पवन सिंह की बीजेपी वापसी: उपेंद्र कुशवाहा की मुहर क्यों जरूरी थी?

पवन सिंह की बीजेपी वापसी: उपेंद्र कुशवाहा की मुहर क्यों जरूरी थी?
locationभारत
userचेतना मंच
calendar01 OCT 2025 06:28 AM
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भोजपुरी सिनेमा के पावर स्टार पवन सिंह ने आखिरकार भारतीय जनता पार्टी (BJP)में अपनी वापसी कर ली है। इस वापसी की राह सीधे राष्ट्रीय लोक मोर्चा (RLM) प्रमुख और केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा के पास से होकर गुजरी। पवन सिंह ने पहले उपेंद्र कुशवाहा, फिर गृह मंत्री अमित शाह और बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात की। बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव और बिहार प्रभारी विनोद तावड़े ने कहा कि पवन सिंह हमेशा से बीजेपी में थे और अब पार्टी में सक्रिय भूमिका निभाएंगे। पवन सिंह ने इन मुलाकातों की तस्वीरें अपने सोशल मीडिया हैंडल पर साझा करते हुए लिखा कि उन्हें नेताओं का दिल से आशीर्वाद मिला और वह नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार के सपनों का बिहार बनाने में पूरी ताकत लगाएंगे।     Bihar News

क्यों कुशवाहा का आशीर्वाद बना जरूरी?

उपेंद्र कुशवाहा बीजेपी के नेता नहीं हैं, वे आरएलएम के प्रमुख हैं। फिर भी, पवन सिंह की पार्टी में वापसी के लिए उनकी सहमति अनिवार्य मानी गई। इसका कारण 2024 के लोकसभा चुनाव से जुड़ा है। उस चुनाव में पवन सिंह निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में काराकाट सीट से चुनाव लड़े और दूसरे नंबर पर रहे। उनकी सक्रियता के कारण उपेंद्र कुशवाहा को नुकसान उठाना पड़ा था, क्योंकि पवन सिंह को अधिक वोट मिले और कुशवाहा हार गए। बीजेपी ने उस समय डैमेज कंट्रोल के लिए पवन को छह साल के लिए पार्टी से बाहर किया और उपेंद्र कुशवाहा को राज्यसभा भेजा। अब, कुशवाहा की सहमति मिलने के बाद पवन की पार्टी में वापसी संभव हुई।

यह भी पढ़े: 2025 का दशहरा बनेगा 4 राशियों के लिए टर्निंग पॉइंट, शुरू होगा ‘गोल्डन टाइम’

बिहार की जातीय राजनीति का महत्व

बिहार की राजनीति जातीय समीकरणों के बिना अधूरी है। कुशवाहा कोइरी समुदाय के प्रमुख नेता हैं, जिनकी आबादी बिहार में लगभग 4.27 प्रतिशत है। बिहार में एनडीए का महत्वपूर्ण वोट बैंक “लव-कुश” समीकरण (कुर्मी-कोइरी) है, जो करीब 50 विधानसभा सीटों पर नतीजे तय करता है। पिछले कुछ चुनावों में कुर्मी वोटर्स ने नीतीश कुमार के साथ रहे, लेकिन कोइरी वोट बैंक अलग हो गया। 2020 में कुशवाहा विधायक महागठबंधन से जीते, जिससे एनडीए को नुकसान उठाना पड़ा। 2024 में भी कोइरी और कुर्मी वोटिंग पैटर्न में गिरावट आई।

