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Diwali Special : गुर्जर समाज मे अब भी जिंदा है भगवान देवनारायण के साथ हुए अत्याचार का बदला लेने की परंपरा

Here is now alive the tradition of taking revenge for the atrocities committed with our Lord Devnarayan

Here is now alive the tradition of taking revenge for the atrocities committed with our Lord Devnarayan

Diwali Special : भोपाल। आप इस परंपरा को कोई भी उपमा दे सकते हैं, लेकिन अपने भगवान के साथ हुए अन्याय और अत्याचार के प्रतिकार के तौर पर एक अनोखी परंपरा आज भी कायम है। यह अजीबो गरीब परंपरा मध्य प्रदेश के रतलाम जिले के कनेरी गांव की है। दीपों के महापर्व दीपावली का त्योहार पूरे देश में बड़े ही उत्साह, श्रद्धा और धूमधाम से मनाया जाता है, लेकिन इस गांव में रहने वाले गुर्जर समाज के लोग तीन दिनों तक ब्राह्मणों का चेहरा नहीं देखते हैं। आइये जानते हैं इस अनोखी परंपरा से जुड़ी दिलचस्प कहानी।

Diwali Special :

रतलाम के कनेरी गांव में ये परंपरा सदियों से जारी है। यहां रहने वाले गुर्जर समाज के लोग आज भी इस परंपरा को अपने पूर्वजों की तरह मना रहे हैं। परंपरा के तहत दीवाली के दिन गुर्जर समाज के लोग कनेरी नदी के पास एकत्रित होते हैं और फिर एक कतार में खड़े होकर एक बेर की लंबी टहनी को हाथ में लेकर उसे पानी में बहाते हैं, फिर उसकी विशेष पूजा करते हैं। पूजा के बाद समाज के सभी लोग मिलकर घर से लाया हुआ खाना खाते हैं और पूर्वजों द्वारा शुरू की गई परंपरा का पालन करते हैं। दीपोत्सव के पांच दिन में से तीन दिन रूप चौदस, दीवाली और पड़वी के दिन गुर्जर समाज के लोग ब्राह्मणों का चेहरा नहीं देखते। गुर्जर समाज के लोग दीपावली के दिन ब्राह्मणों का चेहरा नहीं देखते हैं। समाज के लोग पितरों का श्राद्ध भी इसी दिन ही करते हैं। क्षेत्र में गुर्जर समाज के लगभग 200 घर हैं। दीपावली के एक दिन पूर्व गुर्जर समाज के लोग बाजार के सारे कार्य कर लेते हैं। यहां तक कि कुएं-बावड़ी से पानी भी रात 12 बजे के पहले ही भर लेते हैं।

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इस परंपरा के पीछे एक और कहानी प्रचलित है। समाज के लोगों के मुताबिक मान्यता है कि गुर्जर समाज के देवता भगवान देवनारायण के नामकरण के समय राजा बागड़ के कहने पर चार ब्राम्हणों ने उन्हें मारने का प्रयास किया था। इस कारण भगवान देवनारायण ने श्राप दिया था कि दीपावली के दिन गुर्जर समाज के लोग ब्राम्हणों का चेहरा नहीं देखेगें।

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यह भी मान्यता है कि गुर्जर समाज के आराध्य भगवान देवनारायण की माता ने ब्राह्मणों को श्राप दिया था। उसके मुताबिक दिवाली के तीन दिन रूप चौदस, दीपावली और पड़वी तक कोई भी ब्राह्मण गुर्जर समाज के सामने नहीं आ सकता है। गुर्जर समाज के लोग भी इन तीन दिनों में किसी भी ब्राह्मण का चेहरा नहीं देख सकते हैं। तब से लेकर आज तक गुर्जर समाज दिवाली पर विशेष पूजा करता है। इस दिन कोई भी ब्राह्मण गुर्जर समाज के सामने नहीं आता और ना ही कोई गुर्जर ब्राह्मणों के सामने जाता है। इस परंपरा के चलते गांव में रहने वाले सभी ब्राह्मण अपने-अपने घरों के दरवाजे बंद कर लेते हैं।

इस परंपरा की याद दिलाने के लिए रात में ढोल बजाकर गुर्जर समाज के लोगों को सूचित किया जाता है। दीपावली के दिन सुबह गुर्जर समाज का कोई भी सदस्य घर से बाहर नहीं निकलता है और पितरों का श्राद्ध करता है। पितरों का तर्पण भी दीपावली की अमावस्या को ही होता है। इनके यहां श्राद्ध पक्ष में कोई श्राद्ध नहीं होता है। इसके पश्चात दोपहर तक कोई अपने घर से नहीं निकलता है। हालांकि समय के बदलाव से अब दोपहर बाद कुछ लोग घर से निकलने लगे हैं।

कनेरी गांव में जारी यह परंपरा सदियों से जारी है। हालांकि अब इसे निभाने वाले लोगों की संख्या में कमी आ गई है। लेकिन, गांव में कुछ बुजुर्ग लोग अब भी इस परंपरा का निर्वहन करते हैं। पूरे विधि-विधान से पूजा की जाती है। जब दीवाली पर गुर्जर समाज के लोग नदी पर पूजा करने जाते हैं तो गांव में सन्नाटा छा जाता है।

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