क्यों विशेष है इस बार करवा चौथ का व्रत? पांच साल बाद बना ऐसा योग

Karwa chauth 2021 1
karwa chauth 2021
locationभारत
userचेतना मंच
calendar22 Oct 2021 09:30 AM
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- मदन गुप्ता सपाटू, ज्योतिर्विद्, चंडीगढ़

कार्तिक कृष्ण पक्ष में करक चतुर्थी अर्थात करवा चौथ (karwa chauth 2021)  का लोकप्रिय व्रत सुहागिन और अविवाहित स्त्रियां (married and unmarried women) पति की मंगल कामना एवं दीर्घायु के लिए निर्जल रखती हैं। इस दिन न केवल चंद्र देवता की पूजा होती है अपितु शिव-पार्वती और कार्तिकेय की भी पूजा की जाती है। इस दिन विवाहित महिलाओं और कुंवारी कन्याओं के लिए गौरी पूजन का भी विशेष महात्म्य है। आधुनिक युग में चांद से जुड़ा यह पौराणिक पर्व महिला दिवस से कम नहीं है जिसे पति व मंगेतर अपनी अपनी आस्थानुसार मनाते हैं।

क्यों है खास इस बरस करवा चौथ ?

व्यावहारिक दृष्टि से इस बार कृष्ण पक्ष की चतुर्थी 24 तारीख, दिन रविवार को पड़ रही है, जब अधिकांशतः कार्यालयों तथा व्यापारिक प्रतिष्ठानों में अवकाश होता है। इसलिए कामकाजी महिलाओं के लिए, व्रत रखना सुगम रहेगा। दूसरे ज्योतिषीय दृष्टि से करवा चौथ पर चंद्रमा अपने सर्वप्रिय नक्षत्र रोहिणी में उदित होंगे जो अत्यंत शुभ माना जाता है, क्योंकि इस दिन चंद्र दर्शन से बहुत सी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। यह संयोग पांच साल बाद बन रहा है। यदि करवा चौथ रविवार या मंगलवार को पड़े तो यह कर्क चतुर्थी अधिक शुभ एवं शक्तिशाली मानी जाती है।

अंक शास्त्र के अनुसार इस वर्ष करवा 24 तारीख को है अर्थात 6 का अंक जो शुक्र का प्रतिनिधित्व करता है। शुक्र ग्रह ,महिलाओं, सुहाग, ऐश्वर्य, विलासिता,पति- पत्नी के संबंधों का प्रतीक है, इसलिए भी इस बार का व्रत बहुत सौभाग्य शाली होगा। जिनका जन्म 6,15,24 तारीखों या शुक्रवार को हुआ है, वे यह व्रत अवश्य रखें।

कब निकलेगा चांद ? चतुर्थी रविवार को सुबह 3 बजे आरंभ होगी और 25 अक्तूबर, सोमवार की सुबह 5 बजकर 43 मिनट तक रहेगी। रविवार को चांद सायंकाल 8 बजकर 03 मिनट पर निकलेगा परंतु सपष्ट रुप से साढ़े 8 बजे के बाद ही नजर आएगा।

पूजन का शुभ समय

सायंकाल 7 बजे से 9 बजे तक रहेगा।

कैसे करें पारंपरिक व्रत? प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करके पति,पुत्र,पौत्र,पत्नी तथा सुख सौभाग्य की कामना की इच्छा का संकल्प लेकर निर्जल व्रत रखें। शिव ,पार्वती, गणेश व कार्तिकेय की प्रतिमा या चित्र का पूजन करें। बाजार में मिलने वाला करवा चौथ का चित्र या कैलेंडर पूजा स्थान पर लगा लें। चंद्रोदय पर अर्घ्य दें। पूजा के बाद तांबे या मिटट्ी के करवे में चावल, उड़द की दाल भरें।

सुहाग की सामग्री

कंघी,सिंदूर ,चूड़ियां,रिबन, रुपये आदि रखकर दान करें। सास के चरण छूकर आर्शीवाद लें और फल, फूल, मेवा, बायन, मिष्ठान,बायना, सुहाग सामग्री, 14पूरियां,खीर आदि उन्हें भेंट करें। विवाह के प्रथम वर्ष तो यह परंपरा सास के लिए अवश्य निभाई जाती है। इससे सास- बहू के रिश्ते और मजबूत होते हैं।

करवा चौथ की पूजा विधि?

