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Dollar Value: डाॅलर के मुकाबले रुपये हो रहा कमज़ोर, जान लेते हैं इसकी प्रक्रिया

Dollar Value

Source: The Indian Wire

नई दिल्ली: आज के दौर में हम जिस रुपये का इस्तेमाल करने जा रहे हैं उसकी कीमत (Dollar Value) काफी ज्यादा अधिक समझी जा रही है। अभी एक डाॅलर की कीमत 77 रुपये से अधिक हो चुकी है।

ऐसा काफी समय से माना जा रहा है कि रुपये शब्द का सबसे पहले देखा जाए तो इस्तेमाल शेरशाह सूरी ने अपने शासन में करना शुरु कर दिया था। तब सोने और तांबे के सिक्के चला का चलन हुआ करता था। तब तांबे के सिक्कों को ‘दाम’ और सोने के सिक्कों को ‘मोहर’ के नाम से भी जाना जाता था।

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1861 में पहली बार 10 रुपये (Dollar Value) वाले नोट की छपाई हो गई थी। 1864 में 20 रुपये का नोट आ गया था और 1872 में 5 रुपये का 20वीं सदी की शुरुआत से बड़े नोट छपन लगे जिसका हम काफी अच्छे से इस्तेमाल कर रहे थे। 1907 में 500 का नोट छापा गया और 1909 में 1 हजार का नोट आ गया था।

रुपये के बारे में देखा जाए तो इतनी सारी बातें इसलिए कर दी गई है, क्योंकि जो रुपया आपकी जेब में रख दिया जाता है, वो कमजोर होना शुरु हो जाता है। यानी, अंतरराष्ट्रीय बाजार में उसकी कीमत घटना शुरु हो चुकी है।

इसका पता डॉलर की तुलना से करने के बाद लगा सकते हैं। एक डॉलर के मुकाबले रुपये बात करें तो कीमत जितनी कम होने लगती है, रुपया उतना मजबूत हो जाता है। और एक डॉलर के मुकाबले ही रुपये की कीमत जितनी ज्यादा होगी, रुपया उतना कमजोर होना शुरु हो जाता है।

सोमवार यानी 9 मई को रुपया रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच चुका है। इस दिन एक डॉलर की कीमत 77.44 रुपये पर पहुंच गई है। हालांकि, अगले दिन रुपये में 12 पैसे की मजबूती हो चुकी है और 77.32 रुपये एक डॉलर के बराबर हो गया था।

रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार, 2010 की तुलना में 2022 में रुपया लगभग 38 रुपये कमजोर होना शुरु हो गया है। 2010 में एक डॉलर की कीमत 45.72 रुपये पर पहुंच गई थी, जिसकी कीमत आज बढ़ने के बाद 77.32 रुपये हो चुकी है। आजादी वाले दौर बाद से अब तक ऐसे बहुत कम ही मौके देखे गए हैं, जब डॉलर की तुलना में रुपया मजबूत होना शुरु हुआ है।

रुपये कैसे होता है कमजोर

डॉलर की तुलना में अगर किसी भी मुद्रा का मूल्य घटना शुरु हो जाती है तो उसे मुद्रा का गिरना, टूटना या कमजोर होना समझा जाता है। अंग्रेजी में इसे ‘करेंसी डेप्रिसिएशन’ कहा जाता है। रुपये की कीमत कैसे घटती-बढ़ती रहती है, ये पूरा खेल अंतरराष्ट्रीय कारोबार से संबंधित माना जाता है।

इस तरह से समझे गणित

अभी एक डॉलर की कीमत को लेकर बात करें तो 77.32 रुपये पर पहुंच गई है। हम इसे मोटा-मोटी 77 रुपये समझ लेते हैं। अमेरिका के पास 77,000 रुपये मौजूद है और भारत के पास 1 हजार डाॅलर हो गया है। अभी को कुछ खरीदना है जिसकी कीमत 7,700 रुपये हो चुकी है तो इसके लिए 100 डाॅलर देना होता है।

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