बिहार की राजनीति में इस बार कुछ अलग दिख रहा है। जहां एक ओर पुराने खिलाड़ी अपनी आखिरी पारी खेलने की तैयारी में हैं, वहीं दूसरी ओर नई पीढ़ी Gen Z लोकतंत्र की इस परीक्षा में अपना दमखम दिखाने को मैदान में उतर चुकी है। अनुभव और उम्र के बीच यह दिलचस्प मुकाबला अब बिहार के चुनावी संग्राम को और भी रोमांचक बना रहा है। नेपाल की सीमा पार हाल ही में Gen Z युवाओं ने जिस तरह सत्ता का समीकरण पलट दिया, उसने बिहार के युवाओं में भी नया जोश भर दिया है। Bihar Assembly Elections 2025
अब वही डिजिटल युग की यह पीढ़ी बिहार की गलियों में अपनी छाप छोड़ने को तैयार है। सवाल यह है कि क्या ये युवा चेहरे, तजुर्बे के मजबूत किले को चुनौती देने में कामयाब होंगे? राजनीतिक रूप से जागरूक इस राज्य की मिट्टी ने ही लोकतंत्र को जन्म दिया था। यहां हर चुनाव किसी परीक्षा से कम नहीं होता। कई दिग्गजों के लिए यह आख़िरी रण साबित हो सकता है, जबकि कई युवाओं के लिए यह सफर की पहली पारी है। Bihar Assembly Elections 2025
बदलते दौर में राजनीति का नया चेहरा
बिहार की चुनावी तस्वीर में इस बार युवाओं की चमक साफ दिख रही है। बड़े राजनीतिक दलों ने भी समझ लिया है कि नई सियासत अब नई सोच मांगती है — इसलिए उन्होंने भरोसा जताया है उन चेहरों पर जो उम्र में छोटे हैं, लेकिन सपनों और संकल्प में बड़े। करीब 10 युवा उम्मीदवार इस बार चुनावी मैदान में हैं, जिनकी उम्र 30 साल या उससे कम है। इनमें से कुछ तो Gen Z पीढ़ी से हैं वो पीढ़ी जो 1997 से 2012 के बीच जन्मी और जिसने डिजिटल युग की पहली धूप महसूस की। Bihar Assembly Elections 2025
Gen Z को कहा जाता है “डिजिटल नेटिव्स” यानी वो युवा जो इंटरनेट और स्मार्टफोन की दुनिया में पले-बढ़े हैं। यही वो वर्ग है जो सुबह अख़बार से पहले न्यूज़ ऐप खोलता है, बहस टीवी से नहीं बल्कि ट्विटर पर करता है, और जनता से सीधा जुड़ाव सोशल मीडिया के ज़रिए रखता है। अब यही तकनीकी रूप से समझदार, तेज़ सोच वाली पीढ़ी बिहार की सियासत में कदम रख रही है। और भले ही चुनाव लड़ने की न्यूनतम उम्र 25 साल हो, लेकिन इस पीढ़ी की परिपक्वता और राजनीतिक समझ उम्र से कहीं आगे निकल चुकी है। Bihar Assembly Elections 2025
मैथिली ठाकुर
बिहार की राजनीति में इस बार युवाओं का जलवा है, लेकिन उनमें भी सबसे ज़्यादा सुर्खियां बटोर रही हैं मैथिली ठाकुर एक ऐसा नाम जो संगीत की दुनिया से निकलकर अब सियासत की पगडंडी पर कदम रख चुकी हैं। तकनीक और सोशल मीडिया के दौर में जब राजनीतिक दल युवा चेहरों की ताकत समझ चुके हैं, तब बीजेपी समेत कई दलों ने इस नई पीढ़ी पर बड़ा दांव लगाया है। आंकड़े बताते हैं कि इस बार बिहार विधानसभा चुनाव में Gen Z पीढ़ी के चार उम्मीदवार अपनी किस्मत आजमा रहे हैं, जबकि करीब 10 युवा प्रत्याशी ऐसे हैं जो 30 साल या उससे कम उम्र के हैं। इनमें महिलाओं की भागीदारी भी उल्लेखनीय है चार में से तीन Gen Z उम्मीदवार महिलाएं हैं।
