10 साल बाद भी सुर्खियों में ‘लालू यादव’, उम्र में सिर्फ 6 साल का फर्क

10 साल बाद भी सुर्खियों में ‘लालू यादव’, उम्र में सिर्फ 6 साल का फर्क
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userचेतना मंच
calendar11 OCT 2025 04:42 AM
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बिहार में बड़े राजनीतिक गठबंधनों के बीच सीटों के बंटवारे पर सहमति न बनने के बावजूद चुनावी प्रक्रिया की शुरुआत हो चुकी है। पहले ही दिन एक ऐसा नाम सामने आया जिसने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी। सारण की मढ़ौरा विधानसभा सीट से पर्चा दाखिल करने वाले लालू प्रसाद यादव ने सभी को चौंका दिया। ध्यान रहे, यह वही लालू नहीं हैं जो राष्ट्रीय जनता दल के प्रमुख हैं और बिहार के प्रतिष्ठित यादव परिवार से जुड़े हैं।   Bihar Elections 2025

यह ‘नकली लालू’ कहलाने वाले लालू प्रसाद यादव असली लालू यादव के संसदीय क्षेत्र सारण के ही रहने वाले हैं। 2025 के बिहार चुनाव में उनके हलफनामे के अनुसार, वह मढ़ौरा थाने के जादो रहीमपुर गांव के निवासी हैं। शुक्रवार को उन्होंने मढ़ौरा सीट से अपना नामांकन दाखिल कर इस विधानसभा क्षेत्र के पहले उम्मीदवार बनने का रिकॉर्ड भी दर्ज कर लिया। दिलचस्प यह है कि 2014 में लोकसभा चुनाव लड़ते समय उनकी उम्र 39 साल थी, जबकि अब, 2025 में, उनकी उम्र केवल 45 साल बताई गई है—यानी 10 साल में सिर्फ 6 साल की बढ़ोतरी!    Bihar Elections 2025

नकली लालू यादव का चुनावी अनुभव

राष्ट्रीय जनसंभावना पार्टी के टिकट पर मढ़ौरा विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने वाले लालू प्रसाद यादव ने अपने हलफनामे में साफ-साफ कहा है कि उन पर किसी प्रकार का कोई आपराधिक मामला नहीं चल रहा है। हलफनामे के मुताबिक उनके पास 50 हजार रुपये नकद हैं, जबकि उनकी पत्नी सुग्गी देवी के पास 20 हजार रुपये कैश है। इसके अलावा उनके पास 40 हजार रुपये कीमत की बाइक और 6 लाख रुपये की कार भी है। बैंक में जमा राशि 10 हजार रुपये है। कुल मिलाकर उनकी संपत्ति लगभग 7 लाख रुपये की है। जहां लालू यादव के पास कोई जेवर नहीं है, वहीं उनकी पत्नी के पास 5 लाख रुपये के सोने और 1.40 लाख रुपये के चांदी के जेवर हैं।    Bihar Elections 2025

कुल मिलाकर परिवार की संपत्ति करीब 6.60 लाख रुपये की आंकी गई है। शिक्षा की दृष्टि से देखें तो लालू ने 1997 में मढ़ौरा के जवाहरलाल नेहरू कॉलेज से 12वीं परीक्षा दूसरी श्रेणी में उत्तीर्ण की थी। 2025 में दाखिल हलफनामे के अनुसार उनकी उम्र 45 साल है। यह पहली बार नहीं है जब ‘नकली लालू’ ने चुनावी मैदान में कदम रखा हो। उनके चुनावी अनुभव की शुरुआत साल 2001 में वार्ड पार्षद के चुनाव से हुई थी, जहां उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद भी वह कई बार चुनाव में उतरे, लेकिन सफलता का स्वाद उन्हें अभी तक नहीं चख सका।  Bihar Elections 2025

2014 में ‘निर्दलीय लालू’ का खेल

2025 के चुनाव से पहले लालू प्रसाद यादव ने 2014 के लोकसभा चुनाव में सारण से अपनी किस्मत आज़माई थी। यह वही सीट है जहां असली लालू प्रसाद यादव ने 1977 में अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत की थी और जीत हासिल की थी। हालांकि, असली लालू यादव पर भ्रष्टाचार के कई मामले चल रहे थे और चारा घोटाला मामले में दोषसिद्धि के बाद उन्हें चुनाव लड़ने से अयोग्य ठहराया गया था। ऐसे में 2014 में राष्ट्रीय जनता दल ने राबड़ी देवी को सारण से चुनाव मैदान में उतारा।

