अपने आप में एक बड़ा आंदोलन थे शिबू सोरेन, बने थे दिशोम गुरू
शिबू सोरेन का नाम कोई साधारण नाम नहीं है। शिबू सोरेन अपने आप में एक बहुत बड़ा आंदोलन थे। शिबू सोरेन को आम जनता ने दिशोम गुरू के खिताब से नवाजा था। दिशोम गुरू की उपाधि पाने वाले शिबू सोरेन में दिशोम गुरू बनने के सारे गुण मौजूद थे।

शिबू सोरेन अब इस दुनिया में नहीं रहे। 04 अगस्त 2025 की सुबह शिबू सोरेन का दु:खद निधन हो गया। यह परम सत्य है कि शिबू सोरेन जैसे लोग कभी करते नहीं हैं। शरीर छोड़ देने के बावजूद शिबू सोरेन हमेशा-हमेशा के लिए अमर हो गए हैं। शिबू सोरेन का नाम कोई साधारण नाम नहीं है। शिबू सोरेन अपने आप में एक बहुत बड़ा आंदोलन थे। शिबू सोरेन को आम जनता ने दिशोम गुरू के खिताब से नवाजा था। दिशोम गुरू की उपाधि पाने वाले शिबू सोरेन में दिशोम गुरू बनने के सारे गुण मौजूद थे। Shibu Sorenशिबू सोरेन से बन गए थे दिशोम गुरू
ठीक 25 साल पहले वर्ष सन -2000 में अस्तित्व में आया था झारखंड प्रदेश। झारखंड के नाम से अलग प्रदेश बनवाने का श्रेय शिबू सोरेन को जाता है। झारखंड प्रदेश की जनता ने शिबू सोरेन को दिशोम गुरू का खिताब दिया था। दिशोम गुरू का अर्थ होता है दिशा दिखाने वाला गुरू। शिबू सोरेन ने झारखंड की जनता को जो दिशा दिखाई थी उसी के कारणा शिबू सोरेन पूरी जनता के लिए दिशोम गुरू बन गए थे। 04 अगस्त को प्रकृति ने दिशोम गुरू को जनता से छीन लिया है। झारखंड की जनता का कहना है कि उनकी यादों में शिबू सोरेन तथा दिशोम गुरू के नाम सदा-सदा के लिए अमर हो गए हैं।
वर्ष-1972 में की थी शिबू सोरेन ने सबसे बड़े आंदोलन की शुरूआत
यह बात 4 फरवरी 1972 की बात है जब शिबू सोरेन ने सबसे बड़े आंदोलन की घोषणा की थी। उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन करके झारखंड को अलग प्रदेश बनाने के आंदोलन की घोषणा की थी। आपको बता दें कि झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन विनोद बिहारी महतो के घर में शिबू सोरेन तथा कामरेड एस.के. राय की मौजूदगी में हुई बैठक में 4 फरवरी 1972 को किया गया। शिबू सोरेन जानते थे कि युवा वर्ग की ताकत के बिना झारखंड बनाने का सपना पूरा नहीं होगा यही कारण था कि शिबू सोरेन ने युवा वर्ग को बड़ी संख्या में अपने साथ एकजुट किया। शिबू सोरेन ने युवा वर्ग को साथ मिलाकर शिबू सोरेन ने उस वक्त के बिहार के वर्तमान के झारखंड वाले क्षेत्र में धनकटनी आंदोलन शुरू किया था। धनकटनी आंदोलन में सक्रिय शिबू सोरेन के लडक़े महाजन वर्ग के धान को जबरन काट लेते थे। धान काटते समय लडक़ों की एक टोली तीर-कमान से उन लडक़ों की रक्षा करती थी। आगे चलकर वही तीर-कमान शिबू सोरेन की पार्टी का चुनाव चिन्ह बन गया। उन दिनों महाजन छल तथा प्रपंच करके आदिवासी समाज की जमीन हड़प लेते थे। शिबू सोरेन ने बाकायदा अभियान चलाकर आदिवासी समाज को महाजनों तथा सूदखोरों से मुक्ति दिलाशिबू सोरेन के धन कटनी आंदोलन से समाज को हुआ बड़ा फायदा
