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हवा में जहर घोलने के लिए हर नागरिक दोषी, बड़ी पड़ताल

Air Pollution

Air Pollution

Air Pollution : दिल्ली-एनसीआर की हवा में जहर (Air Pollution) फैला हुआ है। नोएडा, ग्रेटर नोएडा, दिल्ली, गाजियाबाद तथा गुरूग्राम आदि शहरों में सांस लेना मुश्किल हो गया है। नोएडा से लेकर दिल्ली तक इस बात पर बहस हो रही है कि हवा में प्रदूषण के लिए असल में कौन जिम्मेदार है। नोएडा हो ग्रेटर नोएडा या फिर दिल्ली हर कोई हवा में प्रदूषण के लिए किसानों को जिम्मेदार बता रहा है। हवा में प्रदूषण के लिए केवल किसान ही जिम्मेदार हैं। यह बात सच नहीं है।

क्या है वायु प्रदूषण का पूरा मामला

दिल्ली-एनसीआर में दिवाली से पहले फिर वायु की गुणवत्ता खराब हो गई है। हर साल अक्टूबर-नवंबर में पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसानों द्वारा पराली जलाने के कारण भी प्रदूषण बढ़ता है। इस प्रदूषण के लिए किसानों द्वारा पराली जलाने को एक बड़ा कारण माना जाता है, लेकिन पराली जलाना इस समस्या का एक कारण है। कुछ लोग और बुद्धिजीवी किसानों द्वारा पराली जलाने की प्रक्रिया को ऐसे प्रचारित करते हैं, जैसे इस प्रदूषण का केवल यही एक कारण है।

केवल पराली जलाने की प्रक्रिया को ही इस प्रदूषण के लिए जिम्मेदार नहीं माना जा सकता। ऐसे अनेक कारण हैं, जो इन दिनों प्रदूषण बढ़ाकर हवा की गुणवत्ता खराब करते हैं। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने पराली जलाने के मुद्दे पर पंजाब और हरियाणा की सरकारों को फटकार लगाई है। पराली न जलाने को लेकर बड़ी बड़ी बातें तो की जाती हैं, लेकिन किसानों के सामने इस समस्या का कोई व्यावहारिक समाधान पेश नहीं किया जाता है। वहीं, किसानों की लापरवाही प्रदूषण की समस्या को बढ़ा देती है। इस मामले में किसानों को ही दोष क्यों दिया जाए, शहरी लोग भी अपनी जिम्मेदारी कहां समझते हैं। करवा चौथ पर कई शहरों में जिस तरह से पटाखे छोड़े गए, वह यह दर्शाता है कि पर्यावरण और प्रदूषण जैसे मुद्दों पर हम कितने लापरवाह हैं। दिवाली पर भी हम अपनी लापरवाही और गैर जिम्मेदाराना व्यवहार का परिचय न दें, यह कैसे हो सकता है। कुल मिलाकार आने वाला समय प्रदूषण के लिहाज से दिल्ली-एनसीआर और देश के कई शहरों के लिए अच्छा नहीं है।

बढ़ रही है ढ़ेर सारी समस्याएं

वायु प्रदूषण बढऩे से सांस के रोगियों की समस्या बढ़ जाती है। वायु प्रदूषण बढऩे पर सरकार जरूर सक्रिय होती हैं, लेकिन जैसे ही प्रदूषण कम होता है, सरकार पुन: सो जाती हैं, जबकि वायु प्रदूषण कम करने वाले उपायों पर पूरे साल सक्रियता के साथ काम होते रहना चाहिए। हमें यह समझना होगा कि कोई भी तकनीक प्रदूषण को कम करने में सहायता तो कर सकती है, लेकिन इसे पूरी तरह से खत्म नहीं कर सकती। कई बार मौसम में परिवर्तन भी इस प्रदूषण के लिए जिम्मेदार है। रही-सही कसर हमारी नासमझी और मानवीय गतिविधियां पूरी कर देती हैं। यही कारण है कि हर साल अक्तूबर-नवंबर में होने वाले इस प्रदूषण को कम करने के लिए नीतियां तो बनती हैं, लेकिन उनका सही ढंग से क्रियान्वयन न होने के कारण नतीजा ढाक के तीन पात रहता है। सरकारी नीतियों के सही ढंग से क्रियान्वयन साथ जब तक जनता पूर्ण रूप से जागरूक नहीं होगी। वायु प्रदूषण को पूरी तरह से खत्म नहीं किया जा सकता।

धूल, धुएं और कुहासे से बना स्मॉग हमारे लिए कई समस्याएं पैदा करता है। जब जलता है, ईंधन वायुमंडलीय प्रदूषण या गैसें हवा में मौजूद सूरज की रोशनी और वातावरण में इसकी गर्मी के साथ प्रतिक्रिया करती हैं, तब स्मॉग बनता है। इस मौसम में हर साल स्मॉग के कारण प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है। निर्माण कार्य और वाहनों का धुआं भी प्रदूषण के लिए जिम्मेदार शोते हैं। वाहनों के धुएं में कार्बन मोनोऑक्साइड  नाइट्रोजन के ऑक्साइड, हाडड्रोकार्बन तथा सस्पेंडेड पार्टिकुलेट मैटर जैसे खतरनाक तत्व एवं गैसें होती हैं, जो स्वास्थ्य के लिए बहुत ही हानिकारक हैं। कार्बनमोनोऑक्साइड जब सांस के माध्यम से शरीर के अंदर पहुंचती है, तो वह हीमोग्लोबिन के साथ मिलकर कार्बोक्सी हीमोग्लोबिन नामक तत्व बनाती है। इ इस तत्य के कारण शरीर में ऑक्सीजन का परिवहन सुचारु रूप से नहीं हो पाता है। नाइट्रोजन मोनोऑक्साइड एवं नाइट्रोजन डाइऑक्साइड भी कम खतरनाक नहीं हैं। नाइट्रोजन मानोऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड की तरह हीमोग्लोबिन के साथ मिलकर शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा घटाते हैं। इसी तरह नाइट्रोजन डाइऑक्साइड फेफड़ों के लिए बहुत ही खतरनाक है। इसकी अधिकता से दमा और ब्रोंकाइटिस जैसे रोग होने की आशंका बढ़ जाती है। वातावरण में हाइड्रोकार्बन की अधिकता कैंसर जैसे रोगों के लिए जिम्मेदार है। वाहनों से निकलने वाला एथिलीन जैसा हाइड्रोकार्बन थोड़ी मात्रा में भी पौधों के लिए हानिकारक है। वास्तविकता यह है कि आज पर्यावरण के अनुकूल तकनीक के बारे में सोचने की फुर्सत किसी को नहीं है। पुराने जमाने में पर्यावरण के हर अवयव को भगवान का दर्जा दिया जाता था। इसीलिए हम पर्यावरण के हर अवयव की इज्जत करना जानते थे। नए जमाने में पर्यावरण के अवयव वस्तु के तौर पर देखे जाने लगे और हम इन्हें मात्र भोग की वस्तु मानने लगे। उदारीकरण की आंधी ने तो हमारे समस्त ताने-बाने को ही नष्ट कर दिया। सवाल यह है कि क्या खोखले आदर्शवाद से वायु प्रदूषण का मुद्दा हल हो सकता है? इसलिए अब समय आ गया है कि हमें हवा की गुणवत्ता को सुधारने के लिए गंभीरता के साथ काम करना होगा।

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