सस्ते तेल पर भारत की चाल से अमेरिका बेचैन, भारी टैक्स लगाने की तैयारी

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locationभारत
userचेतना मंच
calendar25 Nov 2025 12:03 PM
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International News :  यूक्रेन युद्ध के चलते अंतरराष्ट्रीय मंच पर रूस को अलग-थलग करने की अमेरिका की कोशिशों के बीच अब वॉशिंगटन की नजर भारत-रूस के तेल व्यापार पर टेढ़ी हो गई है। अमेरिकी सीनेट में एक ऐसा प्रस्तावित कानून आने वाला है, जिसके पारित होने पर भारत और चीन जैसे देशों से आने वाले उत्पादों पर 500 प्रतिशत तक का आयात शुल्क (टैरिफ) लगाया जा सकेगा। अमेरिका का यह कदम भारत के लिए आर्थिक मोर्चे पर भारी साबित हो सकता है। इस विधेयक को रिपब्लिकन सीनेटर लिंडसे ग्राहम और डेमोक्रेट रिचर्ड ब्लूमेंथल ने मिलकर तैयार किया है और इसे राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का समर्थन भी प्राप्त है।

विधेयक का उद्देश्य साफ है—जो देश रूस से व्यापार करते हैं, खासकर सस्ते कच्चे तेल की खरीद करते हैं, उन्हें अमेरिकी व्यापार प्रणाली में ‘पेनल्टी’ झेलनी होगी। ग्राहम ने एबीसी न्यूज से बातचीत में दो टूक कहा -  अगर कोई देश रूस से ऊर्जा उत्पाद खरीद रहा है लेकिन यूक्रेन का समर्थन नहीं कर रहा है, तो अमेरिका को उसके उत्पादों पर 500% टैरिफ लगाने का अधिकार मिलना चाहिए। भारत और चीन मिलकर पुतिन के तेल का लगभग 70% हिस्सा खरीद रहे हैं। इससे रूस की युद्ध-आधारित अर्थव्यवस्था को संबल मिलता है।

अगस्त में विधेयक पेश होने की संभावना

यह प्रस्तावित बिल संभवतः अगस्त में अमेरिकी सीनेट में पेश किया जाएगा। यदि इसे बहुमत समर्थन मिल गया, तो भारत और चीन को सबसे पहले झटका लगेगा, क्योंकि दोनों देश रियायती रूसी तेल के प्रमुख खरीदार हैं। खास बात यह है कि यह चर्चा ऐसे वक्त पर हो रही है जब भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौते को अंतिम रूप दिया जा रहा है। अमेरिकी ट्रेजरी सचिव स्कॉट बेसेंट ने हाल ही में कहा था कि दोनों देशों के बीच ट्रेड डील “बहुत नजदीक” है, लेकिन कृषि से जुड़ी कुछ मांगों पर मतभेद भी सामने आए हैं।

भारत को हो सकता है भारी नुकसान

अगर यह विधेयक पारित होता है, तो भारत से अमेरिका को निर्यात होने वाले फार्मास्युटिकल्स, वस्त्र और आईटी सेवाओं पर भारी शुल्क लग सकता है। इससे न केवल भारत के उत्पाद अमेरिका में महंगे हो जाएंगे, बल्कि वहां इनकी मांग भी घट सकती है। यूक्रेन युद्ध के तीसरे वर्ष में भारत ने रूस से लगभग 49 अरब यूरो (करीब 52 अरब डॉलर) का कच्चा तेल खरीदा है। परंपरागत रूप से भारत मध्य पूर्व से तेल आयात करता रहा है, लेकिन फरवरी 2022 के बाद रूस से आयात में जबरदस्त उछाल आया।

भारत के लिए रणनीतिक लाभ

रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद पश्चिमी देशों ने रूस पर कई प्रतिबंध लगाए, जिसके चलते मास्को ने भारत को गहरे डिस्काउंट पर तेल बेचना शुरू किया। इस सस्ते तेल ने भारत को आर्थिक और रणनीतिक सुरक्षा प्रदान की। कच्चे तेल की कीमतों पर नियंत्रण बना, रिफाइंड उत्पादों का निर्यात बढ़ा और देश का आयात बिल घटा। CREA (Centre for Research on Energy and Clean Air) की रिपोर्ट के अनुसार भारत ने फरवरी 2022 से मार्च 2025 के बीच रूस से लगभग 112.5 अरब यूरो (करीब 118 अरब डॉलर) का कच्चा तेल खरीदा। युद्ध से पहले यह हिस्सेदारी 1% से भी कम थी, जो अब 35% से अधिक हो गई है। इस कदम से भारत को 25 अरब डॉलर तक की बचत हुई है।

