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Political Analysis : अयोध्या में कार सेवकों पर गोली न चली होती तो नहीं हो पाता भाजपा का यूं उदय

Political Analysis

The firing on kar sevaks in Ayodhya

 मनोज रघुवंशी

Political Analysis : नई दिल्ली। देश के जाने माने पत्रकार व चेतना मंच के सतत सहयोगी मनोज रघुवंशी ने आंखों देखी घटना के आधार पर बड़ा विश्लेषण किया है। उनका मत है कि यदि 32 साल पहले उस वक्त के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव (अब दिवंगत) ने अयोध्या में कार सेवकों पर गोली नहीं चलवाई होती तो देश में भारतीय जनता पार्टी का उदय इतनी तेजी से नहीं होता।

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अयोध्या में कार सेवकों पर हुए उस गोलीकाण्ड का आंखों देखा हाल प्रसिद्ध पत्रकार मनोज रघुवंशी ने केवल चेतना मंच के लिए विस्तार से लिखा है। आप भी पढ़िए पूरा सच।

ठीक 32 साल पुरानी बात है। अयोध्या में पुलिस की फायरिंग में हमारे कैमरे के सामने लोग मारे गए। अभी तीन दिन पहले ‘चेतना मंच’ में मेरी स्टोरी छपी थी कि कैसे उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के सख्त दावों के बावजूद उनकी पुलिस ने कार सेवकों को, करीब-करीब एस्कॉर्ट करते हुए, श्रीराम जन्मभूमि मंदिर परिसर के गेट तक पहुंचा दिया, और अंदर से आकर एक पुलिसवाले ने गेट का ताला खोल दिया। कार सेवकों ने परिसर में घुसकर तोड़फोड़ की, जिसको हम केवल इस कारण से शूट कर पाए क्योंकि हमें एक सूत्र ने 15 मिनट पहले ही सूचना दे दी थी कि पुलिस कार सेवकों को मंदिर परिसर में प्रवेश देने वाली है। अब उसके बाद की कहानी।

वो घटना 30 अक्टूबर, 1990 की थी। उसके बाद दो दिन तक सस्पेंस बना रहा कि अब क्या होगा? अयोध्या में विश्व हिन्दू परिषद के एक सूत्र ने मुझे बताया था कि कुछ और होने वाला है, लेकिन वो ये नहीं जानते कि क्या होगा, और कब होगा। सूत्र विश्वसनीय था, इसलिए हमने विचार किया कि जो भी हो, वो हमारी टीम को कवर करना चाहिए।

ये सारा घटनाक्रम बाबरी ढांचे के सम्पूर्ण विध्वंस से दो साल पहले का है।

30 अक्टूबर को एक खबर आग की तरह फैल गयी थी कि लाठीचार्ज में विश्व हिन्दू परिषद के तत्कालीन नेता अशोक सिंघल जी के सिर में गंभीर चोट आयी है। पहले पता चला कि अशोक सिंघल जी अस्पताल में हैं, लेकिन अस्पताल जाने पर वो नहीं मिले। खबर की पुष्टि तो नहीं हुई, लेकिन इस खबर से वहां पहुंचे कार सेवक बहुत ज्यादा आहत हुए।

दो दिन में कार सेवकों का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया। सूचना मिली कि अशोक जी के साथ कुछ गुप्त मीटिंगों में कार सेवकों को मानसिक रूप से तैयार किया गया कि दो नवम्बर को उन्हें क्या करना है।

दो नवम्बर को कार सेवकों का एक विशाल समूह एक बार फिर से श्रीराम जन्मभूमि परिसर की ओर बढ़ने लगा। लेकिन, 30 अक्टूबर के मुकाबले ये हुजूम बहुत दृढ़-संकल्प वाला लग रहा था। आज का हुजूम पुलिस पर पथराव नहीं कर रहा था। आज का हुजूम सड़क पर बैठकर एक-एक कदम करके आगे बढ़ रहा था। लोग एक-दूसरे से चिपक कर इंच-दर-इंच आगे सरक रहे थे। पुलिस उनको रोकने का प्रयास कर तो रही थी, लेकिन ऐसा लग रहा था कि आज लोग रुकेंगे नहीं। आज ये मंदिर परिसर तक पहुंच ही जाएंगे, और आज शायद बाबरी ढांचा बचेगा नहीं।

तभी मुलायम सिंह यादव का आदेश आया और पुलिस ने फायरिंग शुरू कर दी। फायरिंग बहुत ही नृशंस थी। प्वाइंट-ब्लैंक रेंज पर, आटोमेटिक राइफलों से, निहत्थे कार सेवकों पर गोलियां चलाई गयीं। दो भाइयों, कोठारी बंधुओं को घर से निकालकर गोली मारी गयी। 30 अक्टूबर को भी, अंत में हल्की फायरिंग में 2 लोगों कि मृत्यु हुई थी, जिसमे एक तो हमारे कैमरा के सामने ही मरा था। आज का दृश्य वीभत्स था। आज, दोनों दिन की मिलाकर मृतकों की कुल संख्या 16 पहुंच गयी। बात संख्या की नहीं थी, बर्बरता की थी। संख्या केवल 16 थी, लेकिन अफवाहों में बढ़ गयी। अफवाह थोड़ी दूर पहुंची तो लोगों ने सुना कि 160 कार सेवक मारे गए। थोड़ी और दूर पहुंची तो मरने वालों की संख्या 1,600 हो गयी। और दूर जाने पर 16,000 हो गयी। विश्व हिन्दू परिषद् ने मरने वालों की एक लिस्ट भी जारी की, जिसमे लिखे नामों में, बाद में बहुत से लोग जिंदा पाए गए। बहरहाल, फायरिंग का रिबाउंड मुलायम सिंह यादव पर हो चुका था।

उस फायरिंग का खामियाजा मुलायम सिंह यादव को उत्तर प्रदेश के चुनाव में उठाना पड़ा। अगले साल ‘जनता दल’ की हार हुई और ‘भाजपा’ की जीत। कल्याण सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने, जो वो 6 दिसंबर, 1992 तक रहे, जिस दिन बाबरी ढांचे के विध्वंस के कारण उनकी सरकार चली गयी। लेकिन 2 नवम्बर, 1992 की फायरिंग के अगले साल एक और बड़ा बदलाव आया। लोकसभा चुनाव में ‘भाजपा’ की सीटें 88 से बढ़कर 119 हो गयीं। ये ‘भाजपा’ के राष्ट्रीय पटल पर सत्ता में आने से बस दो कदम दूर था। 1996 के लोकसभा चुनाव में यानी बाबरी विध्वंस के बाद वाले चुनाव में ‘भाजपा’ की सीटें बढ़कर 163 हो गयीं और भाजपा की 13 दिन की सरकार बन गयी। उसके अगले लोकसभा चुनाव, यानी 1998 में भाजपा की सीटें 182 हो गयीं और उसने पहली गठबंधन सरकार बना ली। फिर भाजपा ने अगले साल, यानी 1999 के लोकसभा चुनाव में एक बार फिर केंद्रीय सरकार बना ली, जो पूरे पांच साल तक चली। उसके बाद का इतिहास सबके सामने है।

भाजपा के इस सारे इजाफे में मुलायम सिंह यादव की 2 नवम्बर, 1990 की फायरिंग के आदेश का असर बार बार पड़ा, लगातार पड़ा।

 

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