Bollywood- जन्मदिन के खास मौके पर जाने एक्टर कादर खान की संघर्ष की कहानी, बहुत शानदार रहा उनका फिल्मी कैरियर

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userसुप्रिया श्रीवास्तव
calendar21 OCT 2021 07:23 PM
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कादर खान (Kadar Khan) को आज किसी पहचान की ज़रूरत नहीं है। ये बच्चा बच्चा जानता है कि इन्होंने हिंदी सिनेमा में कितना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। आज भी हर किसी की ज़ुबान पर उनके एवरग्रीन डायलॉग्स रहते हैं। आज हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के इसी महान अभिनेता व लेखक का जन्मदिन है। इनके जन्मदिन के मौके पर जानते हैं इनसे जुड़ी कुछ खास बातें।

कादर खान का जन्म- उनका जन्म 22 अक्टूबर 1937 में हुआ था। उनका जन्म अफगानिस्तान के काबुल में हुआ था।

कादर खान का बचपन- ये अपने माता पिता की चौथी संतान थे। उनके पहले उनके जितने भाई बहन रहे थे उन सबकी मौत लगभग 8 साल की उम्र तक पहुंचते पहुंचते ही हो जाती थी। इसी के डर से उनके माता पिता को यह एहसास हुआ कि उनके बच्चों के लिए अफगानिस्तान की मिट्टी सही नहीं है। इसी के चलते उन्होंने अफगानिस्तान छोड़ने का फैसला लिया और फिर इसके बाद वो लोग मुंबई आकर बस गए। उनके घर की आर्थिक स्तिथि कुछ खास तो थी नहीं, यही कारण था कि वो लोग मुंबई के पिछड़े इलाके कमाठीपुरा में रहा करते थे। घर की स्तिथि को देखते हुए ही कादर खान (Kadar Khan) ने कम उम्र में ही और बच्चों को देखते हुए काम करने का फैसला ले लिया।

उनके आस पास के बच्चे मात्र 2-3 रुपये के लिए काम किया करते थे। घर की हालत को सुधारने के लिए कादर खान ने भी उन बच्चों के साथ जाकर काम करने का फैसला किया। जब घर से बाहर वो जाने लगे तो पीछे से उनकी मां ने उन्हें रोक लिया। उनकी मां ने रो रोकर उन्हें समझाया कि अगर वो ऐसे 1-2 रुपये के लिए काम करने लगेंगे तो कुछ बड़ा नहीं कर पाएंगे और इतना ही कमा पाएंगे। उन्होंने काम न करने के जगह उन्हें पढ़ाई करने के लिए प्रेरणा दी। इसके बाद उन्होंने इंजीनियरिंग की।

कादर खान के संघर्ष की कहानी - जब कादर ख़ान (Kadar Khan) कॉलेज में थे तो वहां पर वो नाटक भी लिखा करते थे। फिर वो एक कॉलेज में लेक्चरर भी बने। भले ही वो नौकरी करने लगे लेकिन उन्होंने नाटक लिखना नहीं छोड़ा। फिर उन्होंने एक नाटक लोकल ट्रेन लिखा। इसमें उन्होंने डायलॉग्स तो खुद लिखे ही, साथ ही इसका निर्देशन भी उन्होंने खुद ही किया। उनका काम नरेंद्र बेदी (Narendra Bedi) को काफी ज्यादा बेहतरीन लगा, इसके बाद ही नरेंद्र बेदी ने उन्हें अपनी फ़िल्म जवानी दीवानी में काम करने का अवसर प्रदान किया। कादर खान ने इस फ़िल्म के लिए डायलॉग्स भी लिखे। इसके साथ ही उन्होंने इसमें किरदार भी निभाया। इसके लिए उन्हें महज 1500 रुपये फीस मिली थी। उन्होंने पहली बार इतनी बड़ी रकम एक साथ देखी थी। खैर यह तो बस ट्रेलर था, पिक्चर तो अभी बाकी थी मेरे दोस्त। कादर खान (Kadar Khan) ने यहीं से अपनी पहचान बनानी शुरू कर दी। उनके अभिनय का हर कोई दीवाना हो गया। फिर एक के बाद एक उन्होंने तमाम सुपरहिट फिल्में की और 250 से भी ज्यादा फिल्मों के लिए उन्होंने डायलॉग्स भी लिखे हैं।

आज कादर खान (Kadar Khan) भले हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनके लिखे डायलॉग कई सुपरहिट फिल्मों के माध्यम से आज भी हमारे बीच उनकी यादें तरोताजा करती रहती हैं। ये हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के ऐसे नायाब हीरा थे, जिन की कमी को कभी कोई पूरा नहीं कर सकता। आज उनके जन्मदिन के मौके पर इस पोस्ट के माध्यम से हम उन्हें एक श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।

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अनन्या पांडे के घर पर एनसीबी ने की रेड, शाहरुख खान के घर मन्नत पहुंची एनसीबी

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locationभारत
userचेतना मंच
calendar21 OCT 2021 03:43 AM
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मुंबई: बॉलीवुड के मशहूर अभिनेता शाह रुख ख़ान (Shahrukh Khan) की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। शाह रुख का बेटा आर्यन ख़ान (Aryan Khan) ड्रग्स केस में 2 अक्टूबर से नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो जांच कर रही है। इसके अलावा बाॅलीवुड में एक्ट्रेस अनन्या पांडे (Annanya Pandey) के घर भी एनसीबी ने रेड की है। आर्यन के वॉट्सऐप चैट से अनन्या के कनेक्शन का आरोप लगाया गया है। उनका फोन भी एनसीबी ने जब्त कर लिया है। जांच के वक्त अनन्या घर पर मौजूद नहीं थी। आज की बात करें तो एनसीबी शाह रुख के घर 'मन्नत' भी पहुंच चुकी है। हालांकि थोड़ी देर के बाद एनसीबी (NCB) ऑफिसर्स शाह रुख के घर से चले गाए। जानकारी के मुताबिक कि वो अधिकारी कुछ कागज़ी कार्रवाई के सिलसिले में मन्नत गए थे।

कुछ तस्वारें साझा की गई थी जिनमें एनसीबी के कुछ अधिकारी 'मन्नत' (MANNAT) के गेट पर खड़े हुए हैं। इस दौरान वो गार्ड से बातचीत कर रहे हैं। शाह रुख आज अपने बेटे से मिलने के लिए जेल पहुंचे थे ऐसे में किंग ख़ान अभी घर पर हैं या नहीं इस बारे में भी कोई जानकारी नहीं मिली है।

जानकारी के मुताबिक आर्यन ख़ान (ARYAN KHAN) ड्रग्स केस के सिलसिले में इस वक्त मुंबई की आर्थर रोड जेल में काफी समय से बन्द हैं। आर्यन को एनसीबी ने 2 अक्टूबर को कि मुंबई से गोवा जा रहे एक क्रूज से रेव पार्टी में शामिल होने के दौरान पकड़ लिया गया था। आर्यन के अलावा दो और लोग एक उनके दोस्त अरबाज़ मर्चेंट और मुनमुन धामेचा भी इसी जेल में मौजूद हैं।

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आर्यन खान और अरुण वाल्मीकि में कॉमन है एक बात, क्या जानते हैं आप!