बीजेपी की रणनीति: कुशवाहा को साथ रखना

पवन सिंह की वापसी से पहले उपेंद्र कुशवाहा के पास भेजकर बीजेपी ने यह संदेश दिया कि वह सहयोगी दलों और उनके वोटरों का सम्मान करती है। बिहार में कुशवाहा वोट बैंक की सियासी ताकत को देखते हुए, पार्टी ने उन्हें संतुष्ट करना आवश्यक समझा। इसके अलावा, नीतीश कुमार के बाद बिहार की राजनीति में एनडीए अपने विकल्प तैयार कर रही है। कुर्मी-कोइरी समीकरण को ध्यान में रखते हुए बीजेपी ने धर्मेंद्र प्रधान, केशव प्रसाद मौर्य और सीआर पाटिल को जिम्मेदारी सौंपी। धर्मेंद्र प्रधान कुर्मी, केशव मौर्य कोइरी और सीआर पाटिल मराठा/कुनबी समुदाय से आते हैं। इसका उद्देश्य बिहार में जातीय संतुलन साधते हुए चुनावी रणनीति को मजबूत करना है।    Bihar News

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भोजपुरी सिनेमा के पावर स्टार पवन सिंह ने आखिरकार भारतीय जनता पार्टी (BJP)में अपनी वापसी कर ली है। इस वापसी की राह सीधे राष्ट्रीय लोक मोर्चा (RLM) प्रमुख और केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा के पास से होकर गुजरी। पवन सिंह ने पहले उपेंद्र कुशवाहा, फिर गृह मंत्री अमित शाह और बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात की। बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव और बिहार प्रभारी विनोद तावड़े ने कहा कि पवन सिंह हमेशा से बीजेपी में थे और अब पार्टी में सक्रिय भूमिका निभाएंगे। पवन सिंह ने इन मुलाकातों की तस्वीरें अपने सोशल मीडिया हैंडल पर साझा करते हुए लिखा कि उन्हें नेताओं का दिल से आशीर्वाद मिला और वह नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार के सपनों का बिहार बनाने में पूरी ताकत लगाएंगे।     Bihar News

क्यों कुशवाहा का आशीर्वाद बना जरूरी?

उपेंद्र कुशवाहा बीजेपी के नेता नहीं हैं, वे आरएलएम के प्रमुख हैं। फिर भी, पवन सिंह की पार्टी में वापसी के लिए उनकी सहमति अनिवार्य मानी गई। इसका कारण 2024 के लोकसभा चुनाव से जुड़ा है। उस चुनाव में पवन सिंह निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में काराकाट सीट से चुनाव लड़े और दूसरे नंबर पर रहे। उनकी सक्रियता के कारण उपेंद्र कुशवाहा को नुकसान उठाना पड़ा था, क्योंकि पवन सिंह को अधिक वोट मिले और कुशवाहा हार गए। बीजेपी ने उस समय डैमेज कंट्रोल के लिए पवन को छह साल के लिए पार्टी से बाहर किया और उपेंद्र कुशवाहा को राज्यसभा भेजा। अब, कुशवाहा की सहमति मिलने के बाद पवन की पार्टी में वापसी संभव हुई।

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बिहार की जातीय राजनीति का महत्व

बिहार की राजनीति जातीय समीकरणों के बिना अधूरी है। कुशवाहा कोइरी समुदाय के प्रमुख नेता हैं, जिनकी आबादी बिहार में लगभग 4.27 प्रतिशत है। बिहार में एनडीए का महत्वपूर्ण वोट बैंक “लव-कुश” समीकरण (कुर्मी-कोइरी) है, जो करीब 50 विधानसभा सीटों पर नतीजे तय करता है। पिछले कुछ चुनावों में कुर्मी वोटर्स ने नीतीश कुमार के साथ रहे, लेकिन कोइरी वोट बैंक अलग हो गया। 2020 में कुशवाहा विधायक महागठबंधन से जीते, जिससे एनडीए को नुकसान उठाना पड़ा। 2024 में भी कोइरी और कुर्मी वोटिंग पैटर्न में गिरावट आई।