- करवा चौथ वाले दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्‍नान कर लें। अब इस मंत्र का उच्‍चारण करते हुए व्रत का संकल्‍प लें-

'मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये'

पति की लंबी उम्र की प्रार्थना करते हुए इस मंत्र का उच्‍चारण करें-

'ऊॅ नम: शिवायै शर्वाण्यै सौभाग्यं संतति शुभाम। प्रयच्छ भक्तियुक्तानां नारीणां हरवल्लभे॥'

करवा चौथ में सरगी

करवा चौथ के दिन सरगी का भी विशेष महत्‍व है। इस दिन व्रत करने वाली महिलाएं और लड़कियां सूर्योदय से पहले उठकर स्‍नान करने के बाद सरगी खाती हैं। सरगी आमतौर पर सास तैयार करती है। सरगी में सूखे मेवे, नारियल, फल और मिठाई खाई जाती है। अगर सास नहीं है तो घर का कोई बड़ा भी अपनी बहू के लिए सरगी बना सकता है। जो लड़कियां शादी से पहले करवा चौथ का व्रत रख रही हैं उसके ससुराल वाले एक शाम पहले उसे सरगी दे आते हैं। सरगी सुबह सूरज उगने से पहले खाई जाती है ताकि दिन भर ऊर्जा बनी रहे।

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क्यों विशेष है इस बार करवा चौथ का व्रत? पांच साल बाद बना ऐसा योग

Karwa chauth 2021 1
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calendar22 Oct 2021 09:30 AM
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- मदन गुप्ता सपाटू, ज्योतिर्विद्, चंडीगढ़

कार्तिक कृष्ण पक्ष में करक चतुर्थी अर्थात करवा चौथ (karwa chauth 2021)  का लोकप्रिय व्रत सुहागिन और अविवाहित स्त्रियां (married and unmarried women) पति की मंगल कामना एवं दीर्घायु के लिए निर्जल रखती हैं। इस दिन न केवल चंद्र देवता की पूजा होती है अपितु शिव-पार्वती और कार्तिकेय की भी पूजा की जाती है। इस दिन विवाहित महिलाओं और कुंवारी कन्याओं के लिए गौरी पूजन का भी विशेष महात्म्य है। आधुनिक युग में चांद से जुड़ा यह पौराणिक पर्व महिला दिवस से कम नहीं है जिसे पति व मंगेतर अपनी अपनी आस्थानुसार मनाते हैं।

क्यों है खास इस बरस करवा चौथ ?

व्यावहारिक दृष्टि से इस बार कृष्ण पक्ष की चतुर्थी 24 तारीख, दिन रविवार को पड़ रही है, जब अधिकांशतः कार्यालयों तथा व्यापारिक प्रतिष्ठानों में अवकाश होता है। इसलिए कामकाजी महिलाओं के लिए, व्रत रखना सुगम रहेगा। दूसरे ज्योतिषीय दृष्टि से करवा चौथ पर चंद्रमा अपने सर्वप्रिय नक्षत्र रोहिणी में उदित होंगे जो अत्यंत शुभ माना जाता है, क्योंकि इस दिन चंद्र दर्शन से बहुत सी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। यह संयोग पांच साल बाद बन रहा है। यदि करवा चौथ रविवार या मंगलवार को पड़े तो यह कर्क चतुर्थी अधिक शुभ एवं शक्तिशाली मानी जाती है।

अंक शास्त्र के अनुसार इस वर्ष करवा 24 तारीख को है अर्थात 6 का अंक जो शुक्र का प्रतिनिधित्व करता है। शुक्र ग्रह ,महिलाओं, सुहाग, ऐश्वर्य, विलासिता,पति- पत्नी के संबंधों का प्रतीक है, इसलिए भी इस बार का व्रत बहुत सौभाग्य शाली होगा। जिनका जन्म 6,15,24 तारीखों या शुक्रवार को हुआ है, वे यह व्रत अवश्य रखें।

कब निकलेगा चांद ? चतुर्थी रविवार को सुबह 3 बजे आरंभ होगी और 25 अक्तूबर, सोमवार की सुबह 5 बजकर 43 मिनट तक रहेगी। रविवार को चांद सायंकाल 8 बजकर 03 मिनट पर निकलेगा परंतु सपष्ट रुप से साढ़े 8 बजे के बाद ही नजर आएगा।

पूजन का शुभ समय

सायंकाल 7 बजे से 9 बजे तक रहेगा।

कैसे करें पारंपरिक व्रत? प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करके पति,पुत्र,पौत्र,पत्नी तथा सुख सौभाग्य की कामना की इच्छा का संकल्प लेकर निर्जल व्रत रखें। शिव ,पार्वती, गणेश व कार्तिकेय की प्रतिमा या चित्र का पूजन करें। बाजार में मिलने वाला करवा चौथ का चित्र या कैलेंडर पूजा स्थान पर लगा लें। चंद्रोदय पर अर्घ्य दें। पूजा के बाद तांबे या मिटट्ी के करवे में चावल, उड़द की दाल भरें।

सुहाग की सामग्री

कंघी,सिंदूर ,चूड़ियां,रिबन, रुपये आदि रखकर दान करें। सास के चरण छूकर आर्शीवाद लें और फल, फूल, मेवा, बायन, मिष्ठान,बायना, सुहाग सामग्री, 14पूरियां,खीर आदि उन्हें भेंट करें। विवाह के प्रथम वर्ष तो यह परंपरा सास के लिए अवश्य निभाई जाती है। इससे सास- बहू के रिश्ते और मजबूत होते हैं।

करवा चौथ की पूजा विधि?

- करवा चौथ वाले दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्‍नान कर लें। अब इस मंत्र का उच्‍चारण करते हुए व्रत का संकल्‍प लें-

'मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये'

पति की लंबी उम्र की प्रार्थना करते हुए इस मंत्र का उच्‍चारण करें-

'ऊॅ नम: शिवायै शर्वाण्यै सौभाग्यं संतति शुभाम। प्रयच्छ भक्तियुक्तानां नारीणां हरवल्लभे॥'

करवा चौथ में सरगी

करवा चौथ के दिन सरगी का भी विशेष महत्‍व है। इस दिन व्रत करने वाली महिलाएं और लड़कियां सूर्योदय से पहले उठकर स्‍नान करने के बाद सरगी खाती हैं। सरगी आमतौर पर सास तैयार करती है। सरगी में सूखे मेवे, नारियल, फल और मिठाई खाई जाती है। अगर सास नहीं है तो घर का कोई बड़ा भी अपनी बहू के लिए सरगी बना सकता है। जो लड़कियां शादी से पहले करवा चौथ का व्रत रख रही हैं उसके ससुराल वाले एक शाम पहले उसे सरगी दे आते हैं। सरगी सुबह सूरज उगने से पहले खाई जाती है ताकि दिन भर ऊर्जा बनी रहे।

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धर्म-अध्यात्म : जन्म लेते ही मरने लगता है प्राणी!

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locationभारत
userचेतना मंच
calendar29 Nov 2025 04:14 PM
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 विनय संकोची

जीवन वास्तव में क्या है?: जिसे मनुष्य जीवन कहता है, वास्तव में वह सतत चलने वाली मृत्यु की एक प्रक्रिया मात्र है। यह प्रक्रिया प्राणी के जीवन के साथ ही प्रारंभ हो जाती है। इसे यूं भी कह सकते हैं कि प्राणी जन्म लेते ही थोड़ा-थोड़ा मरने लगता है। मृत्यु-दिवस पर तो यह प्रक्रिया पूर्ण होती है। भगवद गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है - 'जो आज तुम्हारा है वह कल किसी और का था, परसों किसी और का हो जाएगा।' क्योंकि परिवर्तन संसार का नियम है इसलिए किसी को भी इस भ्रम में नहीं रहना चाहिए कि जीवन अविनाशी है, अखंड है। जीवन तो स्वप्न के समान है और क्षणभंगुर है। अभी हम हैं, अगले पल होंगे या नहीं कोई नहीं जानता। मनुष्य जब तक जीता है, तब तक कुछ न कुछ पाने के प्रयास में यहां से वहां भागता रहता है। आशा - निराशा के बीच झूलता रहता है और जिस दिन जीवन समाप्त होता है और मृत देह मरघट पहुंचती है इंसान की आपाधापी भागदौड़ का अंत हो जाता है। जीवन की यही नियति है। उसे एक दिन मृत्यु हो जाना होता है। इसे ही जीवन कहा गया है।

