बिहार चुनाव में प्रशांत किशोर जीरो अथवा हीरो


बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण की वोटिंग 6 नवंबर को होनी है, लेकिन उससे पहले ही जन सुराज आंदोलन के संस्थापक और देश के सबसे चर्चित चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर एक बड़े विवाद में उलझते नजर आ रहे हैं। चुनाव आयोग के ताज़ा रिकॉर्ड में जो खुलासा हुआ है, उसने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है। रिपोर्ट्स के अनुसार, प्रशांत किशोर का नाम दो राज्यों बिहार और पश्चिम बंगाल दोनों की वोटर लिस्ट में दर्ज पाया गया है। इंडियन एक्सप्रेस की एक विशेष रिपोर्ट ने इस विवाद को हवा दी है। Prashant Kishore
रिपोर्ट बताती है कि कोलकाता के 121, कालीघाट रोड पते पर भी प्रशांत किशोर का नाम मतदाता के रूप में मौजूद है — यह वही प्रतिष्ठित पता है जहां तृणमूल कांग्रेस (TMC) का मुख्यालय स्थित है। संयोग से यह इलाका मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के विधानसभा क्षेत्र भवानीपुर के अंतर्गत आता है। दिलचस्प बात यह है कि 2021 के विधानसभा चुनाव में इसी ममता बनर्जी की जीत सुनिश्चित करने की रणनीति प्रशांत किशोर ने तैयार की थी। Prashant Kishore
बंगाल में ममता बनर्जी की जीत की रणनीति गढ़ने वाले प्रशांत किशोर अब खुद चुनावी नियमों के जाल में फंसते नज़र आ रहे हैं। जानकारी के मुताबिक, 2021 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के दौरान प्रशांत किशोर ने तृणमूल कांग्रेस (TMC) के लिए चुनावी रणनीतिकार के तौर पर काम किया था और उस वक्त उनका मतदान केंद्र कोलकाता के सेंट हेलेन स्कूल, बी. रानीशंकारी लेन में दर्ज था। लेकिन अब यह खुलासा हुआ है कि बिहार के रोहतास जिले के कोंअर गांव की वोटर लिस्ट में भी उनका नाम शामिल है। यह वही गांव है जहां से प्रशांत किशोर का पैतृक नाता जुड़ा है। यह इलाका ससाराम संसदीय क्षेत्र के करगहर विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आता है और यहां उनका मतदान केंद्र माध्य विद्यालय, कोंअर बताया गया है। Prashant Kishore
कानूनी दृष्टि से देखें तो यह मामला गंभीर है। जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 17 के मुताबिक, किसी व्यक्ति का नाम एक से अधिक निर्वाचन क्षेत्रों में दर्ज नहीं हो सकता। वहीं, धारा 18 साफ कहती है कि कोई भी व्यक्ति एक ही क्षेत्र में दो बार वोटर के रूप में रजिस्टर्ड नहीं हो सकता। ऐसे में यदि कोई नागरिक अपना निवास बदलता है, तो उसे Form 8 भरकर पुराने पते से नाम हटाने की कानूनी प्रक्रिया पूरी करनी होती है। Prashant Kishore
वोटर लिस्ट विवाद पर खुद प्रशांत किशोर ने अब तक चुप्पी साध रखी है, लेकिन उनकी टीम ने इस पर अपनी सफाई पेश की है। इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, जन सुराज टीम के एक वरिष्ठ सदस्य ने बताया कि “बंगाल चुनाव के बाद प्रशांत किशोर ने बिहार में नया वोटर कार्ड बनवाया था और साथ ही बंगाल वाले कार्ड को रद्द कराने के लिए आवेदन भी दिया था।” हालांकि, यह सदस्य यह बताने से बच गया कि क्या चुनाव आयोग ने बंगाल की वोटर लिस्ट से उनका नाम वाकई हटा दिया है या नहीं। इस पर जब मीडिया ने बिहार के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी विनोद सिंह गुंजियाल से प्रतिक्रिया लेनी चाही, तो उन्होंने भी इस मसले पर किसी तरह की टिप्पणी करने से इनकार कर दिया।
भवानीपुर के वार्ड नंबर 73 की स्थानीय पार्षद और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की भाभी काजरी बनर्जी ने इस विवाद से तृणमूल कांग्रेस को पूरी तरह अलग बताते हुए कहा - 121, कालीघाट रोड तृणमूल कांग्रेस का दफ्तर है। प्रशांत किशोर यहां पार्टी के काम से अक्सर आते-जाते थे, लेकिन यह नहीं कह सकती कि उन्होंने यहीं से वोटर कार्ड बनवाया था या नहीं। यानी, TMC ने साफ किया है कि इस मामले से पार्टी का कोई प्रत्यक्ष संबंध नहीं है। वहीं, सीपीएम (CPM) ने इस मुद्दे पर पहले से ही हमला बोल रखा है। पार्टी के वरिष्ठ नेता बिस्वजीत सरकार ने खुलासा किया कि उन्होंने पिछले साल ही चुनाव आयोग को पत्र लिखकर शिकायत दर्ज कराई थी। उनका कहना था - प्रशांत किशोर इस क्षेत्र के निवासी नहीं हैं, इसलिए उनका नाम भवानीपुर की वोटर लिस्ट से हटाया जाना चाहिए।
देशभर में मतदाता सूची को शुद्ध करने के लिए चुनाव आयोग ने विशेष सघन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision - SIR) अभियान की शुरुआत की है। इस पहल का मकसद है — ऐसे दोहरे या फर्जी वोटरों की पहचान करना, जिनके नाम अलग-अलग जगहों पर दर्ज हैं। सिर्फ बिहार में ही इस सघन जांच अभियान के दौरान 68.66 लाख नाम हटाए गए, जिनमें से करीब 7 लाख मतदाता ऐसे पाए गए जिनके नाम दो अलग-अलग स्थानों पर दर्ज थे। आयोग का मानना है कि यह अभियान मतदाता सूची की पारदर्शिता और विश्वसनीयता बनाए रखने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है ताकि लोकतंत्र की सबसे बड़ी प्रक्रिया, मतदान, पूरी ईमानदारी और निष्पक्षता से संपन्न हो सके। Prashant Kishore
बिहार विधानसभा चुनाव के ऐन पहले प्रशांत किशोर पर उठा यह विवाद उनकी पार्टी जन सुराज के लिए चुनावी सिरदर्द बनता जा रहा है। जनभावनाओं से जुड़ने और ईमानदार राजनीति की बात करने वाले पीके अब खुद चुनाव आयोग के सवालों के घेरे में हैं। अगर यह साबित हो गया कि उन्होंने जानबूझकर दो राज्यों बिहार और बंगाल की वोटर लिस्ट में नाम दर्ज कराया, तो आयोग उन्हें अयोग्य घोषित कर सकता है। इतना ही नहीं, मामला कानूनी कार्रवाई तक भी पहुंच सकता है, जो उनकी राजनीतिक साख पर सीधा असर डाल सकता है। फिलहाल, सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि प्रशांत किशोर इस ‘डबल वोटर’ विवाद पर क्या जवाब देते हैं, और क्या जन सुराज इसे सिर्फ एक तकनीकी गलती बताकर राजनीतिक नुकसान से बच पाएगी या नहीं। Prashant Kishore


