HeaDr. Purshotam Lal: चेतना मंच, 30 June 2023
एक ऐसा नाम जो कभी एक छोटे से गांव की तंग गलियो में पुकारा जाता था और आज दुनिया के प्रसिद्ध डाक्टरों में लिया जाता है।
आपने कई अनमोल रत्नों के बारे में जरूर सुना होगा जैसे – हीरा, माणिक व पन्ना आदि। लेकिन यहा हम बात कर रहे हैं देश, दुनिया और समाज को अपना अद्भुत योगदान देने वाले एक ऐसे व्यक्तित्व की जो वास्तव में पूरी मानवता के लिए एक ‘‘अनमोल रत्न‘‘ है। जी हां यह एक ऐसे महान डॉक्टर हैं जो किसी के दिल की बंद होती हुई धड़कन को चलाते रहने का हुनर जानते हैं।
दिल का मामला काफी नाजुक होता है। दिल से धड़कन जुड़ी है और धड़कन से जिन्दगी। जिस दिन धड़कन बंद हो जाती है उस दिन शरीर का वजूद समाप्त हो जाता है। दुर्भाग्यवश कई बार इस दिल में खराबी आ जाती है। कभी इंसान की गलती से तो कभी कुदरत की क्रूरता की वजह से। लेकिन वहीं भगवान के बनाए इस दिल को धरती पर सुधारने वाले भी पैदा होते हैं। ये अपनी शिक्षा अध्ययन, मेहनत और अनुभव से दिल की मरम्मत करते हैं।
बंद होते दिल को धड़काना और भविष्य में उसकी धड़कनों को चलाये रखना कोई आसान काम नहीं है। हम यहां आपको बता रहे हैं एक ऐसे महान हार्ट स्पेशलिस्ट के बारे में जो अमेरिका में हजारों दिलों की धड़कने कायम रखने के बाद अब नोएडा को अपनी कर्मभूमि बना चुके हैं। तो जानते हैं विश्व प्रसिद्ध और तीन बार राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित हार्ट स्पेशलिस्ट डॉ. पुरुषोत्तम लाल के बारे में।
डॉ. पुरुषोत्तम लाल का जन्म पंजाब के फिरोज़पुर जिले के एक छोटे से गांव पत्तो में हुआ और वहां के प्रथम डॉक्टर कहलाए गए। प्राथमिक शिक्षा गांव में पूरी करने के बाद आगे की पढ़ाई उनके मामाजी के गांव के सेना गवर्नमेंट हाईस्कूल में हुई। स्कूली शिक्षा उच्चतम अंको से पूरी करने के बाद वे कॉलेज की शिक्षा पूरी करने के लिए जालंधर गए। फिर अमृतसर से मेडिकल की शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होने वर्ष 1976 में अमेरिका जाकर आधुनिक चिकित्सा पद्धति में अपने हुनर को निखारने का फैसला लिया।
अमेरिका में रहते हुए वो अपोलो हॉस्पिटल मद्रास में भी अपना योगदान दिया करते थे जहां उन्होने कई नई आधुनिक तकनीकों को पहली बार भारतवर्ष में शुरू किया और अनेक डॉक्टरों को भी प्रशिक्षित किया। यहाँ तक की उनके द्वारा सिखाई जा रही कई तकनीकें तो विश्व में पहली बार शुरू की गईं थी। उनके मन में ग्रामीण स्वास्थ्य को बेहतर बनाने का भी भूत सवार रहता था क्योंकि उस समय भारत के गांवां में डॉक्टर आसानी से नहीं पहुंच पाते थे और इसी कारणवश ऐसे काफी लोगों की युवावस्था में ही मृत्यु हो जाती थी जिनको बचाया जा सकता था। डॉक्टर लाल की इस सोच के पीछे एक दुखद कारण ये भी था की उनके पिताजी का भी गांव में डॉक्टर ना होने के कारण छोटी उम्र में ही देहांत हो गया था। और ये घटना उन्हे आगे के जीवन के लिए दुख देती रही। इन सब चीजों को मद्देनज़र रखकर उन्होंने 1996 में भारत वापसी का निर्णय लिया और अपोलो अस्पताल में कार्डियोलॉजी डिपार्टमेंट के इंचार्ज के रूप में कार्य करना शुरू किया।