बता दें  कि यह विधेयक मार्च 2024 में ही प्रस्तावित कर दिया गया था, लेकिन व्हाइट हाउस के रुख के कारण यह अटक गया। वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट बताती है कि ट्रंप ने इसकी भाषा में नरमी लाने के लिए ‘shall’ (करना होगा) की जगह ‘may’ (किया जा सकता है) जैसे शब्दों का उपयोग सुझाया था, ताकि लचीलापन बना रहे। अब जबकि चुनावी माहौल गरम है, ट्रंप ने हाल ही में गोल्फ खेलते हुए ग्राहम को इस विधेयक को आगे बढ़ाने की अनुमति दे दी है। ग्राहम ने ABC को बताया, कल पहली बार ट्रंप ने कहा— अब आपके बिल को आगे ले जाने का समय आ गया है।     International News

सियासी मानहानि की लड़ाई सुप्रीम कोर्ट पहुंची, इमरान ने जताया ऐतराज

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सियासी मानहानि की लड़ाई सुप्रीम कोर्ट पहुंची, इमरान ने जताया ऐतराज

Imran Khan
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locationभारत
userचेतना मंच
calendar01 Dec 2025 05:39 PM
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Imran Khan :  पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री और तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी के संस्थापक इमरान खान ने एक बार फिर अदालत के जरिए प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ द्वारा उनके खिलाफ दर्ज मानहानि मुकदमे में रणनीतिक मोर्चा खोल दिया है। लंबे समय से जेल में बंद इमरान ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर उस अदालत के अधिकार क्षेत्र को ही चुनौती दी है जो इस संवेदनशील मामले की सुनवाई कर रही है।

याचिका में क्या कहा गया है?

पाकिस्तान के प्रमुख अखबार द एक्सप्रेस ट्रिब्यून के अनुसार, इमरान खान की ओर से दायर याचिका में सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया गया है कि जब तक यह तय नहीं हो जाता कि इस केस की सुनवाई किस न्यायिक स्तर पर होनी चाहिए, तब तक वर्तमान कार्यवाही पर रोक लगा दी जाए। खान का तर्क है कि पाकिस्तान का कानून स्पष्ट रूप से कहता है कि मानहानि जैसे मामलों की सुनवाई सिर्फ जिला और सत्र न्यायालयों के दायरे में आती है। इमरान खान की ओर से दायर याचिका में सिर्फ अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश के अधिकार क्षेत्र पर ही सवाल नहीं उठाए गए, बल्कि लाहौर हाई कोर्ट द्वारा उस निर्णय को वैध ठहराने पर भी गंभीर आपत्ति जताई गई है।

उनकी कानूनी टीम का कहना है कि दोनों आदेश कानून के दायरे से बाहर हैं और इन्हें तत्काल प्रभाव से निरस्त किया जाना चाहिए। साथ ही सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया गया है कि जब तक इस अपील पर अंतिम निर्णय नहीं हो जाता, तब तक निचली अदालत में किसी भी प्रकार की कार्यवाही पर रोक लगाई जाए।

2017 से चल रहा है विवाद

इस प्रकरण की जड़ें वर्ष 2017 से ही जुड़ी है , जब शहबाज शरीफ ने तत्कालीन विपक्ष के नेता इमरान खान पर मानहानि का मामला दायर किया था। शरीफ का आरोप था कि इमरान ने उनके खिलाफ मीडिया में ऐसी बातें कही थीं जो पूरी तरह बेबुनियाद और दुर्भावनापूर्ण थीं। इन बयानों ने न सिर्फ उनकी सार्वजनिक छवि को नुकसान पहुंचाया, बल्कि उन्हें गहरी मानसिक पीड़ा और सामाजिक क्षति भी झेलनी पड़ी। शरीफ की टीम ने अदालत से 10 अरब रुपये के हर्जाने की मांग करते हुए तर्क दिया कि इमरान के आरोपों ने उनकी प्रतिष्ठा को झूठे आरोपों के जरिए गहरा आघात पहुंचाया।

इसके बाद साल  2021 में इमरान खान ने कोर्ट में जवाब दाखिल करते हुए दावा किया कि जिस जानकारी के आधार पर उन्होंने बयान दिए, वह उन्हें एक ऐसे करीबी मित्र ने दी थी, जिसे कथित रूप से शरीफ परिवार के एक सदस्य द्वारा पनामा पेपर्स मामले को दबाने के लिए प्रस्ताव मिला था। खान का कहना है कि उन्होंने यह बात सिर्फ जनहित में सार्वजनिक की और उनके बयान में कहीं भी शहबाज शरीफ का नाम सीधे तौर पर नहीं लिया गया।

