र​तिक्रिया के लिए कौन सा समय रहता है उत्तम, दिन या रात ?

Ratikriya
locationभारत
userचेतना मंच
calendar02 Dec 2025 02:58 AM
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विवाह (Marriage) के बाद रतिक्रिया (ratikriya) यानि पति पत्नी के बीच होने वाली वो क्रिया (SX) जिसके करने से सन्तान उत्पत्ति होती है, का अपना महत्व है। इसके माध्यम से हमें संतानोत्पत्ति होती है एवं वंश आगे बढ़ता है। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि होने वाली संतान का निर्धारण भी रतिक्रिया के समय से होता है। ऐसे में हमें यह जानना बेहद आवश्यक हो जाता है कि रतिक्रिया किस समय विशेष पर की जाए ताकि इसके लाभ मिल सकें।

धर्मशास्त्र कहते हैं रात्रि का पहला पहर रतिक्रिया के लिए उचित समय है। रात्रि का पहला पहर घड़ी के अनुसार बारह बजे तक रहता है। यह एक मान्यता है कि जो रतिक्रिया रात्रि के प्रथम पहर में की जाती है, उसके फलस्वरूप जो संतान का जन्म होता है, उसे भगवान शिव का आशीष प्राप्त होता है।

ऐसी संतान अपनी प्रवृत्ति एवं संभावनाओं में धार्मिक, सात्विक, अनुशासित, संस्कारवान, माता-पिता से प्रेम रखने वाली, धर्म का कार्य करने वाली, यशस्वी एवं आज्ञाकारी होती है। चूंकि ऐसे जातकों को शिव का आर्शीवाद प्राप्त होता है, इसलिए वे लंबी आयु जीते हैं एवं भाग्य के भी प्रबल धनी होते हैं।

रतिक्रिया के लिए रात्रि के प्रथम पहर का महत्व इसलिए है क्योंकि धार्मिक मान्यता के अनुसार प्रथम पहर के बाद राक्षस गण पृथ्वी लोक के भ्रमण पर निकलते हैं। उसी दौरान जो रतिक्रिया की गई हो, उससे उत्पन्न होने वाली संतान में भी राक्षसों के ही समान गुण आने की प्रबल संभावना होती है। इसके चलते वह संतान भोगी, दुर्गुणी, माता-पिता एवं बुजुर्गों की अवमानना करने वाली, अनैतिक, अधर्मी, अविवेकी एवं असत्य का पक्ष लेने वाली होती है। रात्रि का पहला पहर घड़ी के अनुसार बारह बजे तक रहता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसी समय को रतिक्रिया के उचित समय माना जाता है। लेकिन यदि इसके अलावा शेष किसी अन्य पहर में रतिक्रिया की जाती है तो परिणामस्वरूप शारीरिक, मानसिक एवं आर्थिक कष्ट सामने आते हैं।

पहले पहर के बाद रतिक्रिया इसलिए भी अशुभकारी है क्योंकि ऐसा करने से शरीर को कई रोग घेर लेते हैं। व्यक्ति अनिंद्रा, मानसिक क्लेश, थकान का शिकार हो सकता है एवं माना जाता है कि भाग्य भी उससे रूठ जाता है।

यशराज कनिया कुमार

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विवाह (Marriage) के बाद रतिक्रिया (ratikriya) यानि पति पत्नी के बीच होने वाली वो क्रिया (SX) जिसके करने से सन्तान उत्पत्ति होती है, का अपना महत्व है। इसके माध्यम से हमें संतानोत्पत्ति होती है एवं वंश आगे बढ़ता है। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि होने वाली संतान का निर्धारण भी रतिक्रिया के समय से होता है। ऐसे में हमें यह जानना बेहद आवश्यक हो जाता है कि रतिक्रिया किस समय विशेष पर की जाए ताकि इसके लाभ मिल सकें।

धर्मशास्त्र कहते हैं रात्रि का पहला पहर रतिक्रिया के लिए उचित समय है। रात्रि का पहला पहर घड़ी के अनुसार बारह बजे तक रहता है। यह एक मान्यता है कि जो रतिक्रिया रात्रि के प्रथम पहर में की जाती है, उसके फलस्वरूप जो संतान का जन्म होता है, उसे भगवान शिव का आशीष प्राप्त होता है।

ऐसी संतान अपनी प्रवृत्ति एवं संभावनाओं में धार्मिक, सात्विक, अनुशासित, संस्कारवान, माता-पिता से प्रेम रखने वाली, धर्म का कार्य करने वाली, यशस्वी एवं आज्ञाकारी होती है। चूंकि ऐसे जातकों को शिव का आर्शीवाद प्राप्त होता है, इसलिए वे लंबी आयु जीते हैं एवं भाग्य के भी प्रबल धनी होते हैं।

रतिक्रिया के लिए रात्रि के प्रथम पहर का महत्व इसलिए है क्योंकि धार्मिक मान्यता के अनुसार प्रथम पहर के बाद राक्षस गण पृथ्वी लोक के भ्रमण पर निकलते हैं। उसी दौरान जो रतिक्रिया की गई हो, उससे उत्पन्न होने वाली संतान में भी राक्षसों के ही समान गुण आने की प्रबल संभावना होती है। इसके चलते वह संतान भोगी, दुर्गुणी, माता-पिता एवं बुजुर्गों की अवमानना करने वाली, अनैतिक, अधर्मी, अविवेकी एवं असत्य का पक्ष लेने वाली होती है। रात्रि का पहला पहर घड़ी के अनुसार बारह बजे तक रहता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसी समय को रतिक्रिया के उचित समय माना जाता है। लेकिन यदि इसके अलावा शेष किसी अन्य पहर में रतिक्रिया की जाती है तो परिणामस्वरूप शारीरिक, मानसिक एवं आर्थिक कष्ट सामने आते हैं।

पहले पहर के बाद रतिक्रिया इसलिए भी अशुभकारी है क्योंकि ऐसा करने से शरीर को कई रोग घेर लेते हैं। व्यक्ति अनिंद्रा, मानसिक क्लेश, थकान का शिकार हो सकता है एवं माना जाता है कि भाग्य भी उससे रूठ जाता है।

यशराज कनिया कुमार

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वास्तुशास्त्र : वास्तु के अनुसार लगाये भगवानों की तस्वीर कभी नहीं होगी पैसों की परेशानी

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userचेतना मंच
calendar29 Nov 2025 04:19 AM
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घर में पूजाघर के अलावा भी हम लोग भगवान की तस्वीरें लगा देते हैं। भगवानों की तस्वीर लगाते बहुत सी चीजों को हम ध्यान नही रखते। ऐसा करने से घर की नकारात्मक ऊर्जा घर में बनी रहती है। इसलिए घर की सुख शांति के लिए भगवानों की तस्वीर इस तरह लगाएं कभी नहीं आयेगी कोई परेशानी.....

घर में यहां लगाएं देवी लक्ष्मी की तस्वीर

घर के उत्तर दिशा में देवी लक्ष्मी की ऐसी तस्वीर लगाएं, जिसमें वह कमलासन पर विराजमान हों और स्वर्ण मुद्राएं गिरा रही हों। ऐसी तस्वीर लगाना शुभ माना जाता है, इससे घर में समृद्धि का वास होता है। साथ ही अगर आप उत्तर दिशा में तोता की तस्वीर लगाएंगे तो पढ़ाई करने वाले बच्चों के लिए काफी फायदेमंद होगा।

शिवजी की तस्वीर से सुख व शांति का होता है वास

घर का मुखिया अगर भगवान शिव और चंद्र देव के मंत्रों का हर रोज जप करता है तो उसके यहां सुख और शांति का वास रहता है। वास्तु के नियमानुसार घर के बड़ों को नियमित शिवजी के मंत्रों का जप करना चाहिए, इससे घर में बरकत आती है।

बनी रहती है शनिदेव की कृपा

शनिदेव की कृपा पाने और साढ़ेसाती या ढैय्या के दौरान संकट से मुक्ति के लिए घर के पश्चिम दिशा में शनि यंत्र की विधिपूर्वक स्थापना करनी चाहिए। इससे आपके जीवन में आने वाली समस्याओं का अंत होगा। हर दिन सुबह मुख्य द्वार पर एक लोटा जल जरूर डालना चाहिए इससे सकारात्मक उर्जा का संचार होता है।

नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने के लिए लगाएं हनुमान जी की तस्वीर

दक्षिण दिशा से आने वाली नकारात्मक ऊर्जा और बुरी ताकतों को दूर करने के लिए और घर में पॉजिटिव एनर्जी का संचार होता रहे, सुख शांति और समृद्धि बनी रहे, इसके लिए घर की दक्षिण दिशा में हनुमान जी की बैठी हुई मुद्रा में लाल रंग की तस्वीर जरूर लगाएं।

बेडरूम में लगाएं श्रीकृष्ण भगवान की तस्वीर

भगवान श्रीकृष्ण की तस्वीर हमेशा बेडरुम में ही लगानी चाहिए। यह आपके ऊपर निर्भर करता है कि आप उनकी अकेली तस्वीर लगाते हैं या फिर राधा जी के साथ।

सकारात्मकता के लिए स्वास्तिक की तस्वीर

घर में सकारात्मक उर्जा को बनाए रखने के लिए घर की दीवारों पर स्वास्तिक, कमल के फूल की तस्वीर या फिर फूलदान की तस्वीर लगा सकते हैं।

एस्ट्रोलोजर अनिल मिश्रा से बातचीत पर आधारित