MSP Guarantee Law किसानों के लिए एमएसपी गारंटी कानून लागू करने के सवाल को क्यों टाल गए राहुल गाँधी

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locationभारत
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calendar10 Jan 2023 04:41 PM
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MSP Guarantee Law / अशोक बालियान, चेयरमैन, पीजेंट वेलफेयर एसोसिएशन

MSP Guarantee Law : कांग्रेस पार्टी के नेता राहुल गाँधी ने अपनी भारत जोड़ो यात्रा के दौरान करनाल-कुरुक्षेत्र सीमा पर समानाबाहू गांव के पास पत्रकार वार्ता की थी। इस वार्ता ने जब एक पत्रकार ने राहुल गाँधी से सवाल किया कि आपने देश में कृषि कानून विरोधी आंदोलन का समर्थन था और इस आन्दोलन में किसानों की एमएसपी गारंटी की मांग व डॉ. स्वामीनाथन तिपोर्ट लागू करने की मांग भी थी, आपकी सरकार ने भी वर्ष 2006 में आयी स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट लागू नहीं की थी? क्या यदि आपकी सरकार आती है तो आप स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट को लागू करेंगे और एमएसपी पर गारंटी देंगे? किसानों के मुद्दे पर केंद्र सरकार पर लगातार हमलावर पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी एमएसपी पर गारंटी देने व डॉ. स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट लागू करने के सवाल को टालते हुए कहा कि यह चर्चा हम अपनी चुनावी मेनिफेस्टो कमेटी में करते हैं। डॉ. स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट आने के बाद 8 वर्ष तक देश में कांग्रेस पार्टी की सरकार रही थी। इस रिपोर्ट को आये हुये 16 वर्ष हो चुके है, लेकिन राहुल गांधी की पार्टी ने अभी तक इस पर विचार ही नहीं किया।

MSP Guarantee Law

कांग्रेस पार्टी के नेता राहुल गाँधी के पत्रकार वार्ता में दिए गए इस बयान से किसान संगठन इस बात से हैरान है कि राहुल गांधी किसान आन्दोलन का समर्थन किस बात को लेकर कर रहे थे या केवल मोदी सरकार का विरोध कर किसानों को गुमराह कर रहे थे। राहुल गाँधी के इस बयान के बाद भी उनकी इस भारत जोड़ो यात्रा में संयुक्त किसान मोर्चा के नेता योगेंद्र यादव और पत्रकार रवीश कुमार सहित कई किसान नेता शामिल हुए और करीब एक किलोमीटर तक राहुल गाँधी साथ चले। इससे पता चलता है कि ये कथित किसान नेता अपना राजनीतिक स्वार्थ पूरा करने के लिए किसानों को गुमराह कर रहे हैं। राहुल गांधी ने किसान हित के तीनों कृषि कानूनों का विरोध सिर्फ राजनीतिक मकसद से किया था। देश में मोदी सरकार किसानों को किसान सम्मान निधि के रूप में सीधा 6 हजार रूपये की सहायता प्रतिवर्ष कर रही है और डॉ स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट को भले ही आंशिक रूप से स्वीकार किया, लेकिन इससे किसानों को उनकी लागत का डेढ गुणा देने का मार्ग प्रशस्त हुआ है। राहुल गांधी भी बताएं कि यूपीए के 10 वर्ष के कार्यकाल में कितने पैसे किसानों को दिए गए? और डॉ स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट पर उनकी सरकार ने क्या किया था। कांग्रेस पार्टी के नेता राहुल गाँधी, मोदी के साथ जोड़कर जिन उद्योगपतियों का नाम ले रहे हैं क्या वे केवल साढ़े चार साल में पैदा हुए है। देश में उद्योगपति पहले से ही है। जब इंदिरा गांधी थी, राजीव गांधी थे, तब भी ये उद्योगपति थे। क्या उद्योगपति देश से बाहर चले जाएं। यदि कोई उद्योगपति कोई गलती करे तब सवाल उठाना चाहिए, विपक्ष का काम भी यह है। लेकिन बिना सोचे विचारे सिर्फ सत्ता की लालसा में किसानों को गुमराह करना ठीक नहीं है। तीनों कृषि कानूनों के आने के बाद देश में किसानों को अपनी फसल बेचने के एक से अधिक विकल्प मिल गए थे, लेकिन किसानों को गुमराह करने के लिए देश की कांग्रेस पार्टी भी जिम्मेदार है। संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं व विपक्षी नेताओं ने आजतक ये नहीं बताया कि इन कृषि कानूनों के कौन से प्रावधान से किसानों को नुकसान पहुंच रहा था और किस प्रावधान के तहत पूंजीपतियों को फायदा हो रहा था। और न ये बताया कि इन कानूनों के किस प्रावधान से किसानों की जमीन छीन जाती व किस प्रावधान से पूंजीपति किसान की जमीन पर ऋण ले लेता। देश के किसानों को इन बातों को समझना होगा कि संयुक्त किसान मोर्चा के किसान नेता अपने स्वार्थ में विपक्ष के साथ मिलकर उन्हें गुमराह कर रहे है और उनके हित में लिए जा रहे मोदी सरकार के निर्णयों को उनके विरुद्ध बताकर उनका विरोध कर किसान को पीछे धकेल रहे है। संयुक्त किसान मोर्चा में अनेकों वही चेहरे है, जो विदेशी नागरिकता संशोधन कानून में शाहीन बाग में आन्दोलन को हवा दे रहे थे।