शिबू सोरेन ने जो धन कटनी आंदोलन शुरू किया उससे आदिवासी समाज को बहुत बड़ा फायदा हुआ। धन कटनी आंदोलन का स्वरूप भी बहुत ही निराला स्वरूप था। इस स्वरूप का निर्धारण भी शिबू सोरेन उर्फ गुरू जी ने ही किया था। शिबू सोरेन अपने साथियों के साथ टुंडी, पलमा, तोपचांची, डुमरी, बेरमो, पीरटांड में आंदोलन चलाने लगे। अक्टूबर महीने में आदिवासी महिलाएं हसिया लेकर आती और जमींदारों के खेतों से फसल काटकर ले जातीं। मांदर की थाप पर मुनादी की जाती। खेतों से दूर आदिवासी युवक तीर-कमान लेकर रखवाली करते और महिलाएं फसल काटती। इससे इलाके में कानून-व्यवस्था की स्थिति पैदा हो गई। टकराव में लोगों की मौत हुई। शिबू सोरेन छिपने के लिए पारसनाथ के घने जंगलों में चले गए और यहीं से आंदोलन चलाने लगे। इस आंदोलन के दौरान गुरुजी ने अपने साथी आंदोलनकारियों के लिए एक मर्यादा की एक लकीर खींच दी थी। उन्होंने तय किया कि ये लड़ाई खेत की है और खेत पर ही होगी। इसलिए इस पूरे आंदोलन में न तो महाजन और कुलीन वर्ग की महिलाओं के साथ कभी बदसलूकी की गई न हीं खेत छोडक़र उनके किसी और संपत्ति को नुकसान पहुंचाया गया।यह भी पढ़े:थरूर की सिंपल इंग्लिश पर SRK का ह्यूमर भरा रिप्लाई– फैंस बोले, ‘किंग खान है तो जवाब भी किंग साइज’आपातकाल में शिबू सोरेन को जाना पड़ा जेल में
आपको बता दें कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 25 जून 1975 को देश में आपातकाल की घोषणा कर दी। सरकारी अमले के पास असमीति शक्ति आ गई। इंदिरा गांधी ने शिबू सोरेन की गिरफ्तारी का आदेश दिया। लेकिन शिबू सोरेन तो फरार थे। तब केबी सक्सेना धनबाद के डिप्टी कलेक्टर थे। वे शिबू सोरेन को समझते थे। उन्होंने शिबू सोरेन को कानून की गंभीरता और सियासी दांव पेच समझाया और उन्हें सरेंडर के लिए राजी किया। 1976 में शिबू सोरेन ने सरेंडर कर दिया। उन्हें धनबाद जेल में रखा गया। शिबू सोरेन जेल में बंद थे। अक्टूबर-नवंबर का वक्त था। इस दौरान बिहार-झारखंड में छठ पर्व मनाया जाता है। जेल में एक महिला कैदी करुण स्वर में छठ के गीत गा रही थी। शिबू सोरेन जेल में महिला कैदी का गीत सुन कुछ समझ नहीं पाए, उन्होंने झारखंड आंदोलन के एक दूसरे कार्यकर्ता और जेल में बंद झगड़ू पंडित से इस बारे में पूछा। झगडू ने उन्हें बताया कि महिला हर बार छठ करती है, लेकिन इस बार एक अपराध के जुर्म में जेल में है इसलिए वो छठ नहीं कर पा रही है, लिहाजा वो बहुत पीड़ा में छठ के गीत गा रही है। शिबू सोरेन इस समय तक आदिवासी नेता के रूप में प्रसिद्ध हो चुके थे। उन्होंने एक गैर आदिवासी महिला की पीड़ा सुनी तो वे बेहद दुखी हुए। उन्होंने जेल में ही महिला के लिए छठ व्रत कराने का इंतजाम करा दिया। अपना नेतृत्व कौशल दिखा चुके शिबू सोरेन ने जेल में भी अपनी लीडरशिप क्वालिटी दिखाई। शिबू सोरेन सभी कैदियों से अपील की कि वे एक सांझ का खाना नहीं खाएंगे और उस पैसे से छठ पूजा के लिए सामान खरीदा जाएगा। हुआ भी ऐसा ही। सभी कैदियों ने एक टाइम का खाना त्याग दिया और महिला ने पारंपरिक आस्था के साथ छठ पूजा की।
आदिवासी नेता होकर भी शराब से दूर थे शिबू सोरेन