Dr. Purshotam Lal: भारत सरकार ने बनाया डॉक्टर
डॉ पुरुषोत्तम लाल अपने डॉक्टर बनने का पूरा श्रेय भारत सरकार को देते हैं। वे कहते हैं कि किसी भी देश में ऐसा नहीं होता कि सरकार अपने खर्चे से आपको डॉक्टर बनाए। होनहार विद्यार्थी होने के कारण उन्हें स्कूल के समय से ही छात्रवृत्ति मिलने लगी थी जो मेडिकल की पड़ाई तक जारी रही। उनका कहना है कि छात्रवृत्ति की वजह से ही उन्हें पढ़ने में कोई रुकावट नहीं आई तथा वे मेडिकल तक की पढ़ाई बिना व्यवधान के पूरी कर पाए। उनके पिताजी स्वर्गीय श्री निरंजन लाल साइकिल पंचर ठीक करने की एक छोटी सी दुकान चलाते थे।
जाहिर है की उनकी इतनी आमदनी नहीं होती थी कि बच्चों को उच्च शिक्षा दे पाये। लेकिन उनके बच्चों ने भी ठान लिया था कि उन्होने बहुत पढ़ना है और एक उज्जवल भविष्य बनाना है। डॉ. लाल कहते हैं कि उनका और उनके दोनों बड़े भाइयों का सपना था कि वे पढ़-लिख कर किसी तरह मास्टर बन जाएं। बाद में दोनों बड़े भाई इंजीनियरिंग में चले गए और भाइयों ने ही उन्हें मेडिकल में जाने का सुझाव दिया। वे बताते हैं कि सभी भाई पढ़ने में काफी मेहनती थे एवम हर कक्षा में प्रथम आते थे। इतना ही नहीं यहाँ तक की हर माह छात्रवृत्ति से पैसे बचा कर वे अपने पिता की मदद भी करने लगे। जालंधर में कॉलेज की पढ़ाई के दौरान उन्हें सौ रूपये नेशनल स्कॉलर्शिप तथा साठ रूपये कॉलेज स्कॉलर्शिप मिलती थी जिसमे से काफी पैसे पिताजी को ही दे देते थे। मेडिकल की पढ़ाई के दौरान भी यही सिलसिला जारी रहा।
बचपन की यादें
अपने बचपन के दिनों को याद करते हुए वे बताते हैं कि उन्हे लैम्प की रौशनी में पढ़ाई करनी पड़ती थी। जब लैम्प का शीशा टूट जाता था तो उस पर कागज की चिप्पियां लगाकर काम चलाना पड़ता था। अत्यधिक अभाव होने के बाद भी उन सबने कभी किसी कमी होने की शिकायत नहीं की। उनका बस एक ही लक्ष्य था की आगे बढ़ना है और कुछ कर दिखाना है। यही वजह है कि वे आज विश्व के जाने-माने हृदयरोग विशेषज्ञ है। सफलता प्राप्त करने में वे अपनी माता लाजवंती और पत्नी पूनम का काफी योगदान मानते हैं। उनके तीन बच्चे हैं। सबसे बड़ी बेटी सोनिया और दो छोटे बेटे सन्नी व साहिल हैं। एक हास्य पूर्वक बात ये है की डॉ. पुरुषोत्तम लाल को खाने में वह सब पसंद है जिसे वे अपने पेशेंट को न खाने की हिदायत देते हैं। खाने के बारे में पूछने पर वे हंसते हुए कहते हैं कि “मैं अपने मरीजों को जो मना करता हूं वह सब खाता हूं। पंराठा व मलाई वाले दूध के बगैर मेरा काम नहीं चलता। हां, खाना बनाने का कभी समय नहीं मिलता।”
चिकित्सा को सेवा बनाया
चिकित्सा के क्षेत्र में व्यवसायीकरण की बात पर वे कहते हैं कि इलाज के समय चिकित्सा किसी व्यवसाय के रूप मे उनके और मरीजों के बीच में ना आए इसी कारण वे किसी भी मरीज से अपने हाथ से पैसा नहीं लेते। उनका कहना है कि जब से वो डॉक्टर बने हैं उन्होंने किसी भी मरीज से अपने हाथ से पैसा नहीं लिया। अब सवाल यह है कि आजकल का इलाज और चिकित्सा के उपकरण इतने महंगे हो गए हैं कि बिना पैसे के इलाज़ मुमकिन नहीं है।