इनमें सबसे युवा और चर्चित चेहरा हैं मैथिली ठाकुर, जो महज़ 25 साल की उम्र में ही लाखों दिलों की धड़कन बन चुकी हैं। मैथिली न सिर्फ एक लोकप्रिय गायिका हैं, बल्कि सोशल मीडिया पर भी उनकी अपार फैन फॉलोइंग है — इंस्टाग्राम पर 63 लाख और यूट्यूब पर 50 लाख से अधिक फॉलोअर्स। संगीत की दुनिया से निकली यह आवाज़ अब राजनीति की गूंज बनने जा रही है। पीएम नरेंद्र मोदी से मुलाकात के बाद मैथिली ने बीजेपी का दामन थामा और दरभंगा जिले की अलीनगर सीट से चुनावी मैदान में उतरीं।
हालांकि, बीजेपी के भीतर कुछ स्थानीय नेताओं ने उनके टिकट को लेकर नाराजगी जताई, लेकिन मैथिली ने इसे अपने हौसले पर हावी नहीं होने दिया। वह पूरी ऊर्जा के साथ प्रचार में जुटी हैं, युवाओं और महिलाओं के बीच उनकी लोकप्रियता साफ झलक रही है। अलीनगर सीट हालांकि नई है, लेकिन राजनीतिक रूप से यह बेहद दिलचस्प मानी जाती है। पिछली बार यहां से विकासशील इंसान पार्टी (VIP) के मिश्री लाल यादव ने जीत दर्ज की थी, जबकि इस बार आरजेडी के बिनोद मिश्रा और जन सुराज के विप्लव चौधरी मैदान में हैं।
रवीना कुशवाहा
बिहार की सियासत इस बार कई अप्रत्याशित मोड़ों से भरी है। इन्हीं में से एक नाम है रवीना कुशवाहा, जो महज़ 27 साल की उम्र में राजनीति की पारी शुरू कर रही हैं। समस्तीपुर जिले की विभूतिनगर सीट से जनता दल यूनाइटेड (JDU) ने उन्हें उम्मीदवार बनाया है। रवीना भले ही नई हों, लेकिन राजनीति उनके घर की विरासत का हिस्सा है। उनके पति राम बालक कुशवाहा दो बार इसी सीट से विधायक रह चुके हैं, लेकिन इस बार कानूनी उलझनों की वजह से मैदान में नहीं उतर पाए। लिहाज़ा अब उनकी जगह युवा पत्नी रवीना ने मोर्चा संभाल लिया है।
रवीना की कहानी सिर्फ राजनीति नहीं, बल्कि निजी जीवन के उतार-चढ़ाव से भी भरी है। उनके पति राम बालक कुशवाहा, जिनकी उम्र 53 साल है, उनसे 26 साल बड़े हैं। राम बालक की पहली पत्नी आशा रानी की कैंसर से मौत के बाद पिछले साल उन्होंने रवीना से दूसरी शादी की थी। दिलचस्प यह भी है कि रवीना की यह दूसरी शादी है। अब यह युवा नेत्री सिर्फ अपने पति की सियासी विरासत नहीं संभाल रही, बल्कि अपने दम पर मतदाताओं के बीच पहचान बनाने की कोशिश में हैं। विभूतिनगर में उनकी उम्मीदवारी ने चुनाव को और दिलचस्प बना दिया है — क्योंकि अब यह सीट सिर्फ अनुभव बनाम युवा जोश की नहीं, बल्कि परंपरा बनाम नई शुरुआत की जंग बन चुकी है।
शिवानी शुक्ला
बिहार की सियासी फिज़ा में इस बार एक नया चेहरा चर्चा में है 28 साल की शिवानी शुक्ला, जो बाहुबली नेता मुन्ना शुक्ला की बेटी हैं। लेकिन शिवानी खुद को पिता की छवि से अलग एक शिक्षित और जागरूक युवा चेहरा के रूप में पेश कर रही हैं। आरजेडी ने उन्हें वैशाली जिले की लालगंज सीट से उम्मीदवार बनाकर Gen Z की इस नई पीढ़ी को मंच दिया है। शिवानी ने कानून की पढ़ाई भारत और विदेश, दोनों जगह से की है। उन्होंने बेंगलुरु की एलायंस यूनिवर्सिटी से BA-LLB और फिर लंदन की यूनिवर्सिटी ऑफ लीड्स से LLM की डिग्री हासिल की।