आपको यह भी बता दें कि आदिवासियों की जीवन शैली ऐसी रही है कि शराब का सेवन उनके समाज में सहज है। यहां शराब, हंडिया का प्रचलन आम है। शिबू सोरेन भले ही आदिवासी समाज के नेता हो लेकिन वे हमेशा नशे से दूर रहे। शराबबंदी को लेकर उनकी जिद इस तरह थी कि एक बार वे अपने चाचा पर नाराज हो गए और उन्हें पीटने पर उतारू हो गए। शिबू सोरेन महिला सम्मान के प्रति काफी सजग रहते थे और इसे बर्दाश्त नहीं करते थे। एक घटना का जिक्र करते हुए वरिष्ठ पत्रकार फैसल अनुराग कहते हैं कि शिबू सोरेन एक बार दुमका में एक कार्यक्रम का समापन कर धनबाद लौट रहे थे। इस समय शिबू इतनी जल्दी में थे कि उन्होंने रास्ते में रुककर ना तो खाना खाया और ना चाय पी। लेकिन एक बात हुई और अचानक बीच रास्ते में उनकी गाड़ी रुक गई। शिबू सोरेन एक गांव के अंदर पहुंचे। उनके लिए खाट बिछाई गई। पता चला कि लडक़ी के साथ छेडख़ानी का मामला है। उन्होंने वहीं पर कचहरी लगा दी और फैसला सुनाकर ही वहां से रवाना हुए। हालांकि इस पंचायती की वजह से उन्हें धनबाद पहुंचने में 5-6 घंटे की देरी हो गई। शिबू सोरेन के आंदोलन का दौर था। वे पलमा में जंगल में थे। रात का वक्त था और वे खाना खा रहे थे। तभी इस सन्नाटे में जंगल में एक कुत्ता भौंकने लगा। शिबू तुरंत चौकन्ना हो गए। उनका घर एक पहाड़ी पर था, वे वहां से कूदे और आगे चलकर देखते हैं कि पूरे पहाड़ी को फोर्स ने घेर लिया। शिबू सोरेन ने तुरंत डुगडुगी बजा दी। ये आस-पास के आदिवासियों को एक संकेत था। वहां तुरंत आदिवासियों का समूह पहुंच गया। इन लोगों ने शिबू सोरेन को अपनी सुरक्षा में ले लिया। भारी संख्या में आदिवासियों के आने के बाद पुलिस फोर्स को पीछे हटने पर मजबूर होना पड़ाShibu Soren।
ई।
शिबू सोरेन अब इस दुनिया में नहीं रहे। 04 अगस्त 2025 की सुबह शिबू सोरेन का दु:खद निधन हो गया। यह परम सत्य है कि शिबू सोरेन जैसे लोग कभी करते नहीं हैं। शरीर छोड़ देने के बावजूद शिबू सोरेन हमेशा-हमेशा के लिए अमर हो गए हैं। शिबू सोरेन का नाम कोई साधारण नाम नहीं है। शिबू सोरेन अपने आप में एक बहुत बड़ा आंदोलन थे। शिबू सोरेन को आम जनता ने दिशोम गुरू के खिताब से नवाजा था। दिशोम गुरू की उपाधि पाने वाले शिबू सोरेन में दिशोम गुरू बनने के सारे गुण मौजूद थे। Shibu Sorenशिबू सोरेन से बन गए थे दिशोम गुरू
ठीक 25 साल पहले वर्ष सन -2000 में अस्तित्व में आया था झारखंड प्रदेश। झारखंड के नाम से अलग प्रदेश बनवाने का श्रेय शिबू सोरेन को जाता है। झारखंड प्रदेश की जनता ने शिबू सोरेन को दिशोम गुरू का खिताब दिया था। दिशोम गुरू का अर्थ होता है दिशा दिखाने वाला गुरू। शिबू सोरेन ने झारखंड की जनता को जो दिशा दिखाई थी उसी के कारणा शिबू सोरेन पूरी जनता के लिए दिशोम गुरू बन गए थे। 04 अगस्त को प्रकृति ने दिशोम गुरू को जनता से छीन लिया है। झारखंड की जनता का कहना है कि उनकी यादों में शिबू सोरेन तथा दिशोम गुरू के नाम सदा-सदा के लिए अमर हो गए हैं।
वर्ष-1972 में की थी शिबू सोरेन ने सबसे बड़े आंदोलन की शुरूआत
