GHAZIABAD KHAS: गाजियाबाद। उप्र सरकार क्राइम रोकने के लिए नए प्रयोग के तौर पर प्रदेश में पुलिस कमिश्नरेट सिस्टम लागू कर रही है। लेकिन, जिन—जिन जगहों पर इसे लागू किया गया है वहांं—वहां वह फेल साबित हो रहा है। नई कमिश्नरेट बनने के बाद पुलिसकर्मियों से लेकर आईपीएस अफसरों तक की संख्या बढ़ गयी है। अभी और बढ़ेगी। दूसरी ओर, पूरे सिस्टम को देखा जाए तो गाजियाबाद जिले में पुलिस कमिश्नरेट पूरी तरह से फेल हो रहा है। जनता चाहती है कि उनके जिले को पुलिस सुविधा आसानी से मिले इसके लिए वापस एसएसपी की तैनाती कर कमान उनके हवाले कर दी जाए।
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संख्या बढ़ने से सरकार के खर्चें भी बढ़ गए। लेकिन, जो सोच लेकर सरकार पहल कर रही है उसका फायदा आम लोगों को नहीं मिल रहा है। बल्कि, उनके चक्कर यानि भागदौड़ अधिक बढ़ गए हैं। इतना ही नहीं, दावे के साथ यह भी कहा जा रहा है कि पुलिस कमिश्नरेट बनने के बाद भी क्राइम रेट में कहीं से भी कोई कमी नहीं आई है। सपाट कहें तो, अपराधों की संख्या में इजाफा ही हुआ है और होते भी जा रहा है।
आइये, अब हम आपको ले चलते हैं आंकड़ों पर। जिला गाजियाबाद में पहलेे जिले का इंचार्ज आईपीएस अधिकारी बतौर एसएसपी होता था। उनके सहयोग के लिए एक एसपी सिटी और एक एसपी आरए हुआ करते थे। ये तीनों आईपीएस मिल कर अपने सहकर्मियों के साथ पूरे जिले की कमान संभालते थे। खास तो यह है, आम लोगों को भी इधर—उधर नहीं भागना पड़ता था। उनको पता था कि किस क्षेत्र के लोगों को कहां और किस अफसर से मिलना है। लेकिन, पुलिस कमिश्नरेट बनने के बाद आम तो छोड़िए, खास को भी नहीं पता कि वह किस काम के लिए किस अफसर से मिलें।
आंकड़ों की बात करें तो, गाजियाबाद पुलिस कमिश्नरेट बनने से पहले पूरे जिले में 5000 पुलिस कर्मी थे। बाद में कमिश्नरेट बनने पर 1500 पुलिस कर्मी और बढ़ गए। बात यहीं पर खत्म नहीं होती। पुलिस विभाग के कारखासों के मुताबिक, पुुलिस कर्मियों की संख्या अभी 2000 और बढ़नी है।
गाजियाबाद पुलिस कमिश्नरेट को अब सर्किलों में विभाजित कर दिया गया है। तीन जोन के साथ ही इसे नौ सेक्टरों में विभाजित किया गया है। पहले डीएसपी इंचार्ज होता था लेकिन, अब उसे बदल कर पद नाम एसीपी कर दिया गया है। साथ ही एक एसीपी का पद भी बढ़ा दिया गया है। सर्किल संख्या की बात करें तो इसकी संख्या 5 है लेकिन, एक संख्या और बढ़ेगी तब यह 6 हो जाएगी। गाजियाबाद में पहले 23 थाने थे जो बढ़कर 25 हो गए है। लेकिन, दो थाने और बढ़ाये जाएंगे। हालांकि, थानों की संख्या 35 तक बढ़ेंगे।
पहले टीएसए ट्रांस हिंडन में डीएसपी वहां कां इंचार्ज हुआ करता था लेकिन, एसएसपी के कार्यकाल में वहां पर एसपी सिटी—2 का पद कर दिया गया। अब उसी पद को एडीसीपी में कन्वर्ट कर दिया गया। कमिश्नरेट बनने के बाद अब यहां पर एडीसीपी यातायात, एडीसीपी क्राइम भी हैं। ये दोनों आईपीसी अधिकारी हैं। स़ूत्रों पर भरोसा करें तो गाजियाबाद में आईपीएस अफसरों की संख्या 10 तक करने की योजना है।
लेकिन, नहीं थम रहा क्राइम:
जिस क्राइम को रोकने के लिए उप्र सरकार लिटमस टेस्ट के तौर पर जिलों को पुलिस कमिश्नरी में कन्वर्ट कर रही है उसका लाभ लोगों को नहीं मिल रहा है। बल्कि, सच्चाई तो यही है कि क्राइम रेट कम न होकर बढ़ा ही है। इससे लोगों की दुश्वारियां बढ़ी है और उन्हें चक्कर—दर—दर चक्कर लगाने पड़ रहे हैं। जिले में क्राइम की बात करें तो उसकी संख्या में इजाफा ही होते जा रहा है। पहले किसी परमिशन के लिए लोग डीएम के पास जाते थे और वहीं से उनको परमिश्न मिल जाता था। लेकिन, अब इसी काम के लिए कई चक्कर लगाने पड़ते हैं और समय के साथ ही पैसा भी अधिक खर्च हो रहा है।
वाहन, घर के साथ ही दफ्तरों की संख्या और खर्च भी बढ़े:
जिले के लिए एसएसपी, एसपी सिटी, एसपी आरए ही बहुत है। पुलिस कमिश्नरेट तो अनावश्यक लोड है। कमिश्नरेट बनने के बाद सरकार पर खर्चे का लोड बढ़ा है। थोक के भाव अफसरों और पुलिस कर्मियों की संख्या में इजाफा हुआ है। उनके लिए गाड़ी, मकान, दफ्तर के साथ ही अन्य सुविधाओं पर भी खर्च अधिक बढ़ गए हैं।
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