इसके बावजूद भी उनकी कोशिश रहती है कि जरूरतमंद व्यक्ति की भी भरसक मदद हो जाए। उन्होंने एक उदाहरण देते हुए बताया कि जब वे अपोलो हॉस्पिटल मद्रास में थे तब उनके पास एक ऐसा मरीज आया जिसके पास मात्र 5 हजार रूपये थे। इतने कम पैसो में उसका लाखो का इलाज संभव ही नहीं था और न अस्पताल के मैनेजमेंट से उसके लिए शिफारिश की जा सकती थी। डॉक्टर साहब उस मरीज तथा उसके साथ आए एक व्यक्ति को अपने घर ले आए। सुबह 4 बजे उस मरीज का हार्ट का वाल्व जो बहुत तंग था उसको बिना कैथ लैब के ईको में ही एक नई तकनीक के साथ खोला जो कि पहले कभी इस्तेमाल मे नहीं लाई गई थी और नतीजतन मरीज का कैथ लैब का खर्चा बच गया और मरीज़ स्वस्थ होकर अपने घर गया। तब से वो इस तकनीक को दूसरे मरीजों में भी प्रयोग करने लगे।
इस तरह से कई अक्षम लोगों की उन्होने मदद की है। डॉ. लाल 20 से भी अधिक नई तकनीकों को भारत में लेकर आए और उनमें से कई तो विश्व में पहली बार अभ्यास मे लाई गई थीं जैसे कि हार्ट के छेद को Monodisc से बंद करना और Core Valve से TAVI तकनीक का उपयोग। यहां तक की बहुत सारे देश जैसे कि जर्मनी, इटली, चाइना, अमेरिका इत्यादी ने डॉ. लाल को दुनिया की पहली तकनीक ‘TAVI‘ का प्रतिनिधित्व करने के लिए भी आमंत्रित किया। इसके अलावा अन्य और तकनीके जैसे कि हार्ट की बंद आरट्री को ड्रिल करना, स्टेंटिंग और हृदय के तंग वाल्व को खोलना इत्यादिए सारी तकनीकों को ना केवल अन्य चिकित्सको के बीच परिचित किया बल्कि इन तकनीकों के बारे में डॉ. लाल ने अपनी पहली पत्रिका भी प्रकाशित कि। मीडिया ने भी इन तकनीकों के बारे मे खूब लिखा। यहां तक की जर्मनी के Prof. Adnan Kastrati जो दुनिया में माने हुए कार्डियोलॉजिस्ट हैं उन्होंने डॉ. लाल को ‘Father of Interventional Cardiology in India’ की उपाधि दी। कुछ विश्वविद्यालयों ने इनको ‘Doctor of Science’ एवं ‘Professor of Cardiology’ की भी पदवी दी।
Dr. Purshottam Lal: विवाह के दिन भी किया 8 घंटे काम
डॉ. पुरुषोत्तम लाल की व्यस्तता का आलम यह है कि अपनी शादी के दिन भी उन्हें 8 घंटे तक काम करना पड़ा था। शिकागो में उनकी शादी के दौरान अचानक बीपर पर मेसेज आने के कारण उनको इमरजेंसी में जाना पड़ा। वे अपनी पत्नी के इसलिए भी शुक्रगुज़ार हैं कि उन्होंने डॉ लाल की व्यस्तता की वजह से कभी परिवार में तनाव नहीं आने दिया। अभी भी 68 वर्ष की उम्र में भी वो 8 से 9 घंटे मरीजों की देखभाल में लगे रहते हैं। पत्नी पूनम अर्थशास्त्र में एम.ए. हैं तथा अमेरिका से एम.बी.ए. भी करके आईं है। उनके एम.बी.ए. होने का लाभ डॉ. लाल को मिला भी है। रोजाना काफी वक़्त वे अस्पताल में व्यतीत कर अस्पताल के प्रबंधन में साथ देती हैं।
डॉ. लाल अपने पिता को ही अपना आदर्श मानते हैं तथा उनकी ईमानदारी और मेहनत की सीख को उन्होने अपनाया है। चिकित्सा के क्षेत्र में आनेवाले युवा लोगों के लिए उनकी सलाह है कि इलाज के दौरान परमात्मा को ध्यान में रख कर प्रार्थना करनी चाहिए कि उन्हे ऐसी शक्ति दें की वह सफलतापूर्वक इलाज कर सके। इसके अलावा किसी भी मरीज को अगर अपने ही परिवार का सदस्य मानकर इलाज किया जाए तो शत प्रतिशत सफलता तय है। जब कोविड बुरी तरह फैला हुआ था तो काफी डॉक्टर हार्ट अटैक वाले मरीजों का इलाज करने में घबराते थे लेकिन उन्होंने सभी ऐसे मरीजों का ऑपरेशन किया भले ही वे खुद कोविड से दो बार ग्रस्त हुए जिसकी उनको बिल्कुल भी चिंता नहीं थी।