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Brazil : लोकतंत्र : दो धारी तलवार

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Brazil
locationभारत
userचेतना मंच
calendar02 Dec 2025 04:45 AM
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[caption id="attachment_57296" align="alignleft" width="150"] अंशु नैथानी[/caption]

Brazil : अंशु नैथानी 8 जनवरी 2023 ,रविवार के दिन ब्राजील की राजधानी ब्रासिलया में पूर्व राष्ट्रपति बोलसोनारो के समर्थकों ने ब्राजील की पार्लियामेंट, सुप्रीम कोर्ट और मिनिस्टर्स के लिए बने भवनों मे तोडफ़ोड़ करते हुए बलपूर्व प्रवेश किया और काफी उत्पात भी मचाया। दुनियाभर में यह खबर छाई हुई है। बोलसोनारो के समर्थकों का आरोप है कि ब्राजील में पिछले दिनो संपन्न हुए राष्ट्रपति चुनाव में लूला धांधली के कारण चुनाव जीते हैं, वे इसे बर्दाश्त नही करेंगे। बोलसोनारो सहित उनके धुर दक्षिणपंथी समर्थक चुनाव हारने के बाद से ही सोशल मिडिया पर यह दुष्प्रचार करते आ रहे हैं कि ब्राजील के अभिजात वर्ग और मिडिया ने गोलबंदी कर चुनाव को न सिर्फ प्रभावित किया, बल्कि चुनाव के परिणामों में भी हेरफेर की गई। इसी बात को अफवाह और झूठी ख़बर (fake news) के तौर पर फैलाया गया और विजयी राष्ट्रपति लूला को सत्ता से हटाने का षडयंत्र रचते रहे, जिसका दुष्परिणाम लोकतांत्रिक व्यवस्था में वैध रूप से चुनी गई सरकार को अपदस्थ करने का कुत्सित प्रयास किया जा रहा है! हालांकि ब्राजील में परिस्थिति अभी नियंत्रण में है, लेकिन धुर दक्षिणपंथी शक्तियां फासिस्ट विचारधारा को अपना हथियार बनाकर लोगों के बीच लोकतांत्रिक तरीके से चुनाव जीतने वाले लूला को हटाने पर आमदा हैं। बोलसोनारो के समर्थकों की मांग है कि ब्राजील की सेना हस्तक्षेप कर