Imran Khan

ताइवान की ओर बढ़ा नया ‘जंगी तूफान’, चीन ने तैनात किया अपना सबसे बड़ा युद्ध बेड़ा, एशिया में तनाव की नई लपटें

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Chaina
Battle Storm
locationभारत
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calendar01 Dec 2025 08:26 AM
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Battle Storm : जहां एक ओर दुनिया अब भी ईरान और इजरायल के बीच छिड़े संघर्ष की गूंज से उबर नहीं पाई है, वहीं एशिया के एक और संवेदनशील इलाके ताइवान के आसमान और समुद्र में युद्ध के बादलों की गड़गड़ाहट तेज हो गई है। चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने बीते दिनों ताइवान के नजदीकी समुद्री क्षेत्र में अपने सबसे बड़े जंगी बेड़े की मौजूदगी दर्ज कराई है, जिसकी पुष्टि स्वयं ताइवान के रक्षा मंत्रालय ने की है।

ताइवान की चेतावनी : सीमा के पार आ गया ड्रैगन

ताइवान के रक्षा मंत्रालय ने जानकारी दी है कि हाल ही में चीन के 6 युद्धपोत और 6 लड़ाकू विमान ताइवान की पहचान क्षेत्र में सक्रिय पाए गए। इनमें से तीन विमान ताइवान के एयर डिफेंस जोन की मध्य रेखा को भी पार कर गए, जिसे वर्षों से एक अनौपचारिक 'नो क्रॉस' लाइन माना जाता रहा है। यह कोई पहला अवसर नहीं है, पिछले एक साल में चीन द्वारा बार-बार सैन्य अभ्यास, समुद्री गश्त और साइबर हमलों के जरिए ताइवान पर दबाव बनाने की नीति साफ तौर पर देखी जा सकती है।

शेडोंग और लियाओनिंग की बढ़ती गतिविधि

ताइवान के राष्ट्रपति लाई चिंग-ते ने हाल ही में सैन्य अधिकारियों के साथ उच्चस्तरीय समीक्षा बैठक की। उन्होंने बताया कि चीन की नौसेना के दो प्रमुख एयरक्राफ्ट करियर, 'शेडोंग' और 'लियाओनिंग', ताइवान के पास के जल क्षेत्रों में लगातार सक्रिय हैं। यह संकेत है कि बीजिंग धीरे-धीरे 'फर्स्ट और सेकंड आइलैंड चेन' के आसपास अपनी रणनीतिक पकड़ मजबूत कर रहा है।

अमेरिकी कमांड भी अलर्ट

इस घटनाक्रम के बीच अमेरिका की इंडो-पैसिफिक कमांड ने अपनी तैनाती के स्तर को 'फोर्स प्रोटेक्शन कंडीशन' की ऊंची स्थिति में ले जाने का निर्णय लिया है। इसका तात्पर्य है कि अमेरिका भी इस स्थिति को एक संभावित सैन्य संकट के रूप में देख रहा है। चीन के इस कदम को न केवल ताइवान पर मनोवैज्ञानिक दबाव डालने की कोशिश माना जा रहा है, बल्कि यह वाशिंगटन के साथ बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव का भी हिस्सा है।

क्या ताइवान बना सकता है 'नई युद्धभूमि'?

विशेषज्ञ मानते हैं कि बीजिंग का यह रवैया ताइवान के साथ साथ पूरे एशिया-प्रशांत क्षेत्र की स्थिरता के लिए खतरे की घंटी है। चीन की "वन चाइना" नीति के तहत ताइवान को एक अलग राष्ट्र के रूप में मान्यता नहीं दी जाती। दूसरी ओर, ताइवान 1949 से वास्तविक स्वतंत्रता के साथ लोकतांत्रिक सरकार चलाता है और वह किसी भी तरह के सैन्य समर्पण से इंकार करता है।

महाशक्तियों की रेखाएं और 'आइलैंड वार' की आहट

ताइवान पर मंडराते बादल केवल द्वीप की सुरक्षा का मुद्दा नहीं हैं, बल्कि यह पूरे इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में शक्ति संतुलन को चुनौती देने वाली स्थिति है। अमेरिका, जापान, आॅस्ट्रेलिया और फिलीपींस जैसे देश ताइवान की सुरक्षा को लेकर पहले ही सतर्क हो चुके हैं। अगर चीन की यह रणनीति किसी बड़े टकराव की ओर बढ़ती है, तो यह न केवल एशिया, बल्कि दुनिया की अर्थव्यवस्था और शांति के लिए एक 'महा-संकट' का रूप ले सकती है।

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