चिकित्सा के क्षेत्र में बढ़ती हुई प्रतिस्पर्धा को वे गंभीरता से नहीं लते। उनका कहना है कि प्रोपेगेण्डा करना और कमीशन लेना या देना उनके सिद्धांतो के खिलाफ है। वे कहते हैं कि हम सिर्फ अच्छा काम करते हैं और इसी दम पर आगे बढ़ना चाहते हैं। उनके पास जो भी मरीज आते हैं उनके उत्तम काम के बारे में सुनकर ही आते हैं। वह कहते है कि “हार्ट का इलाज कराने वाले किसी मरीज को 25-50 हजार की बचत से कोई मतलब नहीं होता। वह जब भी आएंगे हमारा काम देख कर ही आएंगे और मैं अपने काम को पूजा की तरह पूरा मन लगाकर करता हूं।”
ग्रामीण स्वास्थ्य (Rural Health)
जैसा की उन्होने बताया की डॉक्टर की अनुपलब्धता के कारण उनके पिता 40 साल की उम्र में गांव में ही गुज़र गए जिससे उनके मन में बहुत ठेस पहुंची और उन्होंने गांव में डॉक्टर को लाने के लिए बहुत शोध किया और एक 3 प्वाइंट फार्मूला बनाया। उसको लागू करने के लिए उन्होंने बतौर बोर्ड ऑफ गवर्नर मेडिकल काउंसिल को जॉइन किया और मेडिकल एडुकेशन सिस्टम को ऐसा बनाने का प्रयास किया कि कोई भी स्पेशलिस्ट गांव जाने में संकोच न करें लेकिन दुर्भाग्यवश वो इसमें सफल नहीं हो पाए क्योंकि भारत में कोई नया सिस्टम शुरू करना इतना आसान नहीं होता।
मैट्रो अस्पताल समूह
डॉ. पुरुषोत्तम लाल ने नोएडा के सेक्टर-12 में सभी आधुनिक उपकरणों से युक्त हृदय रोगो के लिए मैट्रो अस्पताल खोला हुआ है। साथ ही नोएडा के ही सेक्टर-11 में एक मल्टीस्पेशलिटी मैट्रो अस्पताल भी है। इस प्रकार उनके कई अस्पताल प्रीत विहार, पांडव नगर, दिल्ली, मेरठ, वड़ोदरा, रेवाड़ी, जयपुर, सिडकुल, हरिद्वार तथा फरीदाबाद में भी स्थापित हैं। अक्सर मैट्रो हॉस्पिटल में अंतिम दौर से गुजर रहे मरीज आते हैं और कई बार तो ऐसा भी होता है कि सभी जगह से निराश होकर आए मरीज यहां आकर नया जीवन पाते है। डॉ. लाल की मेहनत और अनुभव का ही नतीजा है कि उनके अस्पतालों मे दर्जनों ऐसे प्रयोग हुए हैं, जो सिर्फ भारत में पहली बार हुये है और विश्व मे प्रथम स्थान प्राप्त करते हैं। यही वजह है कि डॉ. लाल का नाम लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्डस में शामिल है और शीघ्र ही गिनिज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्डस में भी शामिल होने वाला है।
Heart Specialist Dr. Purshotam Lal: सम्मान व पुरस्कार
डॉ. पुरुषोत्तम लाल को अब तक तीन दर्जन से अधिक राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय सम्मान व पुरस्कारों से नवाज़ा जा चुका हैं। भारत के राष्ट्रपति द्वारा दिए जाने वाले सर्वाधिक तीन प्रतिष्ठित सम्मान उन्हें प्राप्त हुए हैं। वर्ष 2003 में पद्मभूषण , वर्ष 2004 मे डॉ.बी.सी. रॉय नेशनल अवार्ड अथवा वर्ष 2009 में पद्मविभूषण से डॉक्टर साहब को नवाजा जा चुका है। डॉ. पुरुषोत्तम लाल आज दुनिया भर मे पहचाने जाते है और किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं।