Monday, 6 May 2024

Birth Anniversary : हिन्दुस्तान के फलक पर ध्रुव तारे की तरह चमकते सितारे थे चौधरी साहब

नई दिल्ली। हिन्दुस्तान के फलक पर ध्रुव तारे की तरह चमकते सितारे की तरह ही थे अपने चौधरी साहब। सच…

Birth Anniversary : हिन्दुस्तान के फलक पर ध्रुव तारे की तरह चमकते सितारे थे चौधरी साहब

नई दिल्ली। हिन्दुस्तान के फलक पर ध्रुव तारे की तरह चमकते सितारे की तरह ही थे अपने चौधरी साहब। सच कहें तो चौधरी साहब कुदरत का निजाम ही थे, जो देश की मिट्टी से जुड़े रहने के कारण किसानों और मजदूरों के मसीहा बन गए। उन्होंने गांव, गरीब, भूखे और झोपड़ी की आवाज बनकर जीवनभर देश की सच्ची सेवा की। ऐसे मसीहा चौधरी चरण सिंह को जयंती पर शत—शत नमन!

मौजूदा समय में अगर चौधरी साहब हमारे बीच होते तो शायद किसानों की ऐसी दुर्दशा नहीं होती। देशभर के किसान अपने अधिकारों के लिए सड़कों पर पूरे साल बैठने को मजबूर नहीं होते। उनका मानना था कि किसान इस देश का मालिक है, परन्तु वह अपनी ताकत को भूल बैठा है। देश की समृद्धि का रास्ता गांवों के खेतों एवं खलिहानों से होकर गुजरता है। लेकिन, मौजूदा वक्त ने चौधरी साहब के इन पवित्र और अविस्मरणीय सोच पर बिसरा दिया है।

Birth Anniversary

चौधरी साहब के मन में बचपन से ही कुछ कर गुजरने की तमन्ना थी। वह छात्र जीवन में ही देश की नब्ज को समझने लगे थे। चौधरी चरण सिंह का जन्म जाट परिवार में 23 दिसम्बर 1902 को उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में चौधरी मीर सिंह के परिवार में हुआ था। इनके पिता साधारण किसान थे। गरीबी में जीवन व्यतीत करने के बाबजूद उन्होंने पढाई को पहला दर्जा दिया। इनके परिवार का संबंध 1857 की लड़ाई में हिस्सा लेने वाले राजा नाहर सिंह से था। प्रारम्भिक शिक्षा नूरपुर ग्राम में ही हुई। उन्होंने मेरठ के सरकारी उच्च विद्यालय से मैट्रिक किया। सन 1923 में वह विज्ञान से स्नातक हुए और दो वर्षों के बाद 1925 में कला स्नातकोत्तर की परीक्षा उत्तीर्ण की। आगरा विश्वविद्यालय से कानून की शिक्षा पूरी करने के बाद वह सन 1928 में गाजियाबाद में वकालत करने लगे। वकालत के दौरान वे अपनी ईमानदारी, साफगोई और कर्तव्यनिष्ठा के लिए जाने जाते थे। चौधरी चरण सिंह उन्हीं मुकदमों को स्वीकार करते थे, जिनमें मुवक्किल का पक्ष उन्हें न्यायपूर्ण प्रतीत होता था।

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कांग्रेस के साल—1929 में हुए लाहौर अधिवेशन के बाद चौधरी चरण सिंह ने गाजियाबाद में कांग्रेस कमेटी का गठन किया। सन 1930 में सविनय अवज्ञा आन्दोलन के दौरान ‘नमक कानून’ तोड़ने के आरोप में उन्हें 6 महीने की सजा सुनाई गई। जेल से रिहा होने के बाद उन्होंने खुद को देश के स्वतन्त्रता संग्राम में पूर्ण रूप से समर्पित कर दिया। सन 1937 में मात्र 34 साल की उम्र में वे छपरौली (बागपत) से विधानसभा के लिए चुने गए। 31 मार्च 1938 को उन्होंने ‘कृषि उत्पाद बाजार विधेयक’ पेश किया। यह विधेयक किसानों के हित में था, यह विधेयक सर्वप्रथम 1940 में पंजाब ने अपनाया। उन्होंने महात्मा गांधी की छाया में खुद को स्वतन्त्रता की आंधी का हिस्सा बनाया। सन 1940 के सत्याग्रह आन्दोलन में भी यह जेल गए और 1941 में बाहर आये। आजादी के बाद वह राम मनोहर लोहिया के ग्रामीण सुधार आन्दोलन से जुड़ गए। वह 1952 में उत्तर प्रदेश के राजस्व मंत्री बने और किसानों के हित में कार्य करते रहे। उन्होंने 1952 में ‘जमींदारी उन्मूलन विधेयक’ पारित किया। इस विधेयक के कारण 27 हजार पटवारियों ने त्याग पत्र दे दिया, जिसे उन्होंने निडरता के साथ स्वीकार किया और किसानों को पटवारी के आतंक से आजाद किया। उन्होंने खुद ‘लेखपाल’ पद का भार सम्भाला और नए पटवारी नियुक्त किये, जिसमे 18 फीसद हरिजनों के लिए आरक्षित किया गया।