यह बात 4 फरवरी 1972 की बात है जब शिबू सोरेन ने सबसे बड़े आंदोलन की घोषणा की थी। उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन करके झारखंड को अलग प्रदेश बनाने के आंदोलन की घोषणा की थी। आपको बता दें कि झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन विनोद बिहारी महतो के घर में शिबू सोरेन तथा कामरेड एस.के. राय की मौजूदगी में हुई बैठक में 4 फरवरी 1972 को किया गया। शिबू सोरेन जानते थे कि युवा वर्ग की ताकत के बिना झारखंड बनाने का सपना पूरा नहीं होगा यही कारण था कि शिबू सोरेन ने युवा वर्ग को बड़ी संख्या में अपने साथ एकजुट किया। शिबू सोरेन ने युवा वर्ग को साथ मिलाकर शिबू सोरेन ने उस वक्त के बिहार के वर्तमान के झारखंड वाले क्षेत्र में धनकटनी आंदोलन शुरू किया था। धनकटनी आंदोलन में सक्रिय शिबू सोरेन के लडक़े महाजन वर्ग के धान को जबरन काट लेते थे। धान काटते समय लडक़ों की एक टोली तीर-कमान से उन लडक़ों की रक्षा करती थी। आगे चलकर वही तीर-कमान शिबू सोरेन की पार्टी का चुनाव चिन्ह बन गया। उन दिनों महाजन छल तथा प्रपंच करके आदिवासी समाज की जमीन हड़प लेते थे। शिबू सोरेन ने बाकायदा अभियान चलाकर आदिवासी समाज को महाजनों तथा सूदखोरों से मुक्ति दिलाशिबू सोरेन के धन कटनी आंदोलन से समाज को हुआ बड़ा फायदा
शिबू सोरेन ने जो धन कटनी आंदोलन शुरू किया उससे आदिवासी समाज को बहुत बड़ा फायदा हुआ। धन कटनी आंदोलन का स्वरूप भी बहुत ही निराला स्वरूप था। इस स्वरूप का निर्धारण भी शिबू सोरेन उर्फ गुरू जी ने ही किया था। शिबू सोरेन अपने साथियों के साथ टुंडी, पलमा, तोपचांची, डुमरी, बेरमो, पीरटांड में आंदोलन चलाने लगे। अक्टूबर महीने में आदिवासी महिलाएं हसिया लेकर आती और जमींदारों के खेतों से फसल काटकर ले जातीं। मांदर की थाप पर मुनादी की जाती। खेतों से दूर आदिवासी युवक तीर-कमान लेकर रखवाली करते और महिलाएं फसल काटती। इससे इलाके में कानून-व्यवस्था की स्थिति पैदा हो गई। टकराव में लोगों की मौत हुई। शिबू सोरेन छिपने के लिए पारसनाथ के घने जंगलों में चले गए और यहीं से आंदोलन चलाने लगे। इस आंदोलन के दौरान गुरुजी ने अपने साथी आंदोलनकारियों के लिए एक मर्यादा की एक लकीर खींच दी थी। उन्होंने तय किया कि ये लड़ाई खेत की है और खेत पर ही होगी। इसलिए इस पूरे आंदोलन में न तो महाजन और कुलीन वर्ग की महिलाओं के साथ कभी बदसलूकी की गई न हीं खेत छोडक़र उनके किसी और संपत्ति को नुकसान पहुंचाया गया।यह भी पढ़े:थरूर की सिंपल इंग्लिश पर SRK का ह्यूमर भरा रिप्लाई– फैंस बोले, ‘किंग खान है तो जवाब भी किंग साइज’आपातकाल में शिबू सोरेन को जाना पड़ा जेल में
आपको बता दें कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 25 जून 1975 को देश में आपातकाल की घोषणा कर दी। सरकारी अमले के पास असमीति शक्ति आ गई। इंदिरा गांधी ने शिबू सोरेन की गिरफ्तारी का आदेश दिया। लेकिन शिबू सोरेन तो फरार थे। तब केबी सक्सेना धनबाद के डिप्टी कलेक्टर थे। वे शिबू सोरेन को समझते थे। उन्होंने शिबू सोरेन को कानून की गंभीरता और सियासी दांव पेच समझाया और उन्हें सरेंडर के लिए राजी किया। 