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locationभारत
userचेतना मंच
calendar21 OCT 2021 03:41 AM
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आर्यन खान (ARYAN KHAN) और अरुण वाल्मीकि (ARUN VALMIKI) में एक बात कॉमन है। वह कॉमन चीज क्या है, यह जानने से पहले इस सवाल का जवाब जरूरी है कि क्या क्रूज ड्रग्स केस में गिरफ्तारी के बहाने शाहरुख खान (SHAHRUKH KHAN) को बदनाम करने की साजिश रची जा रही है? क्या रसूखदार का धर्म जानना जरूरी है? आर्यन खान से पहले संजय दत्त, सलमान खान, शाइनी आहूजा से लेकर रिया चक्रवर्ती तक न जाने कितने फिल्मी सितारे गिरफ्तार हुए हैं और जेल भी गए हैं। आर्यन खान की गिरफ्तारी के बाद बॉलीवुड से जुड़ी नामचीन हस्तियों, नेताओं और कुछ पत्रकारों ने एनसीबी (Narcotics Control Bureau) पर आर्यन खान को जानबूझकर निशाना बनाने का आरोप लगाया है। जबकि, आर्यन को जिस क्रूज से गिरफ्तार किया गया उसमें से प्रतिबंधित ड्रग्स बरामद हुई है। एनसीबी को शक है कि इस मामले के तार नशे का अवैध व्यापार करने वाले अंतरराष्ट्रीय सरगनाओं से जुड़े हैं। तो क्या इतने गंभीर अपराध के मामले में कार्यवाही करते समय पुलिस या जांच एजेंसियों को रसूखदार व्यक्ति या उसके परिवार पर हाथ नहीं डालना चाहिए? आरोप लगाने वाले केवल पुलिस या जांच एजेंसी तक ही नहीं रुकते। वह कोर्ट को भी शक के दायरे में लपेट लेते हैं। जांच एजेंसी और कोर्ट पर सवाल उठाने वाले मानते हैं कि आर्यन के खिलाफ कार्यवाही की वजह उनका धर्म है। तेजी से बढ़ रहा है यह ट्रेंड पिछले कुछ सालों में यह ट्रेंड तेजी से बढ़ा है कि किसी घटना, पुलिस, सुरक्षा या जांच एजेंसियों की किसी भी कार्यवाही को धर्म, जाति या विचारधारा से जोड़ कर दिखाने की कोशिश की जाती है। कोर्ट का फैसला आने से पहले ही यह प्रचारित किया जाता है कि इसका मकसद जाति, धर्म या विचारधारा विशेष को प्रताड़ित करना है। यूपी में कुख्यात अपराधी विकास दूबे या मुन्ना बजरंगी की मौत बाद योगी सरकार पर ब्राह्मणों को निशाना बनाने का आरोप लगाया गया। अतीक अहदम, अफजल अंसारी के अवैध कब्जों पर कार्यवाही को मुसलमानों के खिलाफ बदले की कार्यवाही बताया गया। उन्नाव रेप कांड या आगरा में सफाई कर्मी की पुलिस कस्टडी में मौत को दलित विरोधी कार्यवाही बताया गया। ऐसे ही, लखीमपुर खीरी में चार किसानों समेत आठ लोगों की मौत को समुदाय विशेष से जोड़ कर दिखाने का प्रयास किया गया। धार्मिक या जातीय रंग देने का नतीजा इसमें कोई दो राय नहीं कि किसी घटना, अपराध या कार्यवाही को धार्मिक या जातीय रंग देने से मुख्य मुद्दा दब जाता है और राजनीति हावी हो जाती है। इससे सुरक्षा एजेंसियों, पुलिस और जांच एजेंसियों के मनोबल पर भी नकारात्मक असर पड़ता है। इन मामलों में अदालतों को भी सुविधानुसार राजनीति का शिकार बनाने का चलन बढ़ा है। अयोध्या मामले पर फैसला आते ही सुप्रीम कोर्ट को कटघरे में खड़ा कर दिया जाता है। जबकि, वही सुप्रीम कोर्ट लखीमपुर खीरी मामले में यूपी सरकार और यूपी पुलिस को जमकर लताड़ लगाती है और कार्यवाही करने के लिए मजबूर करती है। किसे हो रहा फायदा? हर छोटी-बड़ी घटना को जातीय या धार्मिक रंग देकर राजनीतिक फायदा उठाने का यह तरीका बेहद पुराना हो चुका है। इस तरह की राजनीति से अलगाव और असंतोष बढ़ता है और तुष्टिकरण करने वाले दलों को फायदा होता है। भारत में तुष्टिकरण की राजनीति का पुराना इतिहास रहा है। कभी धर्म, तो कभी जातियों के नाम पर यह तुष्टिकरण किया जाता रहा है। किसी जाति या धर्म से जुड़े लोगों की असुरक्षा या असंतोष की भावना को भड़काकर अपना राजनीतिक स्वार्थ साधने की कोशिश हमेशा से होती रही है। इस मामले में कोई भी राजनीतिक दल अपवाद नहीं है। मजबूत नेता को हराने का एक ही तरीका आमतौर पर ऐसा तब होता है जब कोई राजनीतिक दल बेहद मजबूत हो जाता है और विरोधी दलों के लिए उसे हराना मुश्किल हो जाता है। फिलहाल, बीजेपी ऐसी पार्टी बन गई है जिसे मात देना लगभग असंभव हो गया है। पिछले दो लोकसभा चुनावों में हर तरह के हथकंडे अपनाने के बावजूद विपक्ष को फायदे की जगह नुकसान ही ज्यादा हुआ है। ऐसे में सत्तारूढ़ दल के पक्ष में खड़े उन मतदाताओं को बांटना जरूरी है जो किसी जाति या धर्म से जुड़ा होने के बावजूद एक ही नेता के पक्ष में बार-बार वोट डाल रहे हैं। यह तब ही संभव है जब मतदाताओं को यह दिखाने की कोशिश की जाए कि देश में होने वाली हर अप्रिय घटना का मकसद समुदाय विशेष को प्रताड़ित करना है और इसमें सत्तारूढ़ दल शामिल है। आर्यन और अरुण में क्या है कॉमन आर्यन खान से लेकर अरुण वाल्मीकि तक के मामले में विपक्ष लगातार यही दिखाने में लगा हुआ है कि वर्तमान सरकार, जाति या धर्म विशेष को निशाना बना रही है। अगले साल यूपी, पंजाब, उत्तराखंड सहित गुजरात में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। राजनीति में सत्ता पाने के ​लिए साम, दाम, दंड, भेद का इस्तेमाल कोई नई बात नहीं है। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या मतदाता भी ऐसा ही सोचता है या नहीं। इसका पता तो चुनाव नतीजों के बाद ही लगा पाएगा, लेकिन तब तक यह खेल जारी रहेगा। - संजीव श्रीवास्तव