बॉलीवुड की नई ब्लॉकबस्टर बनी ‘सैयारा’, बॉक्स ऑफिस पर मचाई धूम

Saiyaara
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calendar04 Aug 2025 08:29 PM
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जहां आजकल बॉलीवुड की अधिकांश बड़ी फिल्में तीसरे हफ्ते में बॉक्स ऑफिस पर ठंडी पड़ जाती हैं, वहीं 'सैयारा' ने ठीक इसके उलट कर दिखाया है। अहान पांडे और अनीत पड्डा की इस रोमांटिक ड्रामा ने अपने तीसरे हफ्ते में भी जबरदस्त कमाई करते हुए 300 करोड़ रुपये का आंकड़ा पार कर लिया है वो भी तब, जब दोनों कलाकारों की यह पहली फिल्म है। इससे पहले ऐसा करिश्मा बॉलीवुड में पिछले ढाई दशक में नहीं हुआ।  Saiyaara

सरप्राइज हिट से मेगा ब्लॉकबस्टर तक का सफर

'सैयारा' की रिलीज से पहले तक न ट्रेड पंडितों को इसकी उम्मीद थी, न ही दर्शकों को। लेकिन ओपनिंग डे से ही फिल्म ने सिनेमाघरों में दर्शकों की भीड़ खींचना शुरू कर दिया। तीसरे सप्ताह में पहुंचने के बावजूद इसका जादू कम नहीं हुआ—जहां शुक्रवार को फिल्म ने 5 करोड़, शनिवार को 7 करोड़ और रविवार को 8 करोड़ से ऊपर की कमाई की। कुल मिलाकर 17 दिन में फिल्म ने 305 करोड़ का नेट कलेक्शन कर लिया है।

पहली बार डेब्यू जोड़ी की फिल्म ने छुआ 300 करोड़ का आंकड़ा

मोहित सूरी के निर्देशन में बनी 'सैयारा' अब 2025 की दूसरी सबसे बड़ी फिल्म बन गई है—'छावा' के बाद। लेकिन जो बात इसे खास बनाती है, वह है इसका रिकॉर्ड-तोड़ना डेब्यू फिल्म के रूप में। यह पहली ऐसी हिंदी फिल्म है जिसकी मुख्य जोड़ी पहली बार स्क्रीन पर आई और फिर भी उसने 300 करोड़ रुपये की कमाई कर डाली। यही नहीं, 'सैयारा' ने 'पीके' (17 दिन), 'वॉर' (19 दिन), 'बजरंगी भाईजान' (20 दिन) और 'सुल्तान' (35 दिन) जैसी मेगा हिट फिल्मों से भी तेज़ी से यह आंकड़ा पार कर लिया है।

आज के दौर में जब टिकट की कीमतें आसमान छू रही हैं, असली पैमाना सिर्फ कलेक्शन नहीं, बल्कि थिएटर तक पहुंचने वाले दर्शकों की संख्या होती है—जिसे फुटफॉल कहा जाता है। इस पैमाने पर भी 'सैयारा' ने शानदार प्रदर्शन किया है। पुरानी यादगार डेब्यू हिट फिल्मों जैसे ‘बॉबी’, ‘मैंने प्यार किया’, ‘कयामत से कयामत तक’, ‘फूल और कांटे’ और ‘कहो ना प्यार है’ की तरह 'सैयारा' का फुटफॉल अब तक 1.5 करोड़ से ऊपर पहुंच चुका है और अनुमान है कि इसका फाइनल फुटफॉल 2 करोड़ के पार जा सकता है। अगर ऐसा होता है, तो यह 25 वर्षों में पहला मौका होगा जब किसी नई जोड़ी की फिल्म ने यह आंकड़ा छुआ हो।

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क्यों खास है 'सैयारा' का यह मुकाम?

बॉक्स ऑफिस की चमक-धमक के पीछे असली सफलता वही मानी जाती है जो दर्शकों के दिलों में जगह बनाए—और 'सैयारा' ने यह काम बखूबी किया है। इसकी कहानी, संगीत, कैमिस्ट्री और निर्देशन ने नई पीढ़ी को भी वह रोमांस याद दिला दिया जिसकी झलक कभी 'कहो ना प्यार है' या 'बॉबी' में मिली थी।   Saiyaara

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महावातार नरसिंह ने दिखाया अपना रूप, पहली बार किसी इंडियन एनीमेशन ने बॉक्स ऑफिस पर मचाई धूम

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calendar04 Aug 2025 07:06 PM
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Bollywood News : इंडिया की एनीमेशन दुनिया में एक नई कहानी लिखी गई है। महावातार नरसिंह, एक ग्रैंड माइथोलॉजिकल एनीमेटेड फिल्म जिसे अश्विन कुमार ने डायरेक्ट किया है, इस फिल्म ने सबको सरप्राइज़ कर दिया है (बाय बिकमिंग द फर्स्ट इंडियन एनीमेटेड फिल्म सिंस 2005 टू रूल द बॉक्स ऑफिस )इस एपिक फिल्म ने ना सिर्फ देश में बल्कि ग्लोबल लेवल पर भी अपना इम्पैक्ट दिखाया है। फिल्म के मेकर्स ने ऑडियंस का शुक्रिया अदा करते हुए कहा कि उनकी मेहनत तभी सफल हुई जब व्यूअर्स ने इस कहानी को दिल से अपनाया। इस सफलता के बाद, एनीमेशन इंडस्ट्री में नई उम्मीदें जगी हैं।

पब्लिक का दिल जीत गया एनीमेशन अवतार

अश्विन कुमार की महाअवतार नरसिंह ने वो कर दिखाया जो इंडियन एनीमेशन इंडस्ट्री पिछले 18 सालों से सिर्फ सपना देख रही थी। 2005 के बाद पहली बार कोई एनिमेटेड फिल्म इतनी बड़ी कमर्शियल सक्सेस बनी है। माइथोलॉजिकल स्टोरीटेलिंग, पावरफुल विज़ुअल्स और इमोशनल डेप्थ ने ऑडियंस को सिनेमा हॉल्स तक खींच लिया। फिल्म ने रिलीज़ के पहले वीकेंड में ₹85 करोड़ का रिकॉर्ड तोड़ कलेक्शन किया, जो कि एक एनिमेटेड फिल्म के लिए हिस्टॉरिक है।

टीम का दिल से शुक्रिया

मेकर्स ने सोशल मीडिया पर एक हार्टफेल्ट वीडियो रिलीज़ किया, जहां उन्होंने कहा "ये सिर्फ एक फिल्म नहीं, एक भक्ति और वीर रस से भरा आंदोलन था। आप सभी का सपोर्ट हमारे लिए आशीर्वाद जैसा है। डायरेक्टर अश्विन कुमार ने कहा कि उनका विज़न था एक ऐसी कहानी बनाना जो माइथोलॉजी को मॉडर्न जेनरेशन तक ले आए और ये सपना तभी पूरा हो पाया जब टीम ने फुल फेथ के साथ काम किया।

क्या बनाता है महावतार नरसिम्हा को स्पेशल

महावातार नरसिंह एक विजुअली स्टनिंग एनिमेटेड फिल्म है जो इंडियन माइथोलॉजी को मॉडर्न अंदाज़ में पेश करती है। इसके इंटरनेशनल-लेवल VFX और ब्रेदटेकिंग एनीमेशन ने सबको इम्प्रेस किया। बैकग्राउंड स्कोर ने कहानी के इमोशन्स को और गहरा बना दिया जबकि स्ट्रॉन्ग कैरेक्टर डीटेलिंग और परफेक्ट स्टोरी पेसिंग ने ऑडियंस को डीपली कनेक्ट करने पर मजबूर किया। फिल्म एक कंप्लीट फैमिली एंटरटेनर है जो डिवोशन, धर्म और जस्टिस जैसे पावरफुल थीम्स को सेलिब्रेट करती है। यह सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि भक्ति और वीर रस से भरा एक सिनेमैटिक एक्सपीरियंस है, जो हर उम्र के दर्शकों के लिए अनफॉरगेटेबल बन जाता है।