1976 में शिबू सोरेन ने सरेंडर कर दिया। उन्हें धनबाद जेल में रखा गया। शिबू सोरेन जेल में बंद थे। अक्टूबर-नवंबर का वक्त था। इस दौरान बिहार-झारखंड में छठ पर्व मनाया जाता है। जेल में एक महिला कैदी करुण स्वर में छठ के गीत गा रही थी। शिबू सोरेन जेल में महिला कैदी का गीत सुन कुछ समझ नहीं पाए, उन्होंने झारखंड आंदोलन के एक दूसरे कार्यकर्ता और जेल में बंद झगड़ू पंडित से इस बारे में पूछा। झगडू ने उन्हें बताया कि महिला हर बार छठ करती है, लेकिन इस बार एक अपराध के जुर्म में जेल में है इसलिए वो छठ नहीं कर पा रही है, लिहाजा वो बहुत पीड़ा में छठ के गीत गा रही है। शिबू सोरेन इस समय तक आदिवासी नेता के रूप में प्रसिद्ध हो चुके थे। उन्होंने एक गैर आदिवासी महिला की पीड़ा सुनी तो वे बेहद दुखी हुए। उन्होंने जेल में ही महिला के लिए छठ व्रत कराने का इंतजाम करा दिया। अपना नेतृत्व कौशल दिखा चुके शिबू सोरेन ने जेल में भी अपनी लीडरशिप क्वालिटी दिखाई। शिबू सोरेन सभी कैदियों से अपील की कि वे एक सांझ का खाना नहीं खाएंगे और उस पैसे से छठ पूजा के लिए सामान खरीदा जाएगा। हुआ भी ऐसा ही। सभी कैदियों ने एक टाइम का खाना त्याग दिया और महिला ने पारंपरिक आस्था के साथ छठ पूजा की।
आदिवासी नेता होकर भी शराब से दूर थे शिबू सोरेन
आपको यह भी बता दें कि आदिवासियों की जीवन शैली ऐसी रही है कि शराब का सेवन उनके समाज में सहज है। यहां शराब, हंडिया का प्रचलन आम है। शिबू सोरेन भले ही आदिवासी समाज के नेता हो लेकिन वे हमेशा नशे से दूर रहे। शराबबंदी को लेकर उनकी जिद इस तरह थी कि एक बार वे अपने चाचा पर नाराज हो गए और उन्हें पीटने पर उतारू हो गए। शिबू सोरेन महिला सम्मान के प्रति काफी सजग रहते थे और इसे बर्दाश्त नहीं करते थे। एक घटना का जिक्र करते हुए वरिष्ठ पत्रकार फैसल अनुराग कहते हैं कि शिबू सोरेन एक बार दुमका में एक कार्यक्रम का समापन कर धनबाद लौट रहे थे। इस समय शिबू इतनी जल्दी में थे कि उन्होंने रास्ते में रुककर ना तो खाना खाया और ना चाय पी। लेकिन एक बात हुई और अचानक बीच रास्ते में उनकी गाड़ी रुक गई। शिबू सोरेन एक गांव के अंदर पहुंचे। उनके लिए खाट बिछाई गई। पता चला कि लडक़ी के साथ छेडख़ानी का मामला है। उन्होंने वहीं पर कचहरी लगा दी और फैसला सुनाकर ही वहां से रवाना हुए। हालांकि इस पंचायती की वजह से उन्हें धनबाद पहुंचने में 5-6 घंटे की देरी हो गई। शिबू सोरेन के आंदोलन का दौर था। वे पलमा में जंगल में थे। रात का वक्त था और वे खाना खा रहे थे। तभी इस सन्नाटे में जंगल में एक कुत्ता भौंकने लगा। शिबू तुरंत चौकन्ना हो गए। उनका घर एक पहाड़ी पर था, वे वहां से कूदे और आगे चलकर देखते हैं कि पूरे पहाड़ी को फोर्स ने घेर लिया। शिबू सोरेन ने तुरंत डुगडुगी बजा दी। ये आस-पास के आदिवासियों को एक संकेत था। वहां तुरंत आदिवासियों का समूह पहुंच गया। इन लोगों ने शिबू सोरेन को अपनी सुरक्षा में ले लिया। भारी संख्या में आदिवासियों के आने के बाद पुलिस फोर्स को पीछे हटने पर मजबूर होना पड़ाShibu Soren।
ई।