उसी चुनाव में ‘दूसरे लालू’ ने भी नामांकन दाखिल किया, लेकिन उन्होंने अपनी पहचान बदलकर ‘लालू राय’ के नाम से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर मैदान में कदम रखा। यह घटना राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बनी थी, क्योंकि नाम और इलाके की समानता ने कई मतदाताओं और मीडिया की रुचि खींची थी। लालू राय के इस कदम ने साबित कर दिया कि राजनीति में नाम और पहचान का कितना बड़ा महत्व होता है।

यह भी पढ़े: ‘अघोषित इमरजेंसी’ या फेसबुक की नीति? अखिलेश का पेज ब्लॉक होने पर बवाल

राबड़ी के खिलाफ ‘नकली लालू’ का संघर्ष

2014 के लोकसभा चुनाव में नकली लालू यादव ने अपने नाम के साथ ‘लालू राय’ जोड़कर मैदान में उतरे। हलफनामे में उन्होंने उम्र 39 साल बताई थी, जबकि 2025 के हलफनामे में उनकी उम्र 45 साल दर्ज है यानी 10 सालों में सिर्फ 6 साल की बढ़ोतरी। उस समय उनके पास कोई गाड़ी नहीं थी और पेशे से वह किसान ही थे। सारण सीट पर राबड़ी देवी के खिलाफ उतरने वाले लालू राय को बड़ी सफलता नहीं मिली। हालांकि राबड़ी देवी को भी जीत हासिल नहीं हो सकी।

भाजपा के राजीव प्रताप रूड़ी ने यहां 3,55,120 वोट लेकर बाजी मारी, जबकि राबड़ी देवी को 3,14,172 वोट मिले—लगभग 40 हजार वोटों के अंतर से हार। वहीं ‘नकली लालू’ को कुल 9,957 वोट ही मिले, यानी पूरे वोटों का केवल 1.2%। दिलचस्प बात यह रही कि इस चुनाव में उन्होंने आम आदमी पार्टी के कुछ उम्मीदवारों से भी अधिक वोट हासिल किए थे। यह आंकड़ा राजनीतिक हलकों में उनके चुनावी संघर्ष की अनोखी कहानी के रूप में चर्चा का विषय बना।    Bihar Elections 2025

राष्ट्रपति चुनाव में भी आजमाई किस्मत

राजनीति में अपने संघर्ष और जुझारूपन के लिए मशहूर ‘लालू राय’ ने केवल विधानसभा या लोकसभा चुनावों तक ही सीमित नहीं रहे। बिहार चुनाव 2025 में मैदान में उतरने से पहले ही उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव में भी अपनी किस्मत आज़माई थी। 2017 और 2022 में उन्होंने नामांकन दाखिल किया, लेकिन दोनों ही बार उनका नामांकन खारिज हो गया।  दिलचस्प यह रहा कि 2014 के लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार परमात्मा सिंह को महज 5,099 वोट मिले थे, जबकि लालू राय को करीब 10 हजार वोट मिले थे। यानी इस ‘नकली लालू’ ने AAP के उम्मीदवार को भी पीछे छोड़ दिया। वहीं, नोटा के पक्ष में 19,163 वोट पड़े थे। यह आंकड़ा दर्शाता है कि राजनीति में पहचान और नाम का असर कितना गहरा होता है, भले ही जीत हाथ न लगे।    Bihar Elections 2025

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10 साल बाद भी सुर्खियों में ‘लालू यादव’, उम्र में सिर्फ 6 साल का फर्क

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बिहार में बड़े राजनीतिक गठबंधनों के बीच सीटों के बंटवारे पर सहमति न बनने के बावजूद चुनावी प्रक्रिया की शुरुआत हो चुकी है। पहले ही दिन एक ऐसा नाम सामने आया जिसने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी। सारण की मढ़ौरा विधानसभा सीट से पर्चा दाखिल करने वाले लालू प्रसाद यादव ने सभी को चौंका दिया। ध्यान रहे, यह वही लालू नहीं हैं जो राष्ट्रीय जनता दल के प्रमुख हैं और बिहार के प्रतिष्ठित यादव परिवार से जुड़े हैं।   Bihar Elections 2025