Brazil

राष्ट्रपति लूला को पदभार लेने से रोके। ब्राजील की घटना ने दो साल पहले 06 जनवरी 2021 को अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के परिणाम की घोषणा के बाद की घटना को लोगों के जेहन में फिर से ताजा कर दिया है। 06 जनवरी 2021 को यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका के

‘कैपिटल हिल’ बिल्डिंग पर डोनाल्ड ट्रम्प के समर्थकों ने उत्पात मचाते हुए सारी सुरक्षा व्यवस्था को तोडक़र बिल्डिंग के अन्दर घुस कर तबाही मचाई थी। विश्व के सबसे मजबूत लोकतांत्रिक राष्ट्र अमेरिका के इतिहास में यह एक अप्रत्याशित घटना थी, जिससे पूरा विश्व हतप्रभ रह गया! फासिस्ट ताकतें धुर दक्षिणपंथी खेमों के सहारे अलग-अलग रूप में लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को धता बताते हुए कई देशों में सत्ता पर क़ाबिज है और कई देशों में ट्रम्प और बोलसोनारो जैसों की समर्थक शक्तियां लोकतांत्रिक व्यवस्था को ध्वस्त करने पर आमादा हैं।

लोकतांत्रिक अधिकार दो धारी तलवार आखिर सवाल उठता है कि लोकतंत्र की सफल कार्यशैली का परीक्षण क्या है? लोकतंत्र में संवैधानिक व्यवस्था के तहत पारदर्शी और निष्पक्ष चुनाव का संपन्न होना। इसके लिए हरेक देश में चुनाव संपन्न कराने के लिए स्वायत्त संस्थाएं कार्य करती है। भारत में यह काम भारतीय निर्वाचन आयोग करता है। लेकिन समय-समय पर निर्वाचन आयोग की कार्यशैली पर सवाल उठते रहे हैं। लोकतांत्रिक व्यवस्था में ऐसा द्वन्द यह भी सवाल खड़ा करता है कि चुनाव कितना निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से संपन्न हुआ है। अगर सत्ताधारी दल और चुनाव आयोग की सांठगांठ (nexus) को लेकर विवाद खड़ा होता है तो सुप्रीम कोर्ट को इस बाबत विशेष निगरानी बनाये रखना चाहिए और मामले को गंभीरता से देखना चाहिए।

[caption id="attachment_57295" align="alignnone" width="670"]Brazil Brazil[/caption]

पश्चिम के लोकतंत्र में ये बहुत हदतक सफल रहा है, लेकिन वहां भी काफी घालमेल देखने को मिल रहा है। धुरदक्षिणपंथियों ने अलग-अलग तरीके से सत्ता हथियाने का अनोखा तरीका निकाला है। विश्व की बड़ी शक्तियों में गिने जाने वाले देश- रूस और चीन में सत्ता पर एक ही व्यक्ति का लंबे समय से शासनाध्यक्ष बने रहना, न सिर्फ लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए खतरनाक है, बल्कि विश्व शांति के लिए भी अच्छी बात नही है। यहां यह उल्लेख करना आवश्यक है कि इस बात से अमेरिका को क्लिन-चिट नही दी जा सकती है। यूक्रेन युद्ध को अमेरिका ने किस तरह रूस के साथ छद्म युद्ध का रूप दे रखा है, कोई छिपी हुई बात नही है। अमेरिका अपने सामरिक और आर्थिक हितों की खातिर पूरे विश्व में बहरूपिये की तरह अपनी चाल चलता रहता है। उसे वहां लोकतांत्रिक व्यवस्था से कोई सरोकार नही है, अपना हित साधने के लिए वह कभी तानाशाहों का समर्थन करता है, तो कभी लोकतंत्र के नाम पर कठपुतली सरकार चलाना चाहता है। विश्व के दर्जनों देश में धुरदक्षिणपंथियों का वर्चस्व बढ़ा है। खासकर यूरोपीय देश- इटली, फ्रांस, स्वीडन, हंगरी,पोलैंड। यूरोप की राजनीति में राष्ट्रवाद एक विशेषता के तौर पर रही है। लेकिन हाल के वर्षों में मतदाताओं के कुछ खास वर्गों का समर्थन राईट विंग और पॉपयुलिस्ट पार्टियों की तरफ रहा है। यह ट्रेंड लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नही है और न ही यह विश्व शांति की दिशा मे साकारात्मक माना जायेगा। ब्राजील की घटना पर भारत के प्रधानमंत्री, नरेन्द्र मोदी ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि ‘प्रजातांत्रिक परम्परा का सम्मान हर किसी को करना चाहिए’। अमेरिका में डेमोक्रेट पार्टी को मेरीलैंड से प्रतिनिधित्व करने वाले जैमी रस्किन कहते हैं कि ‘ विश्व भर के प्रजातंत्रों को आवश्यक रूप से जल्द कदम उठाना चाहिए कि ब्राजील कांग्रेस को खत्म करने के लिए धुरदक्षिणपंथी विद्रोह को किसी तरह का कोई समर्थन नहीं है। ट्रम्प के 06 जनवरी 2021 के बाद दंगाई फासिस्ट मॉडल की जगह जेल की सलाखों के पीछे है’।

लेखिका : वरिष्ठ पत्रकार व चेतना मंच की मैनेजिंग एडिटर हैं।

Bharat Jodo Yatra : भाकियू नेता राकेश टिकैत भारत जोड़ो यात्रा में हुए शामिल

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Gender Equality : नहीं थम रहा महिलाओं से लैंगिक भेदभाव

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Gender Equality: Gender discrimination against women is not stopping
locationभारत
userचेतना मंच
calendar29 Nov 2025 09:30 PM
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  [caption id="attachment_56543" align="alignnone" width="156"]संजीव रघुवंशी संजीव रघुवंशी (वरिष्ठ पत्रकार)[/caption] Gender Equality :  लैंगिक समता के मामले में भारत 146 देशों में से 135 वें पायदान पर है। हद तो यह है कि दक्षिण एशिया में सिर्फ पाकिस्तान और अफगानिस्तान ही हमसे पीछे हैं। रिपोर्ट की  समता सूची बताती है कि हम बांग्लादेश से 60 पायदान पीछे हैं, जबकि नेपाल से 39, श्रीलंका से 25, मालदीव से 18 और भूटान से 9 पायदान पीछे हैं। महिला स्वास्थ्य और जीवन प्रत्याशा के लिहाज से तो हमारी स्थिति एकदम गई-गुजरी है।

Gender Equality:

पिछले दिनों राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में सम्पन्न एक विवाह परिचय सम्मेलन में जाना हुआ। इस सम्मेलन में तकरीबन 400 परिवार एक-दूसरे से मिले और एक-दूसरे को जाना। इस सम्मेलन में एक बात जो उभरकर सामने आयी, वह यह थी कि करीब 80 फीसदी परिवार ऐसे थे, जिन्हें उच्चशिक्षित बहू तो चाहिए थी, लेकिन उनकी एक शर्त थी कि  बहु नौकरी नहीं करेगी। हो सकता है, कहने-सुनने में ये छोटी-सी बात लगे, लेकिन यह बात वास्तव में समाज की सोच का एक बड़ा नमूना है। एक ऐसा नमूना, जो हमें आईना दिखाता है, जो हमें बताता है कि महिलाओं को लेकर हमारी सोच में आजादी के 75 सालों बाद भी कोई खास बदलाव नहीं आया। हैरानी की बात तो यह है कि देश की सबसे विश्वस्त संस्था ‘सेना’ की भी कमोवेश यही सोच है। शायद इसीलिए सुप्रीम कोर्ट ने 9 दिसंबर 2022 को दिये अपने फैसले में सेना से अपना घर दुरुस्त करने को कहा है। वास्तव में यह फैसला उन 34 महिला सैन्य अधिकारियों से जुड़ा है, जिन्होंने याचिका दायर करके सेना पर यह आरोप लगाया था कि लड़ाकू और कमांडिंग भूमिकाओं से जुड़े प्रमोशन में उनकी अनदेखी की जा रही है। उनके बजाय जूनियर पुरुष अफसरों को प्रमोशन दिया जा रहा है। याचिका दायर करने वाली सैन्य अधिकारियों में कमांडर रैंक की दो अधिकारी शामिल हैं। ये सिर्फ प्रमोशन में अनदेखी करने भर का मामला नहीं है। महिला अधिकारियों को सुप्रीम कोर्ट के फरवरी 2020 के आदेश के बाद सेना ने स्थायी कमीशन दिया। इससे पहले वे सिर्फ शॉर्ट सर्विस कमीशन के तहत अधिकतम 14 साल तक ही अपनी सेवाएं दे सकती थीं। महिला सैन्य अधिकारियों को स्थायी कमीशन के लिए लंबी लड़ाई लडऩी पड़ी और अब पदोन्नति के लिए फिर वही जद्दोजहद करनी पड़ रही है। इन अधिकारियों का आरोप है कि स्थायी कमीशन मिलने से अब तक तकरीबन 1200 जूनियर पुरुष अधिकारियों को प्रमोशन दिया जा चुका है, लेकिन उनकी लगातार अनदेखी हो रही है। अगर वरिष्ठ पदों पर महिलाओं के साथ इस तरह भेदभाव हो रहा है तो इस आशंका को खारिज नहीं किया जा सकता कि निचले पायदान की महिला सैन्य कर्मी इससे कहीं अधिक भेदभाव की शिकार हैं। इस बात को देश की सबसे बड़ी संवैधानिक संस्था संसद में भी महिलाओं की स्थिति से समझा जा सकता है। संसद में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण देने का मामला ढाई दशक से भी ज्यादा समय से अलग-अलग वजहों के चलते अटका हुआ है। संसद में 15वीं लोकसभा के दौरान 9 मार्च 2010 में महिलाओं को आरक्षण से जुड़ा प्रस्ताव लाया गया तो उस समय लोकसभा में कई नेताओं ने इसका जबरदस्त विरोध किया था। जिस वजह से यह पास नहीं हो सका। इसके बाद कई बार इसके लिए संसद में आह्वïान हुए। महिलाओं के पक्ष में बड़ी-बड़ी बातें की गईं, लेकिन आज तक यह बिल पास नहीं हुआ और बहुत कम संभावना है कि मौजूदा 17वीं लोकसभा में भी यह प्रस्ताव पास हो जाए, क्योंकि लोकसभा के पांच साल के कार्यकाल के बाद अगर कोई बिल पास नहीं होता तो वह स्वत: रद्द हो जाता है। उसे पास कराने के लिए फिर नये सिरे से सदन में पेश करना होता है। कम ही उम्मीद है कि बार-बार इस बिल को संसद में पेश करने की कोई जहमत उठायेगा और इसे सांसद पास कर देंगे। यह उम्मीद इसलिए कम है, क्योंकि पार्टियां भले वह कोई हो, संसद में महिलाओं की संख्या बहुत कम है। 