और भाजपा (BJP) में इसलिए आए हैं ताकि नीतीश कुमार के समान जाति आधारित राजनीति कर सकें। इस हमले ने सम्राट चौधरी Samrat Chaudhary की छवि को और अधिक कमजोर किया और उन्हें अवसरवादी नेता के रूप में पेश किया।

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सम्राट चौधरी Samrat Chaudhary के नाम के साथ कई विवाद जुड़ चुके हैं। सबसे बड़ा विवाद उनके शैक्षिक योग्यता और उम्र को लेकर था। चुनावी हलफनामे में सम्राट ने अपनी शिक्षा को ‘Pre-Foundation Course’ बताया, जो विपक्ष के लिए तंज का कारण बना। इसके अलावा, वे कई बार अपने तीखे बयानों से पार्टी को असहज स्थिति में डाल चुके हैं। ऐसे में, भाजपा (BJP) को लगता है कि सम्राट चौधरी अब पार्टी के लिए एक छवि संकट बन गए हैं। आने वाले विधानसभा चुनाव सम्राट चौधरी के लिए निर्णायक साबित हो सकते हैं। अगर कुशवाहा वोटर्स को भाजपा (BJP) की ओर आकर्षित करने में वह विफल रहते हैं, तो उनकी राजनीतिक यात्रा के साथ-साथ भाजपा (BJP) के लिए भी एक बड़ा संकट खड़ा हो सकता है।
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एक घर, दो सीटें, दो विजेता? दिलचस्प है यादव दंपति की राजनीति की कहानी

एक घर, दो सीटें, दो विजेता? दिलचस्प है यादव दंपति की राजनीति की कहानी
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बिहार विधानसभा चुनाव इस बार राजनीतिक परिवारों और रिश्तों की ताकत को पूरी तरह उजागर कर रहे हैं। इसी क्रम में यादव परिवार का एक दंपति भी अपनी किस्मत आजमा रही है। कौशल यादव और उनकी पत्नी पूर्णिमा यादव दोनों ही इस बार अलग-अलग विधानसभा सीटों से चुनाव मैदान में हैं। नवादा से कौशल यादव और गोविंदपुर से पूर्णिमा यादव को राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) ने टिकट दिया है। दिलचस्प बात यह है कि दोनों इस साल जुलाई में जेडीयू छोड़कर आरजेडी में शामिल हुए थे। राजनीतिक हलकों में इसे एक बड़ा संकेत माना जा रहा है, क्योंकि पति-पत्नी दोनों ही चार-चार बार विधायक रह चुके हैं और दोनों के नाम पर क्षेत्र में मजबूत आधार है।    Bihar Elections 2025

आरजेडी ने मौजूदा विधायक को दिया मात

गोविंदपुर सीट से आरजेडी ने मौजूदा विधायक मोहम्मद कामरान का टिकट काटकर पूर्णिमा यादव को उम्मीदवार बनाया है। गौरतलब है कि पूर्णिमा यादव चार बार विधायक रह चुकी हैं, जिसमें एक बार गोविंदपुर और तीन बार नवादा से जीत दर्ज की। वहीं कौशल यादव ने भी चार बार विधायक के रूप में चुनावी जीत हासिल की है। कौशल परिवार का गोविंदपुर क्षेत्र में लंबा राजनीतिक वर्चस्व रहा है। शुरुआत युगल किशोर प्रसाद यादव से हुई, जिन्हें पहली बार चुनाव में सफलता मिली। उनके निधन के बाद, कौशल की मां गायत्री देवी ने पांच बार गोविंदपुर का प्रतिनिधित्व किया, जबकि अब कौशल और पूर्णिमा यादव के जीतने का सिलसिला जारी है।

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क्या है गोविंदपुर विधानसभा का चुनावी इतिहास?

गोविंदपुर में पहला विधानसभा चुनाव 1967 में हुआ, जिसमें कांग्रेस के अमृत प्रसाद ने जीत दर्ज की। 1969 में युगल किशोर प्रसाद यादव ने कांग्रेस के ही अमृत प्रसाद को मात्र 744 वोटों के अंतर से मात दी। इसके बाद राजनीतिक परिदृश्य में कई उतार-चढ़ाव आए। 1980, 1985 और 1990 में गायत्री देवी ने कांग्रेस के टिकट पर जीत दर्ज की। 2000 में आरजेडी से उन्होंने फिर से गोविंदपुर में विजय पाई। 2005 में कौशल यादव निर्दलीय और उनकी मां आमने-सामने थीं, जिसमें कौशल यादव विजयी रहे। इसके बाद 2010 में जेडीयू और 2015 में कांग्रेस के माध्यम से पूर्णिमा यादव की जीत हुई, जबकि 2020 में आरजेडी के मोहम्मद कामरान ने जीत हासिल की। इस बार बिहार विधानसभा चुनाव में राजनीतिक परिवारों, जातिगत समीकरण और पारिवारिक बंधनों का खेल और गहरा दिख रहा है। पति-पत्नी की यह जोड़ी इसका जीवंत उदाहरण बनकर उभरी है।    Bihar Elections 2025