एमएसपी को कानूनी दर्जा मिले बिना देश का भला नहीं हो सकता: शास्त्री

Sompal shastri
locationभारत
userचेतना मंच
calendar08 Oct 2021 03:22 PM
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राज की नीति का विरोध करने में गलत क्या है नई दिल्ली। प्रसिद्ध किसान नेता व भूतपूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में भारत के कृषि मंत्री रह चुके सोमपाल शास्त्री ने कहा है कि न्यूनतम खरीद मूल्य (MSP) को कानूनी दर्जा दिए बिना देश के किसानों का भला होने वाला नहीं है। उन्होंने जोर देकर यह भी कहा है कि देश का किसान राजनीति कर रहा है तो उसमें गलत क्या है? उन्होंने साफ शब्दों में पूछा है कि राज की गलत नीति का विरोध करना गलत कैसे हो सकता है?

एक प्रसिद्ध मीडिया समूह को दिए अपने ताजा साक्षात्कार में श्री शास्त्री ने यह बात कही है। हम उनका पूरा साक्षात्कार जस का तस यहां प्रस्तुत कर रहे हैं। आशा है पाठकों को यह प्रयास अवश्य पसंद आएगा।

सवाल : कृषि कानूनों की वापसी की मांग पर किसान संगठनों और सरकार के बीच पहले से गतिरोध बना हुआ है। अब लखीमपुर की घटना से मौजूदा आंदोलन को किस तरफ जाता देख रहे हैं?

 जवाब: मुझे नहीं लगता है कि यह आंदोलन किसी हल की तरफ बढ़ रहा है। उसका एक कारण तो सरकार की हठधर्मिता है। दूसरा सरकार और किसानों के बीच विश्वास का संकट है। इसकी पृष्ठभूमि 2014 के चुनाव अभियान से शुरू होती है, जब बीजेपी ने किसानों के हक में कई बड़े वादे किए थे, जिनमें एक था स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू किया जाएगा। चुनाव में इसका फायदा भी बीजेपी को मिला। लेकिन सरकार आने पर सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर कहा कि मौजूदा आर्थिक संसाधनों में ऐसा कर पाना संभव नहीं है। जब 2019 का चुनाव आने वाला हुआ तो इन्होंने घोषणा कर दी कि स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू कर दिया है। खेल यह हुआ कि स्वामीनाथन ने C2 स्तर की लागत में 50 प्रतिशत जोडऩे की बात कही है, सरकार ने एक लेवल नीचे A2+FL पर जोड़ा। 2016 में एक और घोषणा की गई थी कि 2022 तक किसानों की आय को दोगुना कर दिया जाएगा। लेकिन सरकारी आंकड़े कहते हैं कि किसानों की वास्तविक आय 2013 की तुलना में 2020 में 35 से 42 प्रतिशत कम हुई है।

सवाल :  मौजूदा विवाद नए कृषि कानूनों को लेकर है। किसान संगठन कानून की वापसी चाहते हैं। सरकार का कहना है कि कानून के जिन बिंदुओं पर आपत्ति हो, वह बताओ, हम दूर करने को तैयार हैं। यह गतिरोध कैसे दूर हो सकता है?

 जवाब: मैं अटलजी की सरकार में मंत्री रहा हूं। कैबिनेट की मीटिंग में यह जरूरी नहीं होता था कि जो बात अटल जी को पसंद हो, वही बोली जाए या कोई चर्चा ही न हो। तमाम उदाहरण हैं कि कैबिनेट में अटल जी की राय कुछ और होती थी, मंत्री गण की राय कुछ और, लेकिन खुलकर विमर्श होता था और उस विमर्श से ही नया रास्ता निकलता था। अपनी राय कुछ और होने के बावजूद अटल जी उचित राय को स्वीकार करते थे। अब मैं समझता हूं कि परस्पर चर्चा और परामर्श की परंपरा ही समाप्त हो गई है। ऐसे में कोई रास्ता कैसे निकलेगा?

सवाल : जब किसान आंदोलन शुरू हुआ था तो केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने आपसे मुलाकात की थी, आपने उन्हें क्या सलाह दी थी?