17वीं लोकसभा में कुल 78 महिला सांसद चुनकर आयी थीं, जो अब तक के चुनावी इतिहास में सबसे ज्यादा थीं। हां, राज्यसभा और लोकसभा की महिला सांसदों को एक कर दिया जाए तो यह पहला ऐसा मौका है जब उनकी संख्या 100 से ज्यादा है। लेकिन औसत के हिसाब से दुनिया के कई देशों के मुकाबले भारतीय संसद में महिलाओं की उपस्थिति बहुत कम है। स्थानीय निकायों में महिलाओं की स्थिति अच्छी है, क्योंकि वहां 33 फीसदी का आरक्षण है, जिस कारण देश की पंचायतों के 22 लाख निर्वाचित प्रतिनिधियों में से 9 लाख से ज्यादा महिलाएं हैं और तिहरे स्तर वाली पंचायत प्रणाली में 59 हजार से अधिक महिला अध्यक्ष हैं। ऐसा इसलिए संभव हुआ, क्योंकि यहां महिलाओं के लिए आरक्षण है। यह आरक्षण पहले 33 फीसदी था, मगर अब 28 में से 21 राज्यों में यह 33 से बढक़र 50 फीसदी हो गया है। सवाल है, नीति निमार्ताओं की संस्था लोकसभा में महिलाएं क्यों 33 फीसदी नहीं हैं? वल्र्ड इकोनॉमिक फोरम की ओर से पेश वैश्विक लैंगिक भेदभाव रिपोर्ट-2022 भी इस बात की चुगली करती है कि भारतीय समाज में अभी जबरदस्त पुरुषवादी सोच हावी है। लैंगिक समता के मामले में भारत 146 देशों में से 135 वें पायदान पर है। हद तो यह है कि दक्षिण एशिया में सिर्फ पाकिस्तान और अफगानिस्तान ही हमसे पीछे हैं। रिपोर्ट की  समता सूची बताती है कि हम बांग्लादेश से 60 पायदान पीछे हैं, जबकि नेपाल से 39, श्रीलंका से 25, मालदीव से 18 और भूटान से 9 पायदान पीछे हैं। महिला स्वास्थ्य और जीवन प्रत्याशा के लिहाज से तो हमारी स्थिति एकदम गई-गुजरी है। इस कसौटी में भारत 146 देशों में सबसे पीछे है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि वर्तमान आंकड़ों को देखते हुए भारत में लैंगिक भेदभाव की खाई पाटने के लिए 132 साल लग जाएंगे। हालांकि रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है कि महिला सांसदों, विधायकों, प्रबंधकों और वरिष्ठ अधिकारियों की हिस्सेदारी पिछले एक साल में 14.6 फीसदी से बढक़र 17.6 फीसदी हो गई है। लेकिन सवाल है, क्या ये संतोषजनक है? आर्थिक  विशेषज्ञों का आकलन बताता है कि कोरोना काल में 40 फीसदी महिलाओं को छंटनी के नाम पर नौकरी से हाथ धोना पड़ा और बाद में इन महिलाओं में से सिर्फ 7 फीसदी ही दोबारा से जॉब हासिल कर पायी। मतलब, कोरोना ने 33 फीसदी महिलाओं का रोजगार छीन लिया और वे घर की चाहरदीवारी में कैद होकर रह गई। वैसे, साल-2022 के जाते-जाते कुछ सुखद खबरें भी आयी हैं। मसलन, उत्तर प्रदेश के मिजापुर जिले के छोटे से गांव जसोवर की सानिया मिर्जा का एनडीए में फाइटर पायलट की ट्रेनिंग के लिए चयन हुआ है। सानिया मुस्लिम समाज की पहली ऐसी लडक़ी हैं, जो फाइटर जेट उड़ाएंगी। पेशे से टीवी मैकेनिक शाहिद अली की बेटी सानिया की प्रेरणा स्रोत हैं, देश की पहली महिला फाइटर अवनी चतुर्वेदी। सानिया ने यह उपलब्धि यूपी बोर्ड से पढक़र हासिल की है, जिससे उनकी मेहनत का अंदाजा लगाया जा सकता है। इसी तरह, प्रियंका शर्मा यूपी रोडवेज की पहली महिला ड्राइवर बनी हैं। इससेपहले उन्होंने ट्रक ड्राइवर का भी काम किया है। उधर, सेना की कैप्टन शिवा चौहान ने भी बड़ी उपलब्धि हासिल की है। वे दुनिया की सबसे ऊंची युद्घभूमि सियाचीन में तैनात होने वाली पहली महिला अफसर बन गई हैं। ये उपलब्धिपूर्ण खबरें उम्मीदें तो जगाती हैं लेकिन महिलाओं की कामयाबी की रफ्तार में समाज की सोच आडे आ ही जाती है। इस सोच को बदलने की जरूरत है ताकि लैंगिक भेदभाव को जल्द से जल्द जड़ से मिटाया जा सके।

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