इंडस्ट्री में उम्मीद की नई किरण

इस फिल्म की सफलता ने बॉलीवुड और एनीमेशन स्टूडियोज़ को एक नया डायरेक्शन दिया है। एक्सपर्ट्स कह रहे हैं कि अब और भी माइथोलॉजिकल और ओरिजिनल एनीमेटेड कंटेंट बनाने का रास्ता खुला है। ट्रेड एनालिस्ट कोमल नाहटा के शब्दों में, "महावातार नरसिंह ने प्रूव कर दिया कि अगर कंटेंट स्ट्रॉन्ग हो, तो एनीमेशन भी ब्लॉकबस्टर हो सकता है।"
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खोटे सिबलिंग्स, जब बॉलीवुड के गोल्डन डेज़ में दो सितारे चमके

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calendar02 Dec 2025 12:32 AM
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Bollywood News : बॉलीवुड के गोल्डन एरा का ज़िक्र हो और खोटे सिबलिंग्स का नाम न आए तो कहानी अधूरी सी लगती है। शुभा खोटे और विजय खोटे—दो नाम जो सिनेमा और थियेटर की दुनिया में एक मिसाल बन गए। इनका फिल्मी सफर सिर्फ ग्लैमरस नहीं बल्कि रूटेड था उनकी कला और संस्कार में। इनके पिता नंदू खोटे साइलेंट फिल्म एरा के स्टार थे और बुआ थीं आइकॉनिक दुर्गा खोटे। इस फैमिली ने सिर्फ एक्टिंग का जलवा नहीं बिखेरा बल्कि एक कल्चरल लेगेसी भी एस्टैब्लिश की। चलिए जानते हैं कैसे इन दोनों ने अपने टैलेंट से हिंदी-मराठी सिनेमा को अमर बना दिया।

सिनेमा की खूबसूरत विरासत

शुभा और विजय खोटे ने अलग-अलग रास्ते चुने लेकिन दोनों ने ही अपनी एक्टिंग से दिल जीत लिया। शुभा खोटे, अपनी वाइब्रेंट कॉमिक टाइमिंग और ग्रेसफुल स्क्रीन प्रेजेंस के लिए जानी जाती थीं। 1950 से लेकर 1980 तक वो हिंदी सिनेमा का एक जाना-पहचाना चेहरा रहीं। चाहे सीमा, अनाड़ी या लव इन टोक्यो हो—उन्होंने हर रोल में अपनी छाप छोड़ी। थिएटर में भी उनकी उतनी ही मज़बूत मौजूदगी रही—मराठी नाटकों में उनका योगदान प्राइसलेस है। दूसरी तरफ विजय खोटे का नाम सुनते ही याद आता है आइकॉनिक लाइन: “गब्बर सिंह के लोग”। हां यही थे फिल्म शोले के कालिया। लेकिन उनकी जर्नी सिर्फ एक डायलॉग तक सीमित नहीं थी। उन्होंने 300 से भी ज़्यादा फिल्मों में काम किया, जिनमें हिंदी और मराठी दोनों शामिल थीं। कॉमिक रोल्स हों या कैरेक्टर पार्ट्स, विजय खोटे ने हमेशा स्क्रीन पर एक एफ़र्टलेस चार्म लाया। अंदाज़ अपना अपना से लेकर गोलमाल 3 तक, उनका सेंस ऑफ ह्यूमर टाइमलेस रहा।

परिवार जहां कला संस्कार थी

इनका बैकग्राउंड सिर्फ फिल्मी नहीं था बल्कि कला से भरा हुआ था। नंदू खोटे, उनके फादर, एक रेस्पेक्टेड साइलेंट एरा एक्टर थे जिन्होंने थिएटर में भी अपना नाम बनाया और उनकी बुआ, दुर्गा खोटे, तो इंडियन सिनेमा की पायनियर्स में शुमार होती हैं। इस परिवार ने एक्टिंग को कभी सिर्फ प्रोफेशन नहीं माना बल्कि एक सेवा का रूप दिया।

विरासत जो आज भी ज़िंदा है

आज भी जब पुराने सिनेमा की बात होती है तो खोटे सिबलिंग्स का ज़िक्र ज़रूर होता है। उनका काम सिर्फ स्क्रीन तक सीमित नहीं था, उन्होंने नए आर्टिस्ट्स को इंस्पायर किया और हिंदी-मराठी एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में एक बेंचमार्क सेट किया। ऐसी लेगेसीज़ सिर्फ बनाई नहीं जातीं, वो दिलों में बसकर generation to generation चलती हैं।