Birth Anniversary

चौधरी साहब ने किसानों को इजाफा-लगान व बेदखली के अभिशाप से मुक्ति दिलाने के लिए ‘भूमि उपयोग बिल’ का मसौदा तैयार करवाया और 1952 में जमींदारी उन्मूलन अधिनियम पास करवाकर प्रशंसनीय कार्य किया। उन्होंने किसानों की प्रगति के लिए जो कार्य किए, वे एक अनूठी मिशाल है, जो आज तक कोई किसान नेता नहीं कर पाया है।

सन् 1969 में उत्तर प्रदेश में विधानसभा के मध्यावधि चुनावों में 98 सीटों पर विजय प्राप्त करके 1970 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और 1974 में 29 अगस्त को लोकदल का गठन किया। 1975 में इमरजेंसी के दौरान उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। सन 1977 में जनता पार्टी के गठन में मुख्य भूमिका निभाकर लोकसभा के लिए प्रथम बार निर्वाचित हुए और जनता पार्टी सरकार में गृहमंत्री बने। 30 जून 1978 को प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के साथ मतभेद होने के कारण मं​त्रिमंडल से त्याग पत्र दे दिया।

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उनके जीवन का एक रोचक किस्सा आज भी नहीं भूलता है। प्रधानमंत्री रहते हुए बड़ौत में सभा को संबोधित करने के बाद उनके पास शिक्षकों का एक दल पहुंचा। उन्होंने अपने-अपने ग्रेड के हिसाब से सैलरी बढ़ाने की बात कही। तब चौधरी साहब ने पूछा कि आप कितने घंटे स्कूल में पढ़ाते हैं।शिक्षकों का जवाब था, 6 घंटे। तब उन्होंने शिक्षकों से कहा था देश का जवान आपसे कम सैलरी पर 24 घंटे ड्यूटी करता है। इसलिए 24 घंटे के हिसाब से आपकी सैलरी में कटौती कर देता हूं। उसके बाद सभी शिक्षक माफी मांगते हुए वहां से लौट आए थे।

अपने विचारों के कारण ही चौधरी साहब अमरत्व को प्राप्त हुए। उनका विचार था कि असली भारत गांवों में रहता है। अगर देश को उठाना है तो पुरुषार्थ करना होगा। हम सबको पुरुषार्थ करना होगा। मैं भी अपने आपको उसमें शामिल करता हूं। मेरे सहयोगी मिनिस्टरों को, सबको शामिल करता हूं। हमको अनवरत परिश्रम करना पड़ेगा। तब जाकर देश की तरक्की होगी। उनका विचार था कि राष्ट्र तभी संपन्न हो सकता है, जब उसके ग्रामीण क्षेत्र का उन्नयन किया गया हो तथा ग्रामीण क्षेत्र की क्रय शक्ति अधिक हो। जब तक किसानों की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होगी, तब तक देश की प्रगति संभव नहीं है। किसानों की दशा सुधरेगी तो देश सुधरेगा। किसानों की क्रय शक्ति नहीं बढ़ती, तब तक औद्योगिक उत्पादों की खपत भी संभव नहीं है। भ्रष्टाचार की कोई सीमा नहीं है। जिस देश के लोग भ्रष्ट होंगे, वो देश कभी, चाहे कोई भी लीडर आ जाये, चाहे कितना ही अच्छा प्रोग्राम चलाए, वो देश तरक्की नहीं कर सकता। हरिजन, आदिवासी, भूमिहीन, बेरोजगार या जिनके पास कम रोजगार है और अपने देश के 50 फीसदी किसान, जिनके पास केवल एक हेक्टेयर से कम जमीन है, इन सबकी तरफ सरकार को विशेष ध्यान होगा। सभी पिछड़ी जातियों, अनुसूचित जातियों, कमजोर वर्गों, अल्पसंख्यकों, अनुसूचित जनजातियों को अपने अधिकतम विकास के लिये पूरी सुरक्षा एवं सहायता सुनिश्चित करनी होगी।

चौधरी चरण सिंह ने अत्यंत साधारण जीवन व्यतीत किया। अपने खाली समय में वे पढ़ने लिखने का काम करते थे। उन्होंने कई किताबें लिखीं, जिसमें ‘ज़मींदारी उन्मूलन’, ‘भारत की गरीबी और उसका समाधान’, ‘किसानों की भूसंपत्ति या किसानों के लिए भूमि, ‘प्रिवेंशन ऑफ़ डिवीज़न ऑफ़ होल्डिंग्स बिलो ए सर्टेन मिनिमम’, ‘को-ऑपरेटिव फार्मिंग एक्स-रे’ आदि प्रमुख हैं।

अपने कर्म और विचारों के कारण ही चौधरी चरण सिंह किसानों, मजदूरों और मजलूमों के मसीहा बन गए। उनका कहना था कि किसान इस देश का मालिक है, परन्तु वह अपनी ताकत को भूल बैठा है। देश की समृद्धि का रास्ता गांवों के खेतों एवं खलिहानों से होकर गुजरता है। इसी सोच के तहत उनके हृदय में गांव, गरीब और किसानों के शोषण के खिलाफ संघर्ष का बीजारोपण हुआ था। यही कारण है कि भारत में, चौधरी चरण सिंह का जन्मदिन ‘राष्ट्रीय किसान दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। प्रत्येक वर्ष 23 दिसम्बर को भारत के पूर्व प्रधानमंत्री और किसान नेता चौधरी चरण सिंह के जन्मदिन के अवसर पर राष्ट्रीय किसान दिवस मनाया जाता है।

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