 जवाब: मैंने उनसे कोई गोपनीय बात नहीं की थी। मैं सार्वजनिक मंच से जो कहता आ रहा हूं, वही उनसे भी कहा था। पहली यह कि जब किसानों को ये कानून अपने फायदे में नहीं लग रहे हैं तो जबरदस्ती क्यों? दूसरी बात जिन जिंसों का सरकार समर्थन मूल्य घोषित करती है, वह मूल्य उन्हें दिलवाना भी सुनिश्चित करे। इससे भी बड़ी बात यह है कि अभी तक उन 22 जिंसों का ही समर्थन मूल्य घोषित होता है जो भंडारण योग्य हैं लेकिन उनका योगदान कृषि के सकल घरेलू उत्पाद में मात्र 30 प्रतिशत है। 70 प्रतिशत पेरिशेबल कमोडिटी होती हैं जैसे फल, सब्जी, दूध, पोल्ट्री जिनके दाम सबसे ज्यादा क्रैश करते हैं। इनके लिए भी न्यूनतम मूल्य तय होना चाहिए। कृषि लागत एवं मूल्य आयोग को संवैधानिक दर्जा दिया जाए ताकि उसकी सिफारिशें सरकार के ऊपर बाध्यकारी हों।

सवाल : सरकार का कहना है कि कृषि कानूनों को लेकर जो विरोध है वह किसानों का नहीं है, महज कुछ नेताओं का है। क्या इस मुद्दे पर राजनीति हो रही है?

जवाब : यह बात कहना गलत है कि आंदोलन में किसान नहीं है। अगर किसान नहीं शामिल होता तो यह आंदोलन इतना लंबा चल ही नहीं सकता था। अब रही बात राजनीति की तो इस मुद्दे पर राजनीति किसने शुरू की? शुरुआत तो सरकार ने ही की। कानून लागू करने के लिए सदन की प्रतीक्षा भी नहीं की गई। असाधारण स्थिति बताते हुए अध्यादेश लाया गया। यह भी तथ्य है कि अभी तक किसानों ने अपने मंच पर किसी दलीय नेता को जगह नहीं दी है। अगर किसान राजनीति कर भी रहे हैं तो इसमें गलत क्या है? राज की नीति का विरोध कोई पाप तो नहीं है।

सवाल : जिन तीन कृषि कानूनों पर इतना विवाद है, उनको लेकर आपका क्या नजरिया है?

सवाल : 1990 में जो भानु प्रताप कमेटी बनी, वह मेरे ही कहने पर बनी थी। उसने ये तीनों ही सिफारिशें की थीं लेकिन उनके साथ तीन शर्तें जुड़ी हुई थीं। पहली, न्यूनतम खरीद मूल्य को कानूनी अधिकार बनाया जाए। दूसरी, न्यूनतम समर्थन मूल्य सभी जिंसों और सभी किसानों के लिए हों। तीसरी कृषि लागत एवं मूल्य आयोग को संवैधानिक दर्जा दिया जाए। अगर सरकार ये बातें मान लेती है तो कानून रहें अथवा न रहें उसका कोई असर नहीं पडऩे वाला।

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अब महिलाएं भी 12वीं के बाद बन सकती हैं फ्लाईंग ऑफिसर

Ladies Flying Officer
locationभारत
userचेतना मंच
calendar08 Oct 2021 02:21 PM
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नई दिल्ली। दुनियां की 5 सबसे शक्तिशाली वायु सेनाओं में से एक भारतीय वायु सेना आज, 8 अक्टूबर 2021 को अपना 89वां स्थापना दिवस बड़े गर्व के साथ और धूमधाम से मना रही है। भारतीय वायुसेना, भारतीय सशस्त्र सेना का एक अंग है जो वायु युद्ध, वायु सुरक्षा, एवं वायु चौकसी का महत्वपूर्ण काम देश के लिए करती है। इसकी स्थापना 8 अक्टूबर 1932 को की गयी थी। आज हम देखते हैं कि देश की आधी आबादी मतलब देश की महिलाएं हर क्षेत्र में पुरुषों के बराबर आ चुकी हैं, भारतीय वायु सेना, भारतीय नौसेना और भारतीय थल सेना – तीनों ही रक्षा सेनाओं में ऑफिसर के तौर पर भर्ती का एक और विकल्प उच्चतम न्यायालय के हाल ही में केंद्र सरकार और संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) को दिये गये आदेश के आने के बाद खुल गया है। इस आदेश के अनुपालन में यूपीएससी ने भारतीय वायु सेना समेत तीनों ही सेनाओं में 12वीं के बाद इंट्री के विकल्प देने वाली एनडीए परीक्षा में महिलाओं से आवेदन 24 सितंबर 2021 से आमंत्रित किये है। इन भर्ती के लिए आवेदन की अंतिम तारीख आज, 8 अक्टूबर 2021 है। आवेदन की इच्छुक महिला उम्मीदवार आयोग के अप्लीकेशन पोर्टल, upsconline.nic.in पर दिये गये फॉर्म से आवेदन कर सकती हैं।

शैक्षणिक योग्यता : वर्ष में दो बार आयोजित होने वाली एनडीए परीक्षा में आवेदन की इच्छुक महिला उम्मीदवारों को किसी मान्यता प्राप्त बोर्ड से 10+2 की परीक्षा उत्तीर्ण होनी चाहिए। हालांकि, भारतीय वायु सेना में इंट्री के लिए महिला उम्मीदवारों को फिजिक्स, केमिस्ट्री और मैथ विषयों के साथ 10+2 परीक्षा या समकक्ष परीक्षा उत्तीर्ण होना चाहिए। साथ ही, वर्ष 2021 की परीक्षा में सम्मिलित होने के लिए उम्मीदवार का जन्म 2 जनवरी 2003 से पहले और 1 जनवरी 2006 के बाद नहीं हुआ होना चाहिए।

चयन प्रक्रिया और प्रशिक्षण : यूपीएससी द्वारा एनडीए (2) परीक्षा 2021 का आयोजन 14 नवंबर 2021 को किया जाना है। इस परीक्षा में प्रदर्शन के आधार पर सफल उम्मीदवारों को रक्षा मंत्रालय के सर्विसेस सेलेक्शन बोर्ड (एसएसबी) द्वारा आयोजित किये जाने वाले इंटरव्यू राउंड और मेडिकल परीक्षण चरणों के लिए आमंत्रित किया जाता है। एसएसबी के चरणों में प्रदर्शन के आधार पर सफल महिला उम्मीदवारों को उनकी मेरिट और उनके भारतीय वायु सेना के चयन के अनुसार तीन वर्षों का शैक्षणिक और शारीरिक प्रशिक्षण दिया जाता है। इसमें पास होने वाले वायु सेना कैडेटों को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली द्वारा बीटेक/बीएससी/बीएससी (कंप्यूटर) की डिग्री दी जाएगी। इसके बाद उड़ान या नॉन-टेक्निकल ग्राउंड ड्यूटी ब्रांच के लिए कैडेटों को वायु सेना अकादमी, हैदराबाद भेजा जाएगा और वायु सेना कैडेट ग्राउंड ड्यूटी (टेक्निकल ब्रांच) को वायु सेना तकनीकी कॉलेज, बैंगलूरू भेजा जाएगा। वायु सेना कैडेटों को सम्बन्धित एकेडेमी एक या डेढ़ वर्ष का प्रशिक्षण दिया जाएगा। इस प्रशिक्षण को पूरा करने के बाद कैडेटों को भारतीय वायु सेना में फ्लाईंग ऑफिसर के तौर पर स्थायी कमीशन (नियुक्ति) दी जाएगी।

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Punjab : अगले सप्ताह हो सकती कैप्टन के नए दल की घोषणा

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locationभारत
userचेतना मंच
calendar08 Oct 2021 11:22 AM
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राष्ट्रीय ब्यूरो। पंजाब कांग्रेस का घमासान भले ही फिलहाल थमता दिखाई पड़ रहा हो,लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को लेकर पार्टी परेशान है। सूत्र बता रहे हैं कि अगले सप्ताह वे अपनी नई पार्टी का ऐलान  कर सकते हैं।

बतादें कि मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र देने के बाद अमरिंदर सिंह एक सप्ताह के भीतर दूसरी बार दिल्ली का दौरा कुछ नया गुल खिला सकता है। वे भाजपा नेताओं के लगातार संपर्क में हैँ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने की अटकलें भी लगाई जा रही हैं। हालांकि पिछली बार जब वे दिल्ली आए थे और गृहमंत्री अमित शाह व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से भेंट की थी तब माना जा रहा था कि वे जल्द ही भाजपा में शामिल हो जाएंगे। लेकिन कैप्टन ने इन अटकलों को खारिज करते हुए कहा था कि वे न तो कांग्रेस में रहेंगे और न ही भाजपा में शामिल होने जा रहे हैं। ऐसे में अब कांग्रेस चौकन्ना है। उसे लग रहा है कि कैप्टन अगर नई पार्टी बनाते हैं तो कांग्रेस का नुकसान हो सकता है। कांग्रेस के कुछ असंतुष्ट नेता उनकी पार्टी में जा सकते हैँ। इस बीच यह भी चर्चा हैकि कैप्टन द्वारा गठित जाट महासभा जो कि इन दिनों सक्रिय नहीं है,उसे वे दोबारा से सक्रिय करने की जुगत में हैँ। ऐसा वे शायद भाजपा नेताओं के इशारे पर कर रहे हैँ,ताकि जाट खासकर सिख जाट किसानों के असंतोष का फायदा पंजाब में कांग्रेस को न मिल सके।