बीजेपी की रणनीति: कुशवाहा को साथ रखना

पवन सिंह की वापसी से पहले उपेंद्र कुशवाहा के पास भेजकर बीजेपी ने यह संदेश दिया कि वह सहयोगी दलों और उनके वोटरों का सम्मान करती है। बिहार में कुशवाहा वोट बैंक की सियासी ताकत को देखते हुए, पार्टी ने उन्हें संतुष्ट करना आवश्यक समझा। इसके अलावा, नीतीश कुमार के बाद बिहार की राजनीति में एनडीए अपने विकल्प तैयार कर रही है। कुर्मी-कोइरी समीकरण को ध्यान में रखते हुए बीजेपी ने धर्मेंद्र प्रधान, केशव प्रसाद मौर्य और सीआर पाटिल को जिम्मेदारी सौंपी। धर्मेंद्र प्रधान कुर्मी, केशव मौर्य कोइरी और सीआर पाटिल मराठा/कुनबी समुदाय से आते हैं। इसका उद्देश्य बिहार में जातीय संतुलन साधते हुए चुनावी रणनीति को मजबूत करना है।    Bihar News

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बिहार में फाइनल वोटर लिस्ट हुई जारी, क्या है आपका नाम?

बिहार में फाइनल वोटर लिस्ट हुई जारी, क्या है आपका नाम?
locationभारत
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calendar30 SEPT 2025 11:02 AM
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बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले चुनाव आयोग ने राज्य की फाइनल वोटर सूची जारी कर दी है। यह सूची राजनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण मानी जा रही है, क्योंकि वोटर लिस्ट में नाम दर्ज होना ही मतदान का अधिकार सुनिश्चित करता है। आयोग ने सभी पात्र मतदाताओं से अनुरोध किया है कि वे अपनी जानकारी की जांच अवश्य करें।  Bihar Assembly Elections 2025

आधिकारिक वेबसाइट पर प्रकाशित की फाइनल वोटर लिस्ट

चुनाव आयोग ने विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) प्रक्रिया पूरी होने के बाद मंगलवार, 30 सितंबर 2025 को फाइनल वोटर लिस्ट अपनी आधिकारिक वेबसाइट https://voters.eci.gov.in पर प्रकाशित की। आयोग के अनुसार, अब हर मतदाता अपनी प्रविष्टियों को ऑनलाइन चेक कर सकता है।SIR प्रक्रिया के तहत नए मतदाताओं के नाम जोड़े गए, मृतकों और डुप्लीकेट प्रविष्टियों को हटाया गया और जिन मतदाताओं ने अपना स्थानांतरण कराया था, उनके पते अपडेट किए गए। इस बार आयोग ने तकनीकी साधनों का विशेष उपयोग कर लिस्ट को और अधिक पारदर्शी और सटीक बनाने पर जोर दिया।

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SIR के बाद वोटर लिस्ट में बदलाव

SIR शुरू होने से पहले बिहार में कुल 7 करोड़ 89 लाख 69 हजार 844 मतदाता थे। इस प्रक्रिया के दौरान 65.63 लाख मतदाताओं के नाम काटे गए। SIR 25 जून 2025 से शुरू हुआ और 1 अगस्त को जारी फॉर्मेट लिस्ट में 7 करोड़ 24 लाख 5 हजार 756 मतदाताओं के नाम दर्ज थे, जिसमें 65.63 लाख नाम काटे गए थे। फॉर्मेट लिस्ट जारी होने के बाद चुनाव आयोग ने करीब 3 लाख मतदाताओं को नोटिस भेजा।

इसमें 2.17 लाख लोगों ने अपने नाम हटवाने के लिए आवेदन किया, जबकि 16.93 लाख लोगों ने अपने नाम जोड़ने के लिए आवेदन प्रस्तुत किया। चुनाव आयोग ने सभी मतदाताओं से आग्रह किया है कि वे जल्द से जल्द अपनी प्रविष्टियों की पुष्टि कर लें, ताकि मतदान के दिन किसी भी प्रकार की परेशानी न हो।      Bihar Assembly Elections 2025