अध्यात्म विद्या सर्वश्रेष्ठ कैसे?: अध्यात्म विद्या को सर्वश्रेष्ठ इसलिए कहा गया है क्योंकि यह ब्रह्म विद्या है। इस विद्या से अज्ञान की गांठ हमेशा के लिए खुल जाती है तथा परमात्मा के स्वरूप का यथार्थ साक्षात्कार हो जाता है। इस विद्या का आत्मा से संबंध है। यह आत्म तत्व का प्रकाश करती है और इसके प्रभाव से ब्रह्म का साक्षात्कार हो जाता है, इसीलिए संसार की तमाम विद्या इस ब्रह्मविद्या के सामने तुच्छ हैं। क्योंकि शेष विद्याओं से अज्ञान का बंधन टूटता तो है ही नहीं अपितु और भी अधिक मजबूत हो जाता है।

पाप करने से स्वयं को कैसे बचा सकते हैं?: ऋग्वेद में कुटिलता को, उल्टे कर्म को पाप कहा है। साथ ही स्पष्ट किया है कि मनुष्य अपने सत्कर्मों में सदा लगा रहे और सत्य का संकल्प कर पाप कर्मों से दूर रहे। इसका तात्पर्य यह है कि मनुष्य अपने मन को श्रेष्ठ कर्मों में इतना लीन कर ले कि उसके पास पाप कर्म करने का समय ही ना हो। अथर्ववेद में पाप से दूर रहने का बड़ा सुंदर उपाय सुझाया गया है -'हे पाप! जो तू हमें नहीं छोड़ता है तो हम ही तुझे छोड़ देते हैं।' साधारण भाषा में इसे यूं भी कहा जा सकता है कि पुण्य कर्मों में इतने व्यस्त हो जाएं कि पाप करने का न तो विचार ही मन में आए और न ही पाप करने का समय हमारे पास हो। यह उपाय अकाट्य है और व्यवहारिक भी। आवश्यकता है केवल प्रबल इच्छा शक्ति की।

देह अभिमान क्या है?: संक्षेप में मैं और मेरापन का अभिमान देह अभिमान है। मैं महान हूं, मैं ज्ञानी हूं, मैं शक्तिशाली हूं, मैं संपत्तिवान हूं, मैं समर्थ हूं, मैं समृद्ध हूं, मैं भाग्यवान हूं आदि - आदि सोचना या कहना देह अभिमान ही है। दूसरों पर अहंकार प्रकट करना, बात बात में लोगों से झगड़ना, अनर्गल बातें करना, दूसरों को दु:ख देते रहना भी देह अभिमान है। इंद्रिय सुखों के पीछे भागते रहना, गुणों को त्याग कर के अवगुणों का पालन करना, बार-बार रूठना, दुखी होना भी देह अभिमान की श्रेणी में आता है। जब देह अभिमान आता है तो उसके पीछे पीछे पांच विकार काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार भी चले आते हैं। एक बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि समस्त अवगुणों, कष्टों, दु:खों, आसुरी वृत्तियों और पतन का मूल कारण देह अभिमान ही है। इस शत्रु से पीछा छुड़ाने का एकमात्र उपाय तीव्र पुरुषार्थ का सख्ती से पालन करना है, इसके अतिरिक्त अन्य कोई उपाय है ही नहीं।

मनुष्य आप ही अपना मित्र कैसे?: मनुष्य सांसारिक संबंध के कारण, आसक्ति के चलते जिन लोगों को अपना मित्र मानता है, वे तो बंधन में हेतु होने के कारण वस्तुतः उसके मित्र हैं ही नहीं। संत, महात्मा, महापुरुष, नि:स्वार्थ साधक आदि जो बंधन से छुड़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, वे अवश्य ही सच्चे मित्र हैं। लेकिन यह मैत्री भी तभी संभव है जब पहले मनुष्य स्वयं अपने हृदय की गहराइयों से उनके प्रति श्रद्धा और प्रेम करे, उन्हें अपना सच्चा मित्र स्वीकार करे। न केवल इतना बल्कि उनके बतलाए मार्ग पर बिना किसी शंका - आशंका के चलता चले। इस तरह मनुष्य अपना मित्र हुआ क्योंकि जो करना है उसे ही करना है। उसे अपने हितकर विचारों को स्वयं ही स्वीकार करना है। इसी तरह मनुष्य अपने मन से किसी को शत्रु मानता है, तभी उसकी हानि होती है। इस तरह जैसे मनुष्य स्वयं का मित्र है वैसे ही शत्रु भी है, इसमें संदेह का कोई कारण नहीं है।