यानी उनके पास न सिर्फ सियासी विरासत है, बल्कि कानून की गहरी समझ भी। यह उनकी पहली राजनीतिक पारी है, और दिलचस्प बात यह है कि वे जिनसे मुकाबला कर रही हैं। वहीं, कांग्रेस ने शुरुआत में अपना प्रत्याशी उतारकर मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने की कोशिश की थी, मगर बाद में गठबंधन के फार्मूले के तहत उम्मीदवार वापस ले लिया गया।
दीपू सिंह
बिहार के भोजपुर ज़िले की संदेश विधानसभा सीट इस बार एक युवा चेहरे की वजह से चर्चा में है 28 वर्षीय दीपू सिंह। राष्ट्रीय जनता दल (RJD) ने इस युवा उम्मीदवार पर भरोसा जताया है, जो राजनीति में नए हैं लेकिन सियासत उनके खून में है। दीपू सिंह एक मजबूत राजनीतिक परिवार से आते हैं। उनके पिता अरुण यादव दो बार विधायक रह चुके हैं, जबकि मां किरण देवी वर्तमान में इसी सीट से जनप्रतिनिधि हैं। इससे पहले उनके ताऊ वीरेंद्र यादव भी दो बार विधानसभा पहुँच चुके हैं। यानी इस परिवार का संदेश सीट से तीन पीढ़ियों का राजनीतिक रिश्ता जुड़ा हुआ है।
हालांकि दीपू के लिए यह चुनावी मैदान भले नया हो, लेकिन उनकी पृष्ठभूमि और परिवार की पकड़ देखकर कहा जा सकता है कि उनके लिए यह सफर किसी 'टफ बैटल' से ज्यादा ‘विरासत की अगली कड़ी’ साबित हो सकता है। दिलचस्प यह भी है कि अविवाहित दीपू सिंह अपनी सादगी और युवाओं से जुड़ाव को अपनी सबसे बड़ी ताकत बना रहे हैं।
क्या नया दौर लाएगी Gen Z?
बिहार की सियासी धरती पर इस बार युवाओं का जोश अपने चरम पर है। जहां कुछ चेहरे पूरी तरह Gen Z पीढ़ी से हैं, वहीं कुछ ऐसे भी हैं जो इस पीढ़ी के बिलकुल करीब खड़े हैं । इनमें तीन नाम सबसे आगे हैं — रविरंजन, धनंजय कुमार और रूपा कुमारी। राष्ट्रीय जनता दल (RJD) ने नालंदा की अस्थावां सीट से रविरंजन पर भरोसा जताया है, जबकि गोपालगंज की भोरे सीट से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) ने धनंजय कुमार को मैदान में उतारा है। वहीं राजधानी पटना की फतुहा सीट से लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) ने रूपा कुमारी को टिकट दिया है। तीनों ही युवा उम्मीदवार अपनी सोच, स्टाइल और चुनावी अभियान में नई राजनीति की झलक पेश कर रहे हैं। Bihar Assembly Elections 2025
इसके साथ ही तीन 30 वर्षीय उम्मीदवार भी इस चुनाव में किस्मत आजमा रहे हैं आदित्य कुमार (सकरा, जेडीयू), कोमल कुशवाहा (गायघाट, जेडीयू) और राकेश रंजन (शाहपुर, बीजेपी)। ये सभी नेता उस पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते हैं जो तकनीक और सोशल मीडिया की ताकत को राजनीति का नया औज़ार बना रही है। दिलचस्प बात यह है कि Gen Z के चार प्रमुख चेहरों में से केवल मैथिली ठाकुर ही ऐसी प्रत्याशी हैं जिनका राजनीति से कोई पारिवारिक रिश्ता नहीं है। बाकी तीनों — रवीना कुशवाहा, शिवानी शुक्ला और दीपू सिंह अपने-अपने राजनीतिक परिवारों की विरासत संभाल रहे हैं। Bihar Assembly Elections 2025