यह ‘नकली लालू’ कहलाने वाले लालू प्रसाद यादव असली लालू यादव के संसदीय क्षेत्र सारण के ही रहने वाले हैं। 2025 के बिहार चुनाव में उनके हलफनामे के अनुसार, वह मढ़ौरा थाने के जादो रहीमपुर गांव के निवासी हैं। शुक्रवार को उन्होंने मढ़ौरा सीट से अपना नामांकन दाखिल कर इस विधानसभा क्षेत्र के पहले उम्मीदवार बनने का रिकॉर्ड भी दर्ज कर लिया। दिलचस्प यह है कि 2014 में लोकसभा चुनाव लड़ते समय उनकी उम्र 39 साल थी, जबकि अब, 2025 में, उनकी उम्र केवल 45 साल बताई गई है—यानी 10 साल में सिर्फ 6 साल की बढ़ोतरी!    Bihar Elections 2025

नकली लालू यादव का चुनावी अनुभव

राष्ट्रीय जनसंभावना पार्टी के टिकट पर मढ़ौरा विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने वाले लालू प्रसाद यादव ने अपने हलफनामे में साफ-साफ कहा है कि उन पर किसी प्रकार का कोई आपराधिक मामला नहीं चल रहा है। हलफनामे के मुताबिक उनके पास 50 हजार रुपये नकद हैं, जबकि उनकी पत्नी सुग्गी देवी के पास 20 हजार रुपये कैश है। इसके अलावा उनके पास 40 हजार रुपये कीमत की बाइक और 6 लाख रुपये की कार भी है। बैंक में जमा राशि 10 हजार रुपये है। कुल मिलाकर उनकी संपत्ति लगभग 7 लाख रुपये की है। जहां लालू यादव के पास कोई जेवर नहीं है, वहीं उनकी पत्नी के पास 5 लाख रुपये के सोने और 1.40 लाख रुपये के चांदी के जेवर हैं।    Bihar Elections 2025

कुल मिलाकर परिवार की संपत्ति करीब 6.60 लाख रुपये की आंकी गई है। शिक्षा की दृष्टि से देखें तो लालू ने 1997 में मढ़ौरा के जवाहरलाल नेहरू कॉलेज से 12वीं परीक्षा दूसरी श्रेणी में उत्तीर्ण की थी। 2025 में दाखिल हलफनामे के अनुसार उनकी उम्र 45 साल है। यह पहली बार नहीं है जब ‘नकली लालू’ ने चुनावी मैदान में कदम रखा हो। उनके चुनावी अनुभव की शुरुआत साल 2001 में वार्ड पार्षद के चुनाव से हुई थी, जहां उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद भी वह कई बार चुनाव में उतरे, लेकिन सफलता का स्वाद उन्हें अभी तक नहीं चख सका।  Bihar Elections 2025

2014 में ‘निर्दलीय लालू’ का खेल

2025 के चुनाव से पहले लालू प्रसाद यादव ने 2014 के लोकसभा चुनाव में सारण से अपनी किस्मत आज़माई थी। यह वही सीट है जहां असली लालू प्रसाद यादव ने 1977 में अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत की थी और जीत हासिल की थी। हालांकि, असली लालू यादव पर भ्रष्टाचार के कई मामले चल रहे थे और चारा घोटाला मामले में दोषसिद्धि के बाद उन्हें चुनाव लड़ने से अयोग्य ठहराया गया था। ऐसे में 2014 में राष्ट्रीय जनता दल ने राबड़ी देवी को सारण से चुनाव मैदान में उतारा।

उसी चुनाव में ‘दूसरे लालू’ ने भी नामांकन दाखिल किया, लेकिन उन्होंने अपनी पहचान बदलकर ‘लालू राय’ के नाम से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर मैदान में कदम रखा। यह घटना राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बनी थी, क्योंकि नाम और इलाके की समानता ने कई मतदाताओं और मीडिया की रुचि खींची थी। लालू राय के इस कदम ने साबित कर दिया कि राजनीति में नाम और पहचान का कितना बड़ा महत्व होता है।

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राबड़ी के खिलाफ ‘नकली लालू’ का संघर्ष

2014 के लोकसभा चुनाव में नकली लालू यादव ने अपने नाम के साथ ‘लालू राय’ जोड़कर मैदान में उतरे। हलफनामे में उन्होंने उम्र 39 साल बताई थी, जबकि 2025 के हलफनामे में उनकी उम्र 45 साल दर्ज है यानी 10 सालों में सिर्फ 6 साल की बढ़ोतरी। उस समय उनके पास कोई गाड़ी नहीं थी और पेशे से वह किसान ही थे। सारण सीट पर राबड़ी देवी के खिलाफ उतरने वाले लालू राय को बड़ी सफलता नहीं मिली। हालांकि राबड़ी देवी को भी जीत हासिल नहीं हो सकी।

भाजपा के राजीव प्रताप रूड़ी ने यहां 3,55,120 वोट लेकर बाजी मारी, जबकि राबड़ी देवी को 3,14,172 वोट मिले—लगभग 40 हजार वोटों के अंतर से हार। वहीं ‘नकली लालू’ को कुल 9,957 वोट ही मिले, यानी पूरे वोटों का केवल 1.2%। दिलचस्प बात यह रही कि इस चुनाव में उन्होंने आम आदमी पार्टी के कुछ उम्मीदवारों से भी अधिक वोट हासिल किए थे। यह आंकड़ा राजनीतिक हलकों में उनके चुनावी संघर्ष की अनोखी कहानी के रूप में चर्चा का विषय बना।    Bihar Elections 2025

राष्ट्रपति चुनाव में भी आजमाई किस्मत

राजनीति में अपने संघर्ष और जुझारूपन के लिए मशहूर ‘लालू राय’ ने केवल विधानसभा या लोकसभा चुनावों तक ही सीमित नहीं रहे। बिहार चुनाव 2025 में मैदान में उतरने से पहले ही उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव में भी अपनी किस्मत आज़माई थी। 2017 और 2022 में उन्होंने नामांकन दाखिल किया, लेकिन दोनों ही बार उनका नामांकन खारिज हो गया।  दिलचस्प यह रहा कि 2014 के लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार परमात्मा सिंह को महज 5,099 वोट मिले थे, जबकि लालू राय को करीब 10 हजार वोट मिले थे। यानी इस ‘नकली लालू’ ने AAP के उम्मीदवार को भी पीछे छोड़ दिया। वहीं, नोटा के पक्ष में 19,163 वोट पड़े थे। यह आंकड़ा दर्शाता है कि राजनीति में पहचान और नाम का असर कितना गहरा होता है, भले ही जीत हाथ न लगे।    Bihar Elections 2025

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बिहार में अचानक क्यों होने लगी प्रशांत किशोर और केजरीवाल की चर्चा?

बिहार में अचानक क्यों होने लगी प्रशांत किशोर और केजरीवाल की चर्चा?
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calendar10 OCT 2025 08:11 AM
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बिहार में राजनीतिक परिदृश्य में प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी चर्चा में है। चर्चा है कि वे एनडीए के समीकरणों को हिला सकते हैं। लेकिन हाल ही में उनका व्यवहार थोड़ा बदलता दिखाई दे रहा है। पत्रकारों के साथ बातचीत में वे जल्दी आपा खो देते हैं, और कुछ मामूली सवालों पर उलझ जाते हैं। यह संकेत हो सकता है कि या तो उन्हें सत्ता में आने का अहसास हुआ है, या उन्हें अब समझ में आया है कि उनकी पार्टी चुनावी मैदान में उतनी प्रभावी नहीं है जितना वे सोच रहे थे। पिछले दो साल से पीके बिहार में रोजगार, शिक्षा, भ्रष्टाचार मुक्त शासन और जातिविहीन राजनीति के मुद्दों को लेकर लगातार प्रयास कर रहे हैं, ताकि जनता में नई राजनीतिक चेतना पैदा हो।    Prashant Kishore

उनकी रणनीति दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की शुरुआती राजनीति से मिलती-जुलती है। जैसे केजरीवाल ने 2013 में अन्ना हजारे के आंदोलन की लहर पर सवार होकर दिल्ली की स्थापित पार्टियों को चुनौती दी और 2015 में शानदार जीत हासिल की, वैसे ही पीके भी 2022 से 5,000 किलोमीटर की पदयात्रा कर बिहार के गांव-गांव में घूम रहे हैं, भ्रष्टाचार के आरोप लगा रहे हैं और दावा कर रहे हैं कि 2025 में जनसुराज 243 में से 200 से अधिक सीटें जीत सकती है। लेकिन सवाल यह है कि क्या प्रशांत किशोर वास्तव में दिल्ली जैसी सफलता बिहार में दोहरा पाएंगे, या उन्हें अभी लंबा रास्ता तय करना होगा? जनता की उम्मीदें और बिहार की जमीनी राजनीतिक जटिलताएं इस परीक्षा को और चुनौतीपूर्ण बना रही हैं।    Prashant Kishore

1. बिहार और दिल्ली का सामाजिक-राजनीतिक अंतर

दिल्ली में अरविंद केजरीवाल को सफलता मिली क्योंकि उन्हें मध्यम वर्ग, प्रवासी मजदूर और भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलनों का जबरदस्त समर्थन मिला। फ्री बिजली‑पानी जैसी तत्काल लाभ देने वाली योजनाओं ने वोटरों में बदलाव की लहर पैदा कर दी। लेकिन बिहार का राजनीतिक परिदृश्य इससे बहुत अलग है। यहाँ चुनाव केवल मुद्दों या योजनाओं तक सीमित नहीं रहते; जाति निर्णायक भूमिका निभाती है। यादव, कुशवाहा, मुस्लिम और दलित जैसे जातिगत समीकरण वोटिंग पैटर्न तय करते हैं। प्रशांत किशोर का ‘जाति भूलो, रोजगार चुनो’ का नारा सुनने में तो प्रेरक लगता है, लेकिन जमीन पर इसका असर सीमित है। बिहार की राजनीति आज भी लालू यादव, नीतीश कुमार और बीजेपी के बीच बाइपोलर समीकरण के इर्द‑गिर्द घूमती है। इस माहौल में किसी नए राजनीतिक विकल्प को उतारना उतना आसान नहीं है जितना लगता है।

2. स्ट्रैटेजिस्ट बनाम एक्टिविस्ट

अरविंद केजरीवाल ने सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू की थी। सूचना के अधिकार और भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलनों में उनकी सक्रियता ने उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई और व्यापक समर्थन जुटाया। वहीं, प्रशांत किशोर की दुनिया बिल्कुल अलग है—वे चुनावी रणनीतिज्ञ के रूप में जाने जाते हैं। नरेंद्र मोदी, नीतीश कुमार, केजरीवाल और ममता बनर्जी जैसी बड़ी राजनीतिक हस्तियों के लिए उन्होंने रणनीतियाँ तैयार की हैं। उनकी छवि अधिकतर ‘कंसल्टेंट’ की रही है, जो रणनीति और डेटा पर भरोसा करते हैं, लेकिन बिहार के मतदाता परंपरागत रूप से ऐसे नेताओं को तरजीह देते हैं जिन्होंने संघर्ष, क्रांति और लोकनायक नेतृत्व का पाठ खुद लिखकर दिखाया हो।

3. संगठन और जमीनी ताकत का अंतर

दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने दो साल के लगातार आंदोलन के बाद एक मजबूत संगठन खड़ा कर लिया था। वहाँ के घनी आबादी वाले मोहल्लों में हर गली‑मुहल्ले में पार्टी के सक्रिय कार्यकर्ता दिखाई देते थे, और उनकी पैठ जनता में गहरी थी। लेकिन बिहार का परिदृश्य इससे बिल्कुल अलग है। यहाँ का विशाल क्षेत्र और विविध जनसंख्या जनसुराज पार्टी के लिए बड़ी चुनौती है। हालिया सर्वेक्षणों में पार्टी को सिर्फ 10‑12% वोट मिलने का अनुमान है, जिससे लगता है कि किंगमेकर बनने की राह अभी भी कठिन और लंबी है।

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4. आंदोलन और बड़े मुद्दों की कमी

अरविंद केजरीवाल के पास जन लोकपाल आंदोलन जैसी राष्ट्रीय स्तर की लहर थी, जिसने उनके लिए जनता में व्यापक समर्थन और पहचान पैदा की। वहीं, प्रशांत किशोर के पास ऐसा कोई बड़ा आंदोलन नहीं है, जो पूरे राज्य में पैठ बना सके। बिहार में तेजस्वी यादव और कांग्रेस जाति आधारित मुद्दों और आरक्षण की मांगों के साथ सक्रिय हैं, और ये मुद्दे सीधे मतदाता के दिल को छूते हैं। इसके मुकाबले जनसुराज अभी तक इन प्रमुख सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर व्यापक प्रभाव छोड़ने में असमर्थ दिख रही है, जिससे उनकी राज्य स्तर पर पकड़ कमजोर रह सकती है।    Prashant Kishore

5. रणनीति और राजनीतिक आक्रामकता

केजरीवाल की राजनीति की शुरुआत से ही स्कूल, अस्पताल और लोक कल्याण जैसे मुद्दों पर फोकस रहा, लेकिन उन्होंने कभी मोदी और शाह जैसे बड़े नेताओं को चुनौती देने से पीछे नहीं हटे। प्रशांत किशोर भी स्थानीय नेताओं पर आरोप-प्रत्यारोप के जरिए सक्रिय हैं, लेकिन राष्ट्रीय और राज्य स्तर के प्रमुख विरोधियों के खिलाफ उनकी चुनौती उतनी जोरदार नहीं दिखती। यही वजह है कि बिहार में नाराज और असंतुष्ट वोटरों को अपने पाले में खड़ा करना उनके लिए अभी बड़ी चुनौती बनी हुई है